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लौकिक ब्रह्माकी कथा देखकर पार्वतीके पिता वगैरहने खड्ग द्वारा रुद्रको सस्त्रीक मार डाला। सच है, पापियों के मित्र भी शत्रु हो जाया करते हैं।
विद्याएँ अपने स्वामीको मृत्यु देखकर बड़ी दुखी हुई और साथ ही उन्हें क्रोध भी अत्यन्त आया। उन्होंने तब प्रजाको दुःख देना शुरू किया और अनेक प्रकारकी बीमारियाँ प्रजामें फैला दीं। उससे बेचारी गरीब प्रजा त्राह-वाह कर उठी। इसी समय एक ज्ञानी मुनि इस ओर आ निकले। प्रजाके कुछ लोगोंने जाकर मुनिसे इस उपद्रवका कारण और उपाय पूछा । मुनिने सब कथा कहकर कहा-जिस अवस्थामें रुद्र मारा गया है, उसकी एकबार स्थापना करके उससे क्षमा कराओ। वैसा ही किया गया। प्रजाका उपद्रव शान्त हुआ, पर तब भी लोगोंकी मूर्खता देखो जो एक बार कोई काम किसी कारणको लेकर किया गया सो उसे अब तक भी गडरिया प्रवाहकी तरह करते चले आते हैं और देवताके रूपमें उसकी सेवा-पूजा करते हैं। पर यह ठीक नहीं। सच्चा देव वही हो सकता है जिसमें राग, द्वेष नहीं, जो सबका जानने और देखनेगला है और जिसे स्वर्गके देव, चक्रवर्ती, विद्याधर, राजा, महाराजा आदि सभी बड़े-बड़े लोग मस्तक झकाते हैं और ऐसे देव एक अर्हन्त भगवान् ही हैं।
वे जिन भगवान् मुझे शान्ति दें, जो अनन्त उत्तम-उत्तम गुणोंके धारक हैं, सब सुखोंके देनेवाले हैं, दुःख, शोक, सन्तापके नाश करनेवाले हैं, केवलज्ञानके रूपमें जो संसारका आताप हर कर उसे शीतलता देनेवाले चन्द्रमा हैं और तीनों लोकोंके स्वामियों द्वारा जो भक्तिपूर्वक पूजे जाते हैं।
३८. लौकिक ब्रह्माकी कथा
संसारके द्वारा पूजे गये भगवान् आदि ब्रह्मा (आदिनाथ स्वामी) को नमस्कार कर, देवपुत्र ब्रह्माकी कथा लिखो जातो है। ___ कुछ असमझ लोग ऐसा कहते हैं कि एक दिन ब्रह्माजीके मनमें आया कि मैं इन्द्रादिकोंका पद छीनकर सर्वश्रेष्ठ हो जाऊँ, और इसके लिये उन्होंने एक भयंकर बनीमें हाथ ऊँचा किये बड़ो घोर तपस्या की । वे कोई साढ़े चार हजार वर्ष पर्यन्त (यह वर्ष संख्या देवोंके वर्षके हिसाबसे है, जो कि मनुष्योंके वर्षों से कई गुणी होती है ।) एक हो पावसे खड़े रहकर
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