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वशिष्ठ तापसीको कथा
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'जिन्होंने जबरदस्ती प्रियंगुलताको उनके पाँवों पर पटका था । दासियाँ तो तापसीजीकी लाल-पीली आँखें देखकर उसी समय वहाँसे नौ-दो ग्यारह हो गईं। पर तापस महाराजकी क्रोधाग्नि तब भी न बुझी ।
उसने उग्रसेन महाराज के पास पहुँचकर शिकायत को कि प्रभो, 'जिनदत्त सेठने मुझे धीवर बतलाकर मेरा बड़ा अपमान किया। उसे एक साधुकी इस तरह बुराई करनेका क्या अधिकार था ? उग्रसेनको भी एक दूसरे धर्म साधुकी बुराई करना अच्छा नहीं जान पड़ा। उन्होंने जिनदत्तको बुलाकर पूछा, जिनदत्तने कहा - महाराज यदि यह तपस्या करता है तो यह तापसी है ही, इसमें विवाद किसको है । पर मैंने तो इसे धीवर नहीं बतलाया | और सचमुच जिनदत्तने उससे कुछ कहा भी नहीं था । जिनदत्तको इन्कार करते देख तापसी घबराया । तब उसने अपनी सचाई बतलाने के लिए कहा -ना प्रभो, जिनदत्तकी दासीने ऐसा कहा था । तापसीकी बात पर महाराजको कुछ हँसी-सी आ गई। उन्होंने तब प्रियंगुलताको बुलवाया । वह आई । उसे देखते ही तापसीके क्रोधका कुछ ठिकाना न रहा । वह कुछ न सोचकर एक साथ ही प्रियंगुलता पर बिगड़ खड़ा हुआ । और गालो देते हुए उसने कहा - रॉड तूने मुझे धोवर बतलाया है, तेरे इस अपराधको सजा तो तुझे महाराज देंगे ही। पर देख, मैं धोवर नहीं हूँ, किन्तु केवल हवाके आधार पर जीवन रखनेवाला एक परम तपस्वी हूँ । बतला तो, तूने मुझे क्या समझ कर धीवर कहा ? प्रियंगुलताने तब निर्भय होकर कहा – हाँ, बतलाऊँ कि मैंने तुझे क्यों मल्लाह बतलाया था ? ले सुन, जबकि तू रोज-रोज मच्छियाँ मारा करता है तब तू मल्लाह तो है हो ! तुझे ऐसी दशासे कौन समझदार तापसी कहेगा ? तू यह कहे कि इसके लिए सुबूत क्या ? तू जैनीके यहाँ रहती है, इसलिए दूसरे धर्मो को या उनके साधु-सन्तोंकी बुराई करना तो तेरा स्वभाव होना ही चाहिये । पर सुन, मैं तुझे आज यह बतला देना चाहती हूँ कि जैनधर्म सत्यका पक्षपाती है । उसमें सच्चे साधु-सन्त ही पुजते हैं । तेरेसे ढोंगी, बेचारे भोले लोगोंको धोखा देनॅवालोंकी उसके सामने दाल नहीं गल पातो । ऐसा ही ढौंगी देखकर तुझे मैंने मल्लाह बतलाया और न मैं तुझमें मछली मारनेवाले मल्लाहोंसे कोई अधिक बात ही पाती हूँ | तब बतला मैंने इसमें कौन तेरी बुराई की ? अच्छा, यदि तू मल्लाह नहीं है तो जरा अपनी इन जटाओंको तो झाड़ दे ! अब तो तापस महाराज बड़े घबराये और उन्होंने बातें बनाकर इस बातको ही उड़ा देना
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