________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी + अवस्म कायवे हवइ, जम्हा अंतो अहोनिसस्स य. तम्हा आवस्सयं नाम // 2 // सतं आवस्सयं // 26 // // सेकिंतं सतं ?सतं चउन्विहं पण्णतं तंजहा-नामसयं ठयणासुयं, दव्वसुयं, भावसुयं // 27 // से किं तं नायसुयं ? नायसुयं जस्सणं जीवस्स वा जाव सुएत्ति नाम कज्जइ, सेतं नामसुयं // 28 // से किं तं ठवणासुयं? सब प्रकार के गुणों का आवास रूप, 2 आवस्थ करणिज्ज-सदैव आवश्य करने योग्य. ३धृवविग्रह-सदैव इन्द्रियों के निग्रह करने का स्थान,५विशुद्ध-आत्मा को विशुद्ध निर्मल करने का स्थान,५अध्ययन छ अध्ययन के वर्ग रूप, 6 न्याय-न्याय करनेवाला, 7 आराधन-ज्ञानादिक की आराधना करनेवाला और 8 मार्ग-मोक्ष का यही मार्ग // 1 // साधु साध्वी, श्रावक और श्राविका को दोनों वक्त आवश्य करने योग्य होने से इस का आवश्यक ऐसा नाम है. यह आवश्यक का अधिकार हुवा // // . / अब श्रुत के निक्षेप कहते हैं-अहो भगवन् ! श्रुत किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! श्रुत के चार प्रकार कहे हैं. तद्यथः- नाम श्रुत, 2 स्थापना श्रुत, 3 द्रव्य श्रुत और भाव श्रुत // 27 // अहो भगवन् ! नाम श्रत किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! किसी एक जीव का, तथा अजीव का, बहुत जीव का बहुत अजीव का, एक जीवाजीव का तथा बहुत जीवाजीव का श्रुत ऐसा नाम रखा वह नाम *श्रत. यह नाम श्रुत हुवा // 28 // अहो भगवन् ! स्थापना श्रुत किसे कहते हैं? अहो शिष्य ! / प्रकाशक-रानावहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसाद * For Private and Personal Use Only