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आराधना कथाकोश नहीं कहकर बच्चेको लिवा ले गया। कारण श्रीदत्तकी पापवासना उसे कभी जिन्दा रहने न देगी, यह उसे उसकी बातचीतसे मालूम हो गया था। चाण्डाल बच्चेको एक नदीके किनारेपर लिवा ले गया। वहीं एक सुन्दर गुहा थी, जिसके चारों ओर वृक्ष थे । वह बालकको उस गुहामें रखकर अपने घरपर लौट आया।
संध्याका समय था । गुवाल लोग अपनी-अपनी गायोंको घरपर लौटाये ला रहे थे । उनमेंसे कुछ गायें इस गुहाकी ओर आ गई थीं, जहाँ गुणपालका पुत्र अपने पूर्वपुण्यके उदयसे रक्षा पा रहा था। धायके समान उन गायोंने आकर उस बच्चेको घेर लिया। मानों बच्चा प्रेमसे अपनी माँकी ही गोदमें बैठा हो। बच्चेको देखकर गायोंके थनोंमेंसे दूध झरने लग गया। गुवाल लोग प्रसन्नमुख बच्चेको गायोंसे घिरा हुआ और निर्भय खेलता हुआ देखकर बहुत आश्चर्य करने लगे। उन्होंने जाकर अपनी जातिके मुखिया गोविन्दसे यह सब हाल कह सुनाया। गोविन्दके कोई सन्तान नहीं थी, इसलिये वह दौड़ा गया और बालकको उठा लाकर उसने अपनी सुनन्दा नामको प्रियाको सौंप दिया। उसका नाम उसने धनकीति रखा। वहींपर बड़े यत्न और प्रेमसे उसका पालन व संरक्षण होने लगा। धनकीति भी दिनोंदिन बढ़ने लगा। वह ग्वालमहिलाओंके नेत्ररूपी कुमुद पुष्पोंको प्रफुल्लित करने वाला चन्द्रमा था। उसे देखकर उनके नेत्रोंको बड़ी शान्ति मिलती थी। वह सब सामुद्रिक लक्षणोंसे युक्त था। उसे देखकर सबको बड़ा प्रेम होता था। वह अपनी रूप मधुरिमासे कामदेव जान पड़ता था, कान्तिसे चन्द्रमा और तेजसे एक दूसरा सूर्य । जैसे-जैसे उसकी सुन्दरता बढ़ती जाती थी, वैसे-वैसे ही उसमें अनेक उत्तम-उत्तम गुण भी स्थान पाते चले जाते थे।
एक दिन पापी श्रीदत्त घोकी खरीद करता हुआ इधर आ गया । उसने धनकीर्तिको देखकर पहिचान लिया। अपना सन्देह मिटानेको और भी दूसरे लोगोंसे उसने उसका हाल दर्याफ्त किया। उसे निश्चय हो गया कि यह गुणपाल होका पुत्र है। तब उसने फिर उसके मारनेका षड्यंत्र रचा। उसने गोविन्दसे कहा-भाई, मेरा एक बहुत जरूरी काम है, यदि तुम अपने पुत्र द्वारा उसे करा दो तो बड़ी कृपा हो । मैं अपने घरपर भेजनेके लिये एक पत्र लिखे देता हूँ, उसे यह पहुँचा आवे । बेचारे गोविन्दने कह दिया कि मुझे आपके कामसे कोई इन्कार नहीं है। आप लिख दीजिये, यह उसे दे आयगा । सच बात है
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