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आराधना कथाकोश देश किये धर्मको भक्ति और शक्तिके अनुसार ग्रहण करें, जो परम शान्ति-मोक्षका प्राप्त करानेवाला है।
४४. वशिष्ठ तापसीकी कथा भूख, प्यास, रोग, शोक, जनम, मरण, भय, माया, चिन्ता, मोह, राग, द्वेष आदि अठारह दोषोंसे जो रहित हैं, ऐसे जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर वशिष्ठ तापसीकी कथा लिखी जाती है।
उग्रसेन मथुराके राजा थे। उनकी रानीका नाम रेवती था। रेवती अपने स्वामीकी बड़ी प्यारी थी। यहीं एक जिनदत्त सेठ रहता था। जिनदत्तके यहाँ प्रियंगुलता नामकी एक नौकरानी थी। ___मथुरामें यमुना किनारे पर वशिष्ठ नामका एक तापसी रहता था। वह रोज नहा-धोकर पञ्चाग्नि तप किया करता था। लोग उसे बड़ा भारी तपस्वी समझ कर उसकी खूब सेवा-भक्ति करते थे । सो ठीक ही है, असमझ लोग प्रायः देखा-देखी हर एक काम करने लग जाते हैं। यहाँ तक कि शहरकी दासियाँ पानी भरनेको कुए पर जब आती तो वे भी तापस महाराजकी बड़ी भक्तिसे प्रदक्षिणा करतीं, उनके पाँवों पड़तीं और उनकी सेवा-सुश्रषा कर फिर वे घर जातीं। प्रायः सभीका यही हाल था। पर हाँ प्रियंगलता. इससे बरी थी। उसे ये बातें बिलकूल नहीं रुचती थीं। इसलिए कि वह बचपनसे ही जैनीके यहाँ काम करती रही। उसके साथकी और-और स्त्रियोंको प्रियंगुलताका यह हठ अच्छा नहीं जान पड़ा और इसीलिए मौका पाकर वे एक दिन प्रियंगुलताको उस तापसीके पास जबरदस्तो लिवा ले गईं और इच्छा न रहते भी उन्होंने उसका सिर तापसीके पाँवों पर रख दिया। अब तो प्रियंगुलतासे न रहा गया। उसने गस्सा होकर साफ-साफ कह दिया कि यदि इस ढौंगीके ही मैं हाथ जोड़, तब फिर मुझे एक धीवर (भोई) के ही क्यों न हाथ जोड़ना चाहिए? इससे तो वह बहत अच्छा है। एक दासीके द्वारा अपनी निन्दा सुनकर तापसजीको बड़ा गुस्सा आया। वे उन दासियों पर भी बहुत बिगड़े,
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