________________
१६. पवित्र हृदयवाले एक बालककी कथा
बालक जैसा देखता है, वैसा ही कह भी देता है । क्योंकि उसका हृदय पवित्र रहता है । यहाँ में जिनभगवान्को नमस्कार कर एक ऐसी ही कथा लिखता हूँ, जिसे पढ़कर सर्व साधारणका ध्यान पापकर्मों के छोड़ने की ओर जाय ।
कौशाम्बी में जयपाल नामके राजा हो गये हैं । उनके समय में वहीं एक सेठ हुआ है । उसका नाम समुद्रदत्त था और उसकी स्त्रीका नाम समुद्रदत्ता । उसके एक पुत्र हुआ। उसका नाम सागरदत्त था । वह बहुत हो सुन्दर था । उसे देखकर सबका चित्त उसे खेलने के लिये व्यग्र हो उठता था । समुद्रदत्तका एक गोपायन नामका पड़ोसी था । पूर्वजन्म के पापकर्मके उदयसे वह दरिद्री हुआ । इसलिये धनकी लालसाने उसे व्यसनी बना दिया । उसकी स्त्रीका नाम सोमा था । उसके भी एक सोमक नामका पुत्र था । वह धीरे-धीरे कुछ बड़ा हुआ और अपनी मीठी और तोतली बोली से मातापिताको आनन्दित करने लगा ।
एक दिन गोपायनके घरपर सागरदत्त और सोमक अपना बालसुलभ खेल-खेल रहे थे । सागरदत्त इस समय गहना पहरे हुए था। उसी समय पापी गोपायन आ गया। सागरदत्तको देखकर उसके हृदय में पाप वासना हुई । दरवाजा बन्दकर वह कुछ लोभके बहाने सागरदत्तको घरके भीतर लिवा ले गया । उसीके साथ सोमक भी दौड़ा गया । भीतर लेजाकर पापी. गोपायनने उस अबोध बालकका बड़ी निर्दयतासे छुरी द्वारा गला घोंट दिया और उसका सब गहना उतारकर उसे गड्ढे में गाड़ दिया ।
कई दिनों तक बराबर कोशिश करते रहनेपर भी जब सागरदत्तके मातापिताको अपने बच्चेका कुछ हाल नहीं मिला, तब उन्होंने जान लिया कि किसी पापीने उसे धनके लोभसे मार डाला है । उन्हें अपने प्रिय बच्चे की मृत्युसे जो दुःख हुआ उसे वे ही पाठक अनुभव कर सकते हैं जिनपर कभी ऐसा देवी प्रसंग आया हो । आखिर बेचारे अपना मन मसोस कर रह गये । इसके सिवा वे और करते भी तो क्या ?
कुछ दिन बीतनेपर एक दिन सोमक समुद्रदत्तके घर के आँगन में खेल रहा था । तब समुद्रदत्ता के मनमें न जाने क्या बुद्धि उत्पन्न हुई सो उसने सोमकको बड़े प्यारसे अपने पास बुलाकर उससे पूछा- भैया, बतला तो तेरा साथी समुद्रदत्त कहाँ गया है ? तूने उसे देखा है ?
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org