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आराधना कथाकोश राजा सुनकर दंग रह गया । उसने उसी समय अपने पहले हुक्मको रद्दकर निरपराध दत्तको रिहाई दी और वीरवतीको उसके अपराधकी उपयुक्त सजा दी । सच है पुण्यवानोंकी सभी रक्षा करते हैं।
दुष्ट स्त्रियोंका ऐसा घृणित और कलंकित चरित देखकर सबको उचित है कि वे दुःख देनेवाले विषयोंसे अपनी सदा रक्षा करें। __वे महात्मा धन्य हैं, जो भगवान्के उपदेश किये हुए पवित्र शीलव्रतसे विभूषित हैं, कामरूपी क्रूर हाथीको मारनेके लिए सिंह हैं, विषयोंको जिन्होंने जीत लिया है, ज्ञान, ध्यान, आत्मानुभवमें जो सदा मग्न हैं, विषयभोगोंसे निरन्तर उदास हैं, भव्यरूपी कमलोंको प्रफुल्लित करनेमें जो सूर्य हैं और संसार समुद्रसे पार करने में जो बड़े कर्मवीर खेवटिया हैं, वे सबका कल्याण करें।
३३. सुरत राजाकी कथा देवों द्वारा पूजा किये गये जिनभगवान्के चरणोंको भक्ति सहित नमस्कार कर सुरत नामके राजाका हाल लिखा जाता है ।
सुरत अयोध्याके राजा थे। इनके पांचसौ स्त्रियां थीं। उनमें पट्टरानीका पद महादेवी सतीको प्राप्त था। राजाका सती पर बहत प्रेम था। वे रातदिन भोगोंमें ही आसक्त रहा करते थे, उन्हें राज-काजकी कुछ चिन्ता न थी। अन्तःपुरके पहरे पर रहनेवाले सिपाहीसे उन्होंने कह रक्खा था कि जब कोई खास मेरा कार्य हो या कभी कोई साधु-महात्मा यहाँ आवें तो मुझे उनकी सूचना देना । वैसे कभी कुछ कहनेको न आना। ____एक दिन पुण्योदयसे एक महिनाके उपवासे दमदत्त और धर्मरुचि मुनि आहारके लिए राजमहलमें आये। उन्हें देखकर द्वारपाल राजाके पास गया और नमस्कार कर उसने मुनियोंके आनेका हाल उनसे कहा। राजा इस समय अपनी प्राणप्रिया सतीके मुख-कमल पर तिलक रचना कर रहे थे। वे सतीसे बोले-प्रिये, जब तक कि तुम्हारा तिलक न सूखे, मैं अभी मुनिराजोंको आहार देकर बहुत जल्दो आया जाता हूँ। यह
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