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आराधना कथाकोश तब नदीमें बहतो हुई एक सन्दूक उसकी नजर पड़ी। वह उसे बाहर निकाल अपने घर ले आई। सन्दुकको राजोदरीने खोला। उसमेंसे एक बालक निकला। राजोदरी उस बालकको पाकर बड़ी खुश हुई। कारण कि उसके कोई लड़का बाला नहीं था। उसने बड़े प्रेमसे इसे पाला-पोसा। यह बालक काँसेकी सन्दुक में निकला था, इसलिए राजोदरोने इसका नाम भी 'कंस' रख दिया।
कंसका स्वभाव अच्छा न होकर क्रूरता लिए हुए था। यह अपने । साथके बालकोंको बड़ा मारा-पीटा करता और बात-बात पर उन्हें तंग किया करता था । इसके अड़ोस-पड़ोसके लोग बड़े हो दुखो रहा करते थे । राजोदरीके पास दिनभरमें कंसको कोई पचासों शिकायतें आया करती थी। उस बेचारीने बहुत दिन तक तो उसका उत्पात-उपद्रव सहा, पर फिर उससे भी यह दिन रातका झगड़ा-टंटा न सहा गया । सो उसने कंस. को घरसे निकाल दिया। संच है, पापो पुरुषोंसे किसे भी कभी सुख नहीं मिलता। कंस अब सौरीपुर पहुँचा। यहाँ यह वसुदेवका शिष्य बनकर शास्त्राभ्यास करने लगा। थोड़े दिनों में यह साधारण अच्छा लिख-पढ़ गया । वसुदेवकी इस पर अच्छो कृपा हो गई । इस कथाके साथ एक और कथाका सम्बन्ध है, इसलिए वह कथा यहाँ लिखो जातो है
सिंहरथ नामका एक राजा जरासन्धका शत्रु था। जरासन्धने इसे पकड़ लानेका बड़ा यत्न किया, पर किसी तरह यह इसके काबूमें नहीं आता था। तब जरासन्धने सारे शहरमें डौंडी पिटवाई कि वीर-शिरोमगि सिंहरथको पकड़कर मेरे सामने ला उपस्थित करेगा, उसे मैं अपनी जीवंजसा लड़कीको ब्याह दूंगा और अपने देशका कुछ हिस्सा भी मैं उसे दूगा। इसके लिए वसुदेव तैयार हुआ। वह अपने बड़े भाईकी आज्ञासे सब सेनाको साथ लिए सिंहरथके ऊपर जा चढ़ा। उसने जाते ही सिंहरथकी राजधानी पोदनपुरके चारों ओर घेरा डाल दिया। और आप एक व्यापारीके वेषमें राजधानीके भीतर घुसा। कुछ खास-खास लोगोंको धनका खूब लोभ देकर उसने उन्हें फोड़ लिया। हाथोके महावत, रथके सारथो आदिको उसने पैसेका गुलाम बनाकर अपनी मद्रीमें कर लिया। सिंहरथको इसका समाचार लगते ही उसने भी उसी समय रणभेरी बजवाई और बड़ी वीरताके साथ वह लड़नेके लिए अपने शहरसे बाहर हुआ। दोनों ओरसे युद्धके झुझारु बाजे बजने लगे। उनकी गम्भीर आवाज अनन्त आकाशको भेदती हुई स्वर्गों के द्वारोंसे जाकर टकराई । सुखी देवोंका आसना
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