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. आराधना कथाकोश ने अच्छे घरानेको कोई बत्तीस सुन्दर कन्याओंके साथ उसका ब्याह कर उन सबके रहनेको एक जुदा हो बड़ा भारी महल बनवा दिया और उसमें सब प्रकारको विषय-भोगोंको एकसे एक उत्तम वस्तु इकट्री करवा दी, जिससे कि सुकुमालका नाम सदा विषयों में फंसा रहे । इसके सिवा पुत्रके मोहसे उसने इतना और किया कि अपने घरमें जैन मुनियोंका आना-जाना भी बन्द करवा दिया।
एक दिन किसी बाहरके सौदागरने आकर राजा प्रद्योतनको एक बहुमूल्य रत्न-कम्बल दिखलाया, इसलिए कि वह उसे खरीद ले। पर उसकी कीमत बहुत ही अधिक होनेसे राजाने उसे नहीं लिया। रत्न-कम्बलकी बात यशोभद्रा सेठानीको मालूम हई। उसने उस सौदागरको बुलवाकर उससे वह कम्बल सुकुमालके लिए मोल ले लिया । पर वह रत्नोंकी जड़ाईके कारण अत्यन्त हो कठोर था, इसलिए सुकुनालने उसे पसन्द न किया। तब यशोभद्राने उसके टुकड़े करवा कर अपनी बहओंके लिए उसकी जूतियाँ बनवा दीं। एक दिन सुकुमालकी प्रिया जूतियाँ खोलकर पाँव धो रहो थी। इतने में एक चील मांसके लोभसे एक जतोको उठा ले उड़ी । उसकी चोंचसे छूटकर वह जूती एक वेश्याके मकानको छत पर गिरी। उस जूतीको देखकर वेश्याको बड़ा आश्चर्य हुआ। वह उसे राजघरानेको समझकर राजाके पास ले गई। राजा भी उसे देखकर दंग रह गये कि इतनी कोमतो जिसके यहाँ जतियाँ पहरी जाती हैं तब उसके धनका क्या ठिकाना होगा। मेरे शहर में इतना भारी धनी कौन है ? इसका अवश्य पता लगाना चाहिए। राजाने जब इस विषयको खोज की तो उन्हें सुकुमाल सेठका समाचार मिला कि इनके पास बहुत धन है और वह जूती उनकी स्त्रीकी है। राजाको सुकूनालके देखने की बड़ी उत्कंठा हुई। वे एक दिन सुकुमालसे मिलनेको आये। राजाको अपने घर आये देख सुकुमालकी मां यशोभद्राको बड़ी खुशी हई। उसने राजाका खूब अच्छा आदर-सत्कार किया । राजाने प्रेमवश हो सुकुमालको भी अपने पास सिंहासन पर बैठा लिया। यशोभद्राने उन दोनोंकी एक ही साथ आरतो उतारी। दियेकी तथा हारकी ज्योतिसे मिलकर बढ़े हुए तेजको सुकुमालकी आँखें न सह सकी, उनमें पानी आ गया। इसका कारण पूछने पर यशोभद्राने राजासे कहा-महाराज, आज इसको इतनी उमर हो गई, कभी इसने रत्नमयो दीयेको छोड़कर ऐसे दीयेको नहीं देखा । इसलिए इसकी आँखोंमें पानी आ गया है। यशोभद्रा जब दोनोंको भोजन कराने बैठी तब सुकुमाल अपनी शालीमें परोसे टा चानलोंमें में एक-एक चावलको बीन-बीनकर खाने
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