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आराधना कथाकोश
बिगाड़ दिया । खैर, जो हुआ, अब पीछे लौट जाना भी ठीक नहीं । चलकर प्रयत्न जरूर करना चाहिए। इसके बाद यह राजाके पास गया और प्रार्थना कर अपने रहनेको एक स्थान उसने माँगा । स्थान उसकी प्रार्थनाके अनुसार गन्धर्वसेना के महलके पास ही मिला। कारण राजासे पांचाल ने कह दिया था कि आपकी राजकुमारी गाने में बड़ी होशियार है, ऐसा मैं सुनता हूँ। और मैं भी आपकी कृपासे थोड़ा बहुत गाना जानता हूँ, इसलिए मेरी इच्छा राजकुमारीका गाना सुनकर यह बात देखनेकी है कि इस विषय में उसकी कैसी गति है । यही कारण था कि राजाने कुमारी महलके समीप ही उसे रहनेकी आज्ञा दे दो । अस्तु
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एक दिन पांचाल कोई रातके तीन चार बजे के समय वीणाको हाथमें लिए बड़ी मधुरतासे गाने लगा । उसके मधुर मनोहर गानेकी आवाज शान्त रात्रिमें आकाशको भेदती हुई गन्धर्वसेनाके कानोंसे जाकर टकराई । गन्धर्वसेना इस समय भर नींद में थी । पर इस मनोमुग्ध करनेवाली आवाजको सुनकर वह सहसा चौंक कर उठ बैठी । न केवल उठ बैठने हीसे उसे सन्तोष हुआ । वह उठकर उधर दौड़ी भी गई जिधरसे आवाज गूंजती हुई आ रही थी । इस बेभान अवस्था में दौड़ते हुए उसका पाँव खिसक गया और वह धड़ामसे आकर जमीन पर गिर पड़ी । देखते-देखते उसका आत्माराम उसे छोड़ कर चला गया। इस विषयासक्ति से उसे फिर संसारमें चिर समय तक रुलना पड़ा ।
गन्धर्वसेना एक कर्णेन्द्रियके विषयको लम्पटतासे जब अथाह संसारसागर में डूबी, तब जो पाँचों इन्द्रियोंके विषयोंमें सदा काल मस्त रहते हैं, वे यदि डूबें तो इसमें नई बात क्या ? इसलिए बुद्धिमानों का कर्तव्य है कि इन दुःखोंके कारण विषयभोगों को छोड़कर सुखके सच्चे स्थान जिनधर्मका आश्रय लें।
५०. भीमराजकी कथा
केवलज्ञानरूपी नेत्रोंकी अपूर्व शोभाको धारण किये हुए श्रीजिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर भीमराजकी कथा लिखी जाती है, जिसे सुनकर सत्पुरुषों को इस दुःखमय संसारसे वैराग्य होगा ।
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