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भद्रबाहु मुनिराजकी कथा
२७९ साधु बना लिया । भद्रबाहु घर गये सही, पर अब उनका मन घरमें न लगने लगा । उन्होंने माता-पितासे अपने साधु होनेकी प्रार्थना की । माता-पिताको उनकी इस इच्छासे बड़ा दुःख हुआ । भद्रबाहुने उन्हें समझा बुझाकर शान्त किया और आप सब माया-मोह छोड़कर गोवर्द्धनाचार्य द्वारा दीक्षा ले योगी हो गये । सच है, जिसने तत्त्वोंका स्वरूप समझ लिया वह फिर गृहजंजालको क्यों अपने सिर पर उठायेगा ? जिसने अमृत चख लिया है वह फिर क्यों खारा जल पीयेगा ? मुनि हुए बाद भद्रबाहु अपने गुरुमहाराज गोवर्द्धनाचार्यकी कृपासे चौदह महापूर्वके भी विद्वान् हो गये । जब संघाधीश गोवर्द्धनाचार्यका स्वर्गवास हो गया तब उनके बाद उनके पट्ट पर भद्रबाहु श्रुतकेवली ही बैठे । अब भद्रबाहु आचार्य अपने संघको साथ लिए अनेक देशों और नगरोंमें अपने उपदेशामृत द्वारा भव्यजनरूपी धानको बढ़ाते हुए उज्जैनकी ओर आये और सारे संघको एक पवित्र स्थानमें ठहरा कर आप आहार के लिए शहर में गये । जिस घर में इन्होंने पहले ही पाँव दिया वहाँ एक बालक पलनेमें झूल रहा था, और जो अभो स्पष्ट बोलना तक न जानता था; इन्हें घरमें पाँव देते देख वह सहसा बोल उठा कि "महाराज, जाइए ! जाइए !! एक अबोध बालकको बोलता देखकर भद्रबाहु आचार्य बड़े चकित हुए । उन्होंने उसपर निमित्तज्ञानसे विचार किया तो उन्हें जान पड़ा कि यहाँ बारह वर्षका भयानक दुर्भिक्ष पड़ेगा और वह इतना भीषणरूप धारण करेगा कि धर्म-कर्मकी रक्षा तो दूर रहे, पर मनुष्यों को अपनी जान बचाना भी कठिन हो जायगा । भद्रबाहु आचार्य उसी समय अन्तराय कर लौट आये। शामके समय उन्होंने अपने सारे संघको इकट्ठा कर उनसे कहा - साधुओ, यहाँ बारह वर्षका बड़ा भारी अकाल पड़नेवाला है, और तब धर्म-कर्मका निर्वाह होना कठिन ही नहीं, असम्भव हो जायगा इसलिए आप लोग दक्षिण दिशाकी ओर जायें और मेरी आयु बहुत ही थोड़ी रह गई है, इसलिए मैं इधर ही रहूँगा । यह कहकर उन्होंने दशपूर्वके जाननेवाले अपने प्रधान शिष्य श्रीविशाखाचार्यको चारित्रकी रक्षाके लिए सारे संघसहित दक्षिणकी ओर रवाना कर दिया । दक्षिणकी ओर जानेवाले मुनि उधर सुखशान्तिसे रहे । उनका चारित्र निर्विघ्न पला । और सच है, गुरुके वचनों को माननेवाले शिष्य सदा सुखी रहते हैं ।
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सारे संघको चला गया देख उज्जैन के राजा चन्द्रगुप्तको उसके वियोगका बहुत रंज हुआ । उससे फिर वे भी दीक्षा ले मुनि बन गये और भद्रबाहु आचार्य की सेवामें रहे । आचार्यकी आयु थोड़ी रह गई थी,
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