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आराधना कथाकोश पिताके दीक्षित हो जानेपर हस्तिनापुरका राज्य पद्मराज करने लगे। उन्हें सब कुछ होनेपर भी एक बातका बड़ा दुःख था। वह यह कि, कुंभपुरका राजा सिंहबल उन्हें बड़ा कष्ट पहुँचाया करता था। उनके देशमें अनेक उपद्रव किया करता था। उसके अधिकारमें एक बड़ा भारी सुदृढ़ किला था । इसलिये वह पद्मराजको प्रजापर एकाएक धावा मारकर अपने किलेमें जाकर छुप जाता है। तब पद्मराज उसका कुछ अनिष्ट नहीं कर पाते थे । इस कष्ट की उन्हें सदा चिन्ता रहा करती थी।
इसी समय श्रीवर्माके चारों मंत्री उज्जयिनीसे निकलकर कुछ दिनों बाद हस्तिनापुरकी ओर आ निकले । उन्हें किसी तरह राजाके इस दुःखका सूत्र मालूम हो गया। वे राजासे मिले और उन्हें चिन्तासे निर्मुक्त करनेका वचन देकर कुछ सेनाके साथ सिंहबलपर जा चढ़े और अपनी बद्धिमानीसे किलेको तोडकर सिंहबलको उन्होंने बाँध लिया और लाकर पद्मराजके सामने उपस्थित कर दिया। पद्मराज उनकी वीरता और बुद्धिमानीसे बहुत प्रसन्न हुआ। उसने उन्हें अपना मंत्री बनाकर कहाकि तुमने मेरा उपकार किया है। तुम्हारा मैं बहुत कृतज्ञ हूँ। यद्यपि उसका प्रतिफल नहीं दिया जा सकता, तब भी तुम जो कहो वह मैं तुम्हें देनेको तैयार हूँ। उत्तरमें बलि नामके मंत्रीने कहा-प्रभो, आपकी हमपर कृपा है, तो हमें सब कुछ मिल चका। इसपर भी आपका आग्रह है, तो उसे हम अस्वीकार भी नहीं कर सकते । अभी हमें कुछ आवश्यकता नहीं है । जब समय होगा तब आपसे प्रार्थना करेंगे ही। ___इसी समय श्री अकम्पनाचार्य अनेक देशोंमें विहार करते हुए और धर्मोपदेश द्वारा संसारके जीवोंका हित करते हए हस्तिनापूरके बगीचेमें आकर ठहरे। सब लोग उत्सवके साथ उनकी वन्दना करनेको गये। अकम्पनाचार्यके आनेका समाचार राजमंत्रियोंको मालूम हुआ। मालूम होते ही उन्हें अपने अपमानकी बात याद हो आई। उनका हृदय प्रतिहिंसासे उद्विग्न हो उठा। उन्होंने परस्परमें विचार किया कि समय बहत उपयुक्त है, इसलिये बदला लेना ही चाहिये । देखो न, इन्हीं दुष्टोंके द्वारा अपनेको कितना दु:ख उठाना पड़ा था ? सबके हम धिक्कार पात्र बने और अपमानके साथ देशसे निकाले गये। पर हाँ अपने मार्गमें एक काँटा है। राजा इनका बड़ा भक्त है। वह अपने रहते हुए इनका अनिष्ट कैसे होने देगा? इसके लिए कुछ उपाय सोच निकालना आवश्यक है। नहीं तो ऐसा न हो कि ऐसा अच्छा समय हाथसे निकल जाय ? इतनेमें बलि
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