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भीमराजको कथा
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कांपिल्य नगरमें भीम नामका एक राजा हो गया है । वह दुबुद्धि बड़ा पापी था। उसकी रानोका नाम सोमश्री था। इसके भीमदास नामका एक लड़का था। भीमने कुल-क्रमके अनुसार नन्दीश्वर पर्वमें मुनादी पिटवाई कि कोई इस पर्व में जोवहिंसा न करे । राजाने मुनादी तो पिटवा दी, पर वह स्वयं महा लम्पटो था। मांस खाये बिना उसे एक दिन भी चैन नहीं पड़ता था। उसने इस पर्वमें भी अपने रसोइयेसे मांस पकाने. को कहा । पर दुकानें सब बन्द थीं, अतः उसे बड़ी चिन्ता हुई। वह मांस लाये कहाँसे? तब उसने एक युक्ति की। वह मसानसे एक बच्चेकी लाश उठा लाया और उसे पकाकर राजाको खिलाया। राजाको वह मांस बड़ा हो अच्छा लगा। तब उसने रसोइयेसे कहा-क्यों रे, आज यह मांस और-और दिनोंकी अपेक्षा इतना स्वादिष्ट क्यों है? रसोइयेने डरकर सच्ची बात राजासे कह दी। राजाने तब उससे कहा-आजसे तू बालकोंका हो मांस पकाया करना।
राजाने तो झटसे कह दिया कि अबसे बालकोंका हो मांस खानेके लिए पकाया करना । पर रसोइयेको इसकी बड़ी चिन्ता हुई कि वह रोजरोज बालकोंको लाये कहाँसे ? और राजाज्ञाका पालन हाना हो चाहिये। तब उसने यह प्रयत्न किया कि रोज शामके वक्त शहरके मुहल्लोंमें जाना जहाँ बच्चे खेल रहे हों उन्हें मिठाईका लोभ देकर झटसे किसी एकको पकड़ कर उठा लाना। इसी तरह वह रोज-रोज एक बच्चे की जान लेने लगा। सच है, पापी लोगोंकी संगति दूसरोंको भी पापो बना देती है। जैसे भोमराजकी संगतिसे उसका रसोइया भो उसीके सरीखा पापी हो गया।
बालकोंको प्रतिदिन इस प्रकार एकाएक गायब होनेसे शहरमें बड़ी हलचल मच गई। सब इसका पता लगानेकी कोशिश में लगे । एक दिन इधर तो रसोइया चुपकेसे एक गृहस्थके बालकको उठाकर चला कि पीछे- . से उसे किसीने देख लिया। रसोइया झट-पट पकड़ लिया गया। उससे जब पूछा गया तो उसने सब बातें सच्ची-सच्ची बतला दी। यह बात मंत्रियोंके पास पहुंची। उन्होंने सलाह कर भीमदासको अपना राजा बनाया और भीमको रसोइयेके साथ शहरसे निकाल बाहर किया। सच है, पापियोंका कोई साथ नहीं देता। माता, पुत्र, भाई, बहिन, मित्र, मंत्री, प्रजा आदि सब हो विरुद्ध होकर उसके शत्रु बन जाते हैं ।
भीम यहाँसे चलकर अपने रसोइयेके साथ एक जंगलमें पहुंचा । यहाँ इसे बहुत ही भूख लगी । इसके पास खानेको कुछ नहीं था। तब यह अपने
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