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चारुदत्त सेठको कथा
१७९ है । वह रसायनसे भरा हुआ है। उससे सोना बनाया जाता है । सो तुम उसमेंसे कुछ थोड़-सा रस ले आओ। उससे तुम्हारी सब दरिद्रता नष्ट हो जायगी। चारुदत्त संन्यासोके पीछे-पीछे हो लिया। सच है, दुर्जनों द्वारा धनके लोभी कौन-कौन नहीं ठगे गये।।
संन्यासो और उसके पीछे-पीछे चारुदत्त ये दोनों एक पर्वतके पास पहुंचे । संन्यासीने रस लानेकी सब बातें समझाकर चारुदत्तके हाथमें एक तुंबी दी और एक सीके पर उसे बैठाकर कुएमें उतार दिया। चारुदत्त तूं बीमें रस भरने लगा। इतने में वहाँ बैठे हुए एक मनुष्यने उसे रस भरनेसे रोका। चारुदत्त पहले तो डरा, पर जब उस मनुष्यने कहा तुम डरो मत, तब कुछ सम्हलकर वह बोला-तुम कौन हो, और इस कुएमें केसे आये ? कुएमें बैठा हुआ मनुष्य बोला, सुनिए, मैं उज्जयिनीमें रहता हैं। मेरा नाम धनदत्त है। मैं किसी कारणसे सिंहलद्वीप गया था। वहाँसे लौटते समय तूफानमें पड़कर मेरा जहाज फट गया। धन-जनकी बहुत हानि हुई। मेरे हाथ एक लक्कड़का पटिया लग जानेसे अथवा यों कहिए कि देवकी दयासे मैं बच गया। समुद्रसे निकलकर मैं अपने शहरकी ओर जा रहा था कि रास्ते में मुझे यही संन्यासी मिला। यह दुष्ट मुझे धोखा देकर यहाँ लाया। मैंने कूएमेंसे इसे रस भरकर ला दिया। इस पापीने पहले तूंबो मेरे हाथसे ले ली और फिर आप रस्सी काटकर भाग गया। मैं आकर कुएमें गिरा। भाग्यसे चोट तो अधिक न आई, पर दो-तीन दिन इसमें पड़े रहनेसे मेरी तबियत बहुत बिगड़ गई और अब मेरे प्राण घुट रहे हैं। उसकी हालत सुनकर चारुदत्तको बड़ी दया आई। पर वह ऐसी जगहमें फंस चुका था, जिससे उसके जिलानेका कुछ यत्न नहीं कर सकता था। चारुदत्तने उससे पूछा तो मैं इस संन्यासीको रस भरकर न हूँ ? धनदत्तने कहा-नहीं, ऐसा मत करो; रस तो भरकर दे ही दो, अन्यथा यह ऊपरसे पत्थर वगैरह मारकर बड़ा कष्ट पहुँचायेगा। तब चारुदत्तने एक बार तो तू बीको रससे भरकर सीकेमें रख दिया । संन्यासी ने उसे निकाल लिया। अब चारुदत्तको निकालनेके लिए उसने फिर सीका कुएं में डाला। अबकी बार चारुदत्तने स्वयं सोंके पर न बैठकर बड़े-बड़े वजनदार पत्थरोंको उसमें रख दिया। संन्यासी उस पत्थर भरे सीके पर चारुदत्तको बैठा समझकर, जब सींका आधी दूर आया तब उसे काटकर आप चलता बना। चारुदत्तकी जान बच गई। उसने धनदत्तका बड़ा उपकार मानकर कहा-मित्र, इसमें कोई सन्देह नहीं कि आज तुमने मुझे जीवनदान दिया और इसके लिए मैं तुम्हारा जन्मजन्म में ऋणी
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