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आराधना कथाकोश इसके चेहरेपरसे तो इसकी बात ठीक जंचती है। पर इसका भेद खुलनेके लिए क्या उपाय है ? रानीने थोड़ी देर तक विचारकर कहा-हाँ, इसकी आप चिन्ता न करें। मैं सब बातें जान लूंगी।
दूसरे दिन रानीने पुरोहितजीको अपने अन्तःपुरमें बुलाया। आदरसत्कार होनेके बाद रानीने उनसे कहा-मेरी इच्छा बहुत दिनोंसे आपसे मिलनेकी थी, पर कोई ठोक समय ही नहीं मिल पाता था। आज बड़ी खुशी हुई कि आपने यहाँ आनेको कृपा की। इसके बाद रानीने पुरोहितजीसे कुछ इधर-उधरको बातें करके उनसे भोजनका हाल पूछा । उनके भोजनका सब हाल जानकर उसने अपनी एक विश्वस्त दासोको बुलाया और उसे कुछ बातें समझा-बुझाकर पीछी चली जानेको कह दिया । दासीके जानेके बाद रानीने पुरोहितजीसे एक नई ही बातका जिकर उठाया। वह बोली
पुरोहितजो, सुनती हूँ कि आप पासे खेलने में बड़े चतुर और बुद्धिमान हैं । मेरी बहुत दिनोंसे इच्छा होतो थी कि आपके साथ खेलकर में भी एक बार देखू कि आप किस चतुराईसे खेलते हैं । यह कहकर रानीने एक दासीको बुलाकर चौपड़के ले आनेकी आज्ञा की।
पुरोहितजी रानीकी बात सुनकर दंग रह गये । वे घबराकर बोलेहैं ! हैं ! महारानीजी, यह आप क्या करती हैं ? मैं एक भिक्षुक ब्राह्मण और आपके साथ मेरी यह धृष्टता। यदि महाराज सुन पावें तो वे मेरी क्या गति बनावेंगे?
रानीने कहा-पुरोहितजी, आप इतने घबराइए मत। मेरे साथ खेलने में आपको किसी प्रकारके गहरे विचारमें पड़नेकी कोई आवश्यकता नहों । महाराज इस विषयमें आपसे कुछ नहीं कहेंगे । आप डरिये मत ।
बेचारे पुरोहितजी बड़े पशोपेशमें पड़े। रानीको आज्ञा भी वे नहीं टाल सकते और इधर महाराजका उन्हें भय। वे तो इस उधेड़-बुनमें लगे हुए थे कि दासोने चौपड़ लाकर रानीके सामने रख दी। आखिर उन्हें खेलना हो पड़ा। रानोने पहली ही बाजोमें पुरोहितजोकी अंगूठी, जिसपर कि उसका नाम खुदा हुआ था, जीत ली। दोनों फिर खेलने लगे। इतनेमें पहली दासीने आकर रानीसे कुछ कहा। रानीने अबकी बार पुरोहितजी जीती हुई अँगूठी चुपकेसे उसे देकर चलो जानेको कह दिया। दासी घण्टे भर बाद फिर आई। उसे कुछ निराशसी देखकर रानीने इशारेसे अपने कमरेके बाहर ही रहनेको कह दिया और आप अपने
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