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आराधना कथाकोश
आदर पात्र हैं, जिनके हृदय में सुख देनेवाले जिन वचन रूप अमृतको सदा स्रोता बहता रहता है । इन्हीं वचनोंपर विश्वास करनेको सम्यग्दर्शन कहते हैं । यह सम्यग्दर्शन जीवमात्रका हित करनेवाला है, संसार भय मिटानेवाला है, नाना प्रकारके सुखोंका देनेवाला है, और मोक्ष प्राप्तिका मुख्य कारण है । देव, विद्याधर आदि सभी बड़े- बड़े पुरुष सम्यग्दर्शनकी या उसके धारण करनेवालेकी पूजा करते हैं । यह गुणों का खजाना है । सम्यग्दृष्टिको कोई प्रकारकी भय - बाधा नहीं होती । वह बड़ो मुख-शान्ति मे रहता है । इसलिए जो सच्चे सुखकी आशा रखते हैं उन्हें आठ अंग सहित 'इस पवित्र सम्यग्दर्शनका विश्वासके साथ पालन करना चाहिए ।
७७. शुभ राजाकी कथा
संसारका हित करनेवाले जिनेन्द्र भगवान्को प्रसन्नता पूर्वक नमस्कार कर शुभ नामके राजाकी कथा लिखी जाती है ।
मिथिला नगरके राजा शुभकी रानी मनोरमाके देवरति नामका एक पुत्र था | देवरति गुणवान और बुद्धिमान् था। किसी प्रकारका दोष या व्यसन उसे छू तक न गया था ।
एक दिन देवगुरु नामके अवधिज्ञानी मुनिराज अपने संघको साथ लिये मिथिला में आये । शुभ राजा तब बहुतसे भव्यजनोंके साथ मुनि-पूजाके लिए गया । मुनिसंघको सेवा-पूजा कर उसने धर्मोपदेश सुना । अन्तमें उसने अपने भविष्य के सम्बन्धका मुनिराज से प्रश्न किया - योगिराज, कृपाकर बतलाइए कि आगे मेरा जन्म कहाँ होगा ? उत्तर में मुनिने कहा- राजन्, सुनिए - पापकर्मों के उदयसे तुम्हें आगेके जन्ममें तुम्हारे ही पाखाने में एक बड़े कीड़ेकी देह प्राप्त होगी, शहर में घुसते समय तुम्हारे मुँहमें विष्टा प्रवेश करेगा, तुम्हारा छत्रभंग होगा और आजके सातवें दिन बिजली गिरनेसे तुम्हारी मौत होगी। सच है, जीवोंके पापके उदयसे सभी कुछ होता है । मुनिराजने ये सब बातें राजासे बड़े निडर होकर कहीं । और यह ठीक भी है कि योगियोंके मनमें किसी प्रकारका भय नहीं रहता ।
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