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श्रेणिकराजाकी कथा
१०७ कर दूंगा और इसी तरह मेरे पुत्र हुआ तो तुम्हें अपनी लड़कीका ब्याह उसके साथ कर देना पड़ेगा।" __दोनोंने उक्त शर्त स्वीकार की। इसके कुछ दिनों बाद सागरदत्तके घर पुत्रजन्म हुआ। उसका नाम वसुमित्र हुआ। पर उसमें एक बड़े भारो आश्चर्यको बात थी। वह यह कि वसुमित्र न जाने किस कर्मके उदयसे रातके समय तो एक दिन दिव्य मनुष्य होकर रहता और दिन में एक भयानक सर्प।
उधर समद्रदत्तके घर कन्या हुई । उसका नाम रक्खा गया । नागदत्ता। वह बड़ी खूबसूरत सुन्दरी थी। उसके पिताने अपनी प्रतिज्ञाके अनुसार उसका ब्याह वसुमित्रके साथ कर दिया । सच हैनैव वाचा चलत्वं स्यात्सतां कष्टशतैरपि ।
-ब्रह्म नेमिदत्त अर्थात्-सत्पुरुष सैकड़ों कष्ट सह लेते हैं, पर अपनी प्रतिज्ञासे कभी विचलित नहीं होते । वसुमित्रका ब्याह हो गया। वह अब प्रतिदिन दिनमें तो सर्प बनकर एक पिटारेमें रहता और रातमें एक दिव्य पुरुष होकर अपनी प्रियाके साथ सुखोपभोग करता। सचमुच संसारको विचित्र हो स्थिति होती है। इसी तरह उसे कई दिन बीत गये। एक दिन नागदत्ताको माता अपनी पूत्रीको एक ओर तो यौवन अवस्था में पदार्पण करती हुई और दूसरी ओर उसके विपरीत भाग्यको देखकर दुखो होकर बोलीहाय ! दैवको कैसी विडम्बना है, जो कहाँ तो देवबाला सरोखो सुन्दरो मेरो पुत्रो और कैसा उसका अभाग्य जो उसे पति मिला एक भयंकर सर्प ? उसकी दु:ख भरी आहको नागदत्ताने सुन लिया। वह दौड़ो आकर अपनी मातासे बोली-माता, इसके लिये आप क्यों दुःख करती हैं ? मेरा जब भाग्य ही ऐसा था, तब उसके लिये दुःख करना व्यर्थ है । और अभी मुझे विश्वास है कि मेरे स्वामीका इस दशासे उद्धार हो सकता है। इसके बाद नागदत्ताने अपनी माताको स्वामीके उद्धार सम्बन्धको बात समझा दी। ___ सदाके नियमानुसार आज भी रातके समय वसुमित्र अपना सर्पका शरीर छोड़कर मनुष्यरूपमें आया और अपने शय्या-भवनमें पहँचा। इधर समुद्रदत्ता छुपी हुई आकर वसुदत्तके पिटारेको वहाँसे उठा ले आई और उसे उसी समय उसने जला डाला। तबसे वसुमित्र मनुष्यरूपमें ही अपनी
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