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कडारपिंगकी कथा किया गया । शहरकी स्त्रियाँ दरवाजोंका स्पर्श करनेको भेजी गई । सबने उन्हें पाँवोंसे छुआ, पर दरवाजोंको कोई नहीं खोल सकी। तब किसीने, जो कि नोलोके संन्यासका हाल जानता था, नीलीको उठा ले जाकर उसके पावोंका स्पर्श करवाया। दरवाजे खुल गये। जैसे वैद्य सलाईके द्वारा आँखोंको खोल देता है उसी तरह नोलोने अपने चरणस्पर्शसे दरवाजोंको खोल दिया । नीलीके शीलकी बहुत प्रशंसा हुई । नीली कलंक मुक्त हुई । उसके अखण्ड शोलप्रभावको देखकर लोगोंको बड़ी प्रसन्नता हुई। राजा तथा शहर के और-और प्रतिष्ठित पुरुषोंने बहुमूल्य वस्त्राभूषणों द्वारा नीलोका खूब सत्कार किया और इन शब्दोंमें उसकी प्रशंसा की “हे जिनभगवान्के चरणकमलोंको भौंरी, तुम खूब फूलो फलो । माता, तुम्हारे शीलका माहात्म्य कौन कह सकता है।" सती नीली अपने धर्मपर दृढ़ रही, उससे उसकी बड़े-बड़े प्रतिष्ठित पुरुषोंने प्रशंसा की । इसलिए सर्व साधारणको भी सती नीलीका पथ ग्रहण करना चाहिए।
जिनके वचन सारे संसारका उपकार करनेवाले हैं, जो स्वर्गके देवों और बड़े-बड़े राजा महाराजाओंसे पूज्य हैं और जिनका उपदेश किया हुआ पवित्र शील-ब्रह्मचर्य स्वर्ग तथा परम्परा मोक्ष का देनेवाला है, वे जिनभगवान् संसारमें सदा काल रहें और उनके द्वारा कर्म-परवश जीवोंको कर्म पर विजय प्राप्त करनेका पवित्र उपदेश सदा मिलता रहे।
२६. कडारपिंगकी कथा
अर्हन्त, जिनवाणी और गुरुओंको नमस्कार कर, कडारपिंगकी, जो कि स्वदारसन्तोषव्रत-ब्रह्मचर्यसे भ्रष्ट हुआ है, कथा लिखी जाती है ।
कांपिल्य नामका एक प्रसिद्ध शहर था। उसके राजाका नाम नरसिंह था । नरसिंह बुद्धिमान् और धर्मात्मा थे। अपने राज्यका पालन वे नीतिके साथ करते थे। इसलिए प्रजा उन्हें बहुत चाहती थी।
राजमंत्रीका नाम सुमति था। इनके धनश्री स्त्री और कडारपिंग नामक एक पुत्र था। कडारपिंगका चाल-चलन अच्छा नहीं था। वह बड़ा कामी था। इसी नगरमें एक कुबेरदत्त सेठ रहता था। यह बड़ा
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