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पाराशर मुनिको कथा
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पूछो तो यह बात सर्वथा असंभव है । कहीं मछली से भी कन्या पैदा हुई है ? खेद है कि लोग आँख बन्द किये ऐसी-ऐसी बातों पर भी अन्धश्रद्धा किये चले आते हैं ।
जब सत्यवती बड़ी हो गई तो एक दिनकी बात है कि गंगभट सत्यवतीको नदी किनारे नाव पर बैठाकर आप किसी कामके लिए घरपर आ गया । इतनेमें रास्तेका थका हुआ एक पाराशर नामका मुनि, जहाँ सत्यवती नाव लिए बैठी हुई थी, वहाँ आया । वह सत्यवतीसे बोलालड़की, मुझे नदी पार जाना है, तू अपनी नाव पर बैठाकर पार उतार दे तो बहुत अच्छा हो । भोली सत्यवतीने उसका कहा मान लिया और नाव में उसे अच्छी तरह बैठाकर वह नाव खेने लगी । सत्यवती खूबसूरत तो थी ही और इस पर वह अब तेरह चौदह वर्षकी हो चुकी थी; इसलिए उसकी खिलती हुई नई जवानी थो। उसकी मनोमधुर सुन्दरताने तपस्वीके तपको डगमगा दिया । वह कामवासनाका गुलाम हुआ । उसने अपनी पापमयी मनोवृत्तिको सत्यवती पर प्रगट किया । सत्यवती सुनकर लजा गई, और डरी भी । वह बोली - महाराज, आप साधु-सन्त, सदा गंगास्नान करनेवाले और शाप देने तथा दया करने में समर्थ और मैं नोच जातिकी लड़की, इस पर भी मेरा शरीर दुर्गन्धमय, फिर मैं आप सरीखोंके योग्य कैसे हो सकती हूँ? पाराशरको इस भोली लड़कीके निष्कपट हृदयकी बात पर भी कुछ शर्म नहीं आई और कामियोंको शर्म होती भी कहाँ ? उसने सत्यवतीसे कहा- तूं इसकी कुछ चिन्ता न कर । मैं तेरा शरीर अभी सुगन्धमय बनाये देता हूँ। यह कहकर पाराशरने अपने विद्याबलसे उसके शरीरको देखते-देखते सुगन्धमय कर दिया। उसके प्रभावको देखकर सत्यवतीको राजी हो जाना पड़ा । कामी पाराशरने अपनी वासना नाव में हो मिटाना चाहो, तब सत्यवती बोली- आपको इसका खयाल नहीं कि सब लोग देखकर क्या कहेंगे ? तब पाराशरने आकाशको धुंधला कर, जिससे कोई देख न सके, और अपनी इच्छा.. ....इसके बाद उसने नदीके बीच में ही एक छोटा-सा गाँव बसाया और सत्यवती के साथ ब्याह कर आप वहीं रहने लगा ।
एक दिन पाराशर अपनी वासनाओंकी तृप्ति कर रहा था कि उस समय सत्यवती के एक व्यास नामका पुत्र हुआ । उसके सिरपर जटाएँ थीं, वह यज्ञोपवीत पहरे हुआ था और उसने उत्पन्न होते ही अपने पिताको - नमस्कार किया । पर लोगों का यह कहना उन्नत्त पुरुषके सरोखा है ओर
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