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आराधना कथाकोश
बड़ा कठिन हो गया । दिनोंदिन उसका स्वास्थ्य बिगड़ने लगा और आखिर वह पुत्र शोकसे मृत्युको प्राप्त हुई । मरते समय भी वह पुत्रके आर्त्तध्यानसे मरी, अतः मरकर व्यन्तर देवी हुई ।
उत्तर कार्तिकेय मुनि घूमते-फिरते एक बार रोहेड़ नगरीकी ओर आ गये, जहाँ इनकी बहिन ब्याही थी । ज्येष्ठका महीना था । खूब गर्मी थी । अमावस्या के दिन कार्तिकेय मुनि शहरमें भिक्षा के लिए गये। राजमहल के नीचे होकर वे जा रहे थे कि उन पर महल पर बैठी हुई उनकी बहिन वीरमतीकी नजर पड़ गई । वह उसी समय अपनी गोद में सिर रखकर लेटे हुए पति के सिरको नीचे रखकर दौड़ी हुई भाईके पास आई और बड़ी भक्ति से उसने भाईको हाथ जोड़कर नमस्कार किया। प्रेमके वशीभूत हो वह उसके पाँवों में गिर पड़ी। और ठीक है-भाई होकर फिर मुनि हो तब किसका प्रेम उन पर न हो ? क्रौंचराजने जब एक नंगे भिखारी के पाँव पड़ते अपनी रानीको देखा तब उसके क्रोधका कुछ ठिकाना न रहा । उन्होंने आकर मुनिको खूब मार लगाई । यहाँ तक कि मुनि मूच्छित होकर भूमि पर गिर पड़े। सच है, पापी, मिथ्यात्वी और जैनधर्मसे द्वेष करनेवाले लोग ऐसा कौन नीच कर्म नहीं कर गुजरते जो जन्म-जन्ममें अनन्त दुःखोंका देनेवाला न हो ।
कार्तिकेयको अचेत पड़े देखकर उनको पूर्वजन्मकी माँ, जो इस जन्ममें व्यन्तर देवी हो गई थीं, मोरनीका रूप ले उनके पास आई और उन्हें उठा लाकर बड़े यत्नसे शीतलनाथ भगवान् के मन्दिर में एक निरापद जगह में रख दिया । कार्तिकेय मुनिकी हालत बहुत खराब हो चुकी थी । उनके अच्छे होने की कोई सूरत न थी । इसलिये ज्योंही मुनिको मूर्च्छासे चेत हुआ उन्होंने समाधि ले लो। उसी दशा में शरीर छोड़कर वे स्वर्गधाम सिधारे । तब देवोंने आकर उनकी भक्ति से बड़ी पूजा की । उसो दिनसे वह स्थान भी कार्तिकेय तोर्थके नामसे प्रसिद्ध हुआ और वे वीरमतीके भाई थे इसलिए 'भाई बोज' के नामसे दूसरा लौकिक पर्व प्रचलित हुआ ।
आप लोग जिन भगवान् द्वारा उपदिष्ट ज्ञानका अभ्यास करें । वह सब सन्देहों का नाश करनेवाला और स्वर्ग तथा मोक्षका सुख प्रदान करनेवाला है । जिनका ऐसा उच्च ज्ञान संसारके पदार्थोंका स्वरूप दिखानेके लिये दिये की तरह सहायता करनेवाला है वे देवों द्वारा पूजे जानेवाले,
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