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आराधना कथाकोश राजगृह नामका एक सुन्दर शहर है । उसके राजा हैं श्रेणिक । वे सम्यग्दृष्टि हैं, उदार हैं और राजनीतिके अच्छे विद्वान् हैं। उनकी महारानीका नाम चेलनी है। वह भी सम्यक्त्वरूपी अमोल रत्नसे भूषित है, बड़ी धर्मात्मा है, सती है और विदुषो है। उसके एक पुत्र है । उसका नाम है वारिषेण । वारिषेण बहुत गुणी है, धर्मात्मा है और श्रावक है ।
एक दिन मगधसुन्दरी नामकी एक वेश्या राजगृहके उपवनमें क्रीड़ा करनेको आई हई थी। उसने वहाँ श्रीकीति नामक सेठके गले में एक बहुत 'ही सुन्दर रत्नोंका हार पड़ा हुआ देखा । उसे देखते ही मगधसुन्दरो उसके लिए लालायित हो उठो । उसे हारके बिना अपना जीवन निरर्थक जान पड़ने लगा। सारा संसार उसे हारमय दिखने लगा। वह उदास मुंह घरपर लौट आई। रातके समय उसका प्रेमी विद्युत् चोर जब घरपर आया तब उसने मगधसुन्दरीको उदास मुंह देखकर बड़े प्रेमसे पूछा-प्रिये, आज मैं तुम्हें उदास देखता हूँ, क्या इसका कारण तुम बतलाओगी ? तुम्हारी यह उदासो मुझे अत्यन्त दुखो कर रही है।
मगधसुन्दरीने विद्युतपर कटाक्षबाण चलाते हुए कहा-प्राणवल्लभ, तुम मुझपर इतना प्रेम करते हो, पर मुझे तो जान पड़ता है कि यह सब तुम्हारा दिखाऊ प्रेम है और सचमुच ही तुम्हारा यदि मुझपर प्रेम है तो कृपाकर श्रीकीर्ति सेठके गलेका हार, जिसे कि आज मैंने बगीचे में देखा है और जो बहुत ही सुन्दर है, लाकर मुझे दीजिये, जिससे मेरी इच्छा पूरी हो। तब हो मैं समझगी कि आप मुझसे सच्चा प्रेम करते हैं और तब ही मेरे प्राणवल्लभ होनेके अधिकारी हो सकेंगे। ____ मगधसुन्दरीके जालमें फँसकर उसे इस कठिन कार्यके लिए भी तैयार होना पड़ा। वह उसे सन्तोष देकर उसी समय वहाँसे चल दिया और श्रीकीति सेठके महलपर पहुंचा। वहाँसे वह श्रीकीर्तिके शयनागारमें गया और अपनी कार्यकुशलतासे उसके गलेमेंसे हार निकाल लिया और बड़ी फुर्तीके हाथ वहाँसे चल दिया । हारके दिव्य तेजको वह नहीं छुपा सका। सो भागते हुए उसे सिपाहियोंने देख लिया। वे उसे पकड़नेको दौड़े। वह भागता हुआ श्मशानकी ओर निकल आया । वारिषेण इस समय श्मशानमें कायोत्सर्ग ध्यान कर रहा था। सो विद्यत चोर मौका देखकर पीछे आनेवाले सिपाहियोंके पंजेसे छूटनेके लिए उस हारको वारिषेणके आगे पटक कर वहाँसे भाग खड़ा हुआ। इतनेमें सिपाही भी वहीं आ पहुँचे, जहाँ वारिषेण ध्यान किये खड़ा हुआ था। वे वारिषेणको हारके पास
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