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पिण्याकगन्धकी कथा
२०७ यह न किसोको कभी एक कौड़ी देता और न स्वयं आप ही अपने धनको खाने-पीने पहरने में खर्च करता; और खाया करता था खल। इसके पास सब सुखकी सामग्री थी, पर अपने पापके उदयसे या यों कहो कि अपनी ही कंजूसोसे यह सदा ही दुःख भोगा करता था। इसकी स्त्रीका नाम सुन्दरी था । इसके एक विष्णुदत्त नामका लड़का था। ___ एक दिन राजाके तालाबको खोदते वक्त उडु नामके एक मजूरको सोनेके सलाइयोंकी भरी हुई लोहेकी सन्दुक मिल गई। यह सन्दूक यहाँ कोई हजारों वर्षोंसे गड़ी हुई होगी। यही कारण था कि उसे खूब ही कीट खा गया था। उसके भीतरको सलाइयोंकी भी यही दशा थी। उन पर भी बहुत मैल जमा हो गया था। मैलसे यह नहीं जान पड़ता था कि वे सोनेकी हैं। उडुने उसमें से एक सलाई लाकर जिनदत्त सेठको लोहेके भाव बेचा। सेठने उस समय तो उसे ले लिया, पर जब वह ध्यानसे धो-धाकर देखो गई तो जान पड़ा कि वह एक सोनेकी सलाई है। सेठने उसे चोरीका माल समझ अपने घरमें उसका रखना उचित नहीं समझा। उसने उसकी एक जिनप्रतिमा बनवा ली और प्रतिष्ठा कराकर उसे मंदिर में विराजमान कर दिया। सच है, धर्मात्मा पुरुष पापसे बड़े डरते हैं। कुछ दिनों बाद उडु फिर एक सलाई लिए जिनदत्तके पास आया। पर अबकी बार सेठने उसे नहीं खरीदा। इसलिए कि वह धन दूसरेका है। तब उडुने उसे पिण्याकगन्धको बेच दिया। पिण्याकगन्धको भी मालूम हो गया कि वह सलाई सोनेकी है, पर तब भी लोभमें आकर उसने उड़से कहा कि यदि तेरे पास ऐसी सलाइयाँ और हों तो उन्हें यहाँ दे जाया करना । मुझे इन दिनों लोहेकी कुछ अधिक जरूरत है। मतलब यह कि पिण्याकगन्धने उडुसे कोई अट्टानवे सलाइयाँ खरीद कर लीं। बेचारे उडुको उसकी सच्ची कीमत ही मालूम न थी, इसलिए उसने सबकी सब , सलाइयाँ लोहेके भाव बेच दी। ___एक दिन पिण्याकगन्ध अपनी बहिनके विशेष कहने-सुननेसे अपने भानजेके ज्याहमें दूसरे गाँव जाने लगा। जाते समय धनके लोभसे पुत्रको वह सलाई बताकर कह गया कि इसी आकार-प्रकारका लोहा कोई बेचने अपने यहाँ आवे तो तू उसे मोल ले लिया करना । पिण्याकगन्धके पापका घड़ा अब बहुत भर चुका था। अब उसके फूटनेकी तैयारी थी। इसीलिए तो वह पापकर्मकी जबरदस्तीसे दूसरे गाँव भेजा गया ।
उडुके पास अब केवल एक ही सलाई बची थी। वह उसे भी बेचनेको
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