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आराधना कथाकोश कुछ चाण्डाल लोग दारु पी-पोकर एक अपनी जातिकी स्त्रीके साथ हँसो मजाक करते हुए नाच-कूद रहे थे, गा रहे थे और अनेक प्रकारकी कुचेष्टाओंमें मस्त हो रहे थे। अभागा संन्यासी इस टोलीके हाथ पड़ गया। इन लोगोंने उसे आगे न जाने देकर कहा-अहा ! आप भले आये! आप होकी हम लोगोंमें कसर थी। आइए, मांस खाइए, दारु पीजिए और जिन्दगीका सुख देनेवाली इस खूबसूरत औरतका मजा लुटिए । महाराजजो, आज हमारे लिए बड़ी खुशीका दिन है और ऐसे समयमें जब आप स्वयं यहाँ आ गए तब तो हमारा यह सब करना-धरना सफल हो गया। आप सरीखे महात्माओंका आना, सहज में थोड़े हो होता है ? और फिर ऐसे खुशीके समयमें । लीजिए, अब देर न कर हमारी प्रार्थनाको पूरी कीजिए इनकी बातें सुनकर बेचारे संन्यासोके तो होश उड़ गए। वह इन शराबियोंको कैसे समझाए, क्या कहे, और यह कुछ कहे सुने भी तो वे मानने वाले कब ? यह बड़े संकट में फंस गया। तब भी उसने इन लोगोंसे कहा-भाइयों ! सुनो ! एक तो मैं ब्राह्मण उस पर संन्यासो, फिर बतलाओ मैं मांस, मदिरा कैसे खा पो सकता हूँ ? इसलिये तुम मुझे जाने दो। उन चाण्डालोंने कहा-महाराज कुछ भी हो, हम तो आपको बिना कुछ प्रसाद लिये तो जाने नहीं देंगे । आपसे हम यहाँ तक कह देते हैं कि यदि आप अपनी खुशीसे खायेंगे तो बहुत अच्छा होगा, नहीं तो फिर जिस तरह बनेगा हम आपको खिलाकर ही छोड़ेंगे। बिना हमारा कहना किये आप जोतेजी गंगाजी नहीं देख सकते । अब तो संन्यासीजी घबराये । वे कुछ विचार करने लगे, तभी उन्हें स्मृतियोंके कुछ प्रमाण वाक्य याद आ गए
"जो मनुष्य तिल या सरसों के बराबर मांस खाता है वह नरकोंमें तब तक दुःख भोगा करेगा, जब तक कि पृथ्वी पर सूर्य और चन्द्र रहेंगे। अर्थात् अधिक मांस खाने वाला नहीं । ब्राह्मण लोग यदि चाण्डाली के साथ विषय सेवन करें तो उनकी 'काष्टभक्षण' नामके प्रायश्चित द्वारा शुद्धि हो सकती है । जो आँवले, गुड़ आदिसे बनी हुई शराब पीते हैं, वह शराब पीना नहीं कहा जा सकता-आदि।" - इसलिए जैसा ये कहते हैं, उसके करनेमें शास्त्रों, स्मृतियोंसे तो कोई दोष नहीं आता । ऐसा विचार कर उस मूर्खने शराब पी लो। थोड़ी ही देर बाद उसे नशा चढ़ने लगा। बेचारेको पहले कभी शराब पीनेका काम पड़ा नहीं था इसीलिये उसका रंग इस पर और अधिकतासे चढ़ा। शराब
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