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आराधना कथाकोश
कहा बच्ची, तू पूर्वजन्ममें ब्राह्मणी थो, तेरा नाम लक्ष्मीमती था और सोमशर्मा तेरा भर्ता था। तूने अपने जातिके अभिमानमें आकर मुनिनिन्दा की। उसके पापसे तेरे कोढ़ निकल आया । तु उस दुःखको न सहकर आगमें जल मरी। इस आत्महत्याके पापसे तुझे गधो, सूअरी और दो बार कुत्ती होना पड़ा। कूत्तीके भवसे मरकर तू इस मल्लाहके यहाँ पैदा हुई है। अपना पूर्व भवका हाल सुनकर कागाको जातिस्मरण ज्ञान हो गया, पूर्वजन्मकी सब बातें उसे याद हो उठी। वह मुनिको नमस्कार कर बड़े दुःखके साथ बोलो-प्रभो, मैं बड़ो पापिनी हूँ। मैंने माधु महात्माओंकी बुराई कर बड़ा हो नोच काम किया है। मुनिराज, मेरी पापसे अब रक्षा करो, मुझे कुगतियोंमें जानेसे बचाओ। तब मुनिने उसे धर्मका उपदेश दिया । काणा सुनकर बड़ो सन्तुष्ट हुई। उसे बहुत वैराग्य हुआ। वह वहीं मुनिके पास दीक्षा लेकर क्षुल्लिका हो गई। उसने फिर अपनी शक्ति के अनुमार खूब तपस्या की, अन्तमें शुभ भावोंसे मरकर वह स्वर्ग गई । यही काणा फिर स्वर्गसे आकर कुण्ड नगरके राजा भीष्मकी महारानी यशस्वतीके रूपिणी नामकी बहुत सुन्दर कन्या हुई । रूपिणोका ब्याह वासुदेवके साथ हुआ। सच है, पुण्यके उदयसे जीवोंको सब धनदौलत मिलती है।
जैनधर्म सबका हित करनेवाला सर्वोच्च धर्म है । जो इसे पालते हैं वे अच्छे कुलमें जन्म लेते हैं, उन्हें यश-सम्पत्ति प्राप्त होती है, वे कुगतिमें न जाकर उच्च गतिमें जाते हैं और अन्तमें मोक्षका सर्वोच्च सुख लाभ करते हैं।
४६. पुष्पदत्ताकी कथा
अनन्त सुखके देनेवाले और तीनों जगत्के स्वामी श्रीजिनेंद्र भगवानको नमस्कार कर मायाको नाश करनेके लिए मायाविनी पुष्पदत्ताकी कथा लिखी जाती है।
प्राचीन समयसे प्रसिद्ध अजितावर्त नगरके राजा पुष्पचूल की रानीका नाम पुष्पदत्ता था। राजसुख भोगते हुए पुष्पचूलने एक दिन अमरगुरु मुनिके पास जिनधर्मका स्वरूप सुना, जो धर्म स्वर्ग और मोक्षके सुखको प्राप्तिका कारण है। धर्मोपदेश सुनकर पुष्पचूलको संसार, शरीर, भोगा
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