________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तंजहा-नाम खंधे, ठवणा खंधे, दव्व खंधे,भाव खधे // १॥णाम ठवणाओ पुब्बभणि आओ आणुकमेण भाणियवाओ॥२॥से किं तं दध्वखंधे ? दव्व खंधे दुविहे पण्णत्ते __तंजहा-आगमतोय नो आगमतोय // 3 // से किं तं आगमओ दव्वखंधे ? आगमओ दव्वखंधे-जस्सणं खंधेति पयं सिक्खियं सेसं जहा दवावस्सए तहा भाणियन्वं, णवरं खंधाभिलावो जाव से किं तं जाणय सरीर भविय सरीर वइरित्ते दव्वखंधे ? जाणय सरीर भविय सरीर वइरित्ते दव्वरवंधे तिविहे पण्णत्ते तंजहाअर्थ | अहो भगवन् ! स्कंध किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! स्कंध के चार प्रकार कहे हैं. तद्यथा-१ नाम , Fस्कंध, 2 स्थापना स्कंध. 3 द्रव्य स्कंध, और 4 भाव स्कंध // 1 // इन चारों में नाम स्कंध व स्थापना स्कंध का कथन पूर्वोक्त आवश्यक के कथन जैसे कहना // 2 // अहो भगवन् ! द्रव्य स्कंध किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! द्रव्य स्कंध के दो भेद कहे हैं. तद्यथा-आगम से व नो आगए से // 3 // अहो भगवन् ! आगम से द्रव्य स्कंध किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! आगम से द्रव्य स्कंध उसे कहते हैं कि जो " स्कंध" ऐसा पद पढा. हृदय में स्थित किया यावत् सब द्रव्य आवश्यक जैसे कथन करना. विशेष यहां सब स्थान स्कंध लेना. यावत् अहो भगवन ! ज्ञ शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य स्कंध किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! ज्ञ शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य स्कंध के तीन भेद कहे हैं. / मुनि श्री अमालक ऋषिमा अनुवादक बाल ब्रह्मचारी * प्रकाशक-रामावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादनी For Private and Personal Use Only