________________
अनन्तमतीको कथा क्षेत्रोंकी यात्रा करते-करते वे अयोध्यामें आये। वहींपर प्रियदत्तका साला जिनदत्त रहता था । प्रियदत्त उसीके घरपर ठहरा । जिनदत्तने बड़े आदर सम्मानके साथ अपने बहनोईकी पाहुनगति की। इसके बाद स्वस्थताके समय जिनदत्तने अपनी बहिन आदिका समाचार पूछा । प्रियदत्तने जैसी घटना बीती थी, वह सब उससे कह सुनाई। सुनकर जिनदत्तको भी अपनी भानजीके बाबत बहुत दुःख हुआ। दुःख सभीको हुआ पर उसे दूर करनेके लिये सब लाचार थे। कर्मोंकी विचित्रता देखकर सब होको सन्तोष करना पड़ा।
दूसरे दिन प्रातःकाल उठकर और स्नानादि करके जिनदत्त तो जिनमन्दिर चला गया। इधर उसकी स्त्री भोजनकी तैयारी करके पद्मश्री आर्यिकाके पास जो बालिका थी, उसे भोजन करनेको और आंगनमें चौक पूरनेको बुला लाई । बालिकाने आकर चौक पूरा और बाद भोजन करके वह अपने स्थानपर लौट आई। __ जिनदत्तके साथ प्रियदत्त भी भगवान्की पूजा करके घरपर आया । आते ही उसकी दृष्टि चौकपर पड़ी। देखते ही उसे अनंतमतीको याद हो उठी। वह रो पड़ा। पुत्रीके प्रेमसे उसका हृदय व्याकुल हो गया। उसने रोते-रोते कहा-जिसने यह चौक पूरा है, क्या मुझ अभागेको उसके दर्शन होंगे। जिनदत्त अपनी स्त्रीसे उस बालिकाका पता पूछ कर जहाँ वह थी, वहीं दौड़ा गया और झटसे उसे अपने घर लिवा लाया। बालिकाको देखते ही प्रियदत्तके नेत्रोंसे आँसू बह निकले। उसका गला भर आया। आज वर्षों बाद उसे अपनी पुत्रीके दर्शन हुए। बड़े प्रेमके साथ उसने अपनी प्यारी पुत्रीको छातीसे लगाया और उसे गोदीमें बैठाकर उससे एक-एक बातें पूछना शुरू की। उसके दुःखोंका हाल सुनकर प्रियदत्त बहुत दुःखी हुआ। उसने कर्मोंका, इसलिये कि अनन्तमती इतने कष्टोंको सहकर भी अपने धर्मपर दृढ़ रही और कुशलपूर्वक अपने पितासे आ मिलो, बहुतबहुत उपकार माना। पिता-पुत्रीका मिलाप हो जानेसे जिनदत्तको बहुत प्रसन्नता हुई। उसने इस खुशोमें जिनभगवान्का रथ निकलवाया, सबका यथायोग्य आदर सम्मान किया और खूब दान किया। __इसके बाद प्रियदत्त अपने घर जानेको तैयार हुआ। उसने अनन्तमतीसे भी चलनेको कहा। वह बोली-पिताजी, मैंने संसारकी लीलाको खूब देखा है। उसे देखकर तो मेरा जी काँप उठता है। अब में घरपर नहीं चलंगी। मुझे संसारके दुःखोंसे बहुत डर लगता है। अब तो आप
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org