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आराधना कथाकोश राजा और प्रजाके लोग इस प्रकार नमस्कारमंत्रका प्रभाव देखकर बहुत खुश हुए और पवित्र जिनकासन के श्रद्धानी हए। इसी तरह धर्मात्माओंको भी उचित है कि वे अपने आत्महितके लिये भक्तिपूर्वक जिनभगवान् द्वारा उपदिष्ट धर्ममें अपनी बुद्धिको स्थिर करें।
२४. यमपाल चांडालकी कथा मोक्ष सुखके देनेवाले श्रीजिनभगवान्को धर्मप्राप्तिके लिये नमस्कार कर मैं एक ऐसे चाण्डालकी कथा लिखता हूँ, जिसकी कि देवों तकने पूजा की है।
काशीके राजा पाकशासनने एक समय अपनी प्रजाको महामारीसे पीड़ित देखकर ढिंढोरा पिटवा दिया कि "नन्दोश्वरपर्वमें आठ दिन पर्यन्त किसी जीवका वध न हो। इस राजाज्ञाका उल्लंघन करनेवाला प्राणदंडका भागी होगा।" वहीं एक सेठ पुत्र रहता था। उसका नाम तो था धर्म, पर असलमें वह महा अधर्मी था। वह सात व्यसनोंका सेवन करनेवाला था । उसे माँस खानेकी बुरी आदत पड़ी हई थी। एक दिन भी बिना मांस खाये उससे नहीं रहा जाता था। एक दिन वह गुप्तरीतिसे राजाके बगीचे में गया । वहाँ एक राजाका खास मेंढा बंधा करता था। उसने उसे मार डाला और उसके कच्चे ही मांसको खाकर वह उसको हड्डियोंको एक गड्डे में गाड़ गया । सच है___ व्यसनेन युतो जीवः सत्सं पापपरो भवेत् । -ब्रह्म नेमिदत्त
अर्थात्-व्यसनी मनुष्य नियमसे पापमें सदा तत्पर रहा करते हैं। दूसरे दिन जब राजाने बगीचे में मेंढा नहीं देखा और उसके लिये बहुत खोज करनेपर भी जब उसका पता नहीं चला, तब उन्होंने उसका शोध लगानेको अपने बहुतसे गुप्तचर नियुक्त किये। एक गुप्तचर राजाके बागमें भी चला गया। वहाँ का बागमाली रातको सोते समय सेठ पुत्रके द्वारा मेंढेके मारे जानेका हाल अपनी स्त्रीसे कह रहा था, उसे गुप्तचरने सुन लिया। सुनकर उसने महाराजसे जाकर सब हाल कह दिया। राजाको इससे सेठ पुत्रपर बड़ा गुस्सा आया। उन्होंने कोतवालको वुलाकर आज्ञा की कि, पापी धर्मने एक तो जीवहिंसा की है दूसरे रा. ज्ञा
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