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पद्मरथ राजाकी कथा
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हुए और अनन्त जन्मोंमें बाँधे हुए मिथ्यात्वको नष्ट करनेवाले भगवान् वासुपूज्य के पवित्र दर्शन किये, उनकी पूजा की, स्तुति की और उपदेश -सुना । भगवान् के उपदेशका उनके हृदयपर बहुत प्रभाव पड़ा । वे उसी समय जिनदीक्षा लेकर तपस्वी हो गये । प्रव्रजित होते ही उनके परिणाम इतने विशुद्ध हुए कि उन्हें अवधि और मन:पर्ययज्ञान हो गया । भगवान् वासुपूज्य के वे गणधर हुए । इसलिए भव्य पुरुषोंको उचित है कि वे मिथ्यात्व छोड़कर स्वर्ग-मोक्ष की देनेवाली जिनभगवान्की भक्ति निरन्तर पवित्र भावोंके साथ क≥ और जिस प्रकार पद्मरथ सच्चा जिनभक्त हुआ उसी प्रकार वे भी हों ।
जिनभक्ति सब प्रकारका सांसारिक सुख देती है और परम्परा मोक्षको प्राप्तिका कारण है, जो केवलज्ञान द्वारा संसारके प्रकाशक हैं और सत्पुरुषों द्वारा पूज्य हैं, वे भगवान् वासुपूज्य सारे संसारको मोक्ष सुख प्रदान करें कर्मों के उदयसे घोर दुःख सहते हुए जीवोंका उद्धार करें ।
२१. पंच नमस्कारमंत्र - माहात्म्य कथा
मोक्षसुख प्रदान करनेवाले श्रीअर्हन्त, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और साधुओं को नमस्कार कर पंच नमस्कारमंत्रकी आराधना द्वारा फल प्राप्त करनेवाले सुदर्शनकी कथा लिखी जाती है ।
अंगदेशको राजधानी चम्पानगरीमें गजवाहन नामके एक राजा हो चुके हैं। वे बहुत खूबसूरत और साथ ही बड़े भारी शूरवीर थे। अपने तेजसे शत्रुओं पर विजय प्राप्तकर सारे राज्यको उन्होंने निष्कण्टक बना लिया था । वहीं वृषभदत्त नामके एक सेठ रहा करते थे । उनकी गृहिणीका नाम था अर्हद्दासी । अपनी प्रियापर सेठका बहुत प्रेम था । वह भी सच्ची पतिभक्तिपरायणा थी, सुशीला थी, सती थी, वह सदा जिनभक्ति में तत्पर रहा करती थी ।
वृषभदत्तके यहाँ एक गुवाल नौकर था । एक दिन वह वन से अपने घरपर आ रहा था । समय शीतकालका था। जाड़ा खूब पड़ रहा था । उस समय रास्ते में उसे एक ऋद्धिधारी मुनिराजके दर्शन हुए, जो कि एक
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