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आराधना कथाकोश अकृत्रिम जिन मन्दिरों की पूजा करनेके लिये जाया करता हूँ, जो कि सुखशान्तिकी देनेवाली है। तब सोमदत्तने जिनदत्तसे कहा-प्रभो, मुझे भी विद्या प्रदान कीजिये न ? जिससे मैं भी अच्छे सुन्दर सुगन्धित फूल लेकर प्रतिदिन भगवानकी पूजा करनेको जाया करूँ और उसके द्वारा शुभकर्म उपार्जन करूँ। आपकी बड़ी कृपा होगी यदि आप मुझे विद्या प्रदान करेंगे।
सोमदत्तकी भक्ति और पवित्रता को देखकर जिनदत्तने उसे विद्या साधन करनेकी रीति बतला दी। सोमदत्त उससे सब विधि ठीक-ठीक समझकर विद्या साधने के लिये कृष्ण पक्षकी चतुर्दशीकी अन्धेरी रातमें श्मशानमें गया, जो कि बड़ा भयंकर था । वहाँ उसने एक बड़की डालीमें एकसौ आठ लडीका एक दुबाका सीका बाँधा और उसके नीचे अनेक भयंकर तीखे-तीखे शस्त्र सीधे मुह गाड़कर उनकी पुष्पादिसे पूजा को । इसके बाद वह सीकेपर बैठकर पंच नमस्कार मंत्र जपने लगा। मंत्र पूरा होनेपर जब सींकाके काटनेका समय आया और उसको दृष्टि चमचमाते हुए शस्त्रोंपर पड़ी तब उन्हें देखते ही वह काँप उठा। उसने विचारायदि जिनदत्तने मुझे झूठ कह दिया हो तब तो मेरे प्राण ही चले जायगे; यह सोचकर वह नीचे उतर आया। उसके मनमें फिर कल्पना उठी कि भला जिनदत्तको मुझसे क्या लेना है जो वह झूठ कहकर मुझे ऐसे मृत्युके मुखमें डालेगा ? और फिर वह तो जिनधर्मका परम श्रद्धालु है, उसके रोम
रोममें दया भरी हुई है, उसे मेरी जान लेनेसे क्या लाभ ? इत्यादि विचारोंसे आने मनको सन्तुष्ट कर वह फिर सींकेपर चढ़ा, पर जैसे ही उसकी दृष्टि फिर शस्त्रोंपर पड़ो कि वह फिर भयके मारे नीचे उतर आया। इसी तरह वह बार-बार उतरने चढ़ने लगा, पर उसकी हिम्मत सीका काट देनेकी नहीं हुई। सच है जिन्हें स्वर्गमोक्षका सुख देने वाले जिनभगवानके वचनोंपर विश्वास नहीं, मनमें उनपर निश्चय नहीं, उन्हें संसारमें कोई सिद्धि कभी प्राप्त नहीं होती।
उसी रातको एक और घटना हुई वह उल्लेख योग्य है और खासकर उसका इसी घटनासे सम्बन्ध है। इसलिये उसे लिखते हैं। वह इस प्रकार है
इधर तो सोमदत्त सशंक होकर क्षणभरमें वृक्षपर चढ़ता और क्षणभरमें उसपरसे उतरता था, और दूसरी ओर इसी समय माणिकांजन सुन्दरी नामको एक वेश्याने अपनेपर प्रेम करनेवाले एक अंजन नामके
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