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चारुदत्त सेठ की कथा
इसी समय एक बहुत खूबसूरत युवा यहाँ आया। सबको दृष्टि उसके दिव्य तेजकी ओर जा लगी। उस यवाने सबसे पहले चारुदत्तको प्रणाम किया। यह देख चारुदत्तने उसे ऐसा करनेसे रोककर कहा- तुम्हें पहले गुरु महाराजको नमस्कार करना उचित है। आगत युवाने अपना परिचय देते हुए कहा-मैं बकरा था। पापी रुद्रदत्त जब मेरा आधा गला काट चुका होगा कि उसी समय मेरे भाग्यसे आपको नींद खुल गई। आपने आकर मुझे नमस्कार मंत्र सुनाया और साथ हो संन्यास दे दिया। मैं शान्त भावोसे मरकर मंत्रके प्रभावसे सौधर्म स्वर्ग में देव हआ । इसलिए मेरे गुरु तो आप ही हैं-आप हीने मझे सन्मार्ग बतलाया है। इसके बाद सौधर्म-देव धर्म-प्रेमसे बहत सुन्दर-सुन्दर और मूल्यवान् दिव्य वस्त्राभरण चारुदत्तको भेंटकर और उसे नमस्कारकर स्वर्ग चला गया । सच है, जो परोपकारी हैं उनका सब हो बड़ी भक्ति के साथ आदरसत्कार करते हैं।
इधर वे विद्याधर सिंहयश और वराहग्रीव मुनिराजको नमस्कार कर चारुदत्तसे बोले-चलिए हम आपको आपकी जन्मभूमि चम्पापुरीमें पहुंचा आवें। इससे चारुदत्तको बड़ो प्रसन्नता हुई और वह जानेको सहमत हो गया। चारुदत्तने इसके लिए उनसे बड़ी कृतज्ञता प्रगट को। उन्होंने चारुदत्तको उसके मर माल-असबाब सहित बहुत जल्दी विमान द्वारा चम्पापुरीमें, लारखा। इसके बाद वे उसे नमस्कारकर और आज्ञा लेकर अपने स्थान लौट गये। सच है, पुण्यसे संसारमें क्या नहीं होता!
और पुण्यप्राप्तिके लिए जिनभगवान्के द्वारा उपदेश किये दान, पूजा, व्रत, शोलरूप चार प्रकार पवित्र धर्मका सदा पालन करते रहना चाहिये ।
- अचानक अपने प्रिय पुत्रके आजानेसे चारुदत्तके माता-पिताको बड़ी खुशी हुई। उन्होंने बारबार उसे छातीसे लगाकर वर्षोंसे वियोगाग्निसे . जलते हुए अपने हृदयको ठंडा किया। चारुदत्तकी प्रिया मित्रवतोके नेत्रोंसे दिनरात बहती हुई वियोग-दुःखाश्रुओंकी धारा और आज प्रियको देखकर बहनेवाली आनन्दाश्रुओंको धाराका अपूर्व समागम हुआ। उसे जो सुख आज मिला, उसकी समानतामें स्वर्गका दिव्य सुख तुच्छ है । बातकी बातमें चारुदत्तके आनेके समाचार सारी पुरीमें पहुँच गये। और उससे सभोको आनन्द हुआ
चारुदत्त एक समय बड़ा धनी था। अपने कुकर्मोसे वह पथ-पथका भिखारी बना। पर जबसे उसे अपनी दशाका ज्ञान हुआ तबसे उसने
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