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नोलोको कथा
१५५ सुन्दरी थो। इसपर उसने अच्छे-अच्छे रत्न, जड़े गहने और बहुमूल्य वस्त्र पहर रक्खे थे। इससे उसकी सुन्दरता और भी बढ़ गई थी। वह देखनेवालोंको ऐसी जान पड़ती थी, मानों कोई स्वर्गकी देव-बाला भगवान्की खड़ी-खड़ी पूजा कर रही है। सागरदत्त उसकी भुवनमोहिनी सुन्दरताको देखकर मुग्ध हो गया । कामने उसके मनको बेचैन कर दिया । उसने पास ही खड़े हुए अपने मित्रसे कहा-यह है कौन ? मुझे तो नहीं जान पड़ता कि यह मध्यलोककी बालिका हो । या तो यह कोई स्वर्ग-बाला है या नागकुमारी अथवा विद्याधर कन्या; क्योंकि मनुष्योंमें इतना सुन्दर रूप होना असम्भव है।
सागरदत्तके मित्र प्रियदत्तने नोलीका परिचय देते हुए कहा कि यह तुम्हारा भ्रम है, जो तुम ऐसा कहते हो कि ऐसी सुन्दरता मनुष्योंमें नहीं हो सकती। तुम जिसे स्वर्ग-बाला समझ रहे हो वह न स्वर्ग-बाला है, न नागकुमारी और न किसी विद्याधर वगैरहकी हो पुत्री है। किन्तु मनुष्यनी है और अपने इसी शहरमें रहनेवाले जिनदत्त सेठके कुलकी एकमात्र प्रकाश करनेवाली उसकी नीलो नामकी कन्या है । ___ अपने मित्र द्वारा नीलीका हाल जानकर सागरदत आश्चर्यके मारे दंग रह गया। साथ ही कामने उसके हृदयपर अपना पूरा अधिकार किया। वह घरपर आया सही, पर अपने मनको वह नोलोके पास ही छोड़ आया। अब वह दिन-रात नीलोको चिन्तामें घुल-घुलकर दुबला होने लगा। खाना-पीना उसके लिए कोई आवश्यक काम नहीं रहा । सच है, जिस कामके वश होकर श्रीकृष्ण लक्ष्मो द्वारा, महादेव गंगा द्वारा और ब्रह्मा उर्वशी द्वारा अपना प्रभुत्व, ईश्वरपना खो चुके तब बेचारे साधारण लोगोंकी तो कथा हो क्या कहो जाय ?
सागरदत्तको हालत उसके पिताको जान पड़ी। उसने एक दिन सागरदत्तसे कहा-देखो, जिनदत्त जैनी है, वह कभी अपनी कन्याको अजैनोके साथ नहीं ब्याहेगा। इसलिए तुम्हें यह उचित नहीं कि तुम अप्राप्य वस्तुके लिए इस प्रकार तड़फ-तड़फकर अपनी जानको जोखिममें डालो । तुम्हें यह अनुचित विचार छोड़ देना चाहिए। यह कहकर समुद्रदत्तने पुत्रके उत्तर पानेको आशासे उसको ओर देखा। पर जब सागरदत उसको बातका कुछ भो जवाब न देकर नोचो नजर किये हो बैठा रहा तब समुद्रदत्तको निराश हो जाना पड़ा। उसने समझ लिया कि इसके दो हो उपाय हैं । या तो पुत्रके जीवनको आशासे हाथ धो बैठना या किसी तरह
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