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आराधना कथाकोश
केवल कर्त्तव्यको ही अपना लक्ष्य बनाया और फिर कर्मशील बनकर उसने कठिनसे कठिन काम किया। उसमें कई बार उसे असफलता भी प्राप्त हुई, पर वह निराश नहीं हुआ और काम करता ही चला गया । अपने उद्योगसे उसके भाग्यका सितारा फिर चमक उठा और वह आज पूर्ण तेज प्रकाश कर रहा है । इसके बाद चारुदत्तने बहुत वर्षों तक खूब सुख भोगा और जिनधर्मकी भी भक्ति के साथ उपासना को। अन्तमें उदासीन होकर वह अपनी जगह पर अपने सुन्दर नामके पुत्रको नियुक्त कर आप दीक्षा
ले गया। मुनि होकर उसने खूब तप किया और आयुके अन्तमें संन्यास ' सहित मृत्यु प्राप्त कर स्वर्ग लाभ किया। स्वर्गमें वह सुखके साथ रहता है, अनेक प्रकारके उत्तमसे उत्तम भोगोंको भोगता है, सुमेरु और कैलाशपर्वत आदि स्थानोंके जिनमन्दिरोंकी यात्रा करता है, विदेहक्षेत्रमें जाकर साक्षात् तीर्थंकर केवलो भगवान्को स्तुति-पूजा करता है और उनका सुख देनेवाला पवित्र धर्मोपदेश सुनता है। मतलब यह कि उसका प्रायः समय धर्मसाधन होमें बीतता है। और इसी जिनभगवान्के उपदेश किये निर्मल धर्मकी इन्द्र, नागेन्द्र, विद्याधर, चक्रवर्ती आदि सभी सदा भक्तिपूर्वक उपासना करते हैं, यही धर्म स्वर्ग और मोक्षका देनेवाला है। इसलिए यदि तुम्हें श्रेष्ठ सुखको चाह है तो तुम भी इसी धर्मका आश्रय लो।
३६. पाराशर मुनिकी कथा
जिनेन्द्र भगवानको नमस्कार कर अन्यमतोंकी असत्कल्पनाओंका सत्पुरुषोंको ज्ञान हो, इसलिए उन्हींके शास्त्रोंमें लिखी हुई पाराशर नामक एक तपस्वीको कथा यहाँ लिखी जाती है।
हस्तिनागपुरमें गंगभट नामका एक धीवर रहा करता था । एक दिन वह पाप-बुद्धि एक बड़ी भारी मछलीको नदीसे पकड़कर लाया। घर लाकर उस मछलीको जब उसने चीरा तो उसमेंसे एक सुन्दर कन्या निकली। उसके शरीरसे बड़ी दुर्गन्ध निकल रही थी। उस धीवरने उसका नाम सत्यवती रक्खा । वही उसका पालन पोषण भी करने लगा। पर सच
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