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पणिक मुनिकी कथा बिराजे हुए थे, पूनमके चन्द्रमाको शरमिन्दा करनेवाले तीन छत्र उन पर शोभा दे रहे थे, मोतियोंके हारके समान उज्ज्वल और दिव्य चंवर उन पर दुर रहे थे, एक साथ उदय हुए अनेक सूर्योंके तेजको जिनके शरीरको कान्ति दबाती थी, नाना प्रकारकी शंकाओंकों मिटानेवाली दिव्यध्वनि द्वारा जो उपदेश कर रहे थे, देवोंके बजाये दुन्दुभि नामके बाजोंसे आकाश और पृथ्वी मण्डल शब्दमय बन गया था, इन्द्र, नागेन्द्र, चक्रवर्ती, विद्याधर और बड़े-बड़े राजे-महाराजे आदि आ-आकर जिनकी पूजा करते थे, अनेक निर्ग्रन्थ मुनिराज उनकी स्तुति कर अपनेको कृतार्थ कर रहे थे. चौंतीस प्रकारके अतिशयोंसे जो शोभित थे, अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख और अनन्तवीर्य ऐसे चार अनन्त चतुष्टय आत्म-सम्पत्तिको धारण किये थे, जिन्हें संसारके सर्वोच्च महापुरुषका सम्मान प्राप्त था, तीनों लोकोंको स्पष्ट देख-जानकर उसका स्वरूप भव्य-जनोंको जो उपदेश कर रहे थे और जिनके लिये मुक्ति-रमणी वरमाला हाथमें लिए उत्सुक हो रही थी।
पणिकने भगवान्का ऐसा दिव्य स्वरूप देखकर उन्हें अपना सिर नवाया, उनकी स्तुति-पूजा को, प्रदक्षिणा दी और बैठकर धर्मोपदेश सुना। अन्तमें उसने अपनी आयुके सम्बन्धमें भगवानसे प्रश्न किया। भगवानके उत्तरसे उसे अपनी आयु बहुत थोड़ो जान पड़ी। ऐसी दशामें आत्महित करना बहुत आवश्यक समझ पणिक वहीं दीक्षा ले साधु हो गया। यहाँसे विहार कर अनेक देशों और नगरोंमें धर्मोपदेश करते हुए पणिक मुनि एक दिन गंगा किनारे आये । नदी पार होनेके लिये ये एक नावमें बैठे । मल्लाह नाव खेये जा रहा था कि अचानक एक प्रलयकी-सी आँधीने आकर नावको खूब डगमगा दिया, उसमें पानी भर आया, नाव डूबने लगी । जब तक नाव डूबती है पणिक मुनिने अपने भावोंको खूब उन्नत किया। यहाँ तक कि उन्हें उसी समय केवलज्ञान हो गया और तुरन्त ही वे अघातिया । कर्मोंका नाश कर मोक्ष चले गये। वे सेठ पुत्र पणिक मुनि मुझे भी अविनाशी मोक्ष-लक्ष्मी दें, जिन्होंने मेरु समान स्थिर रहकर कर्म शत्रुओंका नाश किया।
सागरदत्त सेठकी स्त्री पणिका सेठानीके पुत्र पवित्रात्मा पणिक मुनि, वर्द्धमान भगवान्के दर्शन कर, जो कि मोक्षके देनेवाले हैं, और उनसे अपनी आयु बहुत ही थोड़ी जानकर संसारको सब माया-ममता छोड़ मुनि हो गये और अन्तमें कर्मोका नाश कर मोक्ष गये, वे मुझे भी सुखी करें ।
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