________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अंडयं-हंसगम्भादि, बोडयं-कप्पासमाइ, कीडयं पंचविहं पण्णत्तं तंजहा-पट्टे, मलए, असुए, चीणंसुए, किमिरागे // बालयं पंचविहं पण्णत्तं तंजहा-उण्णिए उहिए, मिपलोमिए, कोत्तवे, किष्टिस // वागयं सणमाइ // सेतं जाणय सरीरं भविय सरीरवइरित्तं दव्वसुयमसेतं नो आगमतो दन्वसुयं॥सेतं दव्वसुयं॥३६॥से किं तं भावजुयं? भावसुयं दुविहं पण्णत्तं तंजहा-आगमतो य, नो आगमतो य // 37 // से किं अनुवादक वालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी कहते हैं ? उसर-अज सो हंस गर्भ प्रमख जान लेना. बोडज सो कर्पास का सत्र वगैरह जानना. कीडे से शेनेवाले मूत्र के पांच भेद-पट्ट सूत्र-कीडे की लाल से बना, 2 मलय मूत्र मलय देश के कीडे से बना, 3 अंशुक मूत्र-चिन देश सिवाय अन्य देश के कीडे से बना, चिनांशक-चीन देश के कीडे से बना. और 5 कृमिराग-रक्त वर्ण के कीडे से बना. वाल के पांच भेद कहे हैं. तबथा- मेंदे के बाल से १२ऊंट के बाल से, 3 मृग के बाल से, 4 ऊंदर के बाल से और 5 किसी कीटक के रोम से. और बल्कळ से शन वगैरह जाननन. यह शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य श्रृत हुवा. यह नो आगम से द्रष्य श्रुत का कथन हुवा. या द्रव्य श्रुन का कथन संपूर्ण हुवा // 36 // अहो भगवन् ! भाव श्रुत किसे हते हैं? अहो शिष्य! भाव श्रुत के दो भेद-आगम से वनो आगम से ॥३७॥अहो भगवन् ! आगम से भाव For Private and Personal Use Only प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी