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वसुराजाकी कथा
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एक दिनकी बात है कि वसुसे कोई ऐसा अपराध बन गया, जिससे उपाध्याय ने उसे बहुत मारा। उस समय स्वस्तिमतीने बीचमें पड़कर वसुको बचा लिया । वसुने अपनी बचानेवाली गुरु माता से कहा - माता, तुमने मुझे बचाया इससे मैं बड़ा उपकृत हुआ । कहो तुम्हें क्या चाहिए ? वही लाकर मैं तुम्हें प्रदान करूँ । स्वस्तिमतोने उत्तर में राजकुमारसे कहा— पुत्र, इस समय तो मुझे कुछ आवश्यकता नहीं है, पर जब होगी तब माँगूँगी । तू मेरे इस वरको अभी अपने ही पास रख ।
एक दिन क्षीरकदम्बके मन में प्रकृतिकी शोभा देखनेके लिए उत्कंठा हुई। वह अपने साथ तोनों शिष्यों को भी इसलिए लिवा ले गया कि उन्हें वहीं पाठ भी पढ़ा दूंगा । वह एक सुन्दर बगीचे में पहुँचा । वहाँ कोई अच्छा पवित्र स्थान देखकर वह अपने शिष्योंको बृहदारण्यका पाठ पढ़ाने लगा । वहीं और दो ऋद्धिधारी महामुनि स्वाध्याय कर रहे थे । उनमेंसे छोटे मुनिने क्षीरकदम्बको पाठ पढ़ाते देखकर बड़े मुनिराज से कहा - प्रभो, देखिए कैसे पवित्र स्थानमें उपाध्याय अपने शिष्योंको पढ़ा रहा है ! गुरुने कहा - अच्छा है, पर देखो, इनमें से दो तो पुण्यात्मा हैं और वे स्वर्गमें जायेंगे और दो पापके उदयसे नर्कोंके दुःख सहेंगे। सच है -
कर्मों के उदयसे जीवों को सुख या दुःख भोगना ही पड़ता है। मुनिके वचन क्षोरकदम्बने सुन लिये । वह अपने विद्यार्थियोंको घर भेजकर मुनिराज के पास गया । उन्हें नमस्कार कर उसने पूछा -हे भगवन्, हे जैन सिद्धान्त के उत्तम विद्वान्, कृपाकर मुझे कहिए कि हममेंसे कौन दो तो स्वर्ग जाकर सुखी होंगे और कौन दो नर्क जायेंगे ? कामके शत्रु मुनिराजने क्षीरकदम्ब से कहा - भव्य, स्वर्ग जानेवालों में एक तो तू जिनभक्त और दूसरा धर्मात्मा नारद है और वसु तथा पर्वत पापके उदयसे नर्क जायेंगे । क्षीरकदम्ब मुनिराजको नमस्कार कर अपने घर आया । उसे इस बातका बड़ा दुःख हुआ कि उसका पुत्र नरकमें जायगा । क्योंकि मुनियों का कहा - अनन्तकाल में भी झूठा नहीं होता ।
एक दिन कोई ऐसा कारण देख पड़ा, जिससे वसुके पिता विश्वावसु अपना राज-काज वसुको सौंपकर आप साधु हो गये । राज्य अब वसु - करने लगा । एक दिन वसु वन-विहार के लिए उपवन में गया हुआ था । वहाँ उसने आकाशसे लुढ़क कर गिरते हुए एक पक्षोको देखा । देखकर उसे आश्चर्य हुआ । उसने सोचा पक्षो के लुढ़कते हुए गिरनेका कोई कारण यहाँ अवश्य होना चाहिए । उसको शोध लगानेको जिधरसे पक्षी गिरा था उधर st लक्ष्य बाँधकर उसने बाण छोड़ा । उसका लक्ष्य व्यर्थ न गया । यद्यपि
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