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गजकुमार मुनिकी कथा जबरदस्ती अच्छे-अच्छे घरोंकी सती स्त्रियोंकी इज्जत लेने लगा। वह ठहरा राजकूमार, उसे कौन रोक सकता था ! और जो रोकनेकी कुछ हिम्मत करता तो वह उसकी आँखोंका काँटा खटकने लगता और फिर गजकुमार उसे जड़मूलसे उखाड़कर फेंकनेका यत्न करता। उस कामको, उस दुराचारको धिक्कार है, जिसके वश हो मूर्ख-जनोंको लज्जा और भय भी नहीं रहता है। ___इसी तरह गजकुमारने अनेक अच्छी-अच्छी कुलीन स्त्रियोंकी इज्जत ले डाली । पर इसके दबदबसे किसीने चूं तक न किया। एक दिन पांसुल सेठकी सुरति नामकी स्त्री पर इसकी नजर पड़ी और इसने उसे खराब भी कर दिया। यह देख पांसुलका हृदय क्रोधाग्निसे जलने लगा। पर वह बेचारा इसका कुछ कर नहीं सकता था। इसलिये उसे भी चुपचाप घरमें बैठ रह जाना पड़ा।
एक दिन भगवान् नेमिनाथ भव्य-जनोंके पुण्योदयसे द्वारकामें आये । बलभद्र, वासुदेव तथा और भी बहतसे राजे-महाराजे बड़े आनन्दके साथ भगवान्की पूजा करनेको गये। खूब भक्तिभावोंसे उन्होंने स्वर्ग-मोक्षका सुख देनेवाले भगवान्की पूजा-स्तुति की, उनका ध्यान-स्मरण किया। बाद गृहस्थ और मुनि धर्मका भगवान्के द्वारा उन्होंने उपदेश सुना, जो कि अनेक सुखोंका देनेवाला है। उपदेश सुनकर सभी बहत प्रसन्न हुए। उन्होंने बार-बार भगवान्की स्तुति की। सच है, साक्षात् सर्वज्ञा भगवान् का दिया सर्वोपदेश सुनकर किसे आनन्द या खुशी न होगी। भगवान्के उपदेशका गजकुमारके हृदय पर अत्यन्त प्रभाव पड़ा । वह अपने किये पापकर्मों पर बहुत पछताया । संसारसे उसे बड़ी घृणा हुई। वह उसी समय भगवान्के पास ही दीक्षा ले गया, जो संसारके भटकनेको मिटानेवाली है । दीक्षा लेकर गजकुमार मुनि विहार कर गये। अनेक देशों और नगरोंमें विहार करते, और भव्य-जनोंको धर्मोपदेश द्वारा शान्तिलाभ कराते अन्तमें वे गिरनार पर्वतके जंगलमें आये। उन्हें अपनी आयु बहुत थोड़ी जान पड़ी। इसलिए वे प्रायोपगमन संन्यास लेकर आत्म-चिन्तवन करने लगे। तब इनकी ध्यान-मुद्रा बड़ी निश्चल और देखने योग्य थी।
इनके संन्यासका हाल पांसुल सेठको जान पड़ा, जिसकीकी स्त्रीको गजकुमारने अपने दुराचारीपनेकी दशामें खराब किया था। सेठको अपना बदला चुकानेका बड़ा अच्छा मौका हाथ लग गया। वह क्रोधसे भर्राता हुआ गजकुमार मुनिके पास पहुंचा और उनके सब सन्धिस्थानोंमें लोहेके
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