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सगरचक्रवर्ती की कथा
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के नशे में चूर होकर यह सब सुध-बुध भूल गया, अपनेपनका इसे कुछ ज्ञान न रहा । लंगोटी आदि फैंक कर यह भी उन लोगों की तरह नाचने-कूदने लगा जैसे कोई भूत-पिशाचके पंजे में पड़ा हुआ उन्मत्तकी भाँति नाचनेकूदने लगता है । सच है, कुसंगति कुल, धर्म, पवित्रता आदि सभीका नाश कर देती है । संन्यासी बड़ी देर तक तो इसी तरह नाचता-कूदता रहा पर जब वह थोड़ा थक गया तो उसे जोरकी भूख लगी । वहाँ खानेके लिए मांस के सिवा कुछ भी नहीं था । संन्यासोने तब मांस हो खा लिया । पेट भरने के बाद उसे कामने सताया । तब उसने यौवनकी मस्ती मत्त उस स्त्रोके साथ अपनी नीच वासना पूरी की। मतलब यह कि एक शराब पीनेसे उसे ये सब नीचकर्म करने पड़े । दूसरे ग्रन्थोंमें भी इस एकपात संन्यासीके सम्बन्धमें लिखा है कि "मूर्ख एकपात संन्यासीने स्मृतियों के वचनोंको प्रमाण मानकर शराब पी, मांस खाया और चाण्डालिनी के साथ विषय सेवन किया ।'' इसलिये बुद्धिमानोंको उचित है कि वे सहसा किसी प्रमाण पर विश्वास न कर बुद्धिसे काम लें। क्योंकि मीठे पानी में मिला हुआ विष भी जान लिए बिना नहीं छोड़ता ।
देखिये, एकपात संन्यासी गंगा- गोदावरीका नहानेवाला था, विष्णुका सच्चा भक्त था, वेदों और स्मृतियोंका अच्छा विद्वान् था, पर अज्ञानसे स्मृतियों के वचनोंको हेतु शुद्ध मानकर अर्थात् ऐसी शराब पीनेमें पाप नहीं, चाण्डालिनीका सेवन करने पर भी प्रायश्चित्त द्वारा ब्राह्मणोंकी शुद्धि हो सकती है, थोड़ा मांस खानेमें दोष है, न कि ज्यादा खानेमें। इस प्रकार मनकी समझौती करके उसने मांस खाया, शराब पी और अपने वर्षोंके ब्रह्मचर्यको नष्ट कर वह कामी हुआ । इसलिये बुद्धिमानोंको उन सच्चे शास्त्रोंका अभ्यास करना चाहिये जो पापसे बचाकर कल्याणका रास्ता बतलानेवाले हैं और ऐसे शास्त्र जिनभगवान्ने हो उपदेश किये हैं ।
५४. सगर चक्रवर्तीकी कथा
देवों द्वारा पूजा किये गये जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर दूसरे चक्रवर्ती सगरका चरित लिखा जाता है |
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