________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अमोलक ऋषिजी अनुवादक कालबाह्मचारी माना 1 मितिकट्ठ नेगमम्सणं एगो अणुवउतो आगमतो एगं दव्यसुयं जाव कम्हा ! जइ / FE जाणए अनुवउत्ते न भवइ, से तं आगमतो दव्वसुयं // 32 // से कि तं नो आगमतो दव्वसुयं ? नो आगमतो दव्वसुयं तिविहं पण्णत्तं तंजहा-जाणय सरीर दव्यसयं, भविय सरीर दव्वयं, जाणय सरीर भविय सरीर वहरितं दव्वसुयं // 33 // से किं तं जाणय सरीर दसुयं ? जाणयसरीर दव्वसुयं सुयति पयत्याहिगार जाणयस्स ज सरीरयं ववगयचुयं चाविय चतदेह तं चेव पुत्र भाणियं भाणियन्वं जाव से तं जाणय सरीर दव्वसुयं // 34 // से किं तं कहना. यावत् जिस लिये वह उपयोग रहित होता है इस लिये वह द्रव्य श्रुत कहाता है. यह मागम से है। द्रव्य श्रुत मा॥ 32 // अहो भगवन् ! नो आगम से इन्य श्रुत किसे कहते हैं: अहो शिष्य ! नो आम से द्रव्य श्रत के तीन भेद कहे हैं जिन के नाप- शरीर द्रव्य भूत, 2 भव्य शरीर द्रव्य श्रुत और 3 व भरीर भग भरीर व्यतिरिक्त द्रव्य श्रुत // 33 // अहो भगवन् ! शरीर द्रव्य श्रुत किसे कहते हैं? अहोशिष्य श्रुत'ऐसे पदव उस के अर्थ के अधिकार का शाता भरीर जीव राहत,माण रहित व की चेष्टा रहित पूर्वोक्त प्रकार हुवा उसे देख कर कोई कहे कि यह श्रुत का ज्ञाता था. जैसे यह सका घट, यह घृत का प था. इसे शरीर द्रव्य श्रुत कहना // 34 // अहो भगवन् ! भव्य शरीर * प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालापमादजी અર્થ For Private and Personal Use Only