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विष्णुकुमार मुनिको कथा अपने धर्म बन्धुओंके साथ प्रेमका अपूर्व परिचय दिया, उसी प्रकार और और भव्य पुरुषोंको भी अपने और दूसरोंके हितके लिये समय समयपर दूसरोंके दुःखों में शामिल होकर वात्सल्य, उदारप्रेम का परिचय देना उचित है। ___ इस प्रकार जिनभगवान्के परमभक्त विष्णुकुमारने धर्म प्रेमके वश हो मुनियोंका उपसर्ग दूरकर वात्सल्य अंगका पालन किया और पश्चात् ध्यानाग्नि द्वारा कर्मोका नाश कर मोक्ष गये। वे ही विष्णुकुमार मुनिराज मुझे भवसमुद्रसे पार कर मोक्ष प्रदान करें।
१३. वज्रकुमारकी कथा संसारके परम गुरु श्रीजिनभगवान्को नमस्कार कर मैं प्रभावनांगके पालन करनेवाले श्रीवज्रकुमारमुनिकी कथा लिखता हूँ।
जिस समयकी यह कथा है, उस समय हस्तिनापुरके राजा थे बल । वे राजनीतिके अच्छे विद्वान् थे, बड़े तेजस्वी थे और दयालु थे। उनके मंत्रीका नाम था गरुड़ । उसका एक पुत्र था। उसका नाम सोमदत्त था। वह सब शास्त्रोंका विद्वान् था और सुन्दर भी बहुत था। उसे देखकर सबको बड़ा आनन्द होता था। एक दिन सोमदत्त अपने मामाके यहाँ गया, जो कि अहिछत्रपूरमें रहता था। उसने मामासे विनयपूर्वक कहामामाजी, यहाँके राजासे मिलनेकी मेरी बहुत उत्कंठा है। कृपाकर आप उनसे मेरी मुलाकात करवा दीजिये न ? सुभूतिने अभिमानमें आकर अपने महाराजसे सोमदत्तकी मुलाकात नहीं कराई। सोमदत्तको मामाको यह बात बहुत खटकी । आखिर वह स्वयं ही दुर्मुख महाराजके पास गया और मामाका अभिमान नष्ट करनेके लिये राजाको अपने पाण्डित्य और प्रतिभाशालिनी बुद्धिका परिचय कराकर स्वयं भी उनका राजमंत्री बन गया । ठीक भी है सबको अपनी ही शक्ति सुख देनेवाली होती है।
सुभूतिको अपने भानजेका पाण्डित्य देखकर बड़ी प्रसन्नता हुई। उसने उसके साथ अपनी यज्ञदत्ता नामकी पुत्रीको ब्याह दिया। दोनों दम्पति सुखसे रहने लगे। कुछ दिनों बाद यज्ञदत्ताके गर्भ रहा ।
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