________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 48 अनुवादक बारब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी 8+ काविलं, लोगायतं, सट्रियंत्तं,माढरपुराणं,वागरणं नाडगाइ. अहवा बावत्तरिकलाऔ चत्तारियवेया, संगोवगाणं, से तं लोइयं नो आगमतो भाव सुयं // 40 // से किं तं लोउत्तग्यिं नो आगमतो भावसुयं ? लोउत्तरियं नो आगमतो भावसुयं-जं इमं अरिहंतेहिं भगवंतेहिं उप्पण्णणाण दसणधरेहिं तीय एडुप्पण्ण मणागय जाणएहिं सवण्णाहिं सव्वदरिसिहिं तिल्लुक्करहित महितपूइएहिं, अप्पडिहय वरणाण सण धरेहिं पणीयं दुवालसंग गणिपिंडगं तंजहा-आयारो, सुयगडो, ठाणं, समवाओ, विवाहपण्णत्ती, नाया धम्म कहाओ. उवासगदसाओ, अंतगडदसाओ, 17 पुरान, 18 व्याकरण, 19 नाटक; 20 बहत्तर कला के शास्त्र, 21 चारों वेद. 22 सोमोपोग पट् शास्त्र वैगरह जो बनाये हैं उसे नो आमम भाव श्रुत कहना // 40 // अहो भगवन् ! लोकोचर नो आगय से भाव श्रुत किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! लोकोत्तर नो आगम से भाव श्रत उसे कहते हैं कि जो केवल ज्ञान केवल दर्शन के धारक भून काल, भविष्य काल व वर्तमान काल यों तीनों काल भाव के सर्वज्ञ सर्वदशी, तीन लोक के जीवों को वंदनीय पूज्यनीय, अप्रतिहत प्रधान ज्ञान दर्शनवाले श्री अरि-मैं हत वीतराग देवने आचार्य के रत्न करंड समान जो द्वादशांग रूपे हैं. इन द्वादशांग के नाम कहते, Vt. आचारांग, 2 सूत्रकृतांग, 3 स्थानांग, 4 समवायांग, 5 विवाह प्राप्ति, 6 ज्ञाता धर्म कांग, .प्रकाशक-जावहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी* For Private and Personal Use Only