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धनके लोभसे भ्रममें पड़े कुबेरदत्त की कथा
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हालत कहकर उनसे वैद्यक पढ़ने की इच्छा जाहिर की । शिवभूति बड़ा दयावान् और परोपकारी था, इसलिए उसने इन दोनों भाइयों को अपने ही पास रखकर पढ़ाया। और कुछ ही वर्षों में इन्हें अच्छा होशियार कर दिया। दोनों भाई गुरु महाशय के अत्यन्त कृतज्ञ होकर पोछे बनारसको ओर रवाना हुए । रास्ते में आते हुये इन्होंने जंगल में आँख की पीड़ासे दुखी एक सिंहको देखा । धनचन्द्रको उस पर दया आई। अपने बड़े भाई के बहुत कुछ मना करने पर भी धनचन्द्रने सिंहकी आँखोंका इलाज किया । उससे सिंहको आराम हो गया । आँख खोलते ही उसने धनचन्द्रको अपने पास खड़ा पाया । वह अपने जन्म स्वभावको न छोड़कर क्रूरताके साथ उसे खा गया ।" मुनिराज उस दुष्ट सिंहका बेचारे वैद्यको खा जाना क्या अच्छा काम हुआ ? मुनिने 'नहीं' कहकर एक और कथा कहना शुरू की ।
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" चम्पापुरी में सोमशर्मा ब्राह्मणकी दो स्त्रियाँ थीं । एकका नाम सोमिया और दूसरीका सोमशर्मा था । सोमिल्या बाँझ थी और सोमशर्माके एक लड़का था । यहीं एक बैलं रहता था । लोग उसे 'भद्र' नामसे बुलाया करते थे । बेचारा बड़ा सीधा था । कभी किसीको मारता नहीं था । वह सबके घर पर घूमा-फिरा करता था । उसे इस तरह जहाँ थोड़ो बहुत घास खानेको मिलती वह उसे ही खाकर रह जाता था । एक दिन उस बाँझ पापिनीने डाहके मारे अपनी सौतके बच्चेको निर्दयतासे मार कर उसका अपराध बेचारे बैल पर लगा दिया। उसे ब्राह्मण बालकका मारनेवाला समझ कर सब लोगोंने घास खिलाना छोड़ दिया और शहर से निकाल बाहर कर दिया । बेचारा भूख-प्यास के मारे बड़ा दुःख पाने लगा । बहुत ही दुबला पतला हो गया । पर तब भी किसीने उसे शहर भीतर नहीं घुसने दिया । एक दिन जिनदत्त सेठकी स्त्री पर व्यभिचारका अपराध लगा । वह अपनी निर्दोषता बतलानेके लिए चौराहे पर जाकर खड़ी हुई, जहाँ बहुतसे मनुष्य इकट्ठे हो रहे थे । उसने कोई भयंकर दिव्य लेने के इरादे एक लोहे के टुकड़े को अग्निमें खूब तपाकर लाल सुखं किया । इस मौके को अपने लिए बहुत अच्छा समझ उस बैलने झट वहाँ पहुँच कर जलते हुए उस लोहे के टुकड़ेकी मुँहसे उठा लिया। उसको यह भयंकर दिव्य देखकर सब लोगोंने उसे निर्दोष समझ लिया ।" अच्छा सेठ महाशय, बतलाइए तो क्या उन मूर्ख लोगोंको बिना समझे बूझे एक निरपराध पशु पर दोष लगाना ठीक था क्या ? जिनदत्तने 'नहीं' कहकर फिर एक कथा छेड़ी । वह बोला
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