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वीरवतोको कथा
१६९ गई। पर जब सबको नींद आ गई, तब आप चुपकेसे उठी और जहाँ अपनी मौके पास बेचारी सुभद्रा सोई हुई थी, वहाँ पहुंचकर उस पापिनीने सुभद्राका मस्तक काट लिया और उसे लेकर आप रातही में अपने घर पर आ गई। सबेरा होते ही यह हाल सिंहबलको मालूम हुआ। सुभद्राके मुर्दे को देखकर उसे बेहद दुःख हुआ। वह खिन्न मन होकर अपने घर आ गया। उसे आया देखकर गोपवती अब उसका बड़ा आदर-सत्कार करने लगी। बड़ा स्नेह प्रगट कर उसे भोजन कराने लगी। पर सिंहबल के हृदय पर तो सुभद्राके मरणकी बड़ी गहरो चोट लगी थी, इसलिए उसे कुछ भी अच्छा नहीं लगता था और वह सदा उदास रहा करता था । और सच भी है, एक महा दुःखीको भोजन वगैरहमें क्या प्रीति होती होगी? सिंहबलकी सुभद्राके लिए यह दशा देख गोपवतीका क्रोध और भी बढ़ गया । एक दिन बेचारा सिंहबल उदास मनसे भोजन कर रहा था । यह देख गोपवतीने क्रोधसे सुभद्राका मस्तक लाकर उसकी थाली में डाल दिया और बोलीहाँ, बिना इसके देखे तुझे भोजन अच्छा नहीं लगता था; अब तो अच्छा लगेगा न ? सुभद्राके सिरको देखकर सिंहबल काँप गया। वह 'हाय ! यह तो महाराक्षसी है' इस प्रकार जोरसे चिल्लाकर डरके मारे भागने लगा। इतनेमें राक्षसो गोपवती ने पास ही पड़े हुए भालेको उठाकर सिंहबलकी पीठमें इस जोरसे मारा कि वह उसी समय तड़फड़ा कर वहीं पर ढेर हो गया । गोपवतीके ऐसे घृणित चरितको देखकर बुद्धिमानोंको उचित है कि वे दुष्ट स्त्रियों पर कभी विश्वास न लावें ।
वे कर्मोंके जीतनेवाले जिनेन्द्र भगवान् संसारमें सर्व श्रेष्ठ कहलावें जो कामरूपी हाथीके मारनेको सिंह हैं, संसारका भय मिटानेवाले हैं, शान्ति, स्वर्ग और मोक्षके देनेवाले हैं और मोक्षरूपो रमणी-रत्नके स्वामी हैं । वे मुझे भो शान्ति प्रदान करें।
३२. वीरवतीकी कथा संसारके बन्धु, पवित्रता की मूर्ति और मुक्तिका स्वतंत्रताका सुख देनेवाले जिनेन्द्र भगवान्को नमस्कार कर वीरवतीका उपाख्यान लिखा जाता है, जो सत्पुरुषोंके लिए वैराग्यका बढ़ानेवाला है ।
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