________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 48-23 एकविंशत्तम-अनुयोगद्वार मूत्र चतुर्थ मूल 4882 भविय सरीर दव्वसुयं ? भविय सरीर दवसुर्य-जे जीवे जोणी जम्मणं निवसंते / जहा दव्वावस्सए तहा भाणियव्वं, जाव सेतं भविय सरीर दव्वसुयं // 35 // से किं तं जाणय सरीर भविय सरीर वइरित्तं दव्वसुयं ? जाणय मरीर भषिय सरीर वइस दव्वसुयं-जंपत्तयपोत्थयलिहियं // अहवा जाणय सरीर भविय सरीर वइरित्तं दव्वसुवं पंचविहं पण्णत्तं तंजहा-अंडयं, बोडयं, कीडयं, वालयं, चक्कयं, द्रव्य श्रुत किसे कहते हैं ? अहो शिष्य ! जिस किसीने माता की योनि से जन्म लिया वा वागमिक काल में श्रुत का अभ्याप्त करेगा, जैसे यह मधु का या घृत का घट होगा उसे भव्यशरीरद्रव्यश्रुत कहना // 35 // अहो भगवन ! शरीन्द्रन्यशरीरव्यतिरिक्त द्रव्य श्रुत किसे कहते हैं? अहोर शिष्य ! साह पत्र अथवा पुस्तक पर जो लिखा दुवा श्रुत है उप्ती का नाम ज्ञ शरीर भव्य शरीर व्यतिरिक्त द्रव्य श्रृत है. प्राकृत में श्रुत शब्द व मूत्र शब्द इन दोनों के लिये सुय शब्द का प्रयोग किया है। इस से अब यहां सूत्र का अधिकार कहते हैं. यहां मूत्र के पांच भेद कहे हैं- अंडज-अण्टे से उत्पन्न होनेवाला, बोडज सूत्र-फल से उत्पन्न होनेवाला. 3 कीडज-कृपि से उपब होने वाला, 4 बालज बाल से उत्पन्न होनेवासा और 5 वल्कलज-वल्कल से उत्पन्न होनेवाला. प्रश्नस में अंडज किसे 488.488+ भुतपर चार निक्षेपे483428 For Private and Personal Use Only