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यम मुनिको कथा देनेवाला है। उपदेश सुनकर वे दोनों बहुत प्रसन्न हुए। इसके बाद वे श्रावकधर्म ग्रहण कर अपने स्थान लौट गये। ___ इधर यमधर मुनि भो अपने चारित्रको दिन दूना निर्मल करने लगे, परिणामोंको वैराग्यकी ओर खूब लगाने लगे। उसके प्रभावसे थोड़े हो दिनोंमें उन्हें सातों ऋद्धियाँ प्राप्त हो गई।
अहा ! नाममात्र ज्ञान द्वारा भी यम मुनिराज बड़े ज्ञानी हुए, उन्होंने अपनी उन्नतिको अन्तिम सीढ़ो तक पहँचा दिया। इसलिये भव्य पुरुषोंको संसारका हित करनेवाले जिन भगवान्के द्वारा उपदिष्ट सम्यग्ज्ञानको सदा आराधना करना चाहिये।
देखो, यम मुनिराजको बहत थोड़ा ज्ञान था, पर उसकी उन्होंने बड़ी भक्ति और श्रद्धाके साथ आराधना की। उसके प्रभावसे वे संसारमें प्रसिद्ध हुए, मुनियों में प्रधान और मान्य हुए और सातों ऋद्धियाँ उन्हें प्राप्त हुईं। इसलिये सज्जन धर्मात्मा पुरुषोंको उचित है कि वे त्रिलोकपूज्य जिनभगवान् द्वारा उपदिष्ट, सब सुखोंका देनेवाला और मोक्ष-प्राप्तिका कारण अत्यन्त पवित्र सम्यग्ज्ञान प्राप्त करनेका यत्न करें।
२३. दृढ़सूर्यकी कथा लोकालोकके प्रकाश करनेवाले, केवलज्ञान द्वारा संसारके सब पदार्थोंको जानकर उनका स्वरूप कहनेवाले और देवेन्द्रादि द्वारा पूज्य श्रीजिनभगवान्को नमस्कार कर में दृढ़सूर्यको कथा लिखता हूँ, जो कि जीवोंको विश्वासकी देनेवाली है।
उज्जयिनीके राजा जिस समय धनपाल थे, उस समयकी यह कथा है । धनपाल उस समयके राजाओंमें एक प्रसिद्ध राजा थे। उनकी महारानीका नाम धनवती था। एक दिन धनवतो अपनी सखियोंके साथ वसन्तश्री देखनेको उपवन में गई। उसके गले में एक बहुत कीमती रत्नोंका हार पड़ा हुआ था। उसे वहीं आई हुई एक वसन्तसेना नामकी वेश्याने देखा । उसे देखकर उसका मन उसको प्राप्तिके लिए आकुलित हो उठा । उसके बिना उसे अपना जोवन निष्फल जान पड़ने लगा । वह दुःखी होकर अपने घर लौटी। सारे दिन वह उदास रहो । जब रातके समय उसका
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