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आराधना कथाकोश जिनदीक्षा लिये यह विद्या आ नहीं सकती। सूर्यमित्र तब केवल विद्याके लोभसे दोक्षा लेकर मुनि हो गया । मुनि होकर इसने गुरुसे विद्या सिखाने को कहा। सुधर्म मुनिराजने तब सूर्य मित्रको मुनियोंके आचार-विचार के शास्त्र तथा सिद्धान्त-शास्त्र पढ़ाये । अब तो एकदम सर्य मित्रको आँखें खुल गई। यह गुरुके उपदेश रूपी दियेके द्वारा अपने हृदयके अज्ञानान्धकारको नष्ट कर जैनधमका अच्छा विद्वान् हो गया। सच है, जिन भव्य पुरुषोंने सच्चे मार्गको बतलानेवाले और संसारके अकारण बन्धु गुरुओंकी भक्ति सहित सेवा-पूजा को है, उनके सब काम नियमसे सिद्ध हुए हैं।
जब सूर्यमित्र मुनि अपने मुनिधर्ममें खूब कुशल हो गये तब वे गुरुकी आज्ञा लेकर अकेले ही विहार करने लगे। एक बार वे विहार करते हुए कौशाम्बीमें आये । अग्निभूतने इन्हें भक्तिपूर्वक दान दिया। उसने अपने छोटे भाई वायुभूतिसे बहुत प्रेरणा और आग्रह इसलिये किया कि वह सूर्यमित्र मुनिकी वन्दना करें, उसे जैनधर्मसे कुछ प्रेम हो। कारण वह जैनधर्मसे सदा विरुद्ध रहता था । पर अग्निभूतिके इस आग्रहका परिणाम उलटा हुआ । वायुभूतिने और खिसियाकर मुनिकी अधिक निन्दा की और उन्हें बुरा-भला कहा। सच है, जिन्हें दुर्गतियोंमें जाना होता है प्रेरणा करने पर भी ऐसे पुरुषोंका श्रेष्ठ धर्मकी ओर झुकाव नहीं होता, किन्तु वह उलटा पाप कीचड़ में अधिक-अधिक फँसता है। अग्निभूतको अपने भाईकी ऐसी दुर्बुद्धि पर बड़ा दुःख हुआ। और यही कारण था कि जब मुनिराज आहार कर वनमें गये तब अग्निभूति भी उनके साथ-साथ चला गया। और वहाँ धर्मोपदेश सुनकर वैराग्य हो जानेसे दीक्षा लेकर वह भो तपस्वी हो गया। अपना और दूसरोंका हित करना अबसे अग्निभूतिके जीवनका उद्देश्य हुआ । ___ अग्निभूतिके मुनि हो जानेको बात जब इसको स्त्री सतो सोमदत्ताको ज्ञात हुई तो उसे अत्यन्त दुःख हुआ। उसने वायुभूतिसे जाकर कहादेखो, तुमने मुनिको वन्दना न कर उनकी बुराई की, सुनती हूँ उससे दुखो होकर तुम्हारे भाई भी मुनि हो गये। यदि वे अब तक मुनि न हुए हों तो चलो उन्हें तुम हम समझा लावें । वायुभूतिने गुस्सा होकर कहाहाँ तुम्हें गर्ज हो तो तुम भी उस बदमाश नंगेके पास जाओ ! मुझे तो कुछ गर्ज नहीं है । यह कहकर वायुभूति अपनी भौजोके एक लात मारकर चलता बना। सोमदत्ताको उसके मर्मभेदो वचनोंको सुनकर बड़ा दुःख हुआ । उसे क्रोध भी अत्यन्त आया। पर अबला होनेसे वह उस समय
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