Book Title: Chaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Author(s): Shivnath Lumbaji
Publisher: Porwal and Company
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Page #1 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परोपकाराय सतां विभुतयः श्री चैत्यवंदन स्तुति स्तवनादि संग्रह. 22GO चतुर्विध संघने जिनमंदिरादिकमां हर हमेश उपयोगमा लेवा निमित्ते. संग्रह करनार शा. शिवनाथ लुंबाजी-वेताळपेठ पुना सिटी. छपावी प्रसिद्ध करनार पोखाल एण्ड कंपनी. वेताळपेठ घर नंबर ३६६ पुना सिटी. वीर संवत १४५२ ] विक्रम संवत १९८२ [ सन १९२० आवृति पहेली प्रत ५०० किंमत दस आना. पोष्ट पेकींग खर्च बे आना. एक पुस्तक मंगावनारे पोष्ट साथे बार आनानी पोष्ट टीकीटोरी मोकलीने मंगाववी. वी. पी. थी मगाववी नहीं. For Private And Personal Use Only Page #2 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir परोपकाराय सतां विभुतयः है श्री चैत्यवंदन स्तुति स्तवनादि संग्रह. चतुर्विध संघने जिनमंदिरादिकमां हर हमेश उपयोगमा लेवा निमित्ते. संग्रह करनार शा. शिवनाथ लुंब.जी-वेताळपेठ पुना सिटी. ___ छपाधी सिद्ध करनार पोरवाल एन्ड कंपनी. वेताळपेठ घर नंबर ३५६ पुना सिटी. धीर संवत २४५२ ] विक्रम संवत १९८२ [ सन १९२५ __ आवृति पहेली प्रत ५०० - AAAAAAAAAAVRAN -MANARA AAAANARRAA सूर्यप्रकाश प्रिन्टींग प्रेसमां पटेल मूलचंदभाइ त्रीकमलाले छाप्यु, ठे. कालुपुर टंकशा-अमदावाद. - किंमत दस आना. पोष्ट पेकींग खर्च बे आना. - एक पुस्तक मंगावनारे पोष्ट साथे बार आनानी पोष्ट टीकीटो मे.कलीने मंगाववी. वी.पी. थी मंगावी नहीं. For Private And Personal Use Only Page #3 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir प्रस्तावना रुपे बे बोल. हालना वखतमां पुस्तकोनो प्रचार दिवसे दिवसे वधतो जाय छे, अने तेथी घणा लोकोने ज्ञाननो बोध थाय छे. जिनेश्वर भगवाननी स्तुति स्तवनादी करवा निमीते प्राचिन अने अर्वाचिन कवियोए जुदी जुदी अनेक देशीओ उपर स्तवनादीको रचेला छे तथा चैत्यवंदनो अने स्तुतीओ विगेरे पण रचेली छे तेमांथी कोइ कोइ बाबतो अप्रसिद्ध होवाथी तेवी बाबतो लखेला पाना उपरथी अने कोइ कोइ बाबतो छापेला जुदा जुदा अनेक पुस्तको उपरथी चुंटी काढी तेना संग्रह आ पुस्तकमां गोठवेलो छे. पुस्तकमानां कोई कोई विषयो लखेला पाना उपरथी लेबाथी तेमां कोइ अशुद्धी रही हशे तेमज प्रेसदोषथी अथवा प्रुफ तपासनारनी दृष्टी दोषथी पण कोइ भुल रही हशे वास्ते सज्जनोए सुधारीने पुस्तकनो उपयोग करवो अने तेवी भुलो अपने पण लखी जणाववाथी बीजी आवृत्तिना वखते ते भुलो सुधारवामां आवशे. संवत १९८२ . प्रसिद्ध कर्ता, मागशर शुदी १५ ।। सोमवार तारीख पोरवाल एन्ड कंपनी. ३० नम्बर घेताळपेठ नं ३५६ पुना सिटी. . सने १९२५ ) For Private And Personal Use Only Page #4 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar ॥ विषयानुक्रमणीका ॥ ॥ चैत्यवंदन १५१ नी अनुक्रमणीका ॥ अनुक्रम नंबर नाम १ थी ५ श्री ऋषभदेवजीनां पांच .... ६ थी ७ श्री अजितनाथजीना बे ८ यी ९ श्री संभवनाथजोना बे ... १० थी ११ श्री अभिनंदनजीना बे .... १२ थो १३ श्री सुमतिनाथजीना बे .... १४ थी १५ श्री पद्मप्रभुजीना बे ... १६ थी १७ श्री सुपार्श्वनाथजीना बे ... १८ यी १९ श्री चंद्रप्रभुजीना बे , २० थी २१ श्री सुवधिनाथजीना बे .... २२ थी २३ श्री शीतलनाथजीना बे .... २४ थी २५ श्री श्रेयांसनाथजीना बे .... २६ यी २७ श्री वासुपूज्यजीना बे .... २८ थी २९ श्री विमलनाथजीना बे .... ३० थी ३१ श्री अनंतनाथजीना बे .... ३२ थी ३३ श्री धर्मनाथजीना बे .... ११-१२ ३४ थी ३६ श्री शांतिनाथजीना त्रण .... १२-१३ ३७ यी ३८ श्री कुंथुनाथजीना बे .... ३९ थी ४० श्री अरनाथजीना बे .... Ya ܬ ، ܃ ܇ ܀ ܃ ܂ ܂ ܃ ܊ ܕܼܝܼܬܵܬܵܐ ܟܼ ܃ For Private And Personal Use Only Page #5 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १५-१६ १६-१७ १४-२२ २३-२४ ..... ... २६-२८ -२९ तथा ३३ .... ३०-३२ ४१ थी ४२ श्री मल्लिनाथजीनावे ... ४३ थी ४४ श्री मुनिसुव्रतजीना चे .... ४५ थी ४६ श्री नमिनाथजीना बे .... ४७ थी ५१ श्री नेमनाथजीना पांच ...... ५२ थी ६० श्री पार्श्वनाथजीना नव ... ६१ थी ६५ श्री महावीर स्वामीना पांच ६६ थी ६७ श्री चोवीश तीर्थकरना बे.... ६८ थो ७२ श्री मंधरस्वामीना पांच .... ७३ थी ७५ श्री सिद्धाचलजीना त्रण ... ७६ थी८४ श्री चैत्रीपुनमना नव .... ८५ श्री गिरनारजी- एक ... ८६ थी८७ श्री पंच तीर्थनांबे ... ८८ थी ९२ श्री सिद्धचक्रजीनां पांच ... ९३ थी ९९ श्री दीवाळी पर्वनां सात .... १००थी१०४श्री पर्युषण पर्वनां पांच ... १०५ बोस विहरमाननुं १०६ सर्व जिननुं एक १०७थी१०८श्री चोवीश जिन लंछनना बे तीर्थकरनी राशीनु ११० एकसो सितेर जिननु सिद्ध भगवाननुं .... ११२ आवती चोवीसोनुं ३६-३८ ३९-४१ ४२-४४ ४६ ४७ ४७-४० १०९ For Private And Personal Use Only Page #6 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir . . . . सामान्य जिनमुं ११४ श्री जिननु ... ११५ जिन पूजानु .... ११६थी१२० पांच ज्ञाननां पांच १२१थी१२३ बीज तीथीनां त्रण १२४थी१२६ पंचमो तोयानां त्रण .... १२७थी १२९ अष्टमी तीथीनां त्रण ... ... १३०थी '३२ एकादशी तोथीनां त्रण .... १३३थी१३४ मौन एकादशीना दोढसो कल्याणकनां ५४-५७ ५८-५९ ६०-६१ ६१-६४ ६५-६६ नोमनांबे .... ६६थी६८ .... १३५थी१३६ चौदश तीथीनां वे १३७ पंच तीथी महिमा वर्णननु १३८ श्रीमहावीर स्वामीनां पंच कल्याणकनु एक श्री अतित चोवीशीन १४० श्री सिद्ध भगवाननुं श्री परमात्मान चउदसें बावन गणधरनुं ... १४३ श्री बावन जिनालयन प्रदक्षिणानुं .... विहरमान जिननुं १४६थी१४७ अढार दोष वर्जित जिननां बे ..... १४८ रोहीणी तपर्नु .... ७५-७६ For Private And Personal Use Only Page #7 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra १४९ १५० १५१ ( ६ ) आंबील वर्द्धमान तपनुं वीसस्थानक नामनुं वीसस्थानक तपना काउसग्गनुं ॥ स्तुति (धोय) जोडा २५ नी अनुक्रमणिका ॥ १ - २ श्री ऋषभ देवजीना बे श्री अजितनाथजीनी ४ श्री शीतलनाथजीनी ५-६ श्री शांतिनाथजीना बे ७-८ श्री नेमनाथजीना बे ९-१० श्री पार्श्वनाथजीना बे ११-१२ श्री महावीर स्वामीना बे १३-१४ श्री मंधर स्वामीना बे १५-१६ श्री सिद्धाचलजीना बे १७ श्री चैत्री पुनमनी श्री सिद्धचक्रजीनी १८ १९ २० २१ २२ २३ २४ २५ AW www.kobatirth.org ३ श्री पर्युषण पर्वनी श्री वीशस्थानकनी बीज तीथीनी पंचमी तीथीनी अमी तीथीनी एकादशी तीथीनी चौदशी तीथीनी **** ... : **** ... ... : .... **** **** Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only ... .... ... **** : ... *** ... .... ७७ ७७ ७७ ७८-७९ ७९ бо ८१ ८२-८३ ८३-८४ ८५-८६ ९५-९६ ९६-९७ ९७ ९८ ९९ १०० १०१ १०२ १०२ १०३ १०४ Page #8 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ॥ स्तुति (थोय) छुटी एक गाथानी २५ अनुक्रमणिका ॥ १ थी १४ श्री अजितनाथजीथी धर्मनाथजी सुधी चौद ८७थी९१ १५ थी १९ श्रीकुंथुनाथजीथी नमिनाथजी सुधी पांच ९१थी९३ २० थी २४ श्री पांचज्ञाननी पांच - २५ वर्धमान तपनी ९३थी९५ ९५ १७ ९८ ९९ ( 61 ) ܘܘܕ ॥ स्तवनो १२५ नी अनुक्रमणीका ॥ १ थी २४ श्री रत्नविजयजीकून चोवीश तीर्थंकरना स्तवनो २४ २५ थी ४८ श्रीमद् यशोविजयती कृत चोत्रोश तीर्थंकरना स्वनो २४ ४९ थी ७२ " ... चौद बोलनी 37 चोवीसीना स्वत्रनो २४ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०१ १०२वी १०६ श्री साधारण जिनना पांच १०७थी १११ श्री मंधर जिनना पांच ... ... ७३ थी ९६ जुदा जुदा कवियोना रवेलामांथी चुंटी कहाडेला चोवीस तोर्थंकरना स्तवनो २४ श्री ऋषभदेवजीनुं (प्रथम जिनेश्वर पुजवा ) श्री शांतिनाथ (शांति विनती एक मोरीरे) श्री नेमनाथजीनुं ( सहसावनमां एक दिनस्वामा ) For Private And Personal Use Only **** ... ... १९७ १९८ श्री पार्श्वनाथजीनुं (मोहन मुजरो लेज्यो राज) श्रीमहावीर स्वामनुं (सिद्धारय भूपनोरे ) १९९ १०५थी १२६ १४५थी १५८ १५९धी १७७ १७८यी १९५ १९५ १९७ ... **** २००थी२०४ १२७यो १३१ Page #9 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १२२ १२४ १५ (८) ११२था११६ श्री सिद्धाचलजीनां पांच .... १३२थो१३६ ११७थी१२१ श्री सिद्धचक्रजीनां पांच... .... १३७थी१४० श्री वीशरथनकन (हारे मारे प्रणमुं सरस्वती) १४१ १२३ दीवाळीनुं (दीवाळीने दहाडेरे वीरप्रभुपामी) . १४२ श्री पयुषण- (प्रभु वीर जिगंद विचारी) १४३ श्री गौतमस्वामीन (पहेलो गणधर वीरनोरे) १४४ ॥ छंद पांचनी अनुक्रमणिका ॥ १ श्री जिन सहस्रनाम वर्णन (जगन्नाथ जगदीश जग) २०४ २ श्री शांतिजिन विननिरूप ( शारद माय नमुं शिर) २०७ ३ श्री पार्श्वनाथनो (वंदो देव वामेय देवाधि देवं) २०९ ४ श्री नवकारनो लघु छद (सुखकारणभवियण) ... २१० ५ आत्महित विनति (प्रभु पाय लागी करुं सेव नारी) २११ ॥परचुरण विषय नव नी अनुक्रमणीका ॥ १ प्रभातमां भावव नो भावना .... .... २१२ २ प्रभातना पञ्चरकाण बार .... ....२२०थी२२४ ३ सांझना पश्चग्काग पांच ...२२४थो२२५ ४ श्री रत्नाकर पञ्चोशीना गुजराती अनुवादना काव्यो ... ...२२५थी२३० ५थी ६ आरती बे २३० ७ थी ८ मंगल दीवा बे .. २३१ ९ पुस्तकोनी जाहेर खबर For Private And Personal Use Only Page #10 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 99999999 ॥ श्री वीतरागाय नमः ॥ ॥ चैत्यवंदन स्तुति स्तवनादी संग्रह || 333334333333*49 389 129 39 ॥ श्री रुषभदेवजीनुं चैत्यवंदन पहलु. ॥ ॥ प्रथम नमुं श्री आदीनाथ, शत्रुंजय गीरी सोहे ॥ नाभिराया चारुदेवी नंदन, त्रिभुवन मैन मोहे ॥ १ ॥ लाख चोरांशी पूर्व आय, सोवनमय काया। राणी सुनंदा सुमंगळा, तस कंत सोहाया || २ || लेखन वृषभ वीराजतुर, धनुष पविशे देह ॥ विनीता नगरीनो वणी, रूप कहे गुणह ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री ऋषभदेवजिन चैत्यवंदन बीजुं ॥ ॥ सर्वार्थ सिद्धे थकी, चविया आदि जिणंद || प्रथम राय अनिता बसे, मानवगण सुखकंद || १ || योनिनकुल जिणंदने, हाय' न एकहजार । मौनाती ते केवळी, वड हेठे निरधार ||२||उत्तराषाढा जन्म छे ए, धनराशि अरिहंत || दशसहस परिवार, वीर कहे शिवकंत ॥ ३ ॥ इति ॥ १ वर्ष २ छास्थपणुं व्यतित थये. For Private And Personal Use Only Page #11 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २ ) || आदि जिन चैत्यवंदन श्रीजं. ॥ ॥ जय त्यादिम तीर्थेश, त्रिलोकी मंगल द्रुमः ॥ श्रेयः फलं सदालोका, यथालोका दुपासते || १ || श्रीमन्नामि कुलादित्य, मरुदेव्यं गजप्रभो || संसाराब्धि महापोत, जयत्वं वृषभ ध्वजं ||२|| नमस्ते जगदानंद, मोक्षमार्ग विधायक || जैनेन्द्र विदिवाशेष, भावस्तद्भाव नायकः || ३ || प्रक्षीणाशेष संस्कार विस्तार परमेश्वर ।। नमस्ते वाक्ययातीत, त्रिलोक नर शेखर || ४ || भवान्वि पतितानंत, सच्च संसार तारक || घोर संसार कंवार, सार्थवाह नमोस्तुते ॥ ५ ॥ इति ॥ · ॥ श्री ऋषभदेवजीनुं चैत्यवंदन चोथु ॥ || पढम जिनवर पढम जिनवर, पाय पणमेव ॥ शेत्रुंजा गिरिवर मंडणी, नाभिराय कुल चंद सामी ॥ सव शाखा जे परवर्यो, करे सेव fro दिवस गामी || जुगला धर्म निवारीयो, मुगवि रमणी उरहार || वृषभ लंछन दुःखभंजणो, मरूदेवी वणो मल्हार ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ श्री ऋषभदेव जिन चैत्यवंदन पांचमुं ॥ अरिहंत नमो भगवंत नमो, परमेश्वर जिनराज नमो प्रथम जिनेश्वर प्रेमे पेखत, सिद्धां सघछां काज नमो ॥ भरि० ॥ १ ॥ प्रभु पारंगत परम महोदय, अविनाशी अकलंक नमो For Private And Personal Use Only Page #12 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir अजर अमर अद्भुत अतिशय निधि, प्रवचन जलधि मयंक नमो ॥ अरि० ॥२॥ तिहुयण भवियण जणमण वंछिय, पूरण देव रसाल नमो || ललि ललि पाय नमुं हुं भाले, करजोडीने त्रिकाल नपो ॥ अरि० ॥३॥ सिद्ध बुद्ध तुं जग जन सज्जन, नयना नंदन देव नमो ॥ सकल सुरासुर नरवर नायक, सारे अहो निश सेव नमो । अरि० ॥ ४ ॥ तुं तीर्थकर सुखकर साहिब, तुं निःकारण बंधु नमो || शरणागत भविने हितवत्सल, तुंही कृपारस सिंधु नमो ॥ अरि० १.५।। केवलज्ञाना दर्शे दर्शित, लोकालोक स्वभाव नमो । नाशित सकल कलंक कलुषगण, दुरित उपद्रव भाव नमो ॥अरि० ॥ ६ ॥ जग चिंतामणि जगगुरु जगहित, कारण जगजन नाथ नमो ॥ घोर अपार भवोदधि तारण, तुं शिवपुरनो साथ नमो ॥ ॥ अरि० ॥ ७॥ अशरण शरण नीराग निरंजन, निरुपाधिक जगदीश नमो ॥ वोधि दोओ अनुपम दानेसर, छानविमल सूरीश नमो । अरि० ॥८॥ इति ॥ ॥ श्री अजितनाथर्नु चैत्यवंदन ॥ । आव्या विजय विमानथी, नयरी अयोध्या ठाम||मानवगण रिख रोहिणी, मुनिजनना विशराम ॥१॥ अजितनाथ वृष राशिए, जनम्या जगदापार॥ योनि भुजंगम पयहरु, माने वर्ष ते बार ॥२॥ सप्तपर्ण वरू हेठछेए, शान महोत्सव सार ॥ एक सहसशुं शिक वर्या, वीरघरे बहु प्यार ॥ ३॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #13 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ बी. ॥ ॥ अजित अयोध्यानो घणो, गज लर्छन गाजे ॥ जीतशत्रु विजया तणो, मुत अधिक दीवाजे ॥१॥ साडाचारशे धनुष्य देह, इमवरण बीराजे ॥ बहोतेर लाख पूर्व आयु, त्रिभुवन पति छाजे।। ॥२॥ समेतशिखर अणसण करीए, पहोत्या मुक्ति मोझार ॥ पविजय कहे साहीवा, आवागमन निवार ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥श्री संभवनाथजानु चैत्यवंदन ॥ ॥संभवनाथ सदा जयो, मन पंछीव पुरे । हय लैंछन हेम वरण देह, लेख दुरे ॥ १ ॥ राय जीतारी कुळ तिको, सावथ्यी राया ।। सेना माता जनमीयो, जंग सुजश गवाया ॥२॥ धनुष चारशे देहडीए, शाठ लाख पूर्व आय ॥ श्री विनय विजय अवझायनो, रुप नमे नीत पाय ॥ ३॥इति ॥ ॥ बीजु, ॥ ॥ सत्तमगेविज चवन छे, जनम्या मृगशिर माहिं ।। देवगणे संभव जिना, नमीये नित्य उत्साहि ॥१॥ सावथ्यी पुरी राजीयो, मिथुन राशि सुखकार ॥ पन्नाग योनि पामिया, योनि निवारण हार ॥२॥ चौद वरस छद्मस्थमाए, नाण शाल तरु सार ।। सहस व्रतोशुं शिव वर्या, वोर जगत आधार ।। ३ ।। इति ॥ ॥श्री अभिनंदन जिन चैत्यवंदन ॥ ॥ चव्या जयंत विमानथी, अभिनंदन जिनचद ॥ पुनर्वसुमा For Private And Personal Use Only Page #14 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir जनमिया, राशि मिथुन मुखकंद ॥१॥ नयोरी अयोध्यानो धणी, योनिवर मंजार ॥ उग्रविहारे तप तप्या, भूतल वरस अदार ॥२॥ वळी रायण पादप तलेंए, विमलनाण गणदेव ॥ मोक्ष सहस मुनिशुं गया. वीर करे नित्य सेव ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ बीजु.॥ उंचपणे प्रणेशह, पंचाश धनुष प्रभु देह ॥ संवर राया सिद्धार्था, सुत सुमुन नेह ॥ १ ॥ लाख पंचाश पूर्व आयु, अयोध्यानो राणो ॥ सोवन वान बीराजतो, कपो लंछन जाणो ॥२॥ अभिनंदन प्रभु विनतोए, अंतरजामी देव ॥ श्री विनय विजय उवझायनो, रुप नमे नीत मेव ।। ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री सुमतिनाथजीर्नु चैत्यवंदन ॥ . ॥ मेघराय अयोध्यानो धणी, मंगला पटराणी ॥ धनुष त्रणशें देहमान, लंछन क्राच जाणी ॥ १ ॥ हेमवरण बीराजतो, सुमति जिन सेवो ॥ लाख चाळीश पूर्व आय, आपे शिव मेवो ॥२॥ समेतशिखर मुक्ते गयाए, जगजीवन जगदीश ॥ रुपविजय कहे साहेबा, तुं मुज महीयो इश ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ बीजु.॥ . ॥ मुमतीजयंत विमानथी, रखा अयोध्या ठाम ॥ राक्षस गण पंचय पथ सिह रात्रि गुणा ॥१॥ या नक्षले जनमिया, सुषक For Private And Personal Use Only Page #15 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योनी जगदिश ।।मोहराय संग्राममा, वरम गयां छवीश ॥२॥ जीत्यो भियंगु तलेए, सहस मुनि परिवार ।। अविनाशी पदवी वर्या, वीर नमे सोवार ॥ ३॥ इति ।। ॥श्री पद्मप्रचजिन चैत्यवंदन ॥ ॥ अवेयक नवमा थकी, कोसंबो घरवास ॥ राक्षस गण नक्षतरु, चित्रा कन्या राशि ॥१॥ वृश्चिक योनि पद्मप्रभु, छदमस्था षट्मास । तरु छत्रौधे केवली, लोका छोक प्रकाश ॥२॥ त्रण अधिक शत पाठशुं ए, पाम्या अविचछ धाम ॥ वीर कहे प्रभु माहरे, गुण श्रेणी विश्राम ॥ ३ इति ॥ ॥ बोजु.॥ ॥ पद्मप्रभ छहा जयो, वरणे प्रभु रातो ॥ धरराय कौशंबी धणी, सुशीमा जश माता ॥१॥ कमळ लछन अढीसें धनुष, शिव संपती दाता॥ोशाख पूर्व आय, त्रिभुवननो त्राता ॥२॥ चातोश अतिशय वीराजताए, सेवे मुरनर कोड ॥ श्री विनय विजय उव. झायनो, रूप नमे कर जोड ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री सुपार्श्वनाथ चैत्यवंदन ॥ ॥ जगतारण जीन सातमो, प्रतीष्ट रायानंद ॥ पृथ्वी माता उरे धर्यो, मुख पुनमचंद ॥१॥ वीश लाख पूर्व आयु, वशे धनुष तनु दीपे ॥ स्वस्तिक उंछन श्री सुपास, अरोयणने पीपे ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #16 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७ ) जन्मठाम वणारशीर, देह कनकनो वान || रुपविजय कहे साहिबा, दीये शोवरमणी दान | ३ ॥ इति ॥ ॥ श्रीजु ॥ ॥ गेविन छोयो चव्या, वाणारसी पुरी वास ॥ तुला - शाखा जनमिया, तप तपिया नव मास || १ || गण राक्षस बुक योनियें शोभे स्वामी सुपास ॥ सरिस तरू तलें केवली, ज्ञेय अनंत विलास ॥२॥ महानंद पदवी लहोए, पाम्या भवनो पार ॥ श्री पवीर कहे म पंचसया परिवार || ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री चंद्रप्रजजिन चैत्यवंदन ॥ ॥ चंद्रम चंद्रावती, पुरि चविया वैजयंत ।। अनुराधायें जनमीया, वृश्चिक राशि महंता || १ || मृगयोनि गण देवनो, केवल विण त्रिक मास || पाभ्या नाग तरू तले, निर्मल नाण विलास ||२|| परमानंद पद पामियार, वीर कहे निरधार | साये सलूणा शोभिता, निवर एकहजार || ३ || इति ॥ ॥ बीजु ॥ ॥ महसेन मोटो राजीओ, सतो लखमणा राणी ॥ चंद सम उज्वल वदन कांति, जनम्यो जयकारी ॥ १ ॥ चंद्रा नयरी जेहनी, चंद लंछन कहीए ॥ चंद्र प्रभजिन आठमा, नामे गहगहोर || २ || धनुष दोढशे जोन बनुए, दश लख पूर्व आय ॥ रूपविजय प्रभु नाम थी, दीन दीन बहु सुख थाय ॥ ३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #17 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org } ( ८ ) ॥ श्री सुविधिनाथजीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ विधी भली विघ सेवतां, भय भावठ भांजे ॥ सुग्रीव राय सुत सेवतां, दुस्मन नवी गांजे ॥ १ ॥ मगर लंछन मन मोहतुं, नयरी काकंदी || दोय लाख पूर्व आयु जोन, बोले जय वंदी ||२|| एक्सो धनुषवर देहडीए, उज्वल वर्ण उदार ॥ रूपविजय प्रभु भवी नमो, रामा मात मल्हार || ३ || इति ॥ ॥ बीजु ॥ 1 || सुविधिनाथ सुविधिनमुं श्वान योनि सुखकार ॥ आव्या आणत स्वर्गथी, कारुंदी अवतार || १|| राक्षस गणगुणवंतने, धनराशि रिखमूल वरस चार छमस्थमा, कर्म शशक शार्दूल ॥२॥ मल्लितरु त केवली, सहस मुनि संघात ॥ ब्रह्म महोदय पदवर्या, वोर नमे परभात || ३ || इति ॥ १ ॥ श्री शीतलनाथस्वामीनुं चैत्यवंदन ॥ || दशमा स्वर्ग थको व्या, दशमा शीतलनाथ ॥ भद्दिलपुर धन राशिए, मानव गण शिवसाथ || १ || वानर योनि जिणंदनी, पूर्वाषाढा जात । तिग वरसांवरे केवली. प्रियंगु विख्यात ॥ २ ॥ संयम घर सहसें वर्षा ए, निरुपम पद निर्वाण । वीर कड़े प्रभु ध्यानम्री, भव भव कोडी कल्याण || ३ || इति ॥ १ हरण २ सिंह. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #18 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ बीजु.॥ ॥ भद्दोलपुर दृढ़ रथ राय, वंदा पदराणी ॥ शीतल जिनवर जन्मता, जननी कीर्ती गवाणी ॥ १॥ श्री वच्छ लंछन नेवु धनुष, देह सोवन समाणी ।। एक लाख पूर्व आयु मान, कहे केवलनाणी ॥ २ ॥ सुखदायक दशमो सदाए, दे दोलत भरपुर ।। रुपविजय कहे भवि नमो, मह उगमते सुर ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री श्रेयांसनाथजीर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ वीष्नुराय कुल केशरी, माता विष्णु जायो । खडग लंछन एंशी धनुष, सवी सुरपती गायो ॥ १ ॥ लाख चोराशी वरस आयु, भवियण मन भायो ॥ श्री श्रेयांस जीनेश्वर, दीठे मुख पायो ॥ २ ॥ सोवन वरणी देहडोए, सोंह पुरोए अवतार ॥ रूपविजय कहे मुन मल्यो, त्रिभुवन तारण हार ॥३।। इति ॥ ॥ बीजु.॥ ॥ अच्युतथी प्रभु उतरया, सींहपुरे श्रेयांस ॥ योनि वानर देवगण, देवकरे परशंस ॥१।। श्रवणे स्वामी जनमीया, मकर राशि दुगवास || छद्मस्था तिदुक तले, केवल महिमा जास ॥ २ ॥ वाचंयम सहसे सहिए, भव संततिनो छेद ।। श्रीशुभ वीरने सांइ अविचल धर्म सनेह ॥ ३॥ ॥श्री वासुपूज्य जिन चैत्यवंदन ॥ ॥ पाणत थकी प्रभु पांगर्या, चुंपे चंपा गाम ॥ शिवमारग १चव्या. For Private And Personal Use Only Page #19 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०) जातां यां, चंपा तर विश्राम ॥ १॥ अषयोनि गण राक्षस, शतभिषा कुंभराशि ॥ पाडल हेठे केवलो, मौनपणे इगवासि ॥२॥ पटशत साथै शिव थयाए, वासुपूज्य जिनराज ॥ वीर कहे धन्य ते घडो, जब निरख्या महाराज ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥बीजु.॥ ॥ देवलोकथी दीपती, नयरी वर चंपा ॥ वासुपूज्य जिन जन्म ठाम, वसे लोक सुसंपा ॥ १॥ वमुपूज राजा राजीया, जया जस पटराणी ॥ सीतेर धनुष वर देह राती, महीप लंछन नाणी ॥२॥ वरस बहोतेर लाखनुए, आयु कहे जगनाथ ॥ रुफ विजय कहे मुन मल्यो, शीव मार्गनेो साथ ॥ ३ ॥ इति ॥ श्री विमलनाथजीनु चैत्यवंदन ॥ ॥ वंदो विमल जोनंद चंद, मुख संपति दाता ॥ कंपीमपुर कृतवर्मराय, श्यामा जश माता ॥ १ ॥ साठ धनुष वर देहमान, दीपे विख्याता ॥ सोवन वान विराजता. गुण सुर नर गाता ॥२॥ साठ वरस कख आउखुए, शुकर लंछन पाय ॥ श्री विनयविजय अवझायना, रूपविजय गुण गाय ॥ ३ ॥ इति । ॥ बीजु.॥ ॥ अष्टम स्वर्गयकी चवी, कंपीलपुरमा वास ॥ उत्तरा भाद्रपद जनम, मानव गण मीन राशि ॥ १॥ योनि छाग मुहंकलं, १ एकवर्ष छत्रस्थ. For Private And Personal Use Only Page #20 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir विमलनाथ भगवंत ॥ दोय वरस तप निर्जली, जंचुवले अरिहंत ॥२॥ षट्सहस मुनि सायशुंए, विमल विमल पद पाय ॥ श्री शुभवीरने सांइ , मळवार्नु मन थाय ॥ ३ ॥ इति । ॥श्री अनंतनाथ जिन चैत्यवंदन ॥ ॥ देवलोक दशमा थकी, गया अयोध्या ठाम ॥ हस्ति योनि अनंतने, देवगणे अभिराम ॥ १॥ रेवतीए जनम्या प्रभु, मीनराशि मुखकार ॥ त्रण वरसं छमस्थमा, नहि प्रश्नादि उच्चार ॥२॥ पीपल वृक्षे पामीयाए, केवळ लक्ष्मी निदान ॥ सात सहसशुं शिक वर्या, वीर कहे बहु मान ॥ ३ ।। इति ॥ ॥बीज.॥ ॥ अनंत जिनेवर चादमा, अयोध्याए अवतरीया ।। सीहसेन कुछ केशरी, सुजशा उर धरीया ॥१॥ देह धनुष पंचाश मान, गुणशुं भरीया ॥ वरस त्रीश लाख आउखु श्री केवळ वरीया ॥२॥ सींचाणा लंछन तनुए, कनक वर्ण, देह ॥ रुपविजय कहे साहेबा, तुनशुं अविहड नेह ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री धर्मनाथजीर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ धर्म धुरंधर धर्मनाथ, धन मुव्रता जायो । भानुराय मुक्त भानु जेम, मुरवधु हुलरायो ॥ १ ॥ धनुष पीस्तालीश देहमान, बन लंछन गायो। वरस लाख दश आउखु, हेमवान सुहायो ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #21 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२) रतन पुरी नयरी धणीए, पंदरमो भगवंत ॥ रुपविजयनो साहिबो, केवल कमला कंत ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ बीजु.॥ ॥ विजय विमान थकी चव्या, रत्नपुरे अवतार ॥ धर्मनाथ गण देवता, कर्क राशि मनोहार ॥ १॥ जनम्या पुष्य नक्षेतरें, योनि छाग विचार ॥ दोय वरस छद्मस्थमां विचर्या धर्म दयाळ ॥ २ ॥ दधिपर्णाधो केवलीए, वोर वरया बहु रिद्ध ॥ कर्म खपा बीने हुवा, अडसय साथे सिद्ध ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥श्री शांतिनाथजीनु चैत्यवंदन ॥ ॥ सारथ सिद्धे थकी, चविया शांति जिणेश ॥ इस्ति नागपुर अवतर्या, योनि हस्ति विशेष ॥१॥ मानव गण गुणवंतने, मेष राशि मुविलास ॥ भरणीए जनम्या प्रभु, छद्मस्था इगवास ॥२॥ केवल नंदी तरुतलए, पाम्या अंतर झाण ।। वीर करमने क्षय करी, नव शतशुं निर्वाण ॥३॥ इति ।। ॥ बोजु.॥ ।। जय जय शांति जिणंद देव, हथ्यिणापुर स्वामी, विश्वसेन कुलचंद सम, प्रभु अंतरजामी ॥ १ ॥ अधिरा उर सर हंस जिम, जिनवर जयकारी ।। मारो रोग निवारके, कीर्ति विस्तारी ॥ २ ॥ शोलमा जिनवर प्रणसीय ए, नित उठी नामी सीस ॥ मुनर भूत प्रसन्न मन, नमनां वाधे जगदीश ॥ ३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #22 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३ ) ॥ श्रीजुं ॥ ॥ शांतिकरण श्री शांतिनाथ, गजपुर धणी गाजे ॥ वीस्वसेन अचीरा तणो, सुत सबळ दीवाजे ॥ १ ॥ धनुष चालीश हेमवर्ण काय, मृग लंछन छाजे || लाख बरसनुं आउखु, अरीयण मद भांजे ॥ २ ॥ चक्रवती प्रभु पांचमाए, शोळमां श्री जगदीश ॥ रुपविजय कहे मुझ मल्यो, पुरण सकल जगीश ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री कुंथुनाथजीनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ सतरमां श्री कुंथुनाथ, श्री राणी जायो ॥ गजपुर नयरी सुरीराय, जाडवायस पायो ॥ १ ॥ सहस पंचाणु वरस आयु छाग लंछन धायेा ॥ धनुष पात्रोश वर देहडी, हेम वर्ण सुहायो || २ || चोसठ सहस वधु घणोए, पायक संख्या न पार ॥ रुपविजय कहे साहेबा, तृतये मुज तार ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ बीजु ॥ ||लब' सत्तम सुरभव तजी, गजपुर नयर निवास ॥ राक्षसगण कृतिका जनि, कुंथुनाथ षराशि || १ || शोल वरस छद्मस्थमां, जिनवर योनि छाग || घातिकर्म घातें करो, तिलक तले वीतराग ॥२॥ शैलेसी करणे करीए, एकसहस परिवार || शिव मंदिर सिधावतां, वीर घणुं हुंशीयार || ३ || इति ॥ १ सर्वार्थसिद्धना देव. For Private And Personal Use Only Page #23 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११) ॥ श्री अरनाथ जिनुं चैत्यवंदन ॥ ।। ठाण सवट थको चव्या, नागपुरे अरनाथ ॥ रेवती जन्म महोत्सवा, करता निर्जर नाथ ॥१॥ जयकर योनि गजबरु, राशि मीन गणदेव ।। त्रण वरसमा थिर थइ, टाछे मोहनी टेव ॥ २ ॥ पाम्या अंब तरू तलेंए, खायिक भावेनाण || सहस मुनिवर साथy, बीर कहे निर्वाण ॥३॥ इति ॥ ॥ बोजु.॥ | राय मुदर्शन गजपुरी, देवी पटराणी ॥ लंछन नंदावर्त जास, अरजीन गुणखाणी ॥ १ ॥ त्रीश धनुष वर देवडी, हेमवर्ण जाणी ॥ सहस चोराशी वर्ष आयु, करे केवल नांणो ॥ २ ॥ चक्रवर्ती प्रभु सातगोए, अढारमो मुज देव ।। रुप कहे भषि पहने नमो, करो नीरंतर सेव ॥ ३ ॥ इति ।। ॥ श्री मल्लीनाथजीनु चैत्यवंदन ॥ मल्लीनाथ ओगणीशमां, मीथीलापती वंदो ॥ प्रभावती माये जनमोयो, कुंभराय कुळचंदो ॥ १॥ सहस पंचावन बरस आयु, नील वर्ण जीणंदा ॥ धनुष पंचवीश प्रभु देहपान, टाळे भव फंदा ॥२॥ लंछन कलश सोहामणुए, सेवे सुर नर छंद ॥ श्री विनय विजय उवझायना, रुप लहे आणंद ॥ ३॥ इति ॥ ॥ बोजु.॥ । मल्लिजयंत विमानयी, मिथिलानयरी सार ॥ अग्विनी For Private And Personal Use Only Page #24 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir योनि जयंकरू, अधिनीय अवतार ।। १ ।। सुरगण राशि मेष ले, बंदित स्वर्गीलोक ।। छमस्था अहो रातिनी, केवल वृक्ष अशोक ।। ॥ २ समवसरणे बेशो करीए, तीर्थ प्रवर्तन हार ।। वीर अचल सुखने, वर्या पंचसया परिवार ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री मुनिसुव्रतजिन चैत्यवंदन, ॥ । सुव्रत अपराजितथी, राजगृही रेहठाण ।। वानर योनि राजती, सुंदर गण गिर्वाण ॥ १ ॥ श्रवण नक्षत्रे जनमिया, सुरवर जय जयकार ॥ मकरराशि छद्मस्थमां, मौन मास अगियार ॥२॥ चंपक हेठे चांपिया ए, जे घनघाति चार ॥ वीरवडो जगमा प्रभु, शिवपद एकहजार ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ बीजु.॥ ॥ जपो नीरंतर नेहशुं, वीशमो जीनराय ॥ मित्रराय पदमाचती, सुतसु मुन माया ॥ १ ।। कछप लंछन धनुष वीश, श्याम चणि काया ॥ त्रीश सहस वरस आउखु, हरीवंश दोपाया ॥२॥ मुनीसुव्रत महिमा नीलोए, जन्म राजग्रही नास ॥ रुपविजय कई साहेबा, नामे लोल वोलास ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ श्री नमिनाथजोर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ विजय राय विभा घणी, मीथीगनो नाथ ॥ धनुश पंदर For Private And Personal Use Only Page #25 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir इम वर्ण देह, मेले शिवसाय ॥ १॥ लंछन नील कमळ जास, सरीया भव पाय ॥ नमी नमतां नेह मुं, हवे थया सनाय ॥ २ ॥ दश हजार वरसनु आउखुए, एकवीशमो मुनि स्वामी ॥ रुप कहे प्रभु सामलो, मन मोयुं तुमसुं स्वामी ॥ ३ ॥ ॥ बोजु.॥ ॥ दशमा माणत स्वर्गथी, आन्या श्री नमिनाथ || मिथिला जयरी रानियो, शिवपुर केरो साथ ॥१॥ योनि अव अलं. करी, अश्वनी उदयो भाण || मेष राशि सुरगण नमुं, धन्य ते दिन सुविहाण ॥ २ ॥ नव मासांतरे केलीए, बकुल तले निरधार : वीर अनोपम मुख वर्या, मुनि परितंत हमार ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥श्री नेमीनाथजन चैत्यवंदन ॥ ॥ नेमीनाथ बावीशमा, अपराजितथी आय ॥ सौरीपुरमा अवतर्या, कन्याराशि सुहाय ॥१॥ योनि वाघ विवेकीने, राक्षस गण अद्भुत ॥ रिख' चित्रा चोपनादिन, मौनवता मनात ॥२॥ वेतस हेठे केवलीप, पंचसयां छत्रीश ।। वाचंयमशुं शिववर्या, वीर. नमे निशदिश ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ बीजु.॥ ॥ॐ नमो विश्वनाथाय, जन्मतो ब्रह्मचारीणे॥ कर्मवल्ली वनच्छेद, नमयेऽरिष्ट नेमये ॥१॥ यदुवंश समुद्रंदु, कर्म कक्ष हुताशनः ।। अरिष्ट नमिभगवान् , भूयाध्वोऽरिष्ट नाशनः ॥ २॥ अनंत परमानंद, पुणधापश्यवस्थितः ॥ भवंतं भवता साक्षी, भव्यतीह १ नक्षत्र, : पवित्र For Private And Personal Use Only Page #26 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७) जिनो खिल ॥३॥ स्तुवंत रतावकं बीच, मन्यथा कथमीदशं ॥ प्रभोदाति चयश्चित्ते, जायते भुवनातिग ॥ ४ ॥ इति ॥ त्रीजु. ॥ समुद्रविजय कुलचंद नंद, शिवादेवी जाया ॥ यादव वंश नभोमणि, सौरोपुर ठाया ॥१॥ बालथकी ब्रह्मचर्यघर, गतमार प्रचार । भोक्ता निज आत्मिकगुण, त्यागी संसार ॥२॥ निःकारण जग जोवनेा ए, आशाने विसराम ।। दो नदयाल शिरोमणि, पूरण सूरतरु काम ॥ ३ ॥ पशुआं पुकार सुणी करी, छांडी गृहवास ।। तत्क्षण संयम आदरी, करी कर्मना नाश ॥४॥ केवल श्री पामी करीए, पहोता मुगतिमोझार ॥ जन्म मरण भय टालवा, ग्यान सदा सुखकार ।। ५ ।। इति ॥ चोथु . ॥ बावीशमा श्री नेमनाथ, नित्यउठी वदो ॥ समुद्रविजय सुत भानुसम, भविजन सुखकंदो ॥१॥ सघन श्याम दूति देहनी, दश धनुष्य शरीर ॥ अमित कांति यादव घणी, भांजे भवतीर ॥२॥ राजिमती रमणी तजीए, ब्रह्मचर्य धरधीर ॥ शिवरमणी सुख विलसतां, भूप नमे धरी धीर ॥ ३ ॥ इति ।। पांचमुं. . ॥राजुल वर श्री नेमीनाथ, शामलीओ सारा ॥ शंख लंछन दश धनुष देह, मनमोहन गारो ॥१॥ समुद्रविजय राय कुळ For Private And Personal Use Only Page #27 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८ ) तीलो, शिवादेवी सुत प्यारो ॥ सहस बरस प्रभु आउखु, पाम्यु मुखकार ॥ २ ॥ श्री गोरनारे मुक्ते गयाए, सारीपुर अवतार ॥ रुपविजय मन वालहो, जगजीवन जीनराज ॥ ३ ॥ इति ।। ॥ श्री पार्श्वनाथजी, चैत्यवंदन ॥ !! जयोजयो श्री पानाथ, मुख संपतीकारी ॥ अश्वसेन वामा तणो, नंदन मनोहारी ।।१॥ नील वर्ण नव हाथ देह, अही लंछन धारो ।। एकसो वरसर्नु आउखु, वरीया शिवनारी ॥ २ ॥ जन्म ठाम वणारशीए, प्रत्यक्ष परचयोदेव ॥ सानिधकारी साहीवा, रुप कहे नितमेव ॥ ३ ॥ इति । ॥ बीजु.॥ ॥ नयरी वाणारसीये थया, प्राणतथी परमेश ।। योनि व्या. घ्र मुहंकरी, राक्षस गण सुविशेष ॥१॥ जन्म विशाखायें थयो, पाव प्रभु महाराय ।। तुलाराशि छद्मस्थमा, चोराशी दिन जाय ।।२।। धवतरु पासे पामीयाए, क्षायक दुग उपयोग । मुनि तेत्रिशे शिव वर्या, वीर अक्षय सुख भोग ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ श्रीजु.॥ ॥ पुरिसां दाणी पार्श्वनाथ, नमीय मन रंग ॥ नीलवरण अश्वसेन नंद, निरमल निस्संग ॥१॥ कामीत दायक कल्पसाख, वामा सुतसार ।। श्री गवडोपुर स्वाम नाम, जपिय निरधार ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #28 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९ ) त्रिभुवन पति त्रेवीसमोए, जास अखंडीत आण ॥ एक मनें आराधतां, लहिये कोड कल्याण, ॥ ३ ॥ इति ।। ॥ चोथु.॥ - ॥ सकल भविजन चमत्कारो, भाग महिमां जेहनो ॥ निखिल आतम रमा राजित, नाम जपीये तेहनो । दृष्ट कर्माष्टक गजारी, भविक जन मन सुखकरो। नित्य जाप जपोये, पाप खपीये, स्वामी नाम शंखेश्वरो ॥१॥ बहु पुण्यशशी देश काशो, तथ्य नयरोवणारशी ।। अश्वसेन राजा राणो वामा, रूपे रति तनुं सारशी ॥ तस कुखे सुपन्न चौद सूचित, स्वर्गथी प्रभु अवतरबो ॥ नित्य० ॥२॥ पोश मासे कृष्णपक्षे, दशमि दिन प्रभु जनमीया । सुरकुमरि सुरपति भक्ति भावे, मेरु श्रृंगे स्थापिया ॥ प्रभाते पृथ्वी पति प्रमोदे, जन्म महोच्छच अति कर्यो ॥ नित्य० ॥३॥ त्रण लोक तरुणी मन अगोदी, तरुण वय जब आविया ।। तव मात तातने परण्य चाते, भामिनि परणावीया ।। कमठ शठकृत अग्निकुंडे, नाग बळता उर्यो ॥ नित्य० ॥४॥ पोश बदि एकादशी दिन, प्रवा जिन आदरे ॥ सूर अमूर राजो भक्ति ताजी, सेवना झाझी करे।।काउस्सग करतां देखी कमठे, किध परिसह आकरो ॥ नित्य०॥५॥ तव ध्यान धारारुढ निनपति, मेघ धारे नवि चळयो॥तिहां चलित आसन धरण आयो, कमठ परिसह अटकळयो । देवाधि देवनी खरी सेवा, कमठने काढी परो ॥ नित्य० ॥६॥ क्रमे पामी केवळ ज्ञान कमळा, संघ चवीह स्थापीने, प्रभु गया मोक्षे समेत शिखरे, मास अणमण For Private And Personal Use Only Page #29 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०) पाळीने ॥ शिवराणी संगे रमे रसियो, भविक तस सेवा करे । ॥ नित्य० ॥ ७ ॥ भूत प्रेत पिशाच व्यंतर, जलण जलोधर भय टळे । राज्य रमणी रमा पामे, भक्ति भावे जो मळे ।। कल्पतरुथी अधिक दाता, जगत त्राता जयकरो ॥ नित्य० ॥ ८॥ जरा जर्जरी भूत यादव. सैन्य रोग निवारता, वढीयार देशे नित्य बिराजे, भविक जीवने तारता ।। ए प्रभु तणा पद पद्म सेवा, रुप कहे प्रभुता वरो॥ नित्य जाप जपोये, पाप खपीये, स्वामोनाम शंखेश्वरो ॥९॥ इति ।। ॥पांचमुं॥ ॥ ॐ नमः पार्श्वनाथाय । विश्व चिंतामणीयते ॥ हो धरणेंद्र वैरोट्या । पद्मादेवी युतायते ॥१॥ शांति तृष्टि महा पुष्टि। धृतिकीत्ति विधायिने ॥ ॐ ही ध्वि व्याल वैताल । सर्वाधिव्याधिनाशने ॥२॥ जया जिताख्या विजया । ख्यापरा जितयान्वित ॥ दिशापाल हेर्यौ । विद्यादेवी मिरन्वितः ॥३।। ॐ असिआउसायनमः । स्तत्रलोक्य नाथता ॥ चतुःषष्ठिसुरेंद्रास्ते । भाषते छत्र धामरैः॥४॥ श्री संखेश्वर मंडन । पाच जिन प्रणत कल्पतरु कल्प ॥ चूरय दुष्ट जातं ॥ पुरयमे वांछितं नाथ ॥ ५ ॥ इति । ॥छठं. ॥ ॥ प्रभु पासजी ताहरु नाम मीठं,त्रीलोकमा एटलं सार दीर्छ। सदा समरतां सेवा पाप नाटुं, मन माहरे ताहरू ध्यान बेर्छ । १॥ मन तुम पासे वसे रात दीवसे, मुख पंकज नीरखवा हंस हीसे ॥ For Private And Personal Use Only Page #30 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१) घन ते घडी जे घडी नयण दीसे, भली भगति भावे करो वानविषे २॥ अहो एह संसार छे दुःख दोरी, इंद्रजालमां चित लागी ठ. गोरी ॥ प्रभु मानीए विनती एक मोरी,मुज तार तुं तार वलीहारी तोरी ॥३॥ सही सुन जंजालमा संग मोह्यो, घडीआलमां काल र. मतो न जोयो । मुधा एम संसारमा जन्म खोयो, अहोघृत तणे का.. रणे जळ विलोयो ॥४॥ एतो भ्रम लोके सुवा भ्रांति धायो, जइ सुकतणी तंतु मांहे भरायो । सुके जंबु जाणी ग्रभे दुःख पायो, प्रभु लालचे जीवडो एम वाह्यो ॥ ५ ॥ मम्यो नम भुल्यो रम्यो कर्म भारी, दयाधर्मनी वात नवी वीचारी ॥ तोरी नम्र वाणी परम सुखकारी, तीहुं लोकना नाथ नवी संभारी ॥ ६॥ विषय वेलडी सेलडी करी जाणी, भजी मोह तृष्णा तजी तोरी वाणी ॥ एवो भलो मुंडो नीज दास जाणी, प्रभु राखीए बांहनी छाह प्राणी ॥ ७ ॥ मारा विविध अपराधना कोड सहीए, प्रभु सरणे आव्या तणी लाज वहीए ॥ वली घणी घणी विनति एम कहीए, मुज मानत परमहंस रहोए ॥ ८ ॥ कलस ॥ कृपामूर्ति पार्श्वस्वामी मुगती गामी ध्याइये। अति भक्ति भावे विपत जावे तास संपती पाइए । प्रभु महिमा सागर गुण वैरागर पास अंतरीक जे स्तवे । तस सकल मंगल जयजयारव आनंद वर्धन विनवे ॥ ९ ॥ इति । ॥ सातमुं ॥ ॥ जय चिंतामणि पार्श्वनाथ, जय त्रिभुवन स्वामी ॥ अष्टकर्म रिपु जीतीने, पंचम गति पामो ॥ १ ॥ प्रभुनामे आनंदकंद, For Private And Personal Use Only Page #31 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२ ) सुख संपत्ति लीयें || प्रभुनामे भवभय तर्णा, पातक सब दहिये ॥ २ ॥ ॐ ह्री वर्ण जोडी करीए, जपीये पारस नाम || विष अमृत थई पर गमे, पावे अविचल ठाम || ३ || इति ॥ ॥ आठमुं ॥ 11 श्रीपार्श्वनाथ नमस्तुभ्यं, विघ्न विध्वंस कारिणे ॥ निर्मल स प्रभानंदे, परमानंद दायिने ॥ १ ॥ अश्वसेना वनपाल, कुलचूडामणि प्रभो || वामासुनो नमस्तुभ्यं, श्रीमत्पापं जिनेश्वर ||२|| क्षितिमंडल मुकुटं, धार्मिक निकटं, विश्वप्रगटं, चारुभटं ॥ भवरेणु समीरं, जलनिधितीरं, सुरगिरिधीरं गंभीरं || जगत्रयं शरणं, दुर्गति हरणं दुर्द्धर चरण; सुखकरणं ॥ श्रीपार्श्वजिनेंद्र; नत नागेंद्र; नमत सुरेद्रं कृतभद्रं ॥ ३ ॥ कमठे धरणेंद्रे च स्वोचितं कर्म कुर्वती ॥ प्रभुस्तुल्य मनोवृतिः, पार्श्वनाथ श्रियेऽस्तु वः ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ नवसुं ॥ || प्रणमामि सदा म पार्श्वजिनं, जिननायक दायक सुख घनं ॥ घनचारु महोत्तम देहधरं, धरणी पति नित्य सुसेवकरं || ॥ १ ॥ करुणा रस रंचित भव्य फणि, फणि सप्त शोभित मौलिमणि ॥ मणि कंचन रूप त्रिकोटि घटं, घटितासुर किन्नर पार्श्वतटं ॥२॥ तटिनीपति घोष गंभीर स्वरं, स्वरनाकर अश्व सुसेन नरं ॥ नरनारी नमस्कृत्य नित्यमुदा, पद्मावतो गावतो गीत सदा ॥ ३ ॥ सहनेंद्रिय गोप यथा कमठं, कमठासुर वारण मुक्तहरं ।। हट हेलित 11 For Private And Personal Use Only Page #32 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३) कर्म कृतांतबलं, बलधाम धुरंधर पंकनलं॥४॥जलजध्वय पत्र प्रभानयनं, नयनंदित भव्य नरेश मनं ।। मन मन्मथ महीरुह वन्हिसम, समतामय रत्नकरं परमं ॥५॥ परमार्थ विचार सदा कुशलं, कुशलं कुरुमे जिननाथ अलं ! अलिनी नलिनी नलिनील तनु, तनुताप्रभु पार्श्वजिनं मुधनं ॥ ६॥ धन धान्यकरं करुणा परमं, परमामृत सिद्धि महासुखदं ॥ सुखदायक नायक संतभवं, भवभूत प्रभु. पार्वजिनं शिवदं ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥श्री महावीरस्वामीजीनुं चैत्यवंदन ॥ __उर्ध्व लोक दशमा थकी, कुंड पुरे मंडाण ॥ वृषभ योनि चोवीशमा, वर्द्धमान जिन भाण ॥ १ ॥ उतरा फाल्गुणी उपना, मांनवगण सुखदाय ॥ कन्यारशि छद्मस्थमां, बार वरस वही जाय।।२।। शाल विशाल तरु तलेंए, केवलनिधि प्रगटाया ॥ वीर बिरुद घरवा भणी, एकाकी शिव जाय ॥ ३॥ इति ।। ॥ बीजं ॥ ॥ वर्द्धमान जिनवर धणी, मणनित्य मेव ॥ सिद्धारथ कुल चंदलो, सुर निर्मित सेव ॥१॥ त्रिसला उयर सर हंस सम, मगट्यो मुखकंद ॥ केसरी लंछन विमल तनु, कंचनमय द्वंद ॥२॥ महावीर जगमां वडोए, पावापुरि निर्वाण ॥ सुरनर भूप नमे सदा, पामे अविचल ठाण ॥ ३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #33 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २४ ) ॥ श्रीजं. ॥ ॥ नव चोमासी तप कर्या, त्रणमासीदोय || दोय दोय अ हमासी, तिम दोय मासी होय || १ || बहोतेर पास खमण कर्या, मास खमण कर्या बार || पट मासी आदयीं, बार अठम तप सार ॥ २ ॥ षटमासी एक तिम कर्यो, पण दिन उण घटमास || बसे ओगणत्रीस छठमला, दिक्षा दिन एक खास || ३ || भद्र प्रतिमा दोय तिम, महाभद्र दिन च्यार ।। दस दिन सर्वतो भद्रना, लागट निरधार ॥ ४ ॥ विण पाणी तप आदर्यो, पारण दिन जास || द्रव्या हारण नक कह्यो, त्रणसें उगण पंचास ||५|| छझस्थे एणीपरे रह्या, सह्या परिसह घोर || शुकल ध्यान अनलै करी, बाल्या कर्म कठोर || ६ || शुकल ध्यान अंतर रह्या ए, पाम्या केवलनाण || यशविजय कहे प्रणमतां, लहीये नित्य कल्याण ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ चोथुं. ॥ | वर्धमान चवीशमां, क्षत्रीकुंडे जाणो ॥ द्विधार्थ त्रिशला वणा, नंदन सुर राणो ॥ १ ॥ सेवन वरणी सात हाथ, सींह लंछन साहे || वरस बांतेर आयु जास, भवियणना मनमेाहे || २ || अपापाये शीवपुर गयाए, वीर जिनेश्वर राय ॥ श्रीविनय विजय उवझायनो, रूपविजय गुण गाय ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ पांचमुं ॥ ॥ छत्र शिरपर छत्र शिरपर, त्रण सहिंत || चामर सुरपति For Private And Personal Use Only Page #34 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२५) चालवे, मधुरी वाणी त्रिभुवन मोहे । सिद्धारथ कूल अवतरया, त्रिशला देवी जननी सेहे ॥ चरणें मेरु चलाविओ, समरथ लंछन सिंह ॥ महावीर जिन नित नमुं, यह उगमते दह ॥१॥ इति ।। श्री चोवीश तीर्थकरनुं चैत्यवंदन. ॥ श्री शंखेश्वर ईश्वर, प्रणमी त्रिकरणयोग ॥ देवनमन चउ. मासीये, करशुं विधि संयोग ।। १॥ रोषभाजित संभव तथा, अभिनंदन जिनचंद ।। सुमति पद्म प्रभु सातमा, स्वामीसुपास जिणंद ॥ २॥ चंद्र प्रभु मृविधिजिन, श्री शीतलश्रेयांस ॥ वासुपूज्य विल तथा, अत धर्म वरवंश ॥ ३ ॥ शांतिकुंथु अर प्रभु, मल्ली सुत्रतस्वामी ।। नमो नेशीसर पासजिन, वर्द्धमान गुमधामि।।४.वर्तमान जिन वंदताए, चंद्या देव त्रिकाल ।। प्रभु शुभ गुण मुगता तणी, वीर रचे वरमाल ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ बाजूं. ॥ ॥ रुपम अजित संभव नमो, अभिनंदन जिनराज । मुमती पदम सुपास जिन, चंद्रप्रभु महाराज ॥ १॥ सुनिधि शीतल श्रेयांस जिन, वासुपूज्य मुख वास । विमल अनंत श्रीधर्म जिन, शांतिनाथ पूरे आश ॥२॥ कुंथु अर मल्लि जिन, मुनीसुव्रत जगनाथ ।। नमी नेमी पारस वीर, ए साचो शिवपुर साथ ॥ ३ ॥ द्रव्य भा. वथी सेवीये, आणी मन उल्लाम।। आतम नोर्मल कीजीये, जिम For Private And Personal Use Only Page #35 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२६) पामी जे सिववास ॥ ४ ॥ एम चोवीस जिन समरतां ए, पाचे मननी आश ॥ अमीकुमर एणी परे भणे,ते पामे लील वीलास॥५॥ इति चैत्यवंदन ॥ ॥ अथ श्री सिमंधरजिन चैत्यवंदन ॥ ॥ वंदु जिनवर विहरमान, सिमंधर स्वामी ॥ केवल कमला कांत दांत ॥ करुणारस धामी ॥१॥ कंचनगिरि सम देह कांत, वृष लांछन पाय ॥ चोराशी लख पूर्व आय,सेवित सुर राय, ॥२॥ छठ भत्त संयम लीयोए, पुंडरिगिणि भाण ॥ प्रभु घो दरिसण सं. पदा, कारण परमकल्याण ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ बीजु ॥ ॥ जंबुद्विप पूरव दोशे, पुष्कल वइ विजये ॥ नयरी पुंडर गिणी निरमली, धर्म सदा जिहां सजीए ॥१॥ श्रेयांस नरेसर नंद चंद, सत्यकी मात मल्हार ।। रुखमणी राणी बालहो, शिववधु उरहार ॥ २ ॥ धनुष पांचसे देहमान, कंचन वरणी काय ।। वृषभ लंछन रलियामणो, पूर्व चोराशी आय ॥ ३॥ शांति कुंथु अंतर जन्म, श्रीमंधर जिनराज ॥ वीस लाख पूर्व कुमर पद, वेशठ लाख पूर्वराज ॥ ४ ॥ श्री मुनीसुव्रत जब विचरता, तब प्रभु लीये दीक्षा ॥ कर्म खपावो केवल लही, दोये बह जन शिक्षा ॥ ५ ॥ उदय नाथने शासने, वरशे शिव पटराणी ।। सो कोड मुनीराजजी, दस For Private And Personal Use Only Page #36 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२७) लाख केवल नाणी ॥६॥ सकल गुणे करी शोभता ए, शिवरम : णी शिणगार ॥ श्रीरूपविजय कविरायनो, माणेक कहे मुझतार ॥७॥ इति ।। ॥त्रीजु ॥ ॥ श्री सीमंधर विचरता, सोहे विजय मोझार ॥ समवसरण देवे रत्यु, बेसे परखदा बार ॥ १॥ नव तस्व दीये देशना, सांभळे सुरनर कोड ॥ षट द्रव्यादिक वरणवे, ले समकित कर जोड ॥ २॥ इहां थकी जिन वेगळा, सहस तेत्रीश शत एक ॥ सत्तावन जोजन वलि, सचर कला विवेक ॥ ३॥ द्रव्यथकी प्रभु वेगला, भावथी हृदय मोझार ।। त्रण काळ वंदन करु, स्वास माहे सोवार ॥ ४ ॥ श्रीसीमंधर जिनवरु ए, पुरे वंछित कोड ॥ कांतिविजय प्रभु प्रणमतां, भक्ते बेकर जोड ॥ ५॥ इति ॥ ॥ चोथु ॥ ॥ पूर्व दिशि इशान कूण, पुरुकलमें विजया । नयरी पुंडरिगिणी विहां, सीमंधर थुणीया ॥ १॥ पूर्वायु चोराशी लख, कांचन मय काया ॥ उंचपणे सय धनुश्य पंच, प्रणमे सुरराया ॥२॥ जयवंता जिन विचरंता, केवल दीपक देव ॥ श्री सीमंघर स्वामीजी, देजो तुम पद सेव ॥ ३॥ वीशलाख पूर्व कुंवर वास, भोगवी जिनेश्वर ॥ सठ लाख पूर्व राजऋद्धी, पाली अल वेश्वर ॥४॥ मुनीसुत्रत जिन विहरमान. तइये तुम दीक्षा | तीर्थकर For Private And Personal Use Only Page #37 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२८) पद लहिय स्वामी, महियल द्यो दिक्षा ॥ ५॥ एह अमे ओलग करू, सुणज्यो बीना चंद ॥ बंदणा हमारी वीनंती, जइ कहेज्यो जिनचंद ।६। समवसरण बेठा जिणंद, उपदेशे जिनधर्म ॥ भविक जिद वाणी सुणी, बांधे जे शुभ कर्म ॥ ७ ॥ आठ कर्म चारे कपाय, अढार दोष छंडाय ॥ लही नाण चातीश अतिशया, वाणी गुण कहेवाय ।। ८॥ भरत क्षेत्रनां भविक जन, योछे तुम आशिष । हर्षपणे धर्मलाभ द्यो, पूरो संघ जगीश ॥९॥ इति ॥ ॥ पांच मुं॥ ॥ जय जय त्रिभुवन आदिनाथ, पंचम गति गामो ॥ जय जय करुणा शांत दांत, भविजन हित काभी ॥ १॥ जय जय इंद नरिंद बूंद, सेवित सिरनामो ॥ जय जय अतिशयानंत वंत, अंतर्गत जामी ॥ २॥ पूर्व विदेह विराजताए, श्री सी. मंघर स्वामी ।। त्रिकरण शुद्ध त्रिहुँ कालमें, नितपति करुं प्रणाम ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री सिद्धाचलजीनुं चैत्यवंदन ॥ । सिद्धाचल शिखरे चढो, ध्यानधरो जगदीश ॥ मन वच काय एकाग्रशु, नाम जपो एकवीश ॥ १॥ (१) शत्रुजय गिरि वंदीये, (२) बाहुबलो गुणधाम ॥ (३) मरुदेवने (४) पुंडरिक गीरि, (५) रेवतगिरि विशराम ॥२॥ (६) विमलाचल For Private And Personal Use Only Page #38 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२९) (७) सिद्धराजजी, (८) नाम भगोरथ सार ॥ (९) सिद्धक्षेत्रने (१० ) सहस्र कमल, ( ११ ) मुक्तिनिलय जयकार ॥३॥ (१२) सिद्धाचळ (१३) शतकूटगिरि, (१४) ढंकने (१५) कोडोनीवास ॥ (१६) कदंबगिरि (१७) लोहितनेमो, (१८) तालध्वज [ १९ ] पुण्यराशि ॥ ४ ॥ [२०] महाबल (२१) दृढशक्ति सही, ए एकवीशह नाम । साते शुद्धि समाचरी, करीए नित्य प्रणाम ॥ ५ ॥ दग्ध शुन्य ने अविधि दोष, अति प्रवृति जेह ।। चार दोष छंडो भजो, भक्तिभाव गुण गेह ॥ ६॥ मणुय जन्म पामी करीए, सद्गुरु तीरथ योग ॥ श्री शुभवारने शासने, शिवरमणी संयोग ॥ ७ ॥ इति ॥ । बीजु.॥ ॥ श्री आदिनाथ जगन्नाथ, विमलाचल मंडन ॥ जयनाभि कुलाकाश, प्रकाशन दिवाकर ॥ १ ॥ तवदेव पदांभोज, सेवापि दुर्लभा भवेत् ॥ पुण्य संमार होनानां ॥ कल्पवल्लो व देहिनाम् ॥२॥ ते धन्या मानवा देवा, योगमन्तव शासनं ॥ वंदनीया विभाताये, वंदंते भवतः पदौ ।। ३ ॥ प्रचंड मम रागादि, रिपुसंतति घातक। श्रीयुगादि जिनाधीश, देवं वंदे मुदा सदा ॥ ४ ॥ श्री शत्रुजय कोटीर, कृतं राज्यश्रिया विभो । सर्वोधनाशनं मेस्तु, शासनं ते भवे भवे ॥ ५ ॥ पाताले यानि बिबानि, यानि बिंबानी भूतले ॥ स्वर्गेपियानि विद्यानि, तानिवंदे निरंतरम् ॥ ६ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #39 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३० ) चैत्री पुनमर्नु चैत्यवंदन. ॥ श्री शत्रुजय सिद्धक्षेत्र, सिद्धाचल साचो ॥ आदीश्वर जिनरायना,जोहां महिमा जायो।।१।।इहां अनंत गुणवंत साधु, पाम्या शिववास ।। एह गिरि सेवाथी अधिक, होय लील विलास ॥२॥ दुष्कृत सवि दूरे हरे ए, बहु भत्र संचित जेह ।। सकल तीथ शिर सेहरो, दान नमे धरी नेह ॥ ३ ॥ बीजु. ।। ए सीरथ उपर अनंत, तीर्थकर आव्या।। वली अनंता आवशे, समंतारस भाव्या ॥१॥ आ चोवीशी मांहि एक, नेमीश्वर पांखे।। जिन तेवीश समोसर्या, एम आगम भांखे ॥२॥ गणधर मुनिवर केवलो, समोसर्या गुणवंत ।। प्रेमे ते गिरि प्रणमतां, हरखे दान इसंत ॥ ३ ॥ इति ॥ त्रीजु. ॥श्री शत्रंजय सिद्ध क्षेत्र, पुंडरिक गिरि साचो ॥ विमलाचलने तीर्थराज, जस महिमा जाचो॥१॥ मुक्ति निलय शतकुट नाम, पुष्पदंत भणीजे॥ महापद्मने सहस्नपत्र,गिरिराज कहीजे ॥२॥ इत्यादिक बहु भांति शु ए, नाम जपो निरधार ॥ धीरविमल कविराजनो, शिष्य कहे सुखकार ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #40 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चोथु. ॥ चैत्री पुनमनो अखंड, शशीधर जिम दोपे, अंगारक आदि अनेक, मह गणने झोपे ॥ १॥तिम पर तीर्थी देवथी, जेह अधिक विराजे ।। लोकोत्तर अतिशय अनंत, दीपंत दीवाजे ॥ २ ॥ चैत्री पुनमने दोने ए, भनो एह भगवंत ।। श्री विजयराज मूरिदनो, दान सकल सुख हुँत ।। ३ ।। इति ।। ___पांच मुं. ॥ आदीश्वर जिनरायनो, पेहेलो जे गणधार ॥ पुंडरिक नामें थयो, भविजनने सुखकार ।। १ ॥ चैत्री पुनमने दिने, केवल सिरि पानी, इण गिरि तेहथी पुंडरिक; गिरि अभिधा पामी ॥२॥ पंच कोडि मुनिशुं लह्या ए; करी अनशन शिव ठाम ।। ज्ञानविमल मुरि तेहना; पय प्रणमे अभिराम ।। ३ ॥ इति ।। ॥छर्छ. ॥ ॥ जोयण शत परिमाण एक, जे पहिले आरे ॥ बीजे आरे जायण जेह, एंशी विस्तारे ॥ १ ॥ तिम बीजे जायण रार, चोथे पंचास ।। पांचमे आरे बार सार, विस्तार छे जास ॥२॥ छठाने अंते हुए, एक हस्त जस मान ॥ एह अवस्थित छे सदा, ते प्रणमे मुनि दान ॥ ३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #41 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३२ ) ॥ सातमुं ॥ ॥ भरत नरेसर भरत क्षेत्र, चक्रि इण ठामे ॥ आव्यो संघ सनी सनूर, मन आणंद पामें ॥१॥ कंचनमय प्रासाद कीध, उत्तंग उदार ।। मंडप तोरण विविध जाल, मालित च उ बार ॥२॥ घणु पणसय मित मणि तणिए, थापी रुपभनी मूति ॥ दान दया कर तीर्थथी, पसरी जग जस कीर्ति ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ आठमुं॥ ॥ रुषभनी प्रतिमा मणिमयी, भरतेश्वर कीधी । ते प्रतिमा छे इणे गिरि, एह वात प्रसिद्धि ॥१॥ देखे दरिसण कोय जास, मानव इणे लोके ॥ त्रीजे भवे जे मुक्ति योग्य, नर तेह विलोके ॥ २ ॥ स्वर्ण गुफा पश्चिम दिशे ए, ए छे जास अहि ठाण ॥ घन मुहंकर विमलगिरि, ते प्रणेमुं हित आण ॥३॥ इति। ॥ नवमुं॥ ॥ सगरादिक नरपति अनेक, इणे पर्वत आव्या ॥ विविध विचित्र विराजमान, प्रासाद कराव्या ॥ १॥ भक्ति धरी जिनवर तणी, बहु प्रतिमा थापी ॥ तिणे महियलमा तेहनी, कीरति अति व्यापी ॥ २ ॥ सुरपति नरपतिना था ए, इहां बहु उद्धार। ते शत्रुनय सेविये, दान सकल सुखकार ॥ ३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #42 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३३ ) ॥श्री सिद्धाचलजीर्नु चैत्यवंदन ॥ । सकल तिर्थ शिर सेहरो, शेर्बुजा गिरी सोहे ॥ त्रिभुवन तारण तीर्यए, दीठां मन मोहे ॥१॥ए गिरी उपर आवीया, नियंकर त्रेवीश ॥ सदा नाम ए शास्वतो, नमिये ते निश दीश । ॥ २॥ बादि जिणंद समोसर्या, पूर्व नवाणुं चार ॥रायण तळे श्री ऋषभना, पद प्रणमो घरी प्यार ॥३॥ सदा नाम ए शाश्वतो, भांखे श्री भगवंत ।। जात्राजे जुगते करे, आवे सही भव अंत ॥ ॥ ४ ॥ पुंडरिक गणधर प्रमुख, मुगति गया मुनिराज | सिद्ध गिरी सेव्या थकी, कीयां वंछित काज ॥ ५॥ विमल वसी गुण वर्णव्यो, अनुपम सेल उद्धार ।। युगाधीश जिनराजने, सेवे सहु नरनार ॥ ६ ॥ राम वापण दोय पाल ए, प्रथम तीर्थ प्रवेश ॥ मोतीवशी प्रेमावशी, हेमावशी मुनी शेष ॥७॥ खरतर वशी छीपावशी, निरखी जे नितमेव ।। अदबुद स्वामी अती भला, दीठो अदभुत देव ॥ ८ ॥ नदी शेजो नाहीये, करीये निर्मल काय ॥ मापद पुंजे प्रेम शुं, जनम पाप मिट जाय ॥ ९॥ ए तीरयनी उपरे, ठावा तीरथ ठाम ॥ पछिम दिश पेसे। सही, रयण बिंब अमीराम ॥ १० ॥ उलखा डोली अती भली, नवण बिंव जल. नीर ॥ सोभाचंदन तलावडी, सुघरे कान शरीर ॥ ११ ॥ सिद्ध शिला पासे सही, शांति जिन चोमास ॥ साधु अनंता शिव लह्या बसोया शिवपद वास ॥१२॥ सिद्धवडे साधु वडा, जप तप करता माण | करम कठण मेटी करी, निश्चे पद निरवांण ॥ १३ ॥ एक For Private And Personal Use Only Page #43 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३४) शत आठे आगला, उतम ए गिरा नाम ॥ जघन्य एकवीश जा. णज्यो, करवा सुकृत काम ॥ १४ ।। सुरज कुंड सहायथो, नरपतो चंद. नरिंद ।। कुर्कट रुप मेटी करी, शोभा लही फुलचंद ।। १५ ।।. छहरी पाले जे समकिती, राखी मन एकतार ॥ नरक कुख गती. बारीने, शिवमुख कहे श्रीकार ॥ १६ ॥ अगसठ दोय अठम करी, ए मिरी फरसे आप ॥ सुर सुख पामे शास्वता, प्रगटे पुन्य पसाय ॥ १७ ॥ गौमुख जल चकेश्वरी, सदा करे जिन सेव ।। सानियः कारी संघने, दायक वंछीत देय ॥ १८ ॥ श्री सिद्धाचल सेवीये, आणी प्रेम अपार ॥ सदगुरु राज पपायथी, हंस नमे हितकार ॥ १९ ॥ इति । ॥ श्री गिरनारजोर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ नायक त्रिभुवन नाथजी, श्री नेमी निनसार || प्रमुपद. प्रेमे पूजीये, गोरुभोगढ गिरनार ॥ १॥ ए गिरी उपा एहना, तीन कल्याणक तास ॥ अरिहंत भगती अनुसरो, आणी मन उल्लास ॥ २ ॥ जादवकुल दिनकर जिस्यो, ब्रह्मचारी सरदार ॥ सतियां मांह: शीरोमणो, रुडी राजुल नार ॥३॥ सहसा वन संलम लीयो, गिरीपर केवलज्ञान ॥ पानाथ सरखी करी, भामनीने भगवान ॥४॥ साते टुंक सेाहामणी, ए तीरथ अहीराण ॥ पंचम टुंके श्री प्रभु, पाम्या पद निरवाण ॥५॥ गुणी अहारे गणधरा, गि. का बहु, गुणवंत ॥ सहस ,अटारे श्रमणने, सेवो भविनेन संव ॥६॥ आद भवानी अंबिका, ए तीरथ रखवाल ॥ सेवामी For Private And Personal Use Only Page #44 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir सुधेमने, जावे भवदुःख जाल ॥७॥ भविजन भावे भेटीये, आणीभन आणंद ।। सविजय नमे हरखसुं, पामे परमानंद ॥८॥ इति ।। ॥ श्री पंच तिर्थर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ धुर समरु श्री आदिदेव, विमलाचल मंडण ॥ नाभिराया कुल केसरी, मारुदेवी नंदन ॥१॥ गिरनारे गिरुषो वांदरों, स्वामी नेमकुमार ।। बालपणे चारित्र लीयो, तारी राजुल नार ॥ २ ॥ बंभण वाडे वीर निणंद, मन वंछित पुरे ॥ सायण डायण भुत प्रेत, तेहना मद चूरे ॥ ३ ॥ श्री शंखेश्वर पार्श्वनाथ, महिमाये महतो, गोडो दोही जाइये, पुरे मननी खंतो ॥ ४॥ चक्रवति पदवी तजी, लोधो संजम भार॥ शांति जिणेसर सेोलमा,नित्य नित्य करूं जुहार ॥५॥ पंचे तीरथ जे नमे, मह उठी नरनार ॥ कमळविजय कवी एम कहे, तस घर जय जयकार ॥ ६॥ इति । ॥ बोजु.॥ - ॥ आजदेव अरिहंत नमुं, समरूं तारुं नाम ॥ ज्या ज्यां पतिमा जिनतणी, त्या त्या करुं प्रणाम ॥१॥ शत्रुजय श्री आदिदेव, नेम नमुं गिरनार ।। तारंगे श्रीअजितनाथ, आबु ऋषभ जुहार ॥२॥ अष्टापद गिरि उपरें, जिन चोवीशे जोय ॥ मणिमय मूरतिमान , भरते भरावी साय ॥ ३ ॥ समेत शिखर तीरथ बडं, जिहां वोशे जिन पाय | वैभारक गिरि उपरें, श्रीवीर जिनेश्वर राय ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #45 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (३६) मांडव गढनों राजियो, नाम देव सुपास। ऋषभ कहे जिन समरता, पहोचे मननी आश ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ श्रीसिझचक्रजीर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ विभल केवल ज्ञान कमळा ॥ ए देशी ॥ ॥ सकल मंगल परम कमला, केली मंजुल मंदिरं ॥ भव कोटि संचित पाप नासननिमो नवपद जयकरं ॥१॥ अरिहंत सिद्ध सूरी वाचक, साधु दरिसण सुखकरं ।। वर ज्ञानपद चारित्र तप ए ॥ नमो० ॥२॥ श्रीपाळ राजा शरीर साजा, सेवता नवपद वरं ॥ जगमाहे गाजा किरति भाजा ।। नमो० ॥३॥ श्री सिद्धचक्र पसाय संकट, आपदा नासें अरं ॥ वली विस्तरे मुख मनोवंछित ॥नमो०॥ ॥ ४ ॥ आंबिल नव दिन देववंदन, त्रणे टंक निरंतरं ॥ दोयवार पडिकमणा पलेवण ॥ नमो० ॥ ५ ॥ त्रिकाळ भावे पुजीये भव, तारक तीर्थकरं ॥ तिम गणणुं दोय हजार गुणीये । नमो० ॥६॥ एम विधि सहित मन वचन काया, वश करी आराधीये ॥ तप वर्ष साढाच्यार नवषद ॥ नमो० ॥ ७ ॥ गद कष्ट चुरे सर्व पुरे, यक्ष विमलेश्वर वरं ॥ श्रीसिद्धचक्र पसाय माणिक, विजय विलसे सुखकरं ।। नमो० ॥ ८॥ इति ॥ ॥ बीजूं.॥ ॥ सिद्धचक्र आराधतां, भवसागर तरिये ॥ ॥ भव अटवीथी For Private And Personal Use Only Page #46 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३७ ) . उतरी शिव बधुने वरीये ॥ १॥ अरिहंत पद आराधतां तिर्थकर पद पावे || जग उपकार करे घणा, सिधो शिवपुर जावे ||२|| सिद्ध पद ध्यातां थकां अखय अचल पद पावे || कर्म कटक भेदी करी, अकल अरुपी थावे || ३ || आचारज पद ध्यावतां, जुगप्रधान पद पावे || जिनशासन अजवालीने, शिवपुर नयर सेाभावे ॥४॥ पाठक पद ध्यावत, वाचक पद पावे ॥ भणे भणावे भावसुं, सुरपुर शिवपूर जावे ॥ ५ ॥ साधुपद आराधर्ता, साधुपद पावे ॥ तप जप संयम आदरे, शिवसुंदरीने कामे || ६ || दरसण नाण पद ध्यायतां, दर्सण नाण अजुआले || चारित्र पद ध्यायता, शिव मंदिरमां माठे || ७ || केशर कस्तुरी केतकी, मचकुंद माछति माले || सिद्धचक्र से त्रिकाल, जिम मयणाने श्रीपाले ||८|| नव आंबील नव वार शियल, समकितसुं पालो || श्री रुपविजय कविराजनी, माणेक कहे थह उजभाको ।। ९ ।। इति ॥ ॥ श्रीजुं ॥ ॥ पेहले पद अरिहंतना, गुण गाउ नित्ये ॥ बीजे सिद्धतना घणा, समरो एक चित्ते || आचार्य त्रिजे पदे, मणमो बिहु करजोडी, नमीये श्री उवझायने, चोथे मद मोडी ॥२॥ पंचमपद सर्व साधु ए, नमतां नाणो छाज ॥ ए परमेष्टी पंचने, ध्याने अविचल राज || ३ || दंसण शंकादिक रहित, पदे छठे धारो ॥ सर्व नाणपद सातमे, खिण एक नवि विसारो ॥ ४ ॥ चारित्र For Private And Personal Use Only Page #47 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३८) चोखु चित्तथी, पद अष्टमे जपीए ॥ सकळ भेद विचे दान फल, तप नवमे तपीये ॥५॥ ए सिद्धचक्र आराधतां, पुरे वंछित कोड। मुमतिविजय कविरायनो, राम कहे करजोड ॥ ६ ॥ इति ॥ ॥ चोथु ॥ ॥प्रथम नमुं अरिहंतने, गुण बार सहिता ॥ पद बीजे नमो सिद्धने, भवीअड गुणवंता ॥ १ ॥ पद त्रीजे आचार्यजी, गुण छत्रीश विराजे । उपाध्याय चोथे पदे, जस गुण पचवीश छाजे ।। ॥ २ ॥ सतावीश गुण साधुजी, ते त्रिलोकमां नमिंद्र । सडसटि बोले अलंकों , दर्शन गुण रमिंद्र ।। ३ ॥ज्ञान नमो पद सातमे, भेद एकावन रुप ॥ चरण सित्तरी गुण नमो, निजगुण रमण स्वरुप ॥ ४ ॥ नवमे पद भवि तप नमो, इच्छारोधक जेह ।। भेद पचास छे एहना, अशुभ करम देव मेह ॥५॥ अंगदेश चंपा धणी, मयणां साथे श्रीपाळ ॥ सिद्धचक्र आराधीने, जेम लहो ऋदि रसाळ ॥ ६ ॥ तेम आराधे जे भवी, सिद्धचक्र मन रंग ॥ श्री जिन दीपक एम कहे, ते लहे शिव सुख संग ॥७॥ इति ॥ पांचसु ॥ ॥ सिद्धचक्र सेवो रुदा, भावे भवि प्राणी ॥ पंछित पूरण सुरतरु, सुरमणी सम जाणी ॥ १ ॥ सिद्धचक्र सेव्यो जेणे, सवि गुण मणी खांणी ॥ ऋद्धि वृद्धि नव निधि सिधि, निज मंदिर For Private And Personal Use Only Page #48 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ३९) आणी ॥ २॥ सिद्धचक्र आराधशेए, भाव धरो नर देह ।। संसार सागरने तरी, शिवसुख लेशे तेह ॥ ३॥ आसा शुदो चैत्रो शुदी, करी निर्मळ काय । नव दिन आंबिल तप तपो, जेम नवनिधि पाय ॥ ४ ॥ जाप जपो अरिहंत सिद्ध, मरि उवझाय ॥ साहु द. सण नाण चरित्र, तप शिव सुखदाय ।। ५॥ सिद्धचक्र पूजा भावशुंए, सेवो साधु महंत ॥ पडिकमणादिक विधि करो, जेम लहो मुख अनंत ॥ ६॥ अंगदेश चंपा पुरीश, श्री श्रीपाळ कुमार ।। सिद्धचक्र आराधीने, पाम्या मुख सार ॥ ७ ॥ रोग शोग तस नवणथी, नाठा निरधार ।। पाम्यो वंछित राज रुद्धि, परण्या बहु नार ॥ ८॥ एम जाणी भवि सेवज्योए, जेम लहो मुख अपार ॥ ज्ञानविजय गुरु नामथी, नयविजय जयकार ॥ ९ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री दीवाळीनु चैत्यवंदन ॥ ॥ मगधदेश पावापुरी, प्रभु वीर पधारथा | सोल पोहोर देह देशना, भवि जीवने तारया ॥१॥ भूप अढारे भावे सुणे, अमृत जीसी वाणी ॥ देशना दोके रयणीये, परण्या शिवराणी ॥२ || राय दीका करे, अजवाबगने हेते ॥ अमावाश्या ते कही. वली दीवाळी कीजे ॥ ३ ॥ मेरु थकी आव्या इंद्र, हाते छेड़-दीवी ॥ मेराइया दिन सफळ करो, लोक कहे सवी जीवी॥४॥ कल्याणक नाणी करी, दीवा ते कीजे का बाप जपो जिनराजनो, For Private And Personal Use Only Page #49 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (80) पातिक सवि छीजे ॥ ५ ॥ बीजे दीन गौतम सुणी, पाम्या केवळ ज्ञान || बार सहस गुणणु गुंणो, घर होसे कोड कल्याण || ६ || सुरनर किन्नर सहू मिली. गौतमने आपे || भट्टारक पदवी देई, सहू साखे थापे || ७ || जवार भट्टारक थकी, लोक करे जुहार ।। न भाइ जिमाडीया, नंदी बर्धन सार ॥ ८ ॥ भाइ बीज तिह थकी, वीर तणो अधिकार || जयविजय गुरु संपदा, मुजने दीयो मनोहार || ९ || ॥ बोजुं ॥ ॥ वीर जिनवर वीर जिनवर, चरम चौमास, नयरी अपापाये Water || हस्तिपाल राजन सभाये, कार्तिक अमावास्या स्यणिये || मुहूर्त शेष निर्वाण ताहिं ॥ सोल पहोर दे देशना, पहोत्या मुक्ति प्रझार ॥ नित्य दीवाली नय कहे, मलिया नृपति अढार ॥ १ ॥ श्रीजुं. ॥ देव मलिया देव मलिया, करे उत्सव रंग, मेरइयां हावे ग्रही ।। द्रव्य तेज उद्योत कीधो, भाव उद्योत जिनेंद्रनें ॥ ठाम ठाम एह ओच्छव प्रसिद्धो || लखकोडी छठ फल करी, कल्याणक करो एह ।। कवि नयविमल कहे इश्युं, धन धन दहाडो तेह ॥ २ ॥ चो श्रीसिद्धार्थ नृप कुछ तिलो, त्रिशला जस मात ॥ हरि लंछन तनु सात हाथ, महिमा विख्यात ।। १ ।। श्रीश वरस गृहवास छंडी, For Private And Personal Use Only Page #50 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४१) लोये संयम भार ॥ बार वरस छमस्थ मान, लही केवल सार ।।२।। श्रीश वरस एम सवि मली ए, बहोतेर आयु प्रमाण ॥ दीवाली दिन शिव गया, कहे नय तेह गुगखाण ।। ३ ॥ इति महावीर सामों निर्वाण चैत्यवंदन. त्रयम् ।। ॥ पांचमुं॥ ॥ नमो गणधर, नमो गणघर, लन्धि भंडार।। इंद्रभूति महिमा निलो, वड वजीर महावीर केरो ॥ गौतम गोत्रे उपन्यो, गणि अ. ग्यार माहे वडेरो ॥ केवलज्ञान लघु जिणे, दोवालो परमात ॥शान विमल कहे जेहना, नाम यकी मुखशात ॥१॥ ॥छटुं ॥ ॥ इंद्रभूति पहिलो भ', गौतम जस नाम ॥ गोबर गामे उपन्या, विद्याना धाम ॥१॥ पंचसया परिवारशुं, लेई संयम भार ॥ वरस पचास गृहे वश्या, व्रते वर्षन प्रोश ॥२॥ बार वरस केवल वरचाए, बाणुं वरस सवि आय ।। नय कहे गौतम नामयी, नित्य नित्य नवनिधि थाय ॥३॥ ॥ सातमुं॥ ॥जोवकेरो जीवकेरो, अछे मनमाहि ॥ संशय वेद पदे करी, कही अर्थ अभिमान वारयो । श्री महावीर सेवा करी, ग्रही संयम आप तारयो । त्रिपदि पामी गुंथीया, पूरब चउद उदार ।। For Private And Personal Use Only Page #51 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४२ ) नय कहे तेहना नामथी, होये जय जयकार ॥ १ ॥ इति गौव स्वामी केवलज्ञान चैत्यवंदन त्रयम् ॥ ॥ श्री पर्युषण पर्वनुं चैत्यवंदन ॥ ॥ पर्व पर्युषण गुणनीलो, नवकल्पविहार | चार मासान्तर थीर रहे, ही अर्थ उदार || १ || आषाढ शुद चउदश थकी, संवत्सरी पंचास || मुनिवर दिन सित्तेरमे, पडिक्कमतां चौमास || || २ || श्रावक पण समता घरी, करे गुरुना बहुमान || कल्पसूत्र सुविहित मुखे, सांभळे या एक तान || ३ || जिनवर चैत्य जुहारीए, गुरु भक्ति विशाल || माये अष्ट भवांतरे, वरीए शिव वरमाल ||४|| दर्पणथी निजरूपनो, जुवे सुद्रष्टि रूप || दर्पण अनुभव अर्पण, झान रमण मुनि भूप ॥ ५ ॥ आत्म स्वरुप विलोकतांए, प्रगटयो मित्र स्वभाव।। राय उदायी खामणां, पर्वपर्युषण दाव ॥ ६ ॥ नव बखाण पूजी सुणो, शुकल चतुर्थी सीमा ॥ पंचमी दिन वांचे सुणे, होय विरोधी नीमा ॥ ७ ॥ ए नहीं पर्वे पंचमी, सर्व समाणी चोथे । भव भीरु मुनि मानसे, भाख्युं अरिहा नाये || ८ || श्रुत केवली बयणा सुणी, लही मानव अवतार || श्री शुभवीरने शासने, पाम्या जय जयकार ॥ ९ ॥ ॥ बीजुं ॥ ॥ श्री श्री पोसणपर्व सेवा, भवीजन सहु हरखी ॥ वेण For Private And Personal Use Only Page #52 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४३) रासी सर्व परवणी, निज आतम परखी ॥ १॥ गुण अनंत छे जेहना, धर्मध्यान नित कीजे ॥ प्रभु गुण सर्व संभालीने, निज भाव ओलखीजे ॥ २॥ कल्पतरु सम कल्पसूत्र, निजमंदिर पधरावो । गीत गान मन भावमुं, मुभ भावना भावो ॥ ३ ॥ करी वरघोडो अभीनवो, जीन शासन दीपावो ॥ शुभकरणी अनुमोदतां, गुरु स. भीपे लोवो ॥ ४ ॥ गुरु मरुपे वायणा, भाव भक्तिने काजे।। छछ तप करी निर्मलो, आतमशक्कि माटे ॥५॥ प्रतिपदाए प्रभु वीरनो, जन्म महोछव किजे ॥ भगती वच्छल भगवंतनी, मुक्त भव कीजे ॥ ॥ ६॥ अठम तप करी निरमलो, सकल मुणो अधिकार ॥ नागकेतुनीपरे निरमलो, जेम पामो भवपार ||७|| वली मुणवा बारसे सुत्रना, भवी थइ उनमाल || श्रीफल स्वामी प्रभावना, करी टालो जंजाल ||८॥ अठाइ महोच्छव एणीपरे, पालोनिरती चार ॥ कारज कारण फल हो तो तरसेा भवपार ॥९॥ धीप नंदीसर आ. ठमे, देवमली सुभदाय ।। अठाइ ओच्छव करी, निजनिज थानक जाय ॥ १० ॥ सुलभ बोधी जीवना, हरखी साते घात ॥ ते माटे आराधवा, मन कीजे रकीयात ॥ ११ ॥ तपगच्छ नायक गुण नीलोए, विजयसेन सुरीराय ॥ पंडीत पद्मविजय तणो, दीपविजय मुण गाय ॥ १२ ॥ इति ॥ त्रीजु, ॥ मणमुं श्री देवाधि देव, जिनवर श्री महावीर ।। सूरनर सेवा शांतदांत, प्रभु साहस धीर ॥१॥ पर्व पर्युषण पुन्यथी, पानी For Private And Personal Use Only Page #53 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४४) भवी प्राणी ॥ जैन धर्म आराधीये, समकित हित जाणी ॥२॥श्री जिनप्रतिमा पूजिये ए,कीजे जन्म पवित्र ॥ जीव जतन करी सांभळे, प्रवचन वाणि वनित ॥ ३॥ इति ॥ चोथु. ॥ वडा कल्प परव दिने, घरे कल्पने कावो ॥ राति जगा प्रमुखे करी, शासन ने सोभावो ॥१॥ हयगय सिणगारी कुमर, लावो गुरु पासे । वडा कल्प दिन सांपलो, वीर चरित्र उकासे ।। २ ॥ छठ द्वादश तप कीजीये, धरीये शुभ परिणाम ॥ स्वामीवच्छछ प्रभावना, पुजा अमिराम ॥ ३ ॥ जिन उत्तम गौतम प्रते, कहेजो एकवीस वार ॥ गुरु मुख पो भावमुं, मुणे तो पामे भवपार ॥ ४ ॥ इति ॥ पांचमुं. ॥श्री शेजुजो सिणगारहार, श्री आदि जिणंद । नाभिराया कुल चंद्रमा, मरुदेवी माय ॥ १॥ काश्यप गोत्र इखाग वंश, वि. निताना राय ॥ धनुष पांचसे देहमान, सोवन सम काय ॥ २॥ वृषभ लंछन धूर वंदियेए, संघ सकल मुभरीत ॥ अठाइधर आरा. धीयें, आगम वाणी वनीत ॥ ३ ॥ (बीजु) प्रणमुं श्री देवाधिदेव, जिनवर महावीर ॥ सुरनर सेव्यो सांतदांत, प्रभु साहस धीर ॥ १ ॥ परच पजूसण पुण्ययी, पामी भवी मांणी ॥ जैन प. रम आगघिय, समकित हित जांणी ॥२॥ श्री जिनप्रतिमा पूजी For Private And Personal Use Only Page #54 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४५) येए, कीजे जनम पवित्र ॥ जीव जतन करी सांभलो, प्रवचन वाणी पनित ॥ ३॥ (ोजु) कल्पतरु वर कल्पसूत्र, पूरे मनवंछित ।। कल्पधर ध्रुथी मुणो, श्री वीर चरित्र ॥ १॥ खत्री कुंडे नरपति, सिद्धारय राय ॥ राणी त्रिसला तणी कुखे,कंचन सम काय ॥२॥ पुष्पोतर विमानयी चवीए, उपना पून्य पवित्र ॥ चतुरा चौद सूपन बहे, उपजे विनय विनित ॥ ३॥ ( चोथु ) सुपनविध कहे सूत होस्य, त्रिभूवन सिणगार ॥ ते दिनथी रिबें वध्या, धन अखुट भंडार ॥ २ ॥ साढासात दिवस अधिक, जनम्या नवमासे ॥ सुरपसि करे मेरु मिखरे, उच्छव उल्लासें ॥ २॥ कुंकुम हाथा दोजोये ए, तोरण झाकझमाल ॥ हरखे वीर हुलरावीये, वांणी वनित रसाल ॥ ३ ॥ (पांचमुं) जिननी बहेन सुदर्सना, भाइ नंदिवर्द्धन ॥ परणी यसोदा पदमनी, वीर सकोमल रत्न ॥१॥ देह दान संवस्सरी, छेइ दिक्षा स्वामी । कर्म खपावी थया केवली. पंचमी गति पांमी ॥२॥दीवाली दीवस थकीए,संघ सकल मुभ रीत ॥ अठम करी तैलाधरे, मुणज्यो एकहि चित्त ॥३॥ ( छठं) पास जिणेसर नेमनाथ, समुद्रथी वैष्णुव सूणीये ॥ आदिसरना चरित्र, जिननां अंतर सुणीये ॥१॥ गौतमादीक थीरावली, सुद्ध समाचारी ।। पर्व दीन चौथे दिने, भाषा गणधारी ॥२॥ ज्ञान दर्शन चारित्र तप ए, जिनपरमें जिन चित्त ॥ जिन प्रतिमा जिन सारीखी, वंदु सदा वनित ॥ ३॥ ( सातमुं) पर्वराज संवच्छरी, दिनदिन मते सेवो ॥ श्लोक वारसे कल्पसूत्र, कीर मुनिनो मुणो ॥ १॥ परम पाटपर बार बोल, भाख्या गुरु हिरे ॥ संपति श्री विजय मानसूरी, For Private And Personal Use Only Page #55 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४६ ) गच्छपति गणधीरे || २ || जिनशासन सोभा करुए. कीर्ति विजय कहे सीस || वीनय विजय कहे वीरने चरणे नातुं सीस ॥ ३ ॥ इति पजुमण चैत्यवंदन संपूर्ण ॥ ॥ अथ वीस विहरमाननुं चैत्यवंदन ॥ पहेला श्रीमंधर नमो, बीजा जुगमंधर || बाहुजिन त्रिजा जमो, सुबाहु सुखकर ॥ १ ॥ सुजात जीन पंचमा, स्वयंप्रभु जिन छठा || रूपभानन जिन सातमा, अनंतवीरज जिन दीठा ॥२॥ सुप्रभु नवमा नमो, दशमा देवविसाल || वज्रेवर जिन इग्यारमा, चंद्रानन दयाल || ३ || चंद्रबाहु जिन तेरमा, चउदमा भुजंगनाथ ॥ इश्वरस्वामी परमा, नेमी प्रभुनो करो साथ ॥ ४ ॥ वीरसेन जिन सतरमा महाभद जिनराज || देवजसा ओगणीसमा, अजितवीरज महाराज || ५ || जंबूद्वीपे च्यार जिन, धातकीखंडे आठ ॥ पुष्क राठ जिन, नमतां होय नित ठाठ || ६ || ए वीसे जिन वंदीए, विहरमान जगदोस || पूजेो णमो प्रेमभुं, घरो ध्यान निस दीस || ७ || धन ते देश नगर पुरी, जिहां विचरे जिनरोज || भवि जीवने प्रतिबोधता, सारे आतम काज ॥ ८ ॥ अनुभव रसमयि देशना, स्यादवाद समुदाय || सत्ता धर्म प्रकासता, दुरगति दुःख पलाय || ९ || जिन उत्तम पाद रूपनी ए, निस दिन करो सेवा || अमीकुमर एणीपरे भणे, मोक्ष तणां सुख ठेवा ||१०|| इवि For Private And Personal Use Only Page #56 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ४७ ) अथ सर्व जिननु चैत्यवंदन. ॥ श्रोसोमंधर प्रमुख नमु, विहरमान जिन वीश ।। ऋषभादिक वली बंदोये, संपइ जिन चोवीश ॥ १॥ सिद्धाचल गिरनार आबु, अष्टापद वलो गर ॥ समेत शिखर ए पंच तोरथ, पंचम गति दातार ।। २ ॥ उर्ध्व लोकें जिनवर नमुं, ते चौरासी लाख ।। सहस सत्ताणुं उपरें, त्रेवीश जिनवर भांख ।। ३ ।। एकशो बावन कोड वली, लाख चोराणुं सार ।। सहस चुमालीश सातशे, शाठ जिन पडिमा उदार ।। ४ ।। अधेोलेोके जिनभवन नभु, सात कोड बहतिर लाख ॥ तेरशे कोड नेव्यासी कोड, शाठ लाख चित राख ॥५॥ व्यंतर ज्योतिषीमां वली, ए जिनभुवन अपार ॥ ते भवि नित वंदन करो, जेम पामा भवपार ॥ ६ ॥ तीर्छ लोके शाश्वतां, श्री जिनभुवन विशाल ॥ बत्रीशे ने ओगणसाठ, वंदु थइ उजमाल ॥ ७॥ लाख त्रण'एक.[ सहस, त्रणशे वीश मनोहार ॥ जिन पडिमा ए शाश्वती, नित्य नित्य करूं जुहार ॥ ८ ॥ त्रण भुवन आहे वली ए, नामादिक जिन सार ॥ सिद्ध अनंता दिए, महोदय बद दातार ॥ ९॥ इति ॥ श्री चोविश जिन लंबन चैत्यवंदन ॥ ।। ऋषभलंछन ऋषभदेव, अजितलंछन हाथी ॥ संभव लंछन घोडलो, शिवपुरनो साथी ॥ १॥ अभिनंदन लंछन कपि, कोष छन सुमति ॥ पालेछन पद्मप्रभु, विश्वदेवा मुमति ॥२॥ मुपार्थ For Private And Personal Use Only Page #57 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (86). छन साथियो, चंद्रप्रभु लंछेन चंद्र || मगर लंछन सुविधि प्रभु श्रीवच्छ लंछन शीतलजिणंद || ३ || लंछन खड्गी श्रेयांसने, वासुपूज्यने महिष | सूबर लंछन पाये विमळदेव, भविया ते नामा शिव ॥ ४ ॥ सिंचाणो जिन अनंतने ए, वज्रलंछन श्रीधर्म ॥ शांतिलंछन मरगलो, राखे धर्मनो मर्म ॥ ५॥ कुंथुनाथ जिन बोकडो, भरजिन नंदावर्त || मल्लि कुंभ वखाणीये, सुव्रत कच्छप विख्यात | || ६ || नमिजिनने नीलकमल, पामीए पंकजमांही ॥ शंख लंछन प्रभु नेमजी, दीसे उंचे आहि ॥ ७ ॥ पार्श्वनाथजीने चरण सर्प, नीलवरण शोभित || सिंहलंछन कंचन तनु, वर्द्धमान विख्यात ॥ ॥८॥ एणीपेरे लंछन चितवी ए, ओलखीए जिनराय ॥ ज्ञानविमल प्रभु सेवता, लक्ष्मीरतन सूरिराय ॥ ९ ॥ ॥ बीजुं ॥ ॥ वृषभ लंछन रुपभदेव, अजितनाथने हाथी | संभवनाथने घोडलो, शिवपुरनो साथी || १ || अभिनंदनजीने कपी, क्रौच कंछन सुमति || पद्म प्रभुने पद्म, बंदी कापो कुमति ॥ २ ॥ सुपाश्री जिनने साथीओ, चंद्रप्रभूने चंद्र || सुविधिनाथने मघरमत्स्य, शिव शितल इंद्र || ३ || खडगिय श्रेयांसनाथने, वासुपूज्यने म हिप || विमळनाथने सुअर छे, अनंतसिंचाणो बहिष ॥ ४ ॥ धर्मनाथने वज्र वळी, शांतिनाथने हरण || कुंथुनाथने बोकडो, जंघे जिमणे चरण ॥ ५ ॥ अरजन नंदावत छे, मल्लीनाथने ॥ मुनिसुव्रतने काबो, नमि निकोत्यल जळश ॥ ६ ॥ ८ For Private And Personal Use Only Page #58 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (४९) नाथने पांच जन्यए, पार्श्वनाथने सर्प ॥ महावीरने सिंह छे, प्रभु चोवीशे अदर्प ।। ७ ॥ सेोळे निन सोवन समाए, पद्म वामपूज्य राता ॥ मल्ली पार्थ लीलडा, आपे मुखशाता ॥ ८ ॥ चद्रमभुने मुविधि श्वत, मुनिसुव्रत नेमकाला॥ कर्म शत्रुने संहरी, परिया शिवमाळा ॥ ९॥ तरण तारण त्रिहुं लोकनाए, जिहां लगे सुरज चंद्र ।। करजोडी प्रभुने कहे, श्री नंदय सोम सुरिंद ॥ ॥१०॥ इति ॥ ॥अथ तीर्थकरनी राशिनुं ॥ ॥ शांति नमी मल्लो मेष छे ॥ कुंथु अजित वृषभाति ॥ सं. भव अभिनंदन मिथुन ॥ धर्म करक सिंह मुमती ॥१॥ कन्या पद्मप्रभु नेमविर ॥ पास सूपास तुलाए ॥ शशी वृंश्चक धन रुषभदेव ।। सुविधि शोतल जिनराय ।। २ ॥ मकर सुस्त श्रेयांसने, बारमा घटपिन लोल ॥ वीमल अनंत अरनामथी । सुखोया श्री शुभवीर ॥ ३ ॥ इति ॥ ॥ एकसो सित्तेर जिन चैत्यवंदन ॥ सेले जिनवर शामळा, राना त्रीश वखाणू, लीला मरकत मणिसमा. आइत्रिश गुणखाणुं ॥१॥ पीला कंचन वर्ण समा, छ. त्रीशे जिनचंद; शंख वरण सोहामj,पचाशे सुखकंद ॥२॥ सोत्तर सो जिन वंदाए ए, उत्कृष्टा समकाल; अजितनाथ वारे हुवा, बंदू For Private And Personal Use Only Page #59 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५०) थइ उजमाल ॥३॥ नाम जपंतां जिनतj, दुरगति दूरे जाय; ध्यान ध्याता परमात्मनु, परम महोदय थाय ॥ ४ ॥ जिनवर नामे जश भलो, सफल मनोरथ सार; शुद्ध मतिती जिनतणी, शिवमुख अनु. भव धार ॥ ५॥ ॥ सिझनगवाननु चैत्यवंदन ॥ जगत भूषण विगत दूषणे, प्रणव प्राण निरूपकं ॥ ध्यान रूप अनुपम उपम, नमो सिद्ध निरंजनं ॥ १ ॥ गगन मंडल मुक्ति पदा, सर्व उद निवासनं ॥ ज्ञान ज्योति अनंत राजे, ।। नमो०॥ ।। २ ॥ अज्ञान निद्रा विगत वेदन, दलित मोह मेराउखं ।। नामगोत्र निरंतराय, ॥ नमो० ॥३॥ विकट क्रोश मान योषा, माया छाभ विसर्जनं ॥ रागद्वेष विमनोत अंकुर, ॥ नमो० ॥४॥ विमल केवल ज्ञान लेोचन, ध्यान शुक्ल समोरितं ॥ योगिनामिति गम्यरूपं, ।। नमो० ॥ ५॥ योगमुद्रा सम समुद्रा, करी पल्यंकासनं ॥ योगिनामिति गम्यरूपं, ॥ नमो० ॥ ६॥ जगत जनके दास दासी, तास आश निरासनं ॥ योगिनामिति गम्यरूपं ॥ नमो० ॥ ७ ॥ समय समकित दृष्टि जनकी, सोय योगी अयोगिकं ॥ देखिता मिलिन होवे, ॥ नमो० ॥ ८॥ सिद्ध तीर्थ अतीर्थ सिद्धा, भेद पंच दशादिकं ॥ सर्व कर्म विमुक्ति नेतन, ॥ नमो० ॥ ९ ॥ चंद्र सूर्य दोप मणीकी, ज्योति तेने ओलंगीफनं ॥ तज्यो तिथी कोई अपर ज्योति, ॥ नमो० ॥१०॥ एक माह अनेक राजे, नेक For Private And Personal Use Only Page #60 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५१) मांहि एककं ॥ एक नेककी नहि संख्या, नमो० ॥ ११ ॥ अजर अपर अलख अनंत, निराकार निरंजनं ॥ ब्रह्म ज्ञान अनंत दर्शन, ॥ नमो० ॥ १२ ॥ अचल सुखको लहेरमां, प्रभु लीन रहे निरं। तरं ॥ धर्म ध्यानथी सिद्ध दर्शन, ॥ नमो० ॥ १३ ॥ ध्याने धूप मने पुष्पर्श, पंच इंद्र हुताशनं ॥ क्षमा जाप संतोष पूजा. पूनो देव निरंजनं ॥ १४ ॥ नमो सिद्ध निरंजनं ॥ इति ॥ ॥ आवतो चोवोसी, चैत्यवंदन ॥ श्री पद्मनाम पहेला निणंद, श्रेणोक नृपजीव ॥ सुरदेव बीजा नमुं, सुपास श्रावक जीव ॥ १॥ श्री सुपार्थ त्रीजावळी, जीव कोणिक उदायो । स्वयंपभु चौथा जिणंद, पोटिल मुनिभाई ॥ २ ॥ सर्वानुमूति जिन पंचमाए, दृढायु श्रावक जाण ॥ देवश्रुत छहा निणद, श्रीकार्तिक शेठवखाण ॥ ३ ॥ श्रीउदय जिन सातमाए, शंखश्रावक जीव ।। श्रीपेढाल जिन आठमा, आणंद मुनि जीव ॥४॥ पोटिल नवमा वंदिएए, जीव जेह सुनंद ॥ शतकोरति दशमा जिणंद, सत्य श्रावक आणंद ॥५॥ सुत्रत जिन अगियार माए, देवकी राणी जीव ॥ श्रीअममजिन वारमा, जीव 'केशवगुण खाण ॥ ६॥ निष्कशाय जिन तेरमाए, सत्यकी विद्याधर ।। निष्पुलाक जिन चौदा, बळभद मुहंकर ॥७॥ निर्मम जिन पंदरमाए, जोवसुळसा भावी ॥ चित्रगुप्त जिन साळमा, श्रीरोहिणी १ कृष्ण. For Private And Personal Use Only Page #61 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५२ ) जीवभावि ८ ।। समाधि जिन सत्तरमा, रेवती श्राविका जाण ॥ श्रीसंवर जिन अढारमा, जीव शतानिक वखाण || ९ || श्री यशोधर ओगणीसमा, जीव कृष्ण द्वीपायन; विजयनाम जिन बीसमा, जीवकरण माहेण ॥ १० ॥ एकत्रीसमा श्रीमलनाम, जोव नारदनो कहिये || अंबड श्रावक जीव देव, बाबीसमा लहीए । ११ ।। अनंतवीर्य तेवीसमा, जीव अमरनो जेह ॥ भद्रकर जिनचे वीशमा, स्वातिबुद्धि गुणगेह ||१२|| चोवीसे जिनवरा, होशे आते काले || भाव सहित जे बांदशे, कर जोडीने माळे|| १३|| लंछन वर्ण प्रमाण आयुष, अंतर सवि सरखा । सांप्रत जिन चाविस परे, चढते सवि निरख्या || १४ || पंचकल्याणक तेहना, हाशे एहन दिवस || वीरबिमळ पंडिततणो, ज्ञानविमल सूरीश ॥ १५ ॥ || सामान्य जिन चैत्यवंदन ॥ ॥ जय जय तुं जिनराज आज, मळीओ मुज स्वामी; अविनाश अकलंक रुप, जग अंतरजामी || १|| रूप रूपी धर्म देव, आतम आरामी चिदानंद चेतन अचिंत्य, शिवलीला पामी ॥ २ ॥ सिद्ध बुद्ध तु बंदतां सकळ सिद्धि वर बुद्ध, रमो प्रभु ध्याने करी, प्रगटे आतम ऋद्ध || ३ || काळ बहु स्थावर गयो, भमीयो मी: विकलेद्रिय मांही बस्यो, स्थिरता नहीं क्यांही ॥ ४ ॥ तिर्यच पंचेद्रिथ मांझी देव, करमे हुं आव्यां, करी कुकर्म नरके For Private And Personal Use Only Page #62 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५३) गयो, तुम दरीशन नहि पायो ॥५॥ एम अनंत काळे करी ए, पाम्या नर अवतार; हवे जग तारक तुंही मळयो, भवनल पार उतार ॥६॥ श्री जिन चैत्यवंदन ॥ अद्याभवत सफलता नयन द्वयस्य, देव त्वदीय चरणां बुन वीक्षणेन ॥ अद्य त्रिलोक तिलकं प्रतिभासतेमे, संसार वारि घिरयं चलक प्रमाणम् ॥ १॥ कलेवं चंद्रस्य कलंक मुक्ता, मुक्तावली चारु गुण प्रसन्ना ॥ जगत्रया स्यामिमंत ददाना, जैनेश्वरी कल्प लतेव मूर्ति ॥२॥ धन्योहं कृत पुण्योई, निस्तीर्णाहं भवार्ण वात ॥ अनादि भव कांतारे, दृष्टोयेन श्रुतो मया ॥ ३ ॥ अद्य मक्षालितं गोत्र, नेत्रेच विमलिकृतं ॥ मुक्तोहं सर्व पापेभ्यो, जिनेंद्र तव दर्शनात् ॥ ४॥ दर्शनात दुरित ध्वंस: वंदनात् वंछित पदः॥ पूजनाद पुरुष श्रीदुः, जिनःसाक्षात् सुरद्रुमः ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ श्रथ जिन पूजार्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ जिनरूपे जिननायके, द्रव्ये पण तिमहि ॥ नाम स्थापना भेदयी, प्रगट जगमर्माहि ॥१॥ अध्यातमथी जोडिये, निक्षेपा चार।। तो प्रभु रूप समान भाव, पामे निरधार ॥२॥ पावन आतमने करे ए, जन्म जरादिक दूर ॥ ते प्रभु पूनाध्यानथी, राम कहे मुखपूर ॥ ३ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #63 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५४) ॥ अथ पांचज्ञानना चैत्यवंदनो॥ ॥ प्रथम मतीज्ञान- चैत्यवंदन ॥ ॥ श्री सौभाग्यपंचमी तणो, सयल दिवस सिणगार ॥ पांचे मानने पूजीये, थाये सफल अवतार ॥ १॥ सामायिक पोसह विषे, निरवध पूजा विचार || सुगंध चूर्णादिक थकी, ज्ञान ध्यान मनोहार ॥२॥ पूर्व दिशे उत्तर दिशे, पीठ रचीत्रण सार |पंचवरण जिन विबने, स्थापीजे सुखकार ॥३॥ पंच पंच वस्तु मेलवी, पूजा सामग्री जोग ॥ पंच वरण कलशा भरी, हरीये दुःख उपभोग । ४॥ यथाशक्ति पूजा करो, मतिज्ञानने काजे ॥ पंच ज्ञानमा धुरे का, श्री जिनशासन राजे ॥ ५ ॥ मति श्रुत विण होवे नही ए, अवधि प्रमुख महा ज्ञान ॥ ते माटे मति धुरे का, मति श्रुतमा पति मान ॥६॥ क्षय उपशम आवरणनो, लब्धि होये समकाले ॥ स्वाम्यादिकथी अभेद छे, पण मुख्य उपयोग काले ॥ ७ ॥ लक्षण भेदा भेद छे, कारण कारज योगे ॥ मति साधन श्रुत साध्य छे, कंचन कलश संयोगे ॥ ८ ॥ परमातम परमेसरू ए, सिद्ध स. यल भगवान ॥ मति दान पामी करी, केवट लक्ष्मी निधान ।। ॥ ९॥ इति चैत्यवंदन ॥ ॥ अथ द्वितीय श्रुतज्ञान चैत्यवंदन ॥ ॥श्री श्रुतज्ञानने नित्य नमुं, स्वपर प्रकाशक जेह ॥ जाणे देखे ज्ञानने, श्रुतथी टले संदेह ॥१॥ अनाभिलाप्य अनंत भाव, For Private And Personal Use Only Page #64 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५५ ) वचन अगोचर दाख्या || तेहनो भाग अनंतमो, वचन पर्याये आरूपा ॥ २ ॥ वली कथनीय पदार्थनो ए, भाग अनंतमो जेह ॥ उदेपूरवमां रच्यो, गणधर गुण समनेह || ३ || मांहोमांहे पूरबधरा, अक्षर लाभे सरिखा || छठाण वडीया भावयी, ते श्रुत प्रतिय विशेखा ॥ ४ ॥ तेहिज माटे अनंतमे, भाग निवद्धा वाचा || समकित श्रुतना जाणीये, सर्व पदारथ साचा ॥ ५ ॥ द्रव्य गुण पर्याये करी, जाणे एक प्रदेश || जाणे ते सत्रि वस्तुने, नंदी सूत्र उपदेश || ६ || चोवीस जिनना जाणीए, चउद पूरवधर साध || नवशत तेत्री सहस छे, अठाणं निरुपाध ॥ ७ ॥ परमत एकांतवादीनां शास्त्र सकल समुदाय । ते समकितते ग्रह्मां अर्थ यथारथ थाय ॥ ८ ॥ अरिहंत श्रुत केवली कहे ए, ज्ञानाचार चरित्त || श्रुतपंचमी आराधवा, विजयलक्ष्मी सूरि चित्त ॥९॥ ॥ इति चैत्यवंदन ॥ ॥ अथ तृतीय अवधिज्ञान चैत्यवंदन ॥ ॥ अवधि ज्ञान त्रीजुं कहुँ, मगटे आत्म प्रत्यक्ष ॥ क्षय उपशम आवरणनो, नवि इंद्रिय आपेक्ष || १ || देव निश्य भव पामतां, होय तेहने अवश्य || श्रद्धावंत समय लहे, मिध्यात विभग वश्य || २ || नर तिरिय गुणथी कहे, शुभ परिणाम संयोग || काउसग्गमां मुनि हास्यथी, विघटयाते उपयोग ॥ ३ ॥ जघन्यथी जाणे जूए, रूपी द्रव्य अनंता ॥ उत्कृष्टा सवि पुद्गला, मूर्ति वस्तु For Private And Personal Use Only Page #65 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५६ ) मुर्णता ॥ ४ ॥ क्षेत्री लघु अंगुलतणो, भाग असंखित देखे || तेहमा पुगल खंध जे, तेहने जाणे पेखे || ५ || लोक प्रमाणे अ araair, खंड असंख्य उhिa || भाग असंख्य आवलितणो, " श्रद्धा घुप दिव || ६ || उत्सर्पिणी अवसर्पिणी ए. अतीत अनागत अद्धा || अतिशय संख्या तिगपणे, सांभलो भाव प्रबंधा ॥७॥ एक एक द्रव्यमां चार भाव, जघन्यथी ते निरखे || असंख्याता द्रव्य दीठ, पर्यव गुरुथी परखे || ८ | चार भेद संक्षेपथी ए, नंदीसूत्र प्रकाशे | विजयलक्ष्मी सूरि ते लहे, ज्ञान भक्ति सुविलासे || ९ || इति चैत्यवंदनं समाप्तं ॥ ॥ अथ चतुर्थ मनःपर्यव ज्ञान चैत्यवंदन ॥ ॥ श्री मनःपर्यव ज्ञान छे; गुणप्रत्ययी ए जाणो ॥ अप्रमादि रुद्धिवंतने, होय संयम गुणठाणो || १ || कोइक चारित्रवंतने, चढते शुभ परिणामे || मनना भाव जाणे सही, सागारि उपयोग टा || २ || चितविता मनोद्रव्यना ए, जाणे खंध अनंता || आकाशे मनोवर्गणा, रह्या ते नवि गुणंसा || ३ || संज्ञी पंचेंद्रिय प्राणीये, तनु येोगे करी ग्रहीया || मन ये । गे करी मनपणे, परिणमे ते द्रव्य मुणीया || ४ || तिहुँ माणसक्षेत्रमां, अढी द्वोप विछोके ॥ तिर्छालेोकना मध्यथी, सहस जोयण अधोछेाके ॥ ४ ॥ ऊरध जाणे ज्योतिषी लगे ए, पलियनो भाग असंख्य | कालथी भाव थया यशे, अतीत अनागत संख्य ॥ ६ ॥ भावथी चितिव द्रव्यना, For Private And Personal Use Only Page #66 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५७) असंख्य पर्याय जाणे | रूजुमतिथी विपुलमति, अधिका भाव व. खाणे ॥ ७ ॥ मनना पुद्गल देखीने, अनुमाने ग्रहे साचु ॥ वितथ. पणु पामे नही, ते ज्ञाने चित्त राचुं ॥ ८ ॥ अमूर्ती भाव प्रगटपणे ए, जाणे श्री भगवंत ॥ चरण कमल नमु तेहना, विजयलक्ष्मी गुणबंत ॥ ९ ॥ इति चैत्यवंदनम् ।। ॥अथ पंचमकेवलज्ञान चैत्यवंदन ॥ ॥ श्री जिन चउनाणी थइ, शुकलध्यान अभ्यासे । अतिशय अतिशय आत्मरूप, क्षण क्षण प्रकाशे ॥ १ ॥ निद्रा म्वम जागर दशा, ते सवि दूरे होवे ॥ चोथी उजागर दशा, तेहनो अनुभव जोवे ॥ २॥ क्षपकश्रेणी आरोहिया ए, अपूर्व शक्ति संयोगे लही गुणठाणुं बारमुं, तुरीय कषाय वियोगे ॥ 3 ॥ नाण दंसण आर. रण मोह, अंतराय घनघाती । कर्म दुष्ट उच्छेदीने, थया परमातम माती ।। ४॥ दोय धर्म सवि वस्तुना, समयांतर उपयोग ॥ प्रथम विशेष पणे ग्रहे. वीजे सामान्य सयोग ॥ ५॥ सादी अनंत भांगे करी ए, दर्शन ज्ञान अनंत ॥ गुणठाणुं लही तेरमुं. भाव जिणंद जयवंत ।। ६ ।। मूल पयडिमां एक बंध, सत्ता उदये चार॥ उत्तर पयडीनो एक बंध, तिम उदय रहे बायाल ॥ ७ ॥ सत्ता पंच्यासी तणी, कर्म जेहवां रज्झु छार ॥ मन वच काया योग नास, अविचल अविकार ॥ ८ ॥ संयोगी केवली तणी ए. पामी दशाये विचरे ।। अक्षय केवलज्ञानना, विजयलक्ष्मी गुण उच्चरे ॥९॥ इति श्री केवलज्ञान चैत्यवंदनम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #67 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (५८) ॥ बीजनुं चैत्यवंदन ॥ ।। बोज रीझ करी सिंचीए, प्रथम तिथिमां एह.॥ चंद्रका उदये वधे, तेम पुण्योदय रेह ॥१॥ अभिनंदन सुमति प्रभु, दशमा शितलनाथ ॥ वासुपूज्य अरनाथजी, मुगतिपुरीना नाथ ॥ २ ॥ इत्यादिक जिनवर तणा, जनम नाण निर्वाण ॥ बीन तणे दिन वंदा, पाभा कोड कल्याण ॥ ३ ॥ दुविह धर्मने सेवीए, निश्चय ने व्यवहार ॥ आगम नो आगम तणो, भावो तत्व विचार ॥ ४ ॥ बीजे ठाणे वर्णव्या, दोय दोय जे भेद ।।वीज तणे दिन मुनिवरा, ध्याता ध्यान दुभेद ॥ ५ ॥ अंग उपांगे वर्णव्या, जीव अजीक पुन्य पाप ॥ बंध मोक्ष दुग श्रेणीओ, भव्य अभव्यनी छाप ॥ ६॥ बहु श्रुत चरण कमळ नमी, संशय करीए दुर । गौतम प्रश्नोत्तर प.रे श्री शुभवीर हजुर ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ बोजर्नु चैत्यवंदन ॥ बीजं ॥ ॥ विष विजय विजयापुरी, सुदृढ नृप तात ॥ युगमंधर जिनवर नमुं. जस तारा मात ॥ १॥ पिया मंगळानो नाहलो, गज लंछन सोहे । सेोवन वन धनु पांच से, भविजन मन मोहे । २॥ लक्ष चोराशी पुरव→ ए, आयुमान लह्यो एह ।। सुद्धा संयम संग्रही, केवळ पाम्या जेह ॥ ३॥ त्रिगडे बेठा भविकने, आपे उपदेश ।। पातिहार्य आठे भला, अतिशय चोत्रीश ॥ ४ ॥ पांत्रिश वाणी गुण कहा, सेा काडी मुनी संघात ॥ दश लक्ष केवळ धर मुनि, For Private And Personal Use Only Page #68 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ५९ ) बंदु निशदीन प्रभात || ५ || महाविदेह विचरताए, बंदु सुरनर कोडी | पंडित धीरविमल तणो, नय वंदे कर जोडी ॥ ६ ॥ इति॥ || वीजनुं चैत्यवंदन ॥ श्रीजुं ॥ + ॥ चोविशमां जिनराजजी, चंपापुरी आवे; चौद सहस अॅण गारना; स्वामी तेह कहावे || १ || अढोकास उंचो सहि, समयसरणवीरचावे, त्रिभुवनपति गुरु तेहमां, उपदेश वरसावे. ||२| जितशत्रु राजा तिहां, प्रभुने वंदन आवे; तेपण समवसरण मांहो, बेसी हरषित थावे || ३ || भविक जीव तारण भणी, गौतम पूछे जिनने; बीज तिथि महिना कहो, संशय हरण प्रभु अमने ||४|| तव प्रभु परखदा आगळे, बीजनो महिमा भाखे; पंच कल्याणकजिनतणा. ते सहु संघनी साखे || ५ || बीजे अजित जनमोया, बीजे सुमति च्यवन; बीजे वासुपूज्यजी, लं केवळ नाण. ॥ ६ ॥ दशमा शीतळनाथजी, बीजे शिव पाम्या; सातमा चक्री अरजिन, जन्म्या गुणधाम. ॥ ७ ॥ ए पांचे जिन समरतांए, भवि पामे दोय धर्मः सर्वविरति ने देशविरति टाळे पातिक भर्म. ॥ ८ ॥ वीर कहे द्वितीया तिथि, ते कारण तमे पाळो चंद्रकेतु राजा परे, आतम अजवाळो || ९ || ते सांभळी बहु आदरे, प्राणी बीज तिथि सार; ते आराधतां केइना, थया आतम उद्धार ॥ १० ॥ चौविहार उपवास करी, बीज आराधो विवेक, नयसागर कहे वीरजिन, धो मुजने शिव एक. ॥। ११ ॥ For Private And Personal Use Only Page #69 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६०) ॥ पांचमनुं चैत्यवंदन ॥ पहेळु ॥ ॥ बारे पर्खदा आगळे, श्री नेमी जिनराय ॥ मधुरी ध्वनी दीये देशना, भवीजनने हित दाय ॥ १ ॥ पंचमी तप आराधीए, जेम लीजीए नाण ॥ कार्तिक शुदी पांचम ग्रही, हर्ष घरो मन भाण ॥ २ ॥ पांच वरस वळी उपरे, पांच मास लगी जाणी ।। अथवा यावत् जीव लगे, आराधेा गुण खाणी ॥ ३ ॥ वरदत्तने शुणमंजरी, पंचमी आराधी ॥ अंते आराधन करी, शिवपुरने साधी ॥ ४ एणीपरे जे आराधशे, पंचमी विधि संयुक्त ।। जिन उत्तम पद पद्मना, नमी थाये शिवभक्त ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥श्री पंचमीनु चैत्यवंदन ॥ बीजें ॥ ॥ युगला धर्म निवारीओ, आदिम अरिहंत ॥ शांतिकरं श्री शांतिनाथ जय करुणावंत ॥१॥ नेमिसर बावीसमां, बालथकी ब्रह्मचारी ॥ प्रगट प्रभावी पार्श्वनाथ, रत्नत्रय आधारी ॥ २ ॥ वर्तमान शासन धणीए, वर्द्धमान जगदीश ।। पांचे जिनवर प्रणमतो, जगमा वाधे जगीस ॥ ३ ॥ जन्म कल्याणक पंचरूप,सोहमपति आवे ॥ पंच वरण कलसे करी, सुरगिरि न्हवरावे ॥ ४ ॥ पंच शिष्य अंगुठडे, अमृत संचारे ॥ बालपणे जिनराज काज, इम भगति सुधारे ॥ ५॥ पंच धाय पालिजता. योवन वय पावें ॥ पंच विषे विष वेल त्रोडि, संजम मन भावे ॥ ६॥ छंडी पंच प्रमादने, पंच इंद्री बळ मोडी ॥ पंच महाव्रत आदरे, देइ धन कोही ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #70 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६१) पंचाचार आराममा, पामु पंचम नाण ॥ पंच देह वर्जित थयो। पंच इस्वाक्षर मान ॥ ८ ॥ पंचम गति भरतार तार, पुरण परमानंद ॥ पंचमो तप आराधतां, श्री खिमाविजय जिनचंद ॥ ९॥ इति ॥ ॥ ज्ञानपंचमीनू चैत्यवंदन ॥त्रीजें ॥ श्यामल वान सोहामणा, श्रीनेमि जिनेश्वर; समवसरण बेठा कहे, उपदेश सेाहंकर. ॥ १ ॥ पंचमो तप आराधता, लहे पंचम नाण; पांच वरस पंचमासनो, ए छे तप परिणाम. ॥ २ ॥ जिम वरदत्त गुणमंजरीए, आराध्यो तप एह; ज्ञानविमळ गुरु एम कहे। धन धन जगमा तेह. ॥ ३॥ ॥ श्री अष्टमीनू चैत्यवंदन ॥ ॥ अष्टमी दिन धन जिनवरु ए, चंद्रप्रभु मनोहार || सेवा करता जेहनी, टाले भव दुःख द्वार ॥ १ ॥ भगवन् माखित जे वचन, धारे गुण भंडार ।। तेहिज अष्टमि तप भण्यु, आगम अर्थ उदार ॥ ॥२॥ ज्ञायक ज्ञेय स्वरुपयो ए, चरणधरे मुखकार ।। अष्टमि तप आराधवा, करे शुभ भाव विचार ॥ ३ ॥ अष्ट वरण अष्ट मासनी ए, तपविधि विधिमा सार || श्रावक तनमन वचनथी, पाले निरतिचार ॥ ४ ॥ पोसह पडिकमणुं करीए, पुजे जिन अंग अविकार || करुणा सागर गुण भर्या, मुनिजन वंदे विचार For Private And Personal Use Only Page #71 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६२ ) ५ ॥ आगम वयण सुणि करीए, पुछे प्रश्न विचार || गुरुगम हिने सह, समकित वड विस्तार || ६ || परम सरूप परमे सरुए, परमातम जगदिश || चंद्र प्रभु जिन अष्टमां, वंदो घरि सुजगीस || ७ || सारण वारण चोयणाए, प्रति चोयणनां जाण ॥ वख यात्र तेहने दिये, तो लहे सुख निरवाण ॥ ८ ॥ एहवी वाणी स्वमुखें, फरमावी जिनराज || भव्य जीव श्रवणे सुणी, धारो आम काज ॥ ९ ॥ मान क्रोध मद परिहरीए, धारो शुद्ध स्वभाव || आतम ज्ञान नये गृहि, आनंद घनरस पाव ।। १० ।। शांति • सुधारस गुणभर्याए, अनुभव भाव जिणंद || अचरण तेज अमृतसमो, रत्नमुनि गुणवृंद ॥ ११ ॥ उज्जल अष्टमिदिन भण्युए, समकीतीने सुखदाइ ॥ चंद्रमुनि गुण योग्यता, लहि आगम गुण छांहि ||१२|| ॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ आठमनुं चैत्यवंदन. बीजुं ॥ चैत्र वदि आठम दिने, मरुदेवी जाये || आठ जाति दिग कुमरीये, आठ दिश गायेा ॥ १॥ आठ इंद्राणी नाथभुं, सुर संग इ आवे || सुरगिरि उपर सुरवरा, सर्वे मलि आवे ||२|| आठजाति कलशा भरी, चोसठ हजार || दोयसेने पचास मान, अभिषेक उदार || ३ || एक क्रोडने साठ लाख, उंचा तीस कोश | पहुल पणे अडचाल केाश, कलशा जल कोस ॥ ४ ॥ चार हृषभ · For Private And Personal Use Only Page #72 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६३) अशंग रंग, आठे जल धारे ।। नवरावे जिनराजने, मुर पाप प. खाले ॥ ५ ॥ क्षुद्रादिक अडदोष शोष. करि अडगुण पोखे । टालि आठ प्रमाद आठ, मंगल आलेखे ॥ ६॥ क्रोड आठ वोग. गो, कंचन वरसावे ॥ प्रभु सेपी निज मातने, नंदोश्वर जावे ७॥ अठाई महोच्छव करोए, ठवणा जिन उद्देश || आठ प्रकारे पूजिए, आठम दिन सुविशेष ॥८॥ ऋषभ अजित समति नमी, मुनिसुव्रत अन्म || अभिनंदनने नेम पास, पाम्या शिव शर्म ॥ ९ ॥ संभव देव मुपास दोय.सुरभवयो चविया ॥ सेना पुरवी मौत दुग, उदरे अबतरीया ॥ १० ॥ वरस एक उद्घोषणाए, ऋषभ लीये चारित्र ।। भाठम दिन इग्यार इप, कल्यागक सुपवित्र ॥ ११ ॥ दसण नाण चारित्रना, आठे आचार ॥ टाले गाले पापने, पाळे पंचाचार ।। ॥ १२ ।। अणिमादिक अड ऋद्धि सिद्धि, क्षणमांहे पामे ।। आठे करम हणी थया || अडगुण अभिराम ॥ १३ ॥ आठभ दिन उज्वल मनेए, समरो दश अरिहंत ॥ क्षमाविजय जिन नामथी, प्रगटे झान अनंत ॥ १४ ॥ मंत्रादिक अड अष्ट बोध, पामी अहषुध ॥ खेदादिक अड दोष छेद, पडिकमणे शुद्ध ॥ १५ ॥ अद्वेषादिक आठ गुण धरे, अड मद तनिए ।। यम निय. मादिक आठ जोग, गुण संपद भजीए ॥ १६ ॥ आठम दिन आराधिये, घातको पुष्कर अर्द्ध ।। क्षमाविजय जिन विचरता,पातिहार्य समृद्ध ॥ १७ ॥ इति आठमनु चैत्यवंदन ॥ For Private And Personal Use Only Page #73 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६४) ॥ आठमनुं चैत्यवंदन त्रीजुं ॥ ॥ आठम तप आराधोए, भाव धरी उल्लास । आठ आत्मा ओळखो, पामो लील विलास ॥१॥ आठ बुद्धि गुग आदरो, बलो अष्टांग योग ।। अष्ट महा सिद्धि संपजे, न आवे रोगने शोक ॥ २॥ योगदृष्टि आठ आदरोए, मित्रादिक सुखकार || अष्ट महामद टाळोए, जेम पामो भव पार ॥ ३॥ प्रवचन माता आठने, आदरो धरी मन रंग ॥ आठ ज्ञानने ओळखो, शिव वधुनो करो संग ॥ ४ागणो संपदा आठने, आठम दोने धारो ॥ नरक तियेच गति दुःखनो, तेहनो नहीं आरो ॥५॥ आठ जात कळशे करोए, नावरावा जिनराय ॥ आठ येजिन जाडो कही, सिद्ध शिला मु. निराय ॥ ६ पूना अष्ट प्रकारनो, सम नौ करो तस मर्म ।। अष्टमी गतीने पामोए, क्षय करी आठे कर्म ॥७॥ दुर करी आठे दोषने, वेम अडगुण पालो ।। ज्ञान दर्शन चारित्रना, आठ अतिवार टाने ॥८॥ आठ आठ प्रकारनाए, भेद अनेक प्रकार || आठम दीन प्रकाशोआ, त्रिगडे बेशो सार ॥ ९ ॥ चैतर वदी आठप दीने, मरुदेवो जायो । दिक्षा पण तेहिज दोने, सुरनर मळी गायो ॥१०॥ सुमति अजितना जन्म सार, संभवाजिन च्यवन ।। आठम दिन बहु जाणजो, कल्याणक त्रिभुवन ॥११॥ अष्टकी तप भवियण करोए, कमे तपावे जेह ।। तप करतां जप संपजे, शुभ फळ पामे तेह ॥ १२ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #74 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ६५ ) ॥ एकादशोर्नु चैत्यवंदन ॥ नेमो जिनेसर गण नीली, ब्रह्मचारी सिरदार ॥ सहस. पुरुषY आदरी, दीक्षा जिनवर सार ।। १॥ पंचावनमें दिन लां, निरुपम केवलनाण | भावक जाव पडिबाधवा, विचरे महिया जाण ॥२॥ विहार करता आवियाए, बाविसमा जिनराय । द्वारिका नयरी समोसा, समवसरण तिहां थाय ॥३॥ बार परखदा तहां मली, भाखे जिनवर धर्म ॥ सर्व पर्व तिथि साचवो, जिम पामो शिव शर्म । ४॥ तव पूछ हरि नेमने, दाखो दिन मुज एक॥ थोडो धर्म कर्या यकी, शुभ फल पामु अनेक ॥ ५ ॥ नेम कहे केशव मुणो, वरस दिवसमा जोय ॥ मागशर सुदी एकादशी, ए समो अबर न कोय ।६। इणदिन कल्याणक थया, नेउ जिनना सार । ए तिथि विधि आगधतां मृत थयो भवपार ||७॥ ते माटे मोटी तिथि, आराधो मन शुद्ध ॥ अहेरत्तो पोसह करो, मन घरी आतम बुद्ध ॥ ८॥ दोढसो कल्याणक तणुं ए, गणणुं गणो मनरंग॥ मौन धरी आराधीये, जिम पामो सुखसंग ॥९॥ उजमणुं पण कीजीए, चित्त घरी उल्लास || पूठांने वीटांगणे, इत्यादिक करो खास ॥१०॥ एम एकादशी भाव , आराधे नर राय ॥ क्षायिक समकितनो धणी, जिन बंदी घर जाय ॥ ११ ॥ एकादशी भवियण करो उज्वल गुण जिम थाय || क्षमाविजय जस ध्यानथी, शुभ मुरपति गुण गाय ॥ १२ ॥ For Private And Personal Use Only Page #75 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६६ ) ॥ एकादशोनु चैत्यवंदन ॥ बीजें ॥ अग अग्यार आराधीए, एकादशी दिवसे; एकादश प्रतिमा वहो. समाकत गुण विकसे. । ११ एकादशी दिवसे यया, दीक्षा नं नाण; जन्म लह्या केइ जिनवरा. आगम रिमाण. ॥२॥ ज्ञानविमल गुण वाघतां ए, सवल कळा भंडार; अगीआरश आरा'घतो, लहीए भवनळपार. ॥ ३ ॥ ॥ एकादशी- चैत्यवंदन ॥ त्री॥ आज ओच्छय थयो मुज घर, एकादशी मंडाण; श्री जिननां त्रणसे भला, कल्याणक घर जाण. ॥ १ ॥ मुरतरु सुरमणि पुर. घट, कल्पवेली फळो म्हारे; एकादशी आराधता, बोधिबीज चित्त ठारे. ।। २ । नेमि जिनेश्वर पूजता ए, पहोंचे मनना कोड; ज्ञान विमल गुणथी लहो, प्रणमो ये कर जोड. ॥३॥ अथ मौन एकादशीना दोढसो कल्याणकनां नामर्नु चैत्यवंदन. शासन नायक जग जया, वदमान जगईश ॥ आतम हिने कारणे, प्रणम परम मुनीश ॥खट परवि जेणे वर्णवी, तेहमां अधिकी नेह ॥ एकादशी सा को नहीं, आराषो गुण गेह ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #76 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६७) मागशर शुदी एकादशी, आराधो शिश्वास ॥ कल्याणक नेर जिन तणा, एकसोने पचास ॥३॥ महायश सर्वानुभुति श्रीधर, नमि मल्लि अरनाथ।स्वयंप्रभ देवश्रुत उदय,मलिया शिवपुरसाथ॥४॥ अकलक शुभंकर सप्त नाथ, ब्रह्मेद्र गुण गांगोक ।। सांपति मुनि विशिष्ट जिन पाम्या पुन्यनीरेक ।। ५ ।। सुमदु व्यक्त कलासत, अरण योग अयोग ॥ परम सुधारति निकसतेम, पाम्या शिव संयोग ॥६।। सर्वार्थ हरिभद्र मगधाधिप, पग्रच्छ अक्षाममलयसिंह। दिनरुक धनद पोषध तथा, जपतां सफळि जिह ॥ ७॥ मलब चा. रित्र निधि प्रशम राजित, स्वामी विपरित प्रसाद ।। अघटित भ्रमगेंद्र ऋषभचंद्र, समया शिव अश्वाद ॥ ८॥ दयांत अभिनंदन रत्नेश ते, सामकोष्ट मरुदेव अतिपार्श्व ।। नंदिषेण व्रतधर निर्वाण तथा, थाये शिव सुख आस ॥ ९ ॥ सौंदर्य त्रिविक्रम नरसिंह, क्षेमंत संतोषित कामनाथ ॥ मुनि नांथचद्र दाहदिलादित्य. मळीयो 'शिवपुर साथ ॥ १० ॥ अष्टादिक वर्णिक उदयज्ञान, तमोकंद सायकांक्ष खेमंत ॥ निर्वाणिक रवि राज प्रथम. नमतां दुःखनो अंत ॥ ११ ॥ पुरुरवास अवबोध विक्रमेंद्र, सुशांति हरदेव नंदि"केश ॥ महामृगंद्र अशोचित धमेंद्र, संभारो नाम निवेश ॥ १२ ॥ अश्ववंद कुटलिक बर्द्धमान, नंदिकेश धर्मचंद्र विवेक ॥ कलापक विसोम अरणनाथ, समयो गुण अनेक ॥ १३ ॥ प्रण पदे प्रण चोवीसीयो, पदे पदे कोठो जाण ।। चोथा पदमा भावना, पाराधी गुण खाण ॥१४॥ दीसी करपाणक तणो, गुणणो ए मनोहार। For Private And Personal Use Only Page #77 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (६८) वित्त आणीने आदरो, जिम पामो भवपार ॥ १५ ॥ जिनवर गुणमाला, पुन्गनी ए मनाला || जे शिव मुख रसाला, पामोये मूविशाला । जिम उत्तम थुणीजे, पाद तेहना नमोजे जिनरूप ममरीजे, शिव लक्ष्मी वरीजे ॥ १६॥ इति दोढसो कल्याकनुं चैत्यवंदन संपूर्ण ॥ ॥ बोजु ॥ ॥ विश्वनायक मुक्तिदायक नमि नेमि निरंजनं, हर्षधरी हरी पूछे प्रभुने भाखो आतिम हितकरं ॥ कुण दिवस एवो वरसमांहे अल्प सुकृत बहुफले, कहे नेउ जिननां हु कल्याणक मौन अग्यारमो मुखकरं ॥ १ ॥ केवळि महोजस सर्वानुभूति श्रीधर. नाथए, नमि मल्ली श्री अरनाथ स्वामी साचो शिवपुर साथए । श्री स्वयंप्रभ देवश्रुत अरहंत रदयनाथ जिनेश्वरं, कहे नेउ जिनेनां हुआ कल्याणक मौन अग्यारसो मुखकरं ॥ २ ॥ अकलंक कर्म कलक टाले. शुभकरं समरु सदा; सप्तनाथ ब्रह्मेद्र निनवर श्रीगुणनाथ नमु मुदा ॥ गांगिकनाथ श्री सांप्रति मुनिनाथ विशिष्ट अतिवर ॥ कहे० ॥ ३॥ श्रीमृदु जिनजी जगतवेत्ता व्यक्त अरिहा बीए, श्री कलासत आरण ध्याता सहज कम निकंदीए ॥ जोग "अजोगश्री परमप्रभुजी सुद्धात्तिनी केसरं ॥ कहे० ॥४॥ श्री सार्थ सकल शायक हरिभद्र अरिहंतए, मगधाधिप जिनेंद्र वंदो श्रीपबछ गुणवंतए । अक्षोभ मल्लसिंहनाथ दिनरुक् धनंद पोषद For Private And Personal Use Only Page #78 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ६९ ) जयकरं ॥ कहे० ॥ ५॥ श्रीयलंब चारित्रनिधि जिन प्रशमराजित ध्याइए, स्वामोश्री विपरीतदेव अहोनीश प्रसाद प्रेमे गाइए । अघटितज्ञानो ब्रह्मेद्र प्रभु ऋषभचंद्रनो अघहर ॥ कहे० ॥ ६॥ दयांत दाता जगत केरो अभिनंदन रत्नेशए, सामकोष्ट मरुदेव नायक अतिपाप विशेषए ॥ नमो नदिषेण व्रतधर श्रीनिर्वाणो दुःखहरं ॥ कहे० ॥ ७ ॥ सौंदर्यज्ञानी त्रिविक्रम जिन नारसिंह नमो तुमे, खेमंत संतोषित अरीहा कामनाथथी दुःख समे ।। मुनिनाथने श्रीचंद्रदाहए दिलादित उदयकरं ॥ कहे० ॥ ८॥ श्री. अष्टाहिक वाणिग वंदो उदयज्ञान आराधिये, तमोकंदने सायकाक्ष स्वामीखेमंत शिवमुख साधिये । निर्वाणीने रविराज साहिब प्रथम नाथ परमेश्वरं । कहे ॥ ९॥ श्री परुरचास अवबोध जगगुरु विक्रमेंद्र वखाणीये, श्रीस्वसाति हरिनंदिकेशने महामृगेंद्र मन आ. जीए ॥ अशोकचित चित्तमां बसे अहनोश धर्मेंद्र जगजम कर ॥ कहे० ॥ १०॥ अश्ववंद कुटिलक वर्तमान नंदिकेशना गुणघणा, श्रीधर्मचंद्र विवेक जगपति कलापक सोहामणा ॥ विसोम सौम्याकृति जेनी आरणअंगि मुखकरं ॥ कहे० ॥ ११ ॥ त्रीस चोवीसी दशे खेत्रे कालत्रिक जिन लीजीए, पंचकल्याणक त्रोस जिननां इम दोढसो गुणोजोए । जिनभक्ति करतां ध्यान धरता काटि तप फळ होइनरं ।। कहे ॥१२॥ पोषधने उपवास करोने आराधे एकादशो नरभव तेहनो सफल थाये परमानंद पद देहसी ।। गुरु रुपकीति हृदय धरीने माणेक मुनि शिव सुखकरं ॥ कहे० ॥ १३ ।। इति मौन एकादशी दोढसो कल्याणक नामर्नु चैत्यवंदन संपूर्णम् ॥ For Private And Personal Use Only Page #79 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७०) ॥ चौदश तिथिर्नु चैत्यवंदन ॥ १ लं॥ चौद स्वप्न लहे मावडी, सवि जिनवर केरी; ते जिन नमतां चौद राज, लोके न होय फेरी. ॥१॥ चौदरत्नपति जेहना, प्रणमे पद आवी; चौद विद्यानाथया जाण, संयमश्री भावी. ॥२॥ चौदराज शिर उपरे, सिद्ध सकळ गुण ठाण; ज्ञानविमल प्रभु ध्यानथी, होय अचळ अहिठाण ॥ ३ ॥ ॥ चौदश तिथिर्नु चैत्यवंदन ॥ ५ जुं ॥ _ चौद भुवन वश कारणे, विद्या वर्धमान; वर्धमान सुख आपवा, एहीज परम निधान. ॥ १॥ वर्धमान जिनराजनुं, करो भक्किा ध्यान चौद भेद छे जीवना, ए यतना प्रधान. ॥२॥ चाद पूर्वनो सार छे ए, चौदशी ए जिनराज; ज्ञानविमळ्थी जाणीए, एहना सकळ दीवाज. ॥३॥ ॥ पंच तिथि महिमा वर्णन चैत्यवंदन ॥ राजग्रही उद्यानमां, वीर जिनेश्वर आव्या; देवइंद्र चोसठ मळ्या , प्रणमे प्रभु पाया. ॥ १॥ रजत हेम मणि रयणनां, तिहुयण कोट बनाय; मध्य मणिमय आसने, बेठा श्री जिनराय.२॥ चरविह धर्मनी देशना, निमुणे परषदा बार; तव गौतम महारायने, पूछे पर्व विचार. ॥३॥ पंचपर्वी तुमे वर्णवी, तेमां अधिको For Private And Personal Use Only Page #80 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ७१ ) कोण; वीर कहे गौतम सुणो, अष्टमी पर्व विषेण ॥ ४ ॥ बीज भवी करतां थका, बीहुविध धर्म मुणंत; पंचमी तप करता था, पांचे ज्ञान भणंत ॥ ५ ॥ अष्टमी तप करतां थकां. अष्ट कर्म हणंत; एकादशी करता थकां, अंग अगोआर भणत. ॥ ६॥ चौद पूरवघर भला ए, चौदश आराधे; अष्टमो तप करता थका, अष्टमो गति साधे ।। ७ ॥ दंडविरज राजा थयो, पाम्यो केवळनाण; अष्टमी तप महिमा वडो, भाखे श्री जिनभाण. ॥ ८ ॥ अष्ट कर्म हणवा भणीए, करीए तप सुजाण; न्यायमुनि कहे भवी तुभे, पामो परम कल्याण. ॥९॥ ॥ श्री महावीर स्वामाना पंचकल्याणकर्नु चैत्यवंदन ॥ सिदारथ सुत वंदीए, त्रिशलादेवी मायः क्षत्रियकुंडमां अबतर्या, प्रभुजी परम दयाळ. ॥१॥ उजळी छठ आषाढनी, उत्तरा फाल्गुनी सार; पुष्पोत्तर विमानथी, चवीआ श्री जिनभाण ॥२॥ लक्षण अडहिय सहन ए, कंचनवर्णी काय; मृगपति लंन पाउले, वीर जिनेश्वर राय. ॥ ३ ॥ चैत्र शुदि तेरश दिने, जन्म्या श्री जिनराय; सुरनर मळी सेवा करे, प्रभुनु जन्म कल्याण. ॥ ४ ॥ मागशर वदि दशमी दिने, लीए प्रभु संजम भार; चउनाणी जिनजी थया, करवा जग उपकार. ॥ ५ ॥ साडाबार वरस लगे, सह्या परिषह घोर; घनघाती चउ कर्म जे, वजे कया चकचुर. For Private And Personal Use Only Page #81 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७२) वैशाक शुदि दशमी दिने, ध्यान शुकल मन ध्याय, शमी वृक्ष तळे प्रभु. पाम्या पंचम नाण ।। ७ ॥ संघ चतुर्विध स्थापना, देशना बीए महार; गोतम आदि गणधरू, कर्या वजोर हजुर. ॥ ८॥ कालिक वदि मानास दिने, श्री वोर लह्या निर्वाण; प्रभाते इंद्रभूतिन, प्राप्यु केवळ नाण. ॥ ९ ॥ ज्ञान गुणे दीवा कर्या ए, कार्तिक कमला सार;पुण्ये मुक्ति वधू वया,वरती मंगळ माळ.॥१०॥ श्री अतीत चोवीशी चैत्यवंदन. अनीत चोवीशी प्रथम देव, जिन केवळ ज्ञानो । निर्वाणी सागर महा जस, विमळ अभिधानी ॥ १ ॥ सर्वानुभूति श्रीधर मुदत्त, दामोदर सुतेजा; स्वामी मुवत सुमति ने, शिवगति सुहेजा ॥ २ ॥ अस्ताघ नेमिश्वर अनिल, यशोधर कृतार्थ जिनेश; शुद्धमति ने शिवकरी, स्पंदन संपति कहेश ॥ ३ ॥ श्री सिद्ध भगवाननु चैत्यवंदन. सिद्ध सकळ समरं सदा, अविचळ अविनाशो; थाशे ने बळी थाय छ, यथा अडकर्म विनाशी ।। १॥ लेोकालोक प्रकाश भास, कहेवा कोण शूरो; सिद्ध बुद्ध पारंगत, गुणथी नहीं अधूरो ।।२।। अनंत सिद्ध एणोपरे नमुं ए, वळो अनंत अरिहंत; ज्ञानविमळ गुण संपदा, पाम्या ते भगवंत ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #82 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७३) श्री परमात्मानुं चैत्यवंदन. 4 ૧ जगन्नाथने हुं नमुं हाथ जोडी करूं विननि भक्तिशुं मान मोडी || कृपानाथ संसार कूपार तारो, लह्यो पुण्यथां आज देदार सारो || १ | सोहिला मळे राज्यदेवादि भोगो, परम दोहिलो एक तुज भक्ति जोगो ॥ घणा काळधी तुं लह्यो स्वामी मीठो, प्रभु पारगामो सहु दुःख नीठो ॥ २ ॥ चिदानंदरुपी परब्रह्म लीळा. विलासी विभो त्यक्त कामानि कीलाः गुणधार जोगोश नेता अमायी, जय त्वं विभा भूतळे सुखदायी ॥ ३ ॥ न दोठी जेणे ताहरी जोग मुद्रा, पड्या रात दिसे महा मोहनिद्रा; केसी तास होशें गति ज्ञान सिंधो, भवतां भवे हे जगजीव बंधो ॥ ४ ॥ सुधास्पंदिते दर्शन नित्य देखे, गणुं तेहनो हे विभो जन्म लेखे; स्वदाज्ञा वशे जे रह्या विश्वमां, करे कर्मनी हाण क्षण एकमहे ॥ ५ ॥ जिनेशाय नित्ये प्रभाने नमस्ते भवी ध्यान होजो हृदये समस्तेः स्तवी देवना देवने हर्ष पूरे, मुखांभोज भाळी भजे हे उरे || ६ || कहे देशना स्वामी वैराग्य केरी, सुणे पर्षदा बार बेठी भलेरी सुत्रांभोज धारा समी ताप टाळे, बेहु बांधवा सांभळे एक ढाळे | ७ ॥ ॥ अथ चउदसें बावन गणधरनु चैत्यवंदन ॥ || गणधर चारासो कहा || बलि पंचाणु छेक ॥ दोय अधिक इगसयगणा || सोल अधिक सत एक ॥ १ ॥ सत १ समुद्र. For Private And Personal Use Only Page #83 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७४) सुपतिने गणधरा ॥ इगसय अधिका सात ॥ पंचांणुं त्राणु तथा, अडशोइ इगशोइ बात।।२॥छोहोतर छामठ मगवन, पंचासत्रेतालीस।। छतीस पणतीस कुंथुने ॥ अर गणधर तेत्रीस ॥ ३ ॥ अडविस अष्टादश मुण्या । नमी सतर गणधार । एकादश दश शिव गया। वीरतणा अगोर ॥ ४ ॥ रुषभादोक चोवासना ए। एक सहस सय च्यार ॥ अघोकेरा बावन कह्या ॥ सर्व मळो गणधार ॥५॥ अक्षय पद वरीया सवे ए ॥ सादी अनंत नीवास ॥ करीए सुभचित वंदना । जब लग घटमां सास ॥ ६ ॥ इति ॥ श्री बावन जिनालयनुं चैत्यवंदन. शुदि आठम चंद्रानन. सर्वज्ञानी गणोजे; ऋषभानन शुदि चौदशे, शाश्वत नाम भणीजे ॥१॥ अंधारी आठम दिने, वर्धमान जिन नमीए ॥ वारिषेण वद चौदशे, नमतां पाप निगमी. प.॥२॥ बावन जिनालय तप ए, गुण गणणो सुखकार ॥ श्री शुभ वास्ने शासने, करीए एक अवतार ।। ३ ।। प्रदक्षिणानु चैत्यवंदन काळ अनादि अनंतथी, भवभ्रमणनो नहीं पार ॥ ते भ्रमणा निवारवा, प्रदक्षिणा दरं त्रण वार. भमतीमा भमतां थका, भवभावठ दूर पळाय.। दर्शन झान चारित्ररुप, प्रदक्षिणा प्रण देवाय ॥ २॥ जन्म मरणादि भय टळे, सीजे जा दर्शन काज ॥ For Private And Personal Use Only Page #84 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७५) रत्नत्रय प्राप्ति भणी, दर्शन करो जिनराज ॥ ॥ ज्ञान वर्ल्ड संसारमा, ज्ञान परम सुखहेत ।। ज्ञान विना जग जीवडा, न लहे तच्च संकेत ।। ४ ।। चए ते संचय कर्मनो, रिक्त करे वळी जेह ।। चारित्र नियुक्तिए कां, वंदो ते गुण गेह ॥ ५॥ दर्शन ज्ञान चा. रित्र ए, रत्नत्रयी निरधार; त्रण प्रदक्षिणा ते कारणे, भवदुःख भंजनहार ॥ ६॥ विहरमान जिन चैत्यवंदन. चउ जिन जंबुद्वीपमा, अड घातकीखंडे ॥ पुष्करार्धे आठ जा. णीए, एम वीश अखंडे ॥ १ ॥ अड पणवीश चोवीशमी, नवमी विजये विचरंता ॥ बाळ तरुण नृपपदपणे, वळो अपर अरिहंता ॥२॥ शीत्तेर सेो उत्कृष्टथी ए, भरहेरवय प्रमाण ॥ ज्ञानविमळ जिनराजनी, शीर घरीए शुभ आण ॥ ३ ॥ १३ अढार दोष वर्जित जिन चैत्यवंदन. (१ लं) दान लाभ भोगोपभोग, बळ पण' अंतरायः हास्य अरति रति भय दुगंछा, शोक घट' कहेवाय. ॥ १ ॥ काम मिथ्यारक अज्ञान निद्रा, अविरति ए पांच; राग द्वेष दोय दोष ए, अट्ठारस संच. ॥ २॥ ए जेणे दूरे कर्या ए, तेने कहोए देव, ज्ञानविमल प्रभु चरणनो, कीजे अहोनिश सेव. ॥ ३ ॥ For Private And Personal Use Only Page #85 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७६) अढार दोष वर्जित जिन चैत्यवंदन. (२ जु). क्रोध मान मद लोभ माय, अज्ञान अरति रति; हिंसादिक निद्रा अने, मत्सर ने अमोति. ॥ १ ॥ शोक, भय, अने भीति, रतिक्रीडाप्रसंग; दोष अढार प्रगेट निकट, नहीं जेने अंग. ॥२॥ देव सर्वे शिर सेहरो ए, ते कहोए निरधार; ज्ञान विमळ प्रभु भुवननो, पुण्यवणो भंडार. ॥ ३ ॥ ॥ रोहिणी तप चैत्यवंदन ॥ वासवपूजित वासुपूज्य, वर अतिशय धारी; केवळकमला नाथ साथ, अविरति जेणे वारो. ॥१॥ परमातम परमेसरु ए, भविजन नयनानंद शांत दांत उत्तम गुणो, वर ज्ञान दिणंद. ॥२॥ बेठी बारे पर्षदा, निमुणे जिन गिर्वाण; एक चित्त लय लाइए, देइ निज कान. ॥ ३ ॥ तव जगपति तिहां उपदिशे, रोहिणी तप मुविचार; आराधो भवि भावशुं, आतपने सुखकार. ॥ ४ ॥ सात वर्ष सात मासनी, अवधि कही सुप्रमाण; आराधे सुख संपदा, पापे पद निर्वाण. ॥ ५॥ वाचक शुभ नय शिष्यनो ए, भक्तिविजय गुण गाय; वासुपूज्य जिन ध्यानयो अभुभव मुख थाय ॥६॥ १ पांच. २ छ. ३ हिंसा-असत्य ने अदत्त. ४ आने बदले मागधी गाथाओमां हास्य कहेल छे. For Private And Personal Use Only Page #86 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir । ७७) ॥ श्री बांबिल वर्धमान तपर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ वर्द्धमान जिनपति नमी, वर्द्धमान तप नाम ॥ ओली आं. बिकनी करूं, वर्तमान परिणाम ॥ १॥ एक एक दिन यावत् शत, ओली संख्या थाय ॥ कर्म निकाचित तोडवा, बज्र समान गणा. य॥ २ ॥ चोद वर्ष त्रण मासनी, ए संख्या दिननी वोस । यथा विधि आराधतां, धर्मरत्न पद इश: ३ ।। ॥ वोस स्थानक नाम चैत्यवंदन लिख्यते ॥ ॥ पहिले पद अरिहंत नमुं॥ विजे सरव सिद्ध ॥ 'पीजे प्रव. चन मन धरो ॥ आचारज सिद्ध ॥१॥ नमोथेराणं पांचमे ।। पाठक गुण छठे ॥ नमोटोए सनसाहूणं, जे छे गुण गरीठे ॥२॥ नमो नाणस्स पाठमे ॥ दरसण मन भावो ॥ विनय करो गुणवंतनो॥ चारित्र पद ध्यागे ॥ ३ ॥ नमो बंभवप धारिणं ॥ तेरमें कीरीयाणं ॥ नमो तवस्स चौदमे ॥ गोयम नमोजिमाण ॥४॥ चारित्र ज्ञान सुअस्सनें ए, नमो तीथ्यस्त जाणो ।। जिन उत्तम पद पाने, नमतां होय सुख खाणो ॥ ५॥ इति संपूर्ण ॥ ॥ वीसस्थानक तपना काउसगर्नु । चोवीस पर पीस्ताले सनो, छत्रीशनो करीए ॥ दस परबीस सत्तावीसनो, काउसग्ग मन घरीए ॥ १॥ पंच सहसठि दस For Private And Personal Use Only Page #87 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७८) थली, सितेर नव पणविस ॥ बार अडवीस लोगसतो, काउसग्ग धरो गुणीस ॥ २ ॥ वीस सतर इगवन्न, द्वादशन पंच ॥ इणीपरे काउसग्ग जो करे, तो जाए भव संच ॥ ३ ॥ अनुक्रमे काउसम्ग मने धरो, गुणो लेज्यो वीस ॥ वीस थानक इम जाणीए, संक्षेपथी लेश ॥ ४॥ भाव धरी मनमा घणाए, जो एक पद आराधे।। जिन उत्तम पद पद्मने । नमी नीज कारज साधे ॥ ५॥ इति संपूर्णम् ।। थोयानो संग्रह. ॥ श्री ऋषनदेवजीनी स्तुति ॥ ॥ मह उठी वंदूं, ऋषभदेव गुणवंत ॥ प्रभु बेठा सोहीये, समवसरण भगवंत ॥ त्रण छत्र विराजे, चामर ढाले इंद्र ॥ जिनना गण गावे, सुरनर नारीना वृंद ॥१॥ बार परवदा बेसे, इंद्र इंद्राणी राय । नव कमळ रचे मुर, जिहां ठविया प्रभु पाय ॥ देव दुदभी वाजे, कुसुम दृष्टि बहु हुंत ॥ एवा जिन चोवीसे, पूजो भवि एक चित्त ॥ २॥ जिनजोजन भूमी, वाणीने विस्तार ॥ प्रभु अरय प्रकाशे, रचना गणधर मार ॥ सो आगम सुणतां, दीजे गती चार ॥ जिन वचन घखाणी, लहीये भवनो पार ।। ३॥ जक्ष गोमुख गीरवो, जिननी भगती करेव ॥ तिहां देवो चकेसरी, विधन कोड हरेक ॥ श्री तपगच्छ नापक, विजयसेन मुरि। जय ।। सकेरो श्रावक, ऋषभदास गुण गायः।। ४ ॥ईमि ॥ For Private And Personal Use Only Page #88 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (७९) । बीजो थोष जोडो॥ । व्याशीलाख पुरव घरवासे, वसीया परिकर युक्ता जी ॥ जनम थको पण देवतरु फल. क्षोरोदधि जल भोक्ता जी ॥ मई सुअ ओहि नाणे संयुत्त, नयण वयण कज चंदा जी ।। चार सहसशुं दीक्षा शिक्षा, स्वामी ऋषभ जिणंदा जी ।। ॥ मनपर्यव तव नाण उपन्यु, संयत लिंग सहावा जो ।। अढिय द्वोपमा सन्नी पंचेंद्रिय, जाणे मनोगत भावा जी ॥ द्रव्य अनंता सूक्ष्म तीर्छा, अढारशे खित्त ठाया जी ॥ पलिये असंखम भाग त्रिकालिक, द्रव्य असंख्य परजाया जी ॥ २॥ ऋपभ जिणेसर केवल पामी, रयण सिंहासण ठाया जी ॥ अनभिलप्प अभिलप्प अनंता, भाग अनंत उच्चराया जी ॥ तास अनंतमे भागे धारी, भाग अनंते सूत्र जी ॥ गणधर रचियां आगम पुजी, करीये जनम पवित्र जी ॥ ३ ॥ गोमुख जक्ष चकेसरी देवी, समकित शुद्ध सोहावे जी ॥ आदि देवनी सेव करती, शासन शोम चढावेजो ॥ श्रद्धा संयुत जे व्रतधारी, विधन सास निवारे जी॥ श्री शुभ वीरविजय प्रभु भगते, समरे नित्य सवारे जी ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ श्री अजितनाथजीनी स्तुति ॥ . विश्वनायक कायक, जित, विजयानंद ॥ पयजुग निव मणमे, देव अने देविंद ।। भाव बहिरी गहिरी संव, मन घरीये भमंद॥ श्री सूरत सहिरे, वेदो अनित निणद ॥ १॥ आठ मावी For Private And Personal Use Only Page #89 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८०) हारज, अतिशय वलि चौतीस ॥ दिल रंजण देसन, तेहना गुण तीश ॥ अगणित रिद्ध धाग. आचारीमा ईस ॥ एह गुणना धारक, वांदु जिन चोवीश ।। २ ।। शुद्ध अरथ अनोपम, जिन भाषित सिद्धांत ।। स्याद्वाद नगदिक, हेतु युक्त नवि भ्रांत ।। पाप करदम पाणी, सदगतिनी सहिनाणी ॥ मुणिये नित भविका, आगम केरी वाणी ॥ ३॥ सासणनी साची, देवी सानिध्य कारी। दु:ख कष्ट निवारण, सेवीजे सुखकारी ॥ साचे मन समरे, ते सुख लाभ अपारी ॥ जिनलाभ पयंपे, होज्यो जय जयका. री॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ श्री शीतलनाथ जिन स्तुति ॥ ॥ मुख समकित दायक, कामित सूरतरु कंद ॥ दृहरय नृप राणी, नंदा केरो नंद ॥ भद्दलपुर स्वामी, फेडे भवना फंद ॥ चित चोखे नमिये, श्री शीतल निनचंद ॥ १ ॥ अतित अनागत, हुआ होस्ये अनंत ॥ संपति काले जे, क्षेत्रविदेहे विचरंत ॥ त्रिहुं भवने ठयणा, सायस असासय संत ॥ ते सघला त्रिकरण, प्रणमुं श्री अरिहंत ॥ २ ॥ कालिक उत्कालिक, अंग अनंग पविठ॥ नय भंग निक्षेपा, स्यादवाद मित सिठ ॥ भविजन उपगारी, भारी जिन उपदेश ॥ श्रुत श्रवणे मुणता, नासे कोडि कलेश ॥ 3 ॥ ब्रह्म नक्ष अशोका, शासन सुरि सुविचार ॥ संघ सानिध कारी, निरमल समकित धार ॥ चिंता दुख चूरे, पुरे मनह जंगीस ॥ ध्यान तेहनों धरीये, कहे जिन छाभ सूरीस ।। ४ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #90 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८१) ॥ श्री शांतिनाथजीनी स्तुति ॥ ॥ शांति जिनेसर समरिये ॥ ए देशी ॥ ॥ शांति मुहंकर साहिबो, संयम अवधारे ॥ सुमतिने घरे पारगुं, भवपार उतारे ॥ विचरंता अवनी तले, तप उपविहारे ॥ ज्ञान ध्यान एक तानथी, तिर्यचने तारे ॥ १॥ पास वीर वासु. पूज्यने, नेम मल्ली कुमारी । राज्य विहूणा ए थया, आपे व्रतधारी । शांति नाय प्रमुखा सवि, लही राज्य निवारी ॥ मल्ली नेम परण्या नहीं, बीजा घरबारी ॥२॥ कनक कमल पगलां ठवे, जग शांति करीजे ॥ रयण सिंहासने बेसीने, भली देशना दीजे ॥ योगावंचक माणीयां, फल लेतां रीझे ।। पुष्करावर्तना मेघमा, मगसेल न भीजे ॥३॥ क्रोडवदन शुकरारुढो. श्याम रूपे चार ॥ हाथ बीजोरु कमल छे, दक्षिण कर सार ॥ जक्ष गरुड वाम पाणीये, नकुलाक्ष रखाणे | निर्वाणीनी वात तो, कवि धीर ते जाणे ॥४॥ इति ॥ ॥बीजो थोय जोडो ॥ ॥ श्रीशांति जिणेसर समरिये, जेहनी अचिरा माय ॥ विश्वसेन कुल उपना, मृग लंछन पाय ॥ गजपुर नयरीनो धणी, सेविन वर्णी काय ॥ धनुष चालीव जस देहडी, वरष लाखनुं आय ॥१॥ शांति जिनेसर सेोपमा, चक्री पंचम जाणुं ! कुंथुनाय चक्री छठा, अरनाथ बखाणं । ए त्रणे पनी सही, देखी आणंदुं ॥ संयम लेइ For Private And Personal Use Only Page #91 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८२.) मुगते गयानित्य उठी बंदु ॥२॥ शांति जिनेसर केवली, पेठा धर्म प्रकाशे ॥ दान शोयल तप भावना, नर सोहे अभ्यासें ।। एह वचन जिनजी तणां, जिणे दियडे धरियां ॥ सुणतां समकित निर्मळ, दीसे केवल वरिया ॥ ३ ॥ समेत शिखर गिरि उपरे, जइने अणसण कीधुं ॥ काउसग्ग मुद्रायें रखा, तिणे मुगतिज लीधुं ॥ गरुड यक्ष समरु सदा, देवी निर्वाणी ।। भविक जीव तुमे सांभलो, रिख. भदासनी वाणी ॥ ४ ॥ इति । ॥ अथ श्री नेमनाथ जिन स्तुति ॥ ॥ कनक तिलकभाले । ए देशी ॥ ॥ दुरित भय निवारं, मोह विध्वंसकारं । गुणवत मविकारं, मासिद्धि दारं ॥ जिनवर जयकारं, कर्म संक्लेश हार, भवाल निधितारं, नौमि नेमिकुमारम् ॥ १ ॥ अड जिनवर माता, सिद्धि सौधे प्रयाता ।। अह जिनवर माता, स्वर्ग श्रीजे विख्याता ॥ अर जिनवर माता, प्राप्त माहेंद्र स्याता ॥ भव भय जिन पाता, संतने सिद्धि दाता ॥ २ ॥ ऋषभ जनक जावे, नागपुर भाव पावे ॥ इशान सग कहावे, शेष कांता सभाधे ॥ पदमासन मुहावे, नेम आत पावे ॥ शेष काउस्सग्ग भाषे, सिदि सूत्रे पठाये ॥३॥ दाइन पुरुष जाणी, कृष्ण वर्णे प्रमाणी ॥ गोमेधने पट पाणी, सिंह घेठी वराणी ॥ तनु कनक समाणी, अविका पार पाणी ।। मेम भगवि भराणी, वीरविनवे पलानी ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #92 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८३) ॥बीजो थोय जोमो॥ ॥ गिरनार विभूषण, निषण सुखकार ॥ श्री नेमि जिनेसर, अलवेसर आधार ॥ प्रभु वंछित पूरे, दुःख चूरे निरधार ॥ बहु भावे वंदा, राजिमती भरतार ॥ १ ॥ वैमानीक प्रभु दश, भुवनाधीश वरवीश ॥ ज्योतिषी पतिदोय, व्यंतर पति बत्रीश ॥ इय चउसठि इंद्रे, पूज्या जिन चावीश ॥ ते जिननी आणा, शिरवहुं हुं निशदीश ॥ २ ॥ त्रिभुवन जिनवंदन, आनंदन जिन वाणी॥ सिंहासन बेसी, उपदेशी हित आणी ॥ जेह मांहे बखाणी, जीवदया मुणो प्राणी ॥ ते वाणी आराधी, वरीये शिव पटराणी ॥३॥ संघ सानिध्य कारी; जय कारी वरदाई । शासन रखवाली, विधन हरे अंबाई ।। बावीशमा जिननी, सेवा करो चित्त लाई, बुध मीतिविजय कहे, मुख संपद में पाई ॥ ४ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री पार्श्वनाथजीनी थोय जोमो ॥ ॥ प्रणमुं नित्य पास चिंतामणि, सेाहे तस सप्त फणामणि ।। सस महिमा मही मांहेज घणी, मुमसन्न सदा मुझ जगत धणी॥१॥ बंदुं हुं अतीत अनागता, वीश विहरमान चारे शावता ॥ संपई मिनवर सवि वेदीयें, मनमोहन देखी आणंदीये ॥२॥ भरपरें गाजे मेहलो, सांभळतां अधिक स्नेहला ॥ एहवो आगम जिनवर भौखियो, सहु गणधर मलि परकाशियो ॥३॥ श्री पास परण For Private And Personal Use Only Page #93 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( ८४ ) सेवा सदा, जेही छहियें सुख संपदा || दया कुशल कहे सेा भग, संघ विघन हरे पमाव || ४ || इति ॥ Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ॥ बीजो थोय जोमो ॥ || सुविधि सेवा || ए देशी. ॥ || पास जिणंदा वामा नंदा, जब गरमें फली || सुपना देखे अर्थ विशेषे, कहे मघवा मली || जिनवर जाया सुर हुलराया, हुआ रमणि प्रिये ॥ नेमी राजी चित्त विराजी, विलोकित व्रत लीये ॥ १ ॥ वीर एकाकी चार हजारे, दीक्षा धुर जिनपति ॥ पासने मल्लि त्रय 'शत साथै, बीजा सहस्त्रे व्रती ॥ षट शत साथै संयम धरता, वासुपूज्य जग धणी । अनुपम लीला ज्ञान रसीला, देजो मुझने घणी || २ || जिनमुख दीठी वाणी मीठी, सुरतरु बेडी ॥ द्वाख विहासे गई वनवासे, पीले रस सेडी || साकर सेती, तरणा लेती, मुखे पशु चावती || अमृत मीढुं स्वर्गे दीतुं, सुरवधू गावती ||३|| गजमुख दक्षा वामन यक्षौ, मस्तके फणावळी ॥ चार ते बांदी, कच्छप' वाही, काया जस शामली ॥ चकर प्रौढा नागारूढा, देवी पद्मावती ॥ सेावन कांति प्रभु गुण गाती, बीर घरे आवती ॥ ४ ॥ इति ॥ १ प्रणशे. २ काचबाना वाहन वाळा, For Private And Personal Use Only Page #94 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८५) ॥ अथ श्री महावीर स्वामी जिन स्तुति ॥ ॥ गौतम बोले ग्रंथ संभाली ॥ ए देशी ॥ ॥ वीर जगत्पति जन्मज थापे, नंदन निश्रित शिखर रहावे, आठ कुमारी गावे ॥ अड गजदंता हेठे वसावे, रुचक गिरिथीं छत्रीश जावे, द्वीप रुचक चउ भावे ॥ छप्पन दिगकुमरी हुलरावे, 'सूती करम करी निज घर पावे, शक्र सुघोषा वजावे ॥ सिंहनाद करी ज्योतिषी आवे, भवन व्यंतर शंख पडहे मिलावे, सुरगिरि जन्म मल्हावे ॥१॥ ऋषभ तेर शशि सात कहीजे, शांतिनाय भव वार सुणीजे, मुनिसुव्रत नव कीजे ॥ नव नेमीश्वर नमन करीजे, पास प्रभुना दश समरीजे, वीर सत्तावीश लीजे ॥ अजितादिक जिन शेष रही जे, त्रण्य त्रण्य भव सधले ठवीजे, भव समकितथी गणीजे ॥ जिन नामबंध निकाचित कीजे, त्रीजे भव तप खंती धरीजे, जिनपद उदये सीझे ॥२॥ आचारांग आदे अंग अग्यार, उववाई आदे उपांग ते वार, दश पयन्ना सार॥ छ छेद सूत्र विचित्र प्रकार, उपगारी मुलमूत्र ते चार, नंदी अनुयोग द्वार ॥ ए पीस्तालीश आगम सार, मुणतां लहीये तत्व उदार, वस्तु स्वभाव विचार ।। विषय भुजंगिनी विष अपहार, ए समो मंत्र न को संसार, वीर शासन जयकार ॥ ३ ॥ नकुल बीजोरु दोय कर झाली, मातंग मुर शाम कंती 'तेजाली, वाहन गज शूढाली ॥ सिंह उपर बेठी १ सुवाषड. २ तेजस्वी. For Private And Personal Use Only Page #95 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achana पढीयाली, सिद्धायिका देवी लटकाली, हरितामा चार भुजाली ॥ पुस्तक अभया जिमणे झाली, मातु लिंगने वीणा रसाली, बाम भुजा नहिं खाली॥ शुभगुरु गुण प्रभु ध्यान घटाली, अनुभव नेहशुं देती ताली, वीर वचन टंकशाली ॥ ४ ॥ इति ॥ श्री महावीर स्वामीनी स्तुति. गंधारे महावीर जिणंदा, जेने सेवे सुर नर इंदा, दीठे परमानंदा; चैत्र शुद तेरस दिन जाया, छपन दिक कुमरी गुण गाया, हरख घरी हुलराया; त्रीश वरस पाळी घरवास, मागशर बद दशमी व्रत जास, विचरे मन उल्लास; ए जिने सेवो हितकर जाणी, एहथी कहीए शिव पटराणी, पुण्य संणी ए खाणी ॥ १ ॥ ऋषभ जिनेवर तेर भव सार, चंद्र प्रभु भव आठ उदार, शांति कुमर भव वार; मुनिसुव्रत ने नेमकुमार, ते जिनना नव नव भक सार, देश भव पार्थकुमार; सत्तावीश भव वीरना कहीए, सेतर जिननां प्रण प्रण लहीए, जिन वचने सहीदए; चौवीश जिननी एह विचार, एहथी लहीए भवनो पार, नमतां जय जयकार ॥२॥ वैशाख शुद दशमी कही नाण, सिंहासन बेठा वधमान, उपदेश दे प्रधान; अग्नि खुणे हवे पर्षदा मुणीए, साध्वी वैमानिकली गणीए, मुनिवर त्यांहीज भणीए; यंतर ज्योतिषी भुवनति सार, एहने नेऋत खुणे अधिकार, वायव्य खुणे एहनी नार; इशाने शोभे नर नार, वैमानिक सुर पर्षदा पार, मुणे जिन For Private And Personal Use Only Page #96 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८७) पाणी उदार ॥३॥ चकेवरी अजिता दुरितारि, काली महाकाली मनोहारी, अच्युता संता सारी; ज्वाला सुतारका अशोका, श्री. वत्सा घरचंडा माया, विजयोकुशी सुखदाया; पन्नति निर्वाणी अच्युता धरणी, वैरोटया दत्ता गंधारी अघारणी. अंबा पउमा सुखकरणी; सिदायिका शासन रखवाळी, कनकविजय बुध आनंदकारी, जसविनय जयकारी ॥ ४ ॥ ॥ श्री अजितनाथजीनी स्तुति ॥ ॥ मह उठी वंदू ॥ ए देवी॥ ॥ जब गर्भ स्वामी, पामी विजया मार ॥ जीते नित्य पीयुने, अक्ष क्रीडन हुशीयारः। तिणे नाम अजित छे,देशना अमृत धार । महा जक्ष अजिता, वीर विघन अपहार ॥१॥ इति ॥ एदेशी ॥ श्री संभवनाथजीनी स्तुति ॥ ॥ शांति जिनेसर समरीये ॥ ए देशी ॥ । संभव स्वामी सेवीये, धन्य सजन दीहा। जिनगुण माला गावतां, धन्य तेहनी जीहा ॥ वयण सुगंग तरंगमा, नहाता शिवगेही ॥ त्रिमुख सुर दुरितारिका, शुभवीर सनेही ॥१॥ इति ॥ पाला गावामी सेवीये For Private And Personal Use Only Page #97 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (८८) ॥ श्री अभिनंदन स्वामीजीनी स्तुति ॥ ॥ आप पदम लंघनं ॥ चाल ॥ ॥ अभिनंदन गुणमालिका, गावती अमरालिका । कुमतिकी परजालिका, शिव बहुचर मालिका । लगे ध्यानकी तालिका, आगमनी परनालिका ॥ इन्वरो सुर बालिका, वार नमे नित्य कालिका ॥१॥ ॥ श्री सुमतिनाथ जिन स्तुति ॥ । त्वमशुमान्यभिनंदननंदिता ए देशी ॥ ॥ सुमति स्वर्ग दिये असुमंतने, ममत्व योह नहि भगवंतने । प्रगट ज्ञान वरी शिव बालिका, तुंबरु वीर नमे महाकालिका ॥१॥ इति ॥ ॥ श्री पद्मप्रभुजिन स्तुति ॥ ॥ नंदीश्वरे वर द्वीप संभारुं ॥ ए चाल । ॥ पद्मप्रभु हत छद्म अवस्था, शिवसझे सिद्धा अरूपस्था ।। नाणने देसण दोय विलासी,वोर कुमम श्यामा जिनुपासी॥शाइति For Private And Personal Use Only Page #98 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ८९.) ॥ श्री सुपार्श्वनाथ जिन स्तुति ॥ ॥ श्रावण शुदि दिन पंचमी ॥ ए देशी ॥ .. ॥ अष्ट महा प्रतिहारशुं ए, शोभे स्वामी सुपास तो ।। महा भाग्य अरिह। प्रभुए, सुरनर जेहना दासतो ॥ गुण अतिशय वरणब्या ए, आगम ग्रंथ मोझार तो॥ मातंग शांता सुरी ए,वीर विधन अपहार तो॥१॥ इति ॥ ॥ श्री चंद्रप्रजुजिन स्तुति ॥ ॥ शांति जिनेसर समरीये ॥ ए देशी ॥ . ॥ चंद्रप्रभु मुख चंद्रमां, सखी जोवा जइए ॥ द्रव्य भाव प्रभु दरिसणे, निर्मलता थइए ॥ वांणी सुधारस वेलडी,सणीए ततखेव ॥ भजे भदंत भृकुटिका, वीरविजय ते देव ॥१॥ इति ।। ॥श्री सुविधिनाथजीनी स्तुति ॥ ॥ मृविधि सेवा करतां देवा, तनो विषय वासना ॥ शिव मुख दाता माता ज्ञाता, हरे दुःख दासना ।। नय गम भंगे 'गे चंगे, वाणी भव हारिका । अमर अतीते मोहातीते, विरंच मुता. रिका ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #99 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (.९०) ॥श्री शीतलनाथ जिन स्तुति ॥ । प्रह उठी बंदू ॥ ए देशी ॥ ॥शीत प्रभु दर्शन, शीतक अंग उवंगे ॥ कल्याणक पंचा पाणि गण सुख संगें।। तो बचन सुणता, शीतल किम नहि कोका। शुभ वीर ते ब्रह्मा, शासनदेवी अशोका ॥१॥ इति ॥ ॥ श्री श्रेयांसनाथ जिन स्तुति ॥ ॥ श्री सीमंधर देव मुहकर ॥ ए देशी ॥ ॥श्री श्रेयांस सुहंकर पामी, इच्छे अवर कुण देवा जी।। कनक तरु सेवे कुण प्रभुने, छंडी मुरतरु सेवा जी ।। पूर्वापर अविरोधी स्यात्पद, काणी सुधारस वेली जी || मानवी मणुएसर सुप. सायें, वीर हृदयमां फेळी जी ॥ १ ॥ इति ॥ ॥ श्री वासुपूज्यजिन स्तुति ॥ ॥ कनक तिलक भाले ॥ ए देशो ॥ ॥ विमल गुण अगारं, वासुपूज्यं सफारं ॥ निहत विष विकारं, मात कैवल्य सारं ।। वचन रस उदारं, मुक्ति सच्चे विचार। वीर विधन निवारं, स्तामि चंडी कुमारं ॥१॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #100 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९१ ) ॥ श्री विमल जिन स्तुति ॥ ॥चौपाइनी चाल ॥ ॥ विश्लनाथ विमल गुण वरया, जिनपद भोगी भव निस्तरया ॥ वाणी पांत्रीश गुण लक्षणी, छम्मुह मुर प्रवरा जक्षणी॥१॥ ॥ श्री अनंतनाथ जिन स्तुति ॥ ॥ वसंततिलका वृत्तम् ॥ ॥ ज्ञानादिकाः गुणवरा निवसंनते, वजी मुपर्वहिते जिनपादप ॥ ग्रंथाणवे मतिवराः प्रणतिस्म भफत्या, पाताळचांकुशि सूरी शुभवीर दक्षाः॥१॥ इति ॥ ॥ श्री धर्मनाथ जिन स्तुति ॥ ॥शंखेश्वर पासजी पूजीए ॥ ए देशी ।। ॥ सखि धर्म जिणेसर पूजीए, जिन पूजे मोहने धूनीए । प्रभु बयण सुधारस पीजीए, किन्नर कंदर्पा रीजीए ॥१॥ इति।। ॥ श्री कुंथुनाथ जिन स्तुति ॥ ॥वशी कुंथु व्रती तिलका जगति, महिमा महती नत इंद्र. तती ॥ प्रथितागम ज्ञानगुणा विमला, शुभवीर मतां गांधरक बाला ॥१॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #101 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Acharya Shi ( ९२ ) ॥ श्री अरनाथजिन स्तुति ॥ ॥ त्वमशुभान्यभिनंदननंदिता ॥ ए देशी ॥ ।। अर विभू रवि भूतल घोतकं, मुमनसा मनसाचित प. कजे ॥ जिनगिरा न गिरा परतारिणी, प्रणत यक्षपति वीर धारिणी ॥ १ ॥ इति ।। ॥ श्री मल्लीनाथ जिन स्तुति ॥ ॥ नंदीश्वर वर द्वीप संभालं ॥ ए देशी ॥ ॥ मल्लिनाथ मुख चंद निहाल, अरिहा प्रणमी पातक टालं ॥ ज्ञानानंद विमळपुर सेर, धरण प्रिया शुभवीर कुबेर ॥ १॥ इति।। ॥ श्री मुनिसुव्रत जिन स्तुति ॥ ॥ पास निणंदावामानंदा ॥ ए देशी ।। ॥ सुव्रत स्वामी आतमरामी, पुजो भवि मन रुली ॥ जिनगुण थुणीए पातक हणीए, भाव स्तवन सांकली ॥ वचनें रहीए जूठ न कहीए, टले फल वंचको ॥ वीर जिणुंपासी नरदत्ता, वरुण जिनार्च को ।। १ इति ॥ - For Private And Personal Use Only Page #102 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९३ ) ॥ श्री नमिनाथजिन स्तुति ॥ ॥ श्रावण मुदी दिन पंचमी ए॥ ए देशी ॥ ॥श्री नमीनाथ सेाहामणा ए, तीर्थपति मुलतान तो ॥ वि. श्वंभर अरिहा प्रभु ए, वीतराग भगवानतो ॥ रत्नत्रयी जस ऊजही ए, भांखे षद्रव्य शान तो ॥ भृकुटी सर गंधारिका ए, वीर हृदय बहुमान तो ॥१॥ इति ॥ अथ श्री पांचज्ञाननो स्तुति ॥ ॥ श्री मतिज्ञाननी स्तुति ॥ ॥ श्री शंखेश्वर पास जिनेसर ॥ ए देशी ।। ॥ श्री मतिज्ञाननी तत्व भेदयी, पर्यायें करी व्याख्या जो।। चगवह द्रव्यादिकने जाणे, आदेश करी दाख्या जी ॥ माने वस्तु धर्म अनंता, नहीं अज्ञान विवक्षा जी ॥ ते मतिज्ञानने वंदो पूनो, विजयलक्ष्मी गुण कांक्षा जी ॥ १ ॥ इति ॥.... ॥ श्री श्रुतज्ञाननी स्तुति ॥ ॥ गोयम बोले ग्रंथ संभाली ॥ ए देशी ॥ ॥ त्रिगडे वेशी श्री मिन भाण, बोले भाषा अमीय समाण, मत अनेकांत प्रमाण ॥ अरिहंत शासन सफरी मुखाण, चउ अ For Private And Personal Use Only Page #103 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९४) नुयोग जिहां गुण खाण, आतम अनुभव गण ।। सकळ पदारथ ।। त्रिपदी जाण, जोजन भुमि पसरे वखाण, दोष बत्रीश परिहाण ॥ केवली भाषित ते श्रुत नाण, विजयलक्ष्मी मरि कहे बहुमान, चित्त धरजो ते सयाण ॥ १॥ इति ॥ ॥ श्री अवधिज्ञाननी स्तुति ॥ ॥ शंखेश्वर साहिब जे समरे ॥ ए देशी ॥ ॥ ओहीनाण सहित सवि जिनवरू, चवि जननी कुंखे अवतरू ॥ जस नामे लहीये सुख तरू, सवि इति उपद्रव संहरू ॥हरि पाठक संशय संहरु, वीर महिमा ज्ञान गुणायलं ॥ ते माटे प्रभुजी विश्वभरू, विजयांकित लक्ष्मी मुहंकरूं ॥१॥ इति ॥ ॥ श्री मनः पर्यव ज्ञाननी स्तुति ॥ ॥ श्री शंखेश्वर पास जिनेश्वर ॥ ए देशी ॥ ॥ प्रभुनी सर्व समायिक उच्चरे, सिद्ध नमी मद वारी जी ॥ छास्थ अवस्था रहे छे जिहां लगे, योगासन तप धारी जी ।।चो) मनापर्यव तव पामे, मनुज लोक विस्तारीजी॥ते प्रभुने प्रणमो भवि प्राणी, विजयक्ष्मी मुखकारी बी॥१॥इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #104 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९५ ) ॥ श्री केवल ज्ञाननी स्तुति ॥ || मह उठो बंदू || ए देशी ॥ ॥ छत्रत्रय चामर, तरु अशोक सुखकार || दिव्य ध्वनि दुंदुभी, भामंडल झलकार || वरसे सुर कुसुमें, सिंहासन जिन सार ॥ वंदे लक्ष्मीसूरि, केवलज्ञान उदार ॥ १ ॥ इति ॥ || वर्धमान तपनी स्तुति ॥ || वर्धमान आंबिल तप आदरो, चोबीश जिननी पूजा करो || अंतगड आगम सुणो बखाण, सिद्धाइ देवी करे कल्याण ॥ १ ॥ ( आ स्तुति चार वखत पण कहेवाय छे. > ॥ अथ श्रीसीमंधर जिन स्तुति ॥ ॥ सीमंधर स्वामी निर्मला, तुम ज्ञान उपनुं केवला || सीमं • धर स्वामी तार तार, मुज आवागमन निवार वार ॥ १ ॥ सीतेरशेो मिनवर बंदीये, जस नामें पाप निकंदीयें || सांप्रत जिन सोहे बीश सार, ते भवियण वंदो वारं वार || २ || जिनवाणी साकर सेटी, पीतां जाणे अमृत वेळडी || जिन आगम सागर सेवतां, कहो विद्या रपन से हावता || ३ || सीमंधर जिनपद अनुसरी, श्रीलं प्रत्ये बहु न करी || इनका भासा शासन सूरि, धो बंछित देवी पतंजरी ॥ ४ ॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #105 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९६) । सीमंधर जिन स्तुति बीजी ॥ अजवाळी बीज सोहावे रे, चंदा रुप अनुपम कावे रे, चंदा विनतडो चित्त धजो रे, सीमंधरने वंदणा कहेजो रे. ॥१॥ वीश विहरमान जिनने वंदु रे, जिन शासन पूजी आणंदु रे; चंदा एटलं काम न करजो रे, सीमंधरने बंदणा कहेजो रे. ॥ २ ॥ सीमंधर जिननी वाणी रे, ते तो अमिय पान समाणी रे; चंदा तमे मुणी अमने सुणाबो रे, भवसंचित पाप गमावो रे. ॥ ३ ॥ सीमंधर जिननी सेवा रे, ते तो शासन भासन मेवा रे; चंदा होजो संघना जाता रे, गज लंछन चंद्र विख्यात रे. ॥ ४ ॥ ॥ श्री सिझाचलजीनी स्तुति ॥ ॥ श्री शत्रुजय मंडण आदिदेव, हुं अहोनिश सारं तास सेव ॥रायण तले पगला प्रभुतणां, पुजिश सकल फूल शोहामा ॥१॥ बीश तीर्थकर समोसरया, विमलाचल उपर गुण भरया ॥ गिरि कंडणे आव्या नेमनाथ, सेा जिनवर मेलो मुक्ति साथ ||२|| श्री सोहम स्वामी उपदिश्या, जंबु गणधरने मन वश्या ॥ पुंडरिक गिरि महिमा एह माहि ॥ हुं आगम समरु मन उच्छाहीं ॥३॥ ककेसरी गोमुख कवड यक्ष, मन बंछित पूर्ण कल्पवृक्ष | सिद्धक्षेत्र सहाइ देवता, मणे नंदरि तुम पाय सेवता ॥ ४ ॥ इति ।। For Private And Personal Use Only Page #106 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९७ ) ॥ श्री सिद्धाचळजीनी स्तुति ॥ ॥ श्री शत्रुंजय गीरी तीरथ सारः ।। ए देशो || || जिहां अगण्योतेर कोडाफोडी, तिम पंचाशी लाख वळी कोडी, चुमाळीश सहस्र कोडी | समवसर्या जिहाँ एतिवार, नवाणु एम प्रकार, नाभि नरेंद्र मल्हार ॥ १ ॥ सहस्त्रकूट अष्टापद सार, जिन चोवीश तथा गणधार, पगलांनो विस्तार ॥ वळो जिनवित्र तणो नहीं पार, देहरी थंभे बहु आकार, बंदु विमलगिरि सार ॥ २ ॥ " शी सीत्तेर साठ पचास, बार जोजन माने जस विस्तार, इग बिति च पण आर || मान कहां तेनुं निरधार, महिमा एहनो अगम अपार, आगम मोहे उदार ॥ ३ ॥ चैत्री पूनम दिन शुभ भावे, समकित दृष्टि सुर नर आवे, पूजा विविध रचावे || ज्ञानविमलसूरि भावना भावे, दुर्गति दोहन दूर गमावे, बोधबीज जस पावे ॥ ४ ॥ ॥ चैत्री पुनमनी स्तुति ॥ ॥ श्री विमलाचळ सुंदर जाणु, ऋषभ जिहां आव्या पूर्व जवाणुं, तीर्थ भुमीका पीछाणुं । तें तो शास्वव माय गिरींद, पूर्व संचित पाप निकंद, टाळो भव भय फंद ॥ पूरव साहामा अति हे उदार, बेठा सोहे नाभी मल्हार, सनमुख पुंडरीक सार । चैत्री पूनम दिन जे अजुआछी, भवियां आराधों मिध्यात्व टाली, जिम For Private And Personal Use Only Page #107 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९८) छहो शिववध नारी ॥१॥ आबु अापद ने गिरनार, समेतशिखर ने वली वैभार, पुंडरीक चैत्य जुहार । श्री जिन अजित तारंगे लहीये, श्री वरकाणोजी बंभण वाडे, तोडे फर्मनी जाडे ।। नारंगो संखेश्वरो पास, श्री गोडीजी पुरे आस, पोसीना जिन मुविलास । चैत्री पूनम दिन सुंदर जाणी, ए सवि पूजा भव्य प्राणी, जेम थावो केवल नाणी :२॥ भरत आगल श्री ऋषभजी बोले, नहि कोइ चैत्री पूनम दिन तोले, इम जिन वचनज बोले । चैत्री पूनम दिन ए गीरी आत, छठ करी जात्रा सात करंत, बीजे भव मुक्ति लहंत ॥ चैत्री पूनम दिन ए गिरी सिद्ध, पांच कोडी केवलीथी प्रसिद्ध, पुंडरीक शिवपद लीघ । इम जाणीने भवियो आराधो, चैत्री पूनम दिन शुभ चित्त साधो, मुक्तिना खातां बांधो ॥३॥ पुंडरीक गीरीनी शासन देवी, मरुदेवा नंदन चरण पुंजेवी, चक्केश्वरी तुं देवी । चउविह संघने मंगल करजो, तुज सेवक पर लक्ष्मी वरजो, सयल विधन संहरजो ॥ अमतिचक्र तुं मोरी मोत, तुं जाणे मोरा चित्तनी धात, पूरजे मननी वात । पंडित अमर केसर मुपसाय, चैत्री पूनम दिन महा लहाय, लन्धी विजय गुण गाय ॥ ४ ॥ ॥ सिकचकनी स्तुति ॥ मह उठी बंदु, सिद्धपक सदाय, मपीए नवपदनो, भाप सदा मुखदाय; विधिपूर्वक ए तप, जे करे या उनमाळ, ते सवि मुख For Private And Personal Use Only Page #108 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (९९) पामे, जिम मयणा श्रीपाळ || १ | मालवपति पुत्री, मयणा अति गुणवंत, तस कर्म संयोगे, कोढी मिलियो कंत; गुरु वयणे तेणे, आराध्यं तप तेह, मुख संपदा वरीया, तरीया भनळ तेह ॥२॥ आंबिल ने उपवास, छह वळो अहम, दश अढाइ पंदर, मास छ मास विशेष; इत्यादिक तप बहु, सहुमांहि शिरदार, जे भवियण करशे, ते तरशे संसार ॥ ३ ।। तप सांनिध्य करशे, श्रीविमळेश्वर यक्ष, सहु संघना संकट, चूरे थइ प्रत्यक्ष; पुंडरीक गणधार, कनक. विजय बुध शिष्य, बुध दर्शनविजय कहे,पहोंचे सकळ जगोश ॥४॥ ॥ पर्युषणनी स्तुति ॥ पर्व पर्युषण पुण्ये पामी, परिघल परमानंदोजी । अति ओच्छव आडंबर सघळे, घर घर बहु आनंदोजो । शासन अधिपति जिनघर वारे, पर्वतणां फळ दाख्यांनी । अमारि तणो ढंदेरो फेरी, पाप करता राख्याजी ॥ १ ॥ मृगनयनी सुंदरी सुकुमाळी, वचन वदे टंकशालीजो । पूरो पनोता मनोरथ महारा, निरुपम पर्व निहालीजी ॥ विविध भाति पकवान करीने, संघ सयक संतोषोजी । चोवीशे जिनवर पूजीने, पुण्य खजानो पोषोजी ॥ २॥सकल सूत्र शिर मुगट नगीना, कल्पसूत्र जग जाणोजी पीर पास नेमी. भर अंतर, आदि चरित्र बखाणोनी ॥ स्थविरावळी ने सामाचारी, पट्टावळी गण गेहनी । एम ए सूत्र सविस्तर मुणीने, सफळ करो For Private And Personal Use Only Page #109 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१००) नर देहनी ॥ ३ ॥ एणीपरे पर्व पर्युषण पाली, पाप सबै परिहरीए जी। संवत्सरी पडिकमणुं करतां, कल्याण कमळा बरीएजी ॥ गोमुख लक्ष चक्रेश्वरी देवी, श्री माणिभद्र अंबाइजी । शुभविजय कवि शिष्य अपरने, दिन दिन करजो वधाइजी ॥४॥ ॥ श्री वीशस्थानकनी स्तुति ॥ वीश स्थानक तप विश्वमा मोटो, श्री जिनवर कहे आपजी । बांधे जिनपद बोजा भवमा, करीने स्थानक जापजी ॥ थया थशे सवि जिनवर अरिहा, ए तपने आराधीजी । केवलज्ञान दर्शन सुख पाम्या. सर्वे टाळी उपाधिनी ॥ १ ॥ अरिहंत' सिद्ध' पवयण मरि स्थविर, वाचक' साधु नाणजी । दर्शन विनय चरण बंभ'२ किरिया, तप करो गोयम ठाणजी ॥ जिनबर" चारित्र" पंच विध नाण, श्रुत" तीर्थ २० एह नामजी। ए वीश स्थानक आराधे ते, पामे शिवपद धामजी ॥ २ ॥ दोय काळ पडिकमणु पडिलेहण, देववंदन प्रण वारजी । नेकरवाळी वीश गुणोजे, काउसग्ग गुण अनुसारजी ॥ चारसा उपवास करी १ आ धीश स्थानकमां केटलाक नामांतर आवे छे. १३ मुं क्रियापद ते समाधिपद, १५९ गोयम पद ते दान पर्दै, १६९ जिनपद ते वयाषच्च पद, १८ मुं पंचविध ज्ञानपद ते अभिनव बामपद-आम नामांतर छे. तेमज चारित्रने लगता बे पद छे, ज्ञानने लगता ३ पद छे, एमां कांइक कांइक जुदो जुदो भाष दर्शावेल छे. For Private And Personal Use Only Page #110 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir चित्त चोखे, उजमणुं करो सारसी । परिमा भरावा संघ भक्ति करो, ए विधि शास्त्र मोझारजी ॥३॥श्रेणिक सत्यकि सुळसा रेवति. देवपाळ अवदासजी । स्थानक तप सेवा महिपाए, यया नगमाहि विख्यांतजी ॥ आगम विधि सेवे ज तपीया, धन्य धन्य "तस अवतारजी। विघ्न हरे तस शासनदेवी, सौभाग्य सक्ष्मी दातारजी ॥ ४॥ बीजनी स्तुति. जंबू द्वीपे अहोनिश दोपे, दोय सूर्य दोय चंदाजी; तास विमाने श्री ऋषभादिक, शाश्वत नाम जिणंदाजी ॥ तेह भणी उगते शशि नोरखी, प्रणमे भवीजन वृंदाजो; बीज आरोपो ध. मर्नु बीज, पूजो शांति निणंदाजो ॥ १ ॥ द्रव्य भाव दोय भेदे पूजो, चोवीशे जिन चंदाजी; बधन दोय दूर करीने, पाम्या पर. माणंदाजी ।। दुष्ट ध्यान दोय मत मसंगज, भेदन मत्त मयंदाजी॥ बीज तणे दिन ते आराधे, जेम जंगम । चिरनंदाजी ॥ २ ॥ द्विविध धर्म जिनराज प्रकाशे, समवसरण मंडाणजीः निश्चय ने व्यवहार बेहुथु, आगम मधुरी वाणीनी ॥ नरक तिर्यंच गति दोय न होवे, बीज ते ज आराधेनी, द्विविध दया उस स्थावर केरी, करतां शिव सुख साधेजी ।। ३ ।। बीज चंद पेरे भूषण भूषित, दीपे निलपट चंदाजी; गरुड यक्ष नारी मुखकारी निर्वाणी सुख कंदानी ।। धीज तो तप करतां भवीने, संमकित सांनिध्य कारीजी; धीरविमळ शिष्य कहे नया संघना विना निवारीजी ॥४॥ For Private And Personal Use Only Page #111 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०२) पंचमीनी स्तुति. पांचमने दिन चौसठ इंद्रे, नेमि जिन महोत्सव कीघो जी ।। रुपे रंभा राजीमतीने, छंडी चारित्र लीधो जी ॥ अंजन रत्न सम काया दीपे, शंख लंछन मुमसिद्धो जी ॥ केवळ पामी मुक्ति प. होच्या, सघळां कारज सीध्यां जी ॥१॥ आबु अष्टापद ने तारंगा, शचुंजय गिरि सोहे जी ॥ राणकपुर ने पार्थ शंखेश्वर, गिरनारे मन मोहेजी ॥ संमेत शिखर ने वळी वैभार गिरि, गोडी थंभण वंदो जी ॥ पंचमीने दिन पूजा करता, अशुभ कर्म निकंदो जी ॥२॥ नेमि जिनेश्वर बिगडे बेठा, पंचमी महिमा बोछे भी ।। बीजा तप अप छे अति बहोळा,नहीं कोइ पंचमी तोले जी ॥ पाटी पोथी ठवणी कवळी, नोकारवाळी सारी जी ॥ पंचमीतुं उजमधू करतां, लहीए शिववधु प्यारी जी ॥ ३॥ शासनदेवी सांनिध्य कारी, आराधे अति दीपेजी ॥ काने कुंडळ मुवर्ण चुडी, रुपे रमझम दीपे जी ॥अंबिकादेवी विघ्न हरेवी,शासन सांनिध्य कारी जी॥ पंदित हेतविजय जयकारी, जिन जपे जयकारी जी ॥४॥ अष्टमीनी स्तुति. अष्टमी तप महिया, मोटो कहे महावीर ॥ आठम तप भंजे, अष्ट कर्म जंजीर ॥ आठ सिदि ऋद्धि आपे, जिम ए भंजे आठ ॥ दुःख दुर्गति कापे, जेम दावानळ काष्ट ॥ १ ॥ मोवीशे जिननी, प्रतिमा भरते भरावी ॥ अष्टापद उपर, नासिका सरखी ठरावी ॥ For Private And Personal Use Only Page #112 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०३) पूरव यकी वंदो,दोय चार अठ दश देव ॥ ए चार निक्षेपे, संभाळी करूं सेव ॥२॥ महावीर थकी त्रिपदी, पामीने तत्काळ ॥ द्वादशांगी गुंथी, गणघर देव रसाळ ॥ एमांथी उपदिशे, आठमनो अधिः कार ।। अष्ठमी आराधो, जिम पामो भव पार ॥३।। जिन शासन देवी, सिद्धायिका मातंग ॥ आठम तप तपीए, सांनिध्य करे धरी रंग ।। मुर समकित धारी, भविक करे कल्याण ॥ भाव विजयना वाचक, सेवक ज्युं भाम भाण ।। ४ ॥ ॥ एकादशीनी स्तुति ॥ दीन सकल मनोहर-ए देशी. गोपीपति पूछे, पभणे नेमि कुमार । इहां थोडे कोधे, लहीए पुण्य अपार ।। मृगशर अजवाळी, अग्यारश मुविचार । पासह विधि पाळी, बहु तरीए संसार. ॥१॥ कल्याणक हुवा, जिनना सो पचास । तस गुणगुं गणतां, पहेचे वांछित आश । इहां भाव धरीने, व्रत कीजे उपवास । पौन व्रत पाळी, छांडीजे भव पास ।। ॥ २ ॥ भगवंते भाख्यो, श्री सिद्धर्भात मोझार । अग्यारश महिमा, मृगशिर पख शुदी सार ।। सवि अतीत अनागत, वत्तमान मुवि. चार। जिनपति कल्याणक, छोडे पाप विकार ॥ ३ ॥ औरावण वाहन, सुरपति अति बलवंत । जिम जग जश गाजे, रमणीकांत इसंस ॥ तप सांनिध्य करजो, मौन अग्यारश संत । तप कीर्ति प्रसरे, शासन विनय करत ॥ ४ ॥ For Private And Personal Use Only Page #113 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०४) ॥ चौदशी तिथिनी स्तुति ॥ मंगल पाठ करी जस आगळ-ए देशी. ॥ चाद सुपन सूचित हरि पूजित, सिद्धारथ कुल चंदाजी ॥ चौद' स्यणापति नरपति वंदित, त्रिशला राणी नंदाजी ॥ केशरि छछन कंचनवाने, सेहे वीर जिणंदाजी ॥ पाखी पर्व कडं दिन चौदशे, आराधो सुख कंदाजी ॥ १॥ 'चउदश दश जिन चंदा बंदो, भावधरी भवि प्राणोजी ।। चौदशमें गुणठाणे चढीने, पाम्या शिवमुख खाणीजी ॥ चादराज उपरे जे पोहोत्या, चादशी दिन आराधोजी ॥ चादशी तप करतां भविजनने, चौदश विद्या साधोजी ॥२॥ उदश देव मळीने विरचे, गढ त्रणर्नु परिमाणजी। चौदश सहस मुनि परिकर संयुत, बेसे श्री जिन भाणजी ॥चौदश पूरव अर्थे उपदेशे, निमुणे पर्षदा बारजी ।। जीवदया चउदशी दिने पालो, पाणी घउद प्रकारजी ॥ ३॥ चउद भुवन वश करवा वरवा, शिव रमणी मनहरणीजी ॥ सिद्धाइ देवी जन सुख करणी मातंग यक्षनी घरणीजी ॥ घउदशी तपनी सानिध करणी, विशद' घरण तनु वरणीजी ॥ ज्ञानविमल कहे जिन अनुसरणी, सकल संघ दुःख हरणीजी ॥ ४ ॥ इति ॥ १ चौद रत्नपति चक्रवर्ती. २ चौदने दश चोषीश. ३ विशद एटले उजवल वणे. For Private And Personal Use Only Page #114 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०५) ॥ स्तवनोनो संग्रह ॥ श्री रत्नविजयजीकृत चोवीशी. ॥ श्री ऋषभदेवनुं स्तवन. ॥ वेण म बाईश रे विठ्ठल वारु तुजने (अथवा) भवि तुमे वंदोरे, सुरीश्वर गच्छराया ॥ ए देशी ॥ ऋषभ जीणेसर वंछित पुरण, जाणुं विशवावीश ॥ उपगारी अवनि तले मोटा, जेहनी चढती जगीश ॥ १ ॥ जग गुरु प्यारो रे पुन्य थकी में दीठो ।मोहनगारो रे सरस सुधाथी मीठो ॥ ए आंकणी ॥ नाभी नंदन नजरे नीरख्यो,परख्यो पुरण भाग्ये ॥ निरविकारी मुद्रा जेनी,दौठे अनुभव भागे ॥जग०॥२॥ आतम सुख अहेवार्नु कारण,दरशन ज्ञान चारित्र ॥ तेने भय वली मिथ्या अज्ञान, अविरती जेह विचित्र जिग०॥३।। सकल जोव छे मुखना कामी,ते सुख अक्षय मोक्ष ।। कर्म जनित सुखने दुःख रुपा, सुख ते आतम झांख ॥ जग ॥४॥ निरुपाधिक अक्षय पद केवल,अव्यावाघ ते थावे ॥ पुरणानंद दवा ने पामे, रुपातीत स्वभावे ॥ जग० ॥ ५ ॥ अंतरजामी स्वामी मारो, ध्यान रुचीमां लावे ।। जीन उत्तम पदने अवलंबी, रतनरजय गुण गावे ॥ जग० ॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #115 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०६ ) श्री अजितनाथनुं स्तवन. 0 ॥ प्यारी ते पियुजीने विनवे हो राज || ए देशी || अजीत जीनेसर वालहा हो राज, आतमनो आधार ॥ वारी मोरा साहीबा, शांती सुधारस देशना हो राज || गाजे जेम जलधार, बारी मोरा साहीबा || अजीत || १ || भविजन शंसय भांजवा हो राज, वास अभिप्रायनो जाण ॥ वारी मोरा साहिबा, मिथ्या तिमिर उच्छेदवा हो राज || उभ्यो अभिनव भाण, बारी मोरा साहीबा ॥ अजीत ॥ २ ॥ सारथवाह शीव पंथनो हो राज, भवोदधि तारहार || बारी० ॥ केवलज्ञान दिवाकरु होराज ॥ भाव घरम दातार || वारी० ॥ अजीत || ३ || क्षायक भावे भोगवे हो राज, अनंत चतुष्टय सार || बारी० || ध्येय्पणे हवे ध्यावतां हो राज, ध्यायक थाए निस्तार || बारी० || अजीत || ४ || वस्तु स्व मावने जाणवे हो राज, आतम संपदा इश ॥ वारी० ॥ अष्ट कर मना नाशथी हो राज, प्रगटे गुण एकत्रीश || वारी० ॥ अजीत० ॥ ५ ॥ विजयानंदन एम थुणे हो राज, जीम शत्रु कुछ दीनकार || बारी० || कांचन कांति सुंदरुं हो राज, गज लंछन सुखकार ॥ बारी० ॥ अजीत || ६ || समेत शिखर सिद्धि वर्या हो राज.. सहस पुरुपने साथ || वारी० || उत्तम गुरु कृपा ल्हेरथी हो राज, रतन थाशे सनाय || वारी० ॥ अजीत० ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only Page #116 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १०७) ॥ श्री संभवनाथनुं स्तवन ॥ ॥ अष्टापद गिरिजात्रा करणकू रावण प्रतिहरी आया (अथवा) आघा आम पधारो पुज्य अमघर वहोरण वेला ॥ ए देशी॥ संभव जीनवर साहेब साचा, जे छे परम दयाल । करुणानिकि जगमाही मोटो, मोहन गुण मणीमाल ॥१॥ भवियां भाव धरीने लाल, श्रीजीन सेवा कीजे ॥ दुरमति दुर करीने लाल, नरभक सफलो कीजे ॥ ए आंकणी ॥ एह जगत गुरु जुगते सेवो, खटकाय प्रतिपाल ॥ द्रव्य भाव परिणति करो निरमल, पुजो थई उजमाल ॥ भवि० ॥२॥ केसर चंदन मृगमद भेळी, अरचे जीनवर अंग ॥ द्रव्य पूजा ते भावनुं कारण,कीजे अनुभव रंग ॥मविक ॥ ३ ॥ नाटक करतां रावण पाम्यो, तीर्थकर पद सार । देवपाल प्रमुख जीनपद ध्याता, प्रभु पद लयुं श्रीकार ॥ भवि० ॥४॥ वितराग पुजाथी आतम, परमातम पद पावे ॥ अब अक्षय मुख जीहां शाश्वतां, रुपातित स्वभावे ॥ भवि० ॥ ५॥ अजर अमर अविनाशी कहीये, पुरणानंद जे पाम्या ॥ लोका कोक स्वभाव विभासक, चउगतिना दुःख वाम्यां ॥ भवि०॥६॥ एवा जीनन यान करता, लहीए मुख निरवाण ॥ जीन उत्तम पदने अवलंबी, रतन लहे गुण खाण ॥ भवि० ॥ ७ ॥ For Private And Personal Use Only Page #117 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१०८) ॥श्री अनिनंदन स्वामीनुं स्तवन ॥ ॥ शीराईनो सालु हो कसबी कोर खरी ।। ए देशी॥चौथो जिनपति हो के सेवो चित्त खरे, गुणमणी दरियो हो के परखो शुभ परे ।। वंछितदाता हो के प्रगटयो सुरतरु, मोहन मुरति हो के रुप मनोहरु ॥ १ ॥ सुरती सारी हो के भविनन चित्त वशी, मुख पंकज सोहे हो के जाणो पुरण शशी ॥ लोचन सुभगा हो के निरुपम जगधणी, भावे वंदो हो के प्रत्यक्ष सुरमणी ॥२॥ जग उपगारी हो के जग गुरु जग त्राता, जस गुण थुणतां हो के उपजे अति शाता । नाम मंत्रथी हो के आपदा सवि खसे,क्रोधा. दिक अजगर हो के तेहने नवि डसे ॥ ३ ॥ पुरणानंद परमेश्वर हो के ज्ञान दोवाकरु, चउगति चुरण हो के पाप तिमिर हरु ।। सहम विलासी हो के अठमद शोखतां, निःकारण वच्छलहो के वैराग पोखतां ॥ ४ ॥ निजद्रव्य परमेश्वर हो के स्वसंपद भोगी, परभाषना त्यागी हो के अनुभवगुण जोगी । अलेशी अणाहारी हो के खायक गुणभरो, अक्षय अनंता हो के अन्यायाध वरा ॥ ५॥ चार निखेपे हो के जे जीन चित धरे, अहलही अवलं. बन हो के पंचम गति वरे ॥ जीन उत्तमनी हो के सेवा जे करे, रतन अमुलख हो के पामे शुभ परे ॥ ६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #118 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १०९) ॥ श्री सुमतिनाथ स्तवन । ॥ मोहनगारा हो राजरुडा, मारा सांधली मुगुणा मुडा ।। ए देवी । मुमति जिनेसर साहिबोजी, सुपति तो दातार ॥ वडगति मारग चुरताजी, गुणमणीनो भंडार के। जीनपति जुक्ते लाल जाणी वंदे जे गुणखाणी ॥१॥ ए आंकणी ॥ सहजानंदी साहेबा जी, परम पुरुष गुरधाम ।। अक्षय सुखनी संपदाजी, प्रगटे जेहने नाम के । जीनपति० ॥२॥ नाथ निरंजन जगधणीजी, नीरागी भगवान ॥ जग बंधव जग वत्सलुजी, कीजे सदंतर ध्यान के । जीन० ॥ ३ ॥ ध्यान भुवनमा ध्यावतांजी, होवे आवम शुद्ध ॥ संवर साधे निर्जराजी, अविरतिनो करे रुध के ॥ जीन० ॥ ४॥ ज्ञानादि गुण संपदाजी, प्रगटे झाक झमाल ॥ चिदानंद मुख अनुभवीजी, लेवे गुण मणी माल के ॥ जीन० ॥ ५॥ पंचम जीन सेवता धकांजी, पाप पंक क्षय जाय ॥ द्रव्य भाव भेदे करीजी, कारज सघलां थाय के ॥ जीन० ॥ ६ ॥ मंगलामुत मुहकरुजी, कुळ मांहे तिलक समान ॥ पंडित उत्तमविजय तणाजी, रतन धरे तुम ध्यान के ।। जीन० ॥७॥ ॥श्री पद्मप्रभस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥ रामचंद्र के बाग चंपो मोही रह्योरी ॥ ए देशी ॥ पद्म प्रभु जीनराज, सुरनर सेव करेरी ॥ पुष्टालंबन देव, समरे दुरित For Private And Personal Use Only Page #119 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११०) डरेरी ॥१॥ टाले मिथ्या दोष,समकित पोष करेरी ।। भवि कमल पडिबोह, दुरगति दुर हरेरी ॥ २ ॥ त्रिगडे त्रिभुवन स्वामी, घेसी घरम कहेरी । शांति सुधारस वाण, सुणतां तत्व ग्रहेरी ॥ ३॥ क्रोधादिकनो त्याग, समता संग सजोरी ! मन आणी स्यादवाद, अव्रती ताम तजोरी ॥ ४ ॥ अनुभव चारित्र ग्यान, जीनाणा पर घरोरी ॥ अक्षय सुखनुं ध्यान, करी भवजलधि तरोरी ॥५॥ रक्त वरण तनु कान्ति,वरणरहित थयारी॥ अजर अमर निरुपाधी, लोकांतिक रखोरी ॥ ६ ॥ निरागी पभु सेव, त्रिकरण जेह करेरी ॥ जिन उत्तमनी आण, रतन तो शिर धरेरी ॥७॥ ॥ श्री सुपार्श्वनाथस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥ साहेलडीआंनी देशी ।। पृथ्वी सुत परमेसरु॥साहेलडीआं। सातमा देव सुपास ॥ गुण वेलडीआं । भव भय भाषठ मंजणा ॥सा० ॥ पुरतो विश्वनी आश ॥ गु० ॥ १ ॥ सुरमणी सुरतरु सारीखो ॥ सा० ॥ काम कुंभ सम ह ॥ जगु० ॥ तेहयी अधिकतरतुं प्रभु ॥ सा० ॥ तेहमां नहीं संदेह ॥ गु० ॥२॥ नाम गोत्र बस सांभले ॥ सा० ॥ महा नीजरा थाय ॥ गु० ॥ रसना पावन स्वपन यकी ॥ सा० ॥ भव भवनों दुःख जाय ॥ गु० ॥३॥ विषय कषाये जे रता ॥ सा० ॥ हरिहरादि देव ॥ गु० ॥ तेह चिच मांहि नवि घर ॥ सा० ॥न करुं तेहनी सेव ॥ गु० ॥४॥ परम पुरुष परमातमा ।। सा० ॥ परमानंद स्वरूप ॥२०॥ ध्यान For Private And Personal Use Only Page #120 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१११) मुवनमां धरता थकां ।। सा० ॥ प्रगटे सहज स्वरुप ॥ गु० ॥५॥ तृष्णा ताप समावतो ॥ सा० ॥ शीतलताये चंद ॥ गु० ॥ तेजे दीनमणी झीपतो ॥ सा ॥ उपशम रसनो कंद ॥ गु० ॥ ६ ॥ कंचन कान्ति सुंदरु ।। सा० ॥ कान्तिरहित कीरपाठ ॥ गु० ॥ श्रीन उत्तम पद सेवतां । सा० ॥ रतन लहे गुण माल |गु०॥७॥ ॥श्री चंद्रप्रजुजोर्नु स्तवन ॥ ॥तुमे बहु मीत्रीरे साहिबा (अथवा) कर्मन छुटेरे माणी ।। ए देशी ॥ श्री चंद्रप्रभु जीन साहेबा, शरणागत प्रतिपाल । दरभन दुरलभ तुम तणु, मोहन गुण मणीमाल ॥ श्रीचंद्र प्रभु जीन साहेवा ॥ १ ॥ साचा देव दयाळवा, सहजानंदीनुं धाम ॥ नामे नव निध संपजे, सीझे वांछित काम ॥ श्री० ॥ २॥ ध्येय पगेरे ध्यायता, ध्याता ध्यान परमाण ॥ कारणे कारज नीपजे, एहवी भामय वाण ॥श्री०॥३।। परमातम परमेसरु, पुरसेतिम परधान ।। सेवक मुणीए विनति, कीजे आप समान ॥ श्री० ॥ ४ ॥ श्रदा भासन रमणता, आणी अनुभव अंग ॥ निरागीरे नेहो, होये गवळ अभंग ।। श्री० ॥ ५॥ चंद्रमभु जीन चित्तयो, मकुं नहीं मीनराज ॥ मन तनु घर माहे खेवीओ, भक्ते में सात राज ॥श्री. ॥६॥ गुण निधि गरिव निवाज छो, करुणा निधि कीरपाल ।। वनविनय कवि राजनो, रतन कहे गुणमाळ ॥ श्री० ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #121 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११२ ) ॥ श्री सुविधिनाथजी नुं स्तवन ॥ " O ॥ अरणिक मुनिवर चाल्या गोचरी ॥ ए राग ॥ सुविधि मेसर साहेब सांभळे, तुमे छ। चतुर सुजाणोजी ॥ साहेब सनमुख नजरे जायतां बाधे सेवक वानोजी ।। सुविधि० ॥ १ ॥ भव मंडपम रे भमतां जगगुरु, काल अनादि अनंताजी ।। जनम मरनां ते दुःख आकरां, हजीअ न आव्या अंताजी || सुविधि || २ || छेदन भेदन वेदन आकरो, गुणनिधि नरक महारोजी | खेत्र कुंभी वैतरणी वेदना, कथतां नावे पारोजी || सुविधि० ॥३॥ विवेक रहित विकलपणे करी, न लह्यो तत्व विधारोजी ॥ गति तिर्यचमां रे परवश पणे करी, सहां दुःख अपारोजी || सुविधि ॥ ४ ॥ विषया संगे रे रंगे राचीओ, बंधाणा मोह पासोनी ॥ अमरी संगे सुरभव हारीओ कीधा दुरगति वासाजी || सुविधि ॥ ५ ॥ पुन्य महोदय जगगुरु पामीओ, उत्तम नर अवतारोजी ॥ आरज खेत्रे रे सामग्री घरमनी, सदगुरु संगति सारोजी ।। सुविधि ॥ ६ ॥ स्याना नंदेरे पुरण पावतेा, तीरथपति जीनराजोजी ॥ शुष्टालंबन करतां जगगुरु, सीध्यां सेवककाजोजी || सुविधि ॥ ७ ॥ नाम जपंतां रे सवि संपत्ति मछे, स्तवतां कारण सीधजी || जीन उत्तम पद पंकज सेवतां, रतन लहे नव निधोजी || सुविधि ● ॥ ८ ॥ For Private And Personal Use Only Page #122 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ११३ ) ॥ श्री शीतलनाथनुं स्तवन ॥ 1 || देशी ललनानी ॥ ए देशी । शीतळ जीनपति सेवीए, दशमेा देव दयाल कलना || शितल नाम छे जेहनुं, शरणागत प्रतिपाल छलना || शीतल० ॥ १ ॥ बाह्य अभ्यंतर शीतळु, पावन पुरणानंद लकना || प्रगट पंच कल्याणके, सेवे सुरनर हृद छलना ॥ शीतल० ॥ २ ॥ वाणी सुधारस जलनिधि, वरसे ज्युं जलधार कलना || त्रिगटे चउमुख देशना, करवा भवि उपगार ललन | ॥ शीतल० ||३|| मिथ्या तिमिर उच्छेदवा, तीव्र तरणी समान ललना समकित पेष करे सदा, आपे वांछित दान ललना ॥ शीतल० ॥४॥ अवमोचन अळवेसरु, मुज मन सरेश्वर हंस ललना || अविलंबन भव स्तवने, देव मानुं अवतसं ललना || शीतल० ॥ ५ ॥ अष्टा दर्श देोषे करी, रहित थयो जगदीश लखना | जोगीश्वर पण जेनां, ध्यान धरे निशदीश ललना || शीतल० || ६ || ध्यान वनमा ध्याइए, तो होए कारण सिद्ध छलना || अनुभवे आतम संपदा, प्रगटे आतम ऋद्ध ललना ॥ शी० ॥ ७ ॥ कोड गये सेवा जेहनी, देव करे करजोड ललना || वे निर्जरानुं फळ लहे, कुण करे जेहनी होड ललना ॥ शीतल० ॥ ८ ॥ जीन उत्तम अवलंवने, पग पग ऋद्धि रसाळ चलना || रतन अमुलख ते बहे, पामे मंगळ माळ चलना || शीतळ ० ॥ ९ ॥ ॥ श्री श्रेयांसनाथनुं स्तवनं ॥ || महाविदेह क्षेत्र सेाहामणुं ॥ ए देशी || श्री श्रेयांस जीणं - For Private And Personal Use Only Page #123 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११४) दनी, मुरती सुंदर देख लालरे ।। रूप अनुत्तर मुरथकी, अधिक गुणो ते पेख लालरे ॥ श्री० ॥ १॥ अंगना अंके धरे नही, हाथे नही करवाल लालरे ॥ विकारे वजोत जेहने,मुद्रा अविही रसाळ लालरे ॥ श्री० ॥२॥ वाणी सुधारस सारखी. देशना दोए जलधार लालरे ॥ भवदव ताप समावकुं, त्रिभुवन जन आधार लाकरे ॥ श्री० ॥ ३ ॥ मिथ्या तिमिर विनाश तो, करता समकिन पोष लालरे ॥ ज्ञान दोवाकर दीपतो, वरजीत सघला दोष लालरे श्री० ॥ ४ ॥ परमातम प्रभु समरतां,लहीए पद निरवाण लालरे । पामे द्रव्य भाव संपदा, एवी आगम वाण लालरे ।। श्री० ॥ ५ ॥ जैनामगथी जाणीयु, विगती जग गुरुदेव लालरे ॥ कीरपा करी मुन दीजीए, मागु तुम पद सेव लालरे ॥ श्री० ॥६॥ तुम दरशनयी पामीसं, गुणनिधि आनंदपुर लालरे। आज महोदय में लह्यो,दुःख गयो सवि दुर लालरे ।। श्री० ॥ ७॥ विष्णुनंदन गुण नीलो, विष्णु मात मल्हार कालरे ॥ अंके खड्गी दीपतुं,गुणमणीनो भंडार लालरे ॥ श्री० ॥ ८ ॥ समेतशिखरे सिदि वर्या, पाम्या भवो. दधि पार लालरे ॥ जिन उत्तम पद पंकजे, रवन यधुप झंकार लालरे॥ श्री० ॥९॥ ॥ श्री वासुपूज्यस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥ मारो पेउ ब्रह्मचारी ने राजुलनारी (अयवा) एम कोइ सिद्धिचर्या मुनीराया ॥ ए देशी ॥ वासुपूज्य जिन अंतरजामी, For Private And Personal Use Only Page #124 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११५) भणषु शिरनाभी रे ॥ मारा अंतरजामी ॥ त्रिकरण जोगे ध्यान तुमारं, करतां भव भय वारु रे ॥ मारा० ॥१॥ चात्रीस अतिभय शोभा कारी, तुमची माउं बलिहारी रे ॥ मारा० ।। ध्यान दिनाणे शक्ति प्रमाणे, सुरपति गुण वखाणे रे ।। मा० ॥२॥ देशना देतां तखत विराजे, जलधरनी पेरे गाजेरे ॥ मा. वाणी सुधारस गुणमणी खाणी, भाव धरी सुणे पाणीरे ।। मा० ॥३॥ दुविध धरम दयानिधि भाखे, हेतु जुगते प्रकाशे रे ॥ मा० ॥ मेदरहित निरखीने मुजने, तो जग वधशे कीर्ति तुजने रे ॥मा०॥ ॥ ४ ॥ मुद्रा सुंदर दोपे तहारी, रुप माह्या अमर नरनारी रे ॥ मा० ॥ साहेब समतारसनो दरिओ.मार्दव गुण जे भरीओ रे॥ ॥ मारा।। ५ ॥ सहजानंदी साहेव साचो, जीम होये हीरो साचो रे । मारा० ॥ परमातम प्रभुजो ध्याने ध्यावो, तो अक्षय सोला पावो रे ॥ मारा० ॥ ६॥ रक्तवरण दीपे तनु कान्ति, जोबां होय भव शांतिरे ॥ मारा० ॥ उत्समविजय विबुधनो शीश, कद्दे रवनविजय सुजगोश रे ॥ मारा अंतरजामी ॥७॥ ॥ श्री विमलनाथनुं स्तवन ॥ झुमखड़े झुमी रधु रे।। (अथवा) यात्रा नवाणुं करीए सलुणा। ॥ देशी ॥ विमल निनेसर सुंदरुं रे, निरुपम छे तुम नाम ।। मीोसर सांभरे । पुरणानंद परमेसरु, आतम संपदा स्वामी ॥ बीणेसर० ॥१॥ निरागौशु नेहलो, मज मन करवा भाव ॥ For Private And Personal Use Only Page #125 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११६) ॥जी॥ निःकारण जगवच्छलु, भवोदधि तारग नाव || जी० ॥ ॥२॥ सारथवाह शीवपंथनो, भाव धरम दातार ।। जी० ॥ ग्यानानंदे पुरणो, त्रिभुवन मन आधार || जो० ॥ ३ ॥ अष्ट करम हेला हणी, पाम्या शीवपुर गम । जी० । क्षायक भावे गुणवरा, हुं समरूं नित्य तास ॥ जी० ॥ ४ ॥ गुण गाता गिरुआ तणा, जीहवा पावन थाय || मी० ॥ नाम गात्र जस साभले, भव भवनां दुःख माय || जी ॥ ५। मन मोहन मारा नाथशं, अवर न आवे दाय ॥ जी०। पामी सुरतरु परवडा, कोण करीरे जाय ॥ जी० ॥ ६ ॥ सहजानंदी साहेबो वरजीत सकळ उपाधि ॥ जी० ॥ जीन उत्तम अबलबने, रतन लहे निजसाध ॥ जी० ॥ ७॥ ॥श्री अनंतनाथजीतुं स्तवन ॥ ॥सुण मेरी सजनी रजनी न जावे रे ।। ए देशी ॥ अनंत जीणेसर साहिब माहरो रे, पुरण पाम्यो दरशन ताहरो रे ॥ प्रभु सेवा मुज लागे प्यारी रे, तुमचा गुणनी जाउं बलिहारी रे ॥१॥ केवल ज्ञाने जगतने जाणे रे, लोकालोकना भाव वखाणे रे ॥ सम्यक ज्ञान ते भव दुःख कापे रे, ज्ञानविण क्रिया फल नवी आपे रे ॥२॥ सामान्ये वस्तु पदारथ जंह रे, एक समयमा देखे, तेह रे ॥ केवल दरीशण विगते जाणो रे. जैनागमथी चित्तमा आयो रे ॥ ३ ॥ निरुपाधिक निज गुण छे जेहरे, निजस्वभावमा स्थिरता तेहरे ॥ क्षायक चारित्र ते जग सार रे, जे आवे भवों For Private And Personal Use Only Page #126 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११७) दधि पार रे ॥ ४॥ विलसे अनंत नीरज उदार रे, ए भाख्या अनंता चार रे ॥ ए गुणना प्रभु तुम छ। भोगी रे, गुणठाणातीत थया अजोगी रे ॥ ५॥ त्रिकरण जोगे ध्यान तुमारूं रे, करता सारं काज अमारु रे ।। पुष्टालंबन देव तुं मारो रे, हुँ छ सेवक अवाभव तारो रे ॥ ६॥ सिंह सेन नृपवंश सुहायो रे, सुजसा राणी तुजने जायो रे ॥ उत्तम विजय विबुधनो शिष्य रे, रतनविजयनी पुरो जगीश रे ॥७॥ ॥श्री धर्मनाथनुं स्तवन ॥ ॥ कपुर हाये अति उनळो रे ॥ ए देशी ॥ धरम जिणेसर ध्याइएरे, आणी अधिक सनेह ॥ गुण गातां गिरा नमा रे, चाधे बमणो नेह ॥ १ ॥ जीणेतर पुरो अमारी आश ॥ जीम पामुं शोवपुर वास ॥ जी० ॥ ए आंकगी ॥ काल अनादि निगोदमा रे, भम्यो अनंतीवार ॥ करम नटवोये रोळव्या रे, सेवा पाप अढार ॥ जोणे ॥ २ ॥ प्राणातिपात मृषा घणुं रे, त्रीजु बदचादान | विषया रसमां माचीओ रे, गुणनिधि कीधुं दुर ध्यान ॥ नी० ॥ ३ ॥ नवविध परिग्रह मेळियो रे, कीयो क्रोष अपार ॥ मान माया लाभे करोरे, न लह्यो तत्व विचार । बी० ॥४॥रागद्वेष कलहे करी रे, दीर्धा परने आल। शुन रति अरति वली रे, जे सेवे दुःख असराल ।। मी• ॥५॥ दोखवी दीपा गुणवंतनेरे रे, कीपा माया मोष ॥ मिथ्या शल्य बोपे करी रे, कीधा अविरती पोष जो. ॥ ६ ॥ पापस्थान सेवे For Private And Personal Use Only Page #127 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११८) जीवडो रे, रुळीओ चौगति मोझार ॥ जनम मरणादि वेदनारे, सही ते अनंत अपार ॥ जी० ॥ ७ ॥ एवी विटंबन वेदनारे, टाळो श्री जिनराज || बांहे ग्रहीने तारीए रे. सारो सेवक कान ॥ जी० ॥ ८ ॥ धरम जिनेश्वर स्तवतां थकां रे, पोहोती मननी श्राश ॥ जीन उत्तम पद सेवतां रे, रतन लहे शीववास ॥ ॥ जी. ९॥ ॥श्री शांतिनाथनुं स्तवन ॥ .. ॥ ढंढण ऋषिने बंदणा हुँ वारी ।। ए देशी ॥ अचिरानंदन वंदीए हुं बारी । गुणनिधि शांति जीणंद रे हुं वारी लाल ॥ अभयदान गुण आगरु हुं वारी, उपशम रसनो कंदरे हुं वारी लाल ॥ अचिरा० ॥१॥ मारी मरकी अति वेदना हुँ वारी, पसरी सघले देशरे ॥ हुं वारी लाल ॥ दुखदायक अति आकर हुं बारी, पामे ते लोक कलेश रे ॥ हु० ॥ अ० ॥ २ पुण्यानुबंधी पुण्यथी हुँ वारी, उपन्या गरभ मझार रे ॥ ९० शांति प्रति मन पदे हुं वारी, हुआ जयजयकार रे ॥ हुं० ॥ अचिरा० ॥३॥ दोय पदवी एके भवे हुं वारी, षोडशमो जगदीशरे ॥ हुं०॥ पंचम चक्री गुणनिलो हुँ वारी, पर उठी नामुं शीशरे ॥ ९॥०॥ ॥ ४ ॥ दीक्षा ग्रहे दीन ते थकी हुं वारी, चउनाणी भगवानरे।। ॥ हुं० ॥ धनधाति करपना नाशयो हुँ वारी, पाम्या पंचम शान रे ॥ हुं० ॥ अ० ॥५॥ तीरथपति विचरे जीहां हुंवारी, त्रिगहुं रचे सुर रायरे ॥ ९० ॥ समवसरणे दीए देशना हुं वारी, सुणतां भव दुःख जाय रे ॥ ९ ॥ १०॥६॥ पणवीशसते आगळां हूं For Private And Personal Use Only Page #128 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (११९) बारी, जोयण लगे ते जाणरे हु वारी लाल ॥ स्वचक्र परचक्रनां हुं वारी* ॥ अ० ॥ ७॥ जीव घणा तीहां उधरी हुं वारी. शीब. सुर सनमुख कीध रे ॥ १० ॥ अक्षय सुख जोहां शाश्वतां हुवारी, अविचल पदवी दीध रे ।। हुं० ॥ अ० ॥ ८ ॥ सहस मुनि साथे वर्या हुं वारी, समेतशिखर गिरि सिधरे ॥ हु० ॥ उत्तम गुरुपद सेवतां हुं बारी, रतन लहे नव नीघरे ॥ हुँ० ॥ अ० ॥९॥ ॥ श्री कुंथुनाथर्नु स्तवन ॥ ॥ कत तमाख परिहरो ॥ ए देशी ॥ कुंथु जिणेसर साहेबो, सदगतिना दातार मेरे छाल ॥ श्राराधेो कामित पुरणो, त्रिभुवने जन आधार मेरे लाल ॥ सुगुण सनेही साहेबो ॥ १॥ दुरगति पडतां जंतुने. उदरवा दीए हाथ ॥ मेरे ॥ भवोदधि पार उता. रवा, गुणनिधि तुं समरथ ॥ मेरे० ॥ मुगुण ॥२॥ भर बीजेथी बांधियु, तीर्थकर पद सार ॥ मेरे० ॥ भव सर्वनी करुणाये करी, वली थानक तपथी उदार ॥ मेरे ॥ स० ॥ ३ ॥ उपकारी अरि. इंतजी, महिमावत महंत ॥मेरे०॥ निःकारण जग वच्छलु, गीरुभो ने गुणवंत ॥मेरे०॥ सु० ॥४॥ ग्यानानंदे पुरणो, भाखे धर्म उदार मेरे०॥ स्यादवाद सुधारसे, वरसे ज्यु जलधार |मेरे०।मु०॥५॥ अतिशय गुण उदये थकी. वाणीनो विस्तार || मेरे || उत्तमविजय विबुधना शीश,कहे रतनविजय सुजगीशरे ||मारा अंतरजामी। बारे परखदा सांभले, जोयण लगे ते सार ।। मेरे० ।मु०॥६॥ सारथवाह शीवपंथनो, आतम संपदा इश || मेरे० ॥ ध्यान भुवनमा * सातमी गाथामां एक चरण त्रुटे छे. ते कोइ पासे होयतो अमने लखी मोकलशो अने पुस्तकमा सुधारी पांचजो. For Private And Personal Use Only Page #129 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२० ) ध्यायतां, लहीए अतिशे जगीश || मेरे० ॥ ७ ॥ छठ्ठा चक्री दुःख हरे, सत्तरमा जीनदेव || मेरे० || मोटे पुन्ये पामीओ, तुम पद पंकज सेव || मेरे ० || सु० || ८ || परम पुरुषनो चाकरी, करवी मनने कोड || मेरे ० || उतम विजय विबुध तणो, रतन नमे करजोड || मेरे० || सु० ॥ ९ ॥ ॥ श्री अरनाथनुं स्तवन ॥ ॥ चतुर सनेही मोहना ॥ ए देशी ।। अर जीनवर दीए देशना, सांभलजेो भवि प्राणी रे || मीठा सुधारस सारखी, सुणीप अनुभव आणी रे || अर० || १ || आळस मोह अज्ञानता, विषय प्रमादने छंडी रे ॥ तनमय त्रिकरण जोगभुं, धरम सुणो चि मंडीरे || अ० ||२|| दश दृष्टांते दोहिलो, नरभवनो अवतार रे ॥ सुरमणी सुरतरु सारीखो, तेहधी अधिक ते जाणो रे अ० ॥ ३ ॥ ए संसार असारमां, जनम्यो चेतन एह रे । घरमे वरजीत दीन गया, हजी न आव्यो छेह रे ॥ अ० ॥ ४ ॥ ज्ञान दरशन मय आतमा, कर्म पंके अवराणो रे || शुद्ध दिशा निज हारोने, दोषे ते भराणो रे । अ० ॥ ५ ॥ दोष अनादि उधरे, जैनागम जग सारो रे || सकल नये जे आदरे, तो होय भवोदधि पारो रे ॥ अ० ॥ ॥ ६ ॥ जीन आणाए आराधतां विधे थई उजमाल रे ॥ संवर साथे निर्जरा, नित्य पामे मंगलमाळ रे || अ० ||७ ॥ चक्री भू ते सातमो, अढारमो जीनराय रे || उत्तम विजय कविराजनो, स्तन विजय गुण गाय रे ॥ अ० ॥ ८ ॥ COR For Private And Personal Use Only Page #130 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२१) ॥ श्री मीनाथनुं स्तवन ॥ ॥ देशो ॥ नगपतिनी । जगपति साहेब मल्लि जिणंद, महिमा महिअक गुणनोलो ॥ जगपति दिनकर ज्यु उद्योत, कारक वंशे कुल तिको ॥१॥ जगपति प्रबल पुन्य पसाय, उद्योत नरके विस्तरे ॥ जगपति अंतर महुरत नाम, शातावेदनी ते करे ॥२॥ जगपति सुधारस दृष्टिसाय, तुनमुख चंद्र थको झरे ।। जगपति पडिबोहे भवियण स्वाम, मिथ्या तिमिर दुरे करे ॥३॥ जगपति जगमां झाझ समान, उपगारी शीर सेहरो ॥ जगपति तुम दरसनथी आज, काज सो हवे माहरो ॥४॥ जगपति दीठे तुम मुखकज, दुरित नाठा त्रण माहरे ॥ जगपति दलिद्रपणुं ने दुर्भाग्य पुष्टालंबन प्रभु ताहरे ॥ ५ ॥ जगपति भवोभव संचित जेह, अध नार्ग टली आपदा ॥ जगपति जाचुं नहीं कोशो दाम, मागुं तुम पद संपदा ॥६॥ जगपति थुणोओ धरी मन नेह, ओगणीशमा जीन सुख करु ॥ जगपति नील वरण तनु कान्ति, दीपती . रुप मनोहरु ॥७॥ जगपति जीन उत्तम पद सेव, करतां सवि संपद मले ॥ जगपति रतन नमे करजोड, भावे भवोदधि भय टले ॥८॥ ॥श्री मुनिसुव्रतस्वामीनुं स्तवन ॥ ॥वीर जीणंद जगत उपगारी ॥ ए देशी ॥ मुनिसुव्रत मोन अधिक दिवाजे, महीमा महियळ छाजेनी ॥ त्रिजग वंदित श्रीयुबन स्वामी,गिरुओ गुणनिधि गाजेनी ॥ मुनि०॥१॥वड वखत पर अतिशय पारी, कल्पातित आचारमी ॥ चरण करणभुत प. For Private And Personal Use Only Page #131 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२२) हाब्रत धारी, तुमची जाउं बलिहारीजी ।मु० ॥ २ ॥ जग जन रंजन भवदुःख भंजन, निरुपाधिक गुण भोगीजी ॥ अलख निरं जन देव दयाळु, आतम अनुभव जोगीजी ॥ मु० ॥ ३ ॥झाना वरणी क्षयथी प्रगटयु, अनोपम केवल नाणजी ॥ लोकालोक प्रकाशक स्वामी, उग्यो अभिनव भाणजी ॥ मु०॥ ४॥ वरसी वसुधा पावन कीधी, देशना सुधारस सारजी ॥ भविक कमक मतिबोध करीने, कीधा बहु उपकारजी ॥ मु० ॥ ५॥ संपुरण तें सिद्धता साधी, वीरमी सकल उपाधिजी ॥ निरुपाधिक ते निजगुण वरीया, अनोपम अव्यावाधजो । मु० ॥ ६ ॥ हरिवंशे विभुषण दोपे, अरिष्ट रतन तनु कान्तिजी ॥ मुख सागर प्रभुदास वंदित, जोता होये भव शांतिजी ।। मुनि० ॥ ७॥ सभेत शिखरे सिद्धि वरीया, सहस पुरुषने साथजी ॥ जीन उत्तम पदने अक्लंबी, रतन थाय सनाथजी ॥ मुनि० ॥ ८ ॥ ॥ श्री नमिनाथजीनुं स्तवन ॥ ॥ थापर वारी मोरा साहिबा, काबुल मत जाजो॥ (अथवा) साना रुपाके सेोगटे सैया खेळत बाजी ॥ ए देशी ॥ निरुपम नमी जोणेसरु, अक्षय सुखदाता ॥ अतिशय गुण अधिकथी, स्वामी जग विख्याता ॥ निरुपम०॥१॥ बार गुणो अरिहंत थकी, उंचो वृक्ष अशोक । भव दव पोडित जंतुने, जाय जोतां शोक ॥ निरु०॥२॥ पीत वरण सिंहासने, प्रभु बेठा छाजे ॥ दिव्यध्वनी For Private And Personal Use Only Page #132 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२३ ) दीये देशना, नादे अंवर गाजे || निरु० ॥ ३ ॥ छत्र घरे त्रण सुरवरा, चामर वीजाय ॥ भामंडल अति दोषतुं, पुंठे जीनराय ॥ निरु० || ४ || जांजन माने सुर करे, दृष्टि कुसुम केरी ॥ गयणे गाजे दुंदुभी, करे प्रदक्षण फेरी || निरु० ॥ ५ ॥ अष्ट महा पाडिहारे करी, दीपे श्री जगदीश || अष्ट करम हेलां हणी, पाम्या सिद्धि जगीश || निरु० || ६ || नामे नवनिधि संपजे, सेवतां भव दुःख जाय || उत्तम विजय विबुध तणो रत्न विजय गुणगाय ॥ ॥ निरु० ॥ ७ ॥ ॥ श्री नेमनाथनुं स्तवन ॥ ॥ हांरे हुतेा भरवा गइती नदी जमनानुं नीरजा || ए देशी ॥ हांरे मारे नेमि जोणेसर अलवेसर आधारजो || साहिवरे सोभागी गुणमणी आगरु रे का || हां० परम पुरुष परमातम देक पवित्रजी, आज महोदय दरीसण पामे ताहरु रे को ॥ १ ॥ ह तोरण आवी पशु छोडावी नाथजेा, रथ फेरीने बळीआ नायक नेमजी रे लो || हां० देव अटारे ए शुं कीधुं आजजेा, रढीआळी बर राजुल छोडी नेमजी रे ले || २ || हां० संजोगी भाव विजोगी जाणी स्वामी जो, ए संसारे भमता का केहनुं नही रे लो ॥ हां० लोकांतिक वाणी अवधि जाणी मानजेो, बरसीदान दीए तीहां म सही रे लो || ३ || हां० सहसावनमां सहस पुरुषने साथजो भव बळी दुखे छेदण चारित्र आदरे रे लो ॥ For Private And Personal Use Only Page #133 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२४) वस्तु तत्वे रमण करता सारजो, चापनमे दिन अनोपम प्रभु केवल चरे रे लो ॥ ४ ॥ हॉ० लोकालोक प्रकाशक त्रिभुवन भाणजो, त्रिगडे बेसी धरम कहे तीहां जीनवरु रे को ॥ हां. शीवानंदन वरसे सुधारस वाणीजो, आस्वादे भविय चकोर अति सुंदरं रे हो ॥५॥ हां० देशना सांभळी बुजी राजुल नारीजो, निज स्वामीने हाथे संजम आदरे रे लो ॥ हां० अष्ट भवनी पाली पुरण प्रीतजो, पिउ पेहेलां शीव रमणी राजुल ते वरी रे लो ॥६॥ हां० विचरी वसुधा पावन कीधी नाथजो, जग उपगारी साहेब ते देव गुणनिधि रे लो । हां जीन उत्तम पद पंकज अनोपम से. चनो, करतां रतनविजयनी कीरति अति वधी रे लो ॥७॥ ॥श्री पार्श्वनाथन स्तवन । ॥ कोइलो परवत धुंधलारे लो॥ ए देशी।। त्रिभुवन नायक चंदोये रे ले, पुरुषादाणी पासरे जोणेसर । सुरपणी मुरतरु सारीखो रे ले, पुरतो विश्वनी आशरे जीणेसर ॥ जयो जयो पास जीणेसरु रे लो ॥१।। पुष्टालंबन भविकने रे लो, महिमा निधि बावास रे जीणेसर ॥ वासव पुजित वंदोए रे लो, आणी पाव 'उल्लासरे जीणेसर ॥ जय० ॥२॥ श्री जोन दरीसण ते विना रे लो, भमोयो काल पार रे जीणेसर ।। आतम धरम न ओल. हयो रे छो, न यो तत्व विचार रे जोणेसर ॥ जय० ॥३॥ For Private And Personal Use Only Page #134 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२५) प्रवचन अंजन जे करे रे लो, पामी सदगुरु संगरे जीणेसर श्रिद्धा भासन उजले रे ले, तो लहीए धरम प्रसंग रे जीणेसर ।। नयो०॥४॥ साधन भावे भक्किने रे लो, सिद्धने क्षायक होय रे जीणेसर ॥ प्रगटयो धरम ते आपणो रे लो, अचल उ. भंग ते जाये रे जीणेसर ॥ जया ||५|| तुज चरणा मुज भेटता रेलो, भावे करी जीनराज रे जीणेसर । नेत्र जुगल जोन निरखता रे लो, सीध्यां बंछित कामरे जीणेसर ॥ जय० ॥६॥ नील वरण नब कर भलं रे लो, दीपे तनु सकुमाल रे जीणेसर । नीन उत्तम पद सेवता रे लो, रतन लहे गुण माळ रे जीणेसर। जयो जयो पास जीणेसरु रे ले ॥ ७॥ ॥ श्री महावीर स्वामीनु स्तवन. ॥सने गोकुळ बोलावे कान गोविंद गोरो रे ॥ ए देशी ॥ चोवीसमो श्री महावोर,साहीच साचो रे ॥ रत्नत्रयीन पात्र, हीरो मानारे॥१॥ आठ करमनोभार, कीधा पुरो रे॥ शीव वधुते नारी यइ हजुरो रे॥२॥ तुमे साया आतम काज, दुःख निवाया रे।।पोहोता अविचल ठाम, जिहां नहीं फेरा रे ॥३।। जोहां नही जनमने मरण, थया अविनाशी रे ॥ आतम सत्ता जेह, तेह प्रकाशो रे ॥४॥या निरंजन नाथ, माहने चुरी रे ॥ छोडी भव भय कुप, गति निवारी रे ॥ ५॥ अतुली बल अरिहंत, क्रोधने छेदो रे ॥ फरशी गुणना For Private And Personal Use Only Page #135 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२६ ) ठाण, थवा अवेदी रे || ६ || एवा मभुजोतुं ध्यान, भवियण घरीए रे || करीए आतम कान, सिद्धि वरोए रे ॥ ७ ॥ सेवो थइ सावधान, आलस मोडी रे ॥ निद्रा विकथा दुर, माया छोडीरे ॥ ॥ ८ ॥ मृगपति लेखन पाय, सोवन काया रे || सिद्धारथ कुल तिलक समान, त्रिसलाये जायारे ॥ ९ ॥ सतरो दो वरस आय, पुरण पाली रे | उद्धरोया जीव अनेक, मिथ्या टालो रे ॥१०॥ जीन उत्तम पद सेव करतां सारी रे ॥ रतन लहे गुणमाळ, अति मनोहारी रे ॥ ११ ॥ , || कलश || वीर जीणंद जगत उपगारी | ए देशी । चोवीश जीनेशर भुवन दीनेसर, निरूपम जग उपगांरीजो || महिमा निधि मोटा तुम महियल, तुमची जाउ बलिहारोजी ॥ १ ॥ जनम कल्याणक वासव आवी, मेरु शिखरे नवरावेजी ॥ मानुं अक्षय सुख लेवाने सुर, आदे जीन गुण गायाजी ॥ २ ॥ ग्रहवास छंडो समणा जाया, संजमशुं मन भायाजी | गुणपणी आगर ज्ञान दीवाकर, समोवसरण सुहायाजी || ३ || दुविध धरम दयानिधि माखे, निःकारण ग्रहे हाथेजो || वाणी सुधारस बरसी वसुधा, बावन कीधी नाथेजो ॥ ४ ॥ चोत्रीस अतिशय शोभाकारी, वाणी गुण पांत्रीसजी ॥ अष्ट करम मल दुर करीने, पाम्या सिद्ध अगीसजी ।। ५ ।। चोवीस जीननुं ध्यान धरंतां, लहीए गुण मणी खाणीजी || अनुक्रमे ते महोदय पदवी, पामे पद निरवाणजी || ॥ ६ ॥ तप गच्छ अंबर उदय भानु, तेज प्रतापी छाजेजी ॥ ॥ 19 For Private And Personal Use Only Page #136 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२७) विजय देव मुरीश्वर राया, जश महिमा महियल गाजेजी ॥ ING तास पाट प्रभावक सुंदर, विजयसिंह सुरीशजी । वडभागी बैरागो त्यागो, सत्यविजय मुनीशजी ॥८॥ तसपद पंकज मधुकर सरीखा, कपुरविजय मुणिदानी ॥ खिमाविजय तस आसन शोभित, जिनविजय गुरुगुण चंदाजी ॥ ९॥ गीतारथ सारथ सुमुण शोभागी, लक्षण लक्षित देहाजी ॥ उत्तम विजय गुरु जग अयवंता, जेहने प्रवचन नेहाजी ॥ १० ॥ ते गुरुनी बहु मेहेर नजरथी, पामी तास पसायेजी ।। रतनविजय शिष्य अति उछरंगे. पीन चोवीस गुण गायाजी ॥ ११ ॥ सूर्यमंडण पास पसाया, धरमनाथ Bखदायाजी ॥ विजय घरम सुरीश्वर राज्ये, श्रद्धा बोध चपागजी ।। १२ ।। अढारसे चोनीसा वरसे, सुरत रही चोमासुभी। माधव मासे कृष्ण पक्षे, त्रयोदशी दीन खासजी ॥ १३ ।। इति चोवीसी संपूर्ण ॥ ॥श्री मंधर जिन स्तवन ॥ जाप्राण पीयारा पास जिनेसर रायरे जिनवरजो (अथवा) तोरणथी रथ फेरी चाल्या कंथरे प्रीतमजी-ए देशी का विजया विराजे पुखल वइ जिनराय रे ॥ जिनपरजी ॥ अंडरगणी पुर दीगं आवे दाय ॥ मोरा निनवरजी ॥ मन विसबीबी श्रेयांस कुमार रे ॥जिनवरजो॥ सत्यकी नंदन रुकमणीनो For Private And Personal Use Only Page #137 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१२८) भरतार ॥ मोरा जिन० ॥१॥ वदन विलेोकी सफल करे अक तार रे ।। जिन० ॥ धन ते नगरी धन ते नरने नार ॥ मो० ॥ दुर निवारो दुखदाइ संसार रे ।। जि. ॥ तो हुँ तुमारो विसरू नही उपगार ।। मो० ॥ २ ॥ नरपति धनपति सुरपति गोता खात रे ॥ जि० ॥ तो किणनें कहुं अंतरगतनी वात ।। मो०॥ तरसु निरंतर देखण तुझ दीदार रे ॥ जि० ॥ सांसमे समरू साहिबने सेोवार ॥ मो० ॥ ३ ॥ मुजरो माहरो मनमोईन अवधार रे ॥ जि० । जिम तिम करीने भवजल पार उतार |मो०॥ साचो लागो चाक मनीठ ज्यु रंग रे ॥ जि० ॥ अंग न लागे ओछा रंग पतंग ।। मो० ॥ ४ ॥ मन हरी म्हारो मोहाकुल दिन रात रे ।। जि० ॥ कहुं किण विध विषयेनो अंत न आत । मो०॥ कामी क्रोधो कपटी छु जगनाथ रे ॥ जि० ॥ रहणी हमारी लाज तीहारे हाथ ॥ मो० ॥ ५ ॥ जीवन वाहाला विरुद विचारो जोय रे॥ जि० ॥ अधम उधारो तो प्रभु साची होय ॥ मो०॥ अरजी लीज्या अनुचररी मन मांहे रे ॥ जि० ॥ भव भव जिनमत होज्यो अवर न चाहे ॥ मो० ॥६॥ श्री सिमंधर साहिब वसीया दुर रे ॥ जि० ॥ जवही समरूं तबही आनंदपुर । मो० ॥ मुजरो म्हारो मानो उगते सूर रे ॥ जि० ॥ रत्नमुनी हियै वसज्यो नाय हजुर । मो० ॥ ७ ॥ इति ।। For Private And Personal Use Only Page #138 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १२९) शी-यु श्री सीमंधर जीन स्तवन बीजं. . ॥ देखो गती दैवनी रे-ए देशी.॥ ॥ श्री सीमंधर साहिबा रे, जगदिश्वर जगनाथ ॥ जगत तात तुझ उलगु रे, तरवा भव जग पथ ॥ जिनेश्वर सांभलो रे, कीजे सेवक सार अंतर होय निरमलो रे ॥ ए आंकगी ॥ कर्म वसे जग हुंभम्यो रे, ते तो कयुं नवि जाय ॥ अब तुम्ह चरण सेवा मिली रे, पुरण पुन्य पसाय ॥ जिनेश्वर० ॥२॥ पण क्रोधादिक - श्चिका रे, मन मंकड डंक दाय ॥ उन्मतने विष व्यापीयु रे, तेणे न रहे मन ठाय ॥ जिने० ॥३॥ वयरी जगमाही ए वडा रे, विषम फल दातार ॥ तेहने सेहजे ते जीतीया रे, जन मन अचरीज कार ॥जिने०॥४॥ लोके प्रसिद्ध छे वातडी रे, वयरी क्रोधे पलाय ।। क्रोध विना ते ताडीया रे, वयरी भागा जाय ॥ जिने ॥५॥ मांन विहुणा जग सहु रे, आत्री नमे तुझ लोक ॥ माया विण माया करे रे, भविजन थोका थोक ॥ जिने ॥६॥ लोभ विना लछि मिली रे, इम अनेक विचार ॥ जोतां मुझ मन गह गहे रे, अचरिज ठारोठार ॥ जिने० ॥७॥श्रेयांस सत्यकी जयो रे, पुखल. वइ मझार ॥ पुंडर गणी रुखमणीनो रे, स्वामी जगनो आधार । ॥जिने०॥८॥ रिषभांतिक पा कोसर्नु रे, देह सुवर्ष तुझ आय॥ पुरव चोराशी लखतणु रे, कहे केसर सुखकार॥ जिने ॥९॥इति॥ For Private And Personal Use Only Page #139 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३०) ॥ स्तवन त्रीजुं॥ ॥ साहिब सांभळो रे, संभव अरज हमारी-ए देशी ॥ ॥श्री सीमंधरु रे, मारा प्राण तणा आधार ॥ जिनवर जय करु रे, जेहना झाझा छे उपगार ॥क्षण क्षण सांभरे रे, एक श्वास मांहि सोवार॥ किमही न विसरे रे, जे वसीया छे हृदय मोझार ॥ श्री सीमंध० ॥१॥ हुँसी हियडले रे, जिम होय मुक्ता फलनो हार ॥ ते तो जाणीये रे, ए सवि बाहिरनो शणगार ॥ प्रभु तो अभ्यंतरे रे, अलगा न रहे लगार ॥ अहनिश वंदणा रे, करीये छीये ते अवधार ॥श्री सी० ॥२॥ नयन मेलावडो रे, निरखी सेवकने संभाळ ॥ तो हुँ लेख रे, म्हारो सफळ सफळ अवतार ॥ नहि कोइ तेहयो रे, विद्या लब्धिनो उपाय ॥ आवीने मलं रे, चरण ग्रहुं हुं वळी धाय ॥ श्री सी० ॥ ३ ॥ मळवू दोहिल्लु रे, तेहशुं नेह तणो जे लाग ॥ करतां सोहिल रे, पण पछे विरहनो विभाग ।। चंद चकोरने रे, के चकवा दिनकर ते होइ जेम ॥ दूरे रह्या थकी रे, पण तस वधता छे प्रेम ॥ श्री सि०॥ ४॥ पण तिहां एक के रे, कारण नजरनो संबंध ॥ विरहे ते नहीं रे, ए मन मोटा छ रे धंध ॥ पण एक आशरो रे, सुगुणशुं जे रे एक तान ॥ तेहथी वाधशे रे, ज्ञानविमल गुणनो जस मान॥श्री सी०॥५॥ इति॥ For Private And Personal Use Only Page #140 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३१) ॥ स्तवन चोथें ॥ ॥निद्रडी वैरण हुइ रही-ए देशी॥ ॥ श्री सीमंधर साहिबा, विनतडी हो सुणीये किरतार के ॥ ते दिन लेखे लागशे, जिग दिवसे हो लहीशुं दीदारके ॥श्री सी० ॥१॥ हेजाल्लं हैयु उल्लसे, पण नयगे हो निरख्ये मुख थाय के ॥ जे जल पाना पपासीओ, तस दुःखे हो करी तृप्ति न थाय के ॥ श्री सी०॥२॥ जाणो छो प्रभु बहु परे, माहरा मननी हो वीतकनी वात के ॥ तो शुं तागो छो घणु, आत्री मिलो हो मुज थाइ साक्षात के ॥ श्री सी० ॥ ३॥ हुँ उच्छक बहु परे कडं, पण न गणुं हो कांइ रीझ अरीझ के॥ ए लक्षण रागी तणुं, तिणे भांख्यु हो सघर्छ मन गुझ के ॥ श्री० ॥४॥ ज्ञानविमल प्रभु आपणो, जाणीने हो कीजे उच्छाह के ॥ उत्तम आप अधिक करे, आवी मळ्या हो ग्रह्या जे बांध के॥श्री०॥५॥इति॥ ॥स्तवन पांचमुं॥ ॥ कर्म न छुटे रे पाणीया-ए देशी ॥ ॥श्री सीमंधर साहिबा, धरजो धरम सनेह । सेवक रसियो सेवा तणो, हुं छु तुम पद खेह ॥ श्री सो० ॥१॥ वहाला तुमे वस्या वेगळा, छो अम्ह हियडा हजूर ॥ तिणथी तिमिर दुरे गया, उग्यो अनुपम सूर ॥ श्री० ॥२॥ नयणे प्रीति जे दाखवे, ते संयोग For Private And Personal Use Only Page #141 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३२) संबंध ॥ अंतर अंतर विणु जिके, मिलीया परम ते बंधु ॥ श्री०॥ ३॥पुरूखलवइ विजया जिहां । नयरी पुंडरी किणी मांहि ॥ विचरे तिहां सहु इम कहे, पण ते नियति न पाहि ॥श्री०॥ ४॥ विजया मुज शुद्ध चेतना, भक्ति नयरी निमाधि ॥ तिहां विचरे मुज साहिबो, जिहां सुख सहज समाधि ॥श्री०॥५॥ एक तारी तोहि उपरे, में तो कीधा रे स्वामि॥ लोक प्रवाहथी जे बाहे, तेहनां न सरेरे काम ॥ श्री०॥६॥ जिण दिनथी तुम्हे चित्त वश्या, नावे अवर को दाय ॥ ज्ञान विमल सुख संपदा, अधिक अधिक हवे थाय । श्री० ७॥ इति ॥ ॥ श्री सिद्धाचलजीन स्तवन । ॥ वंदना वंदना वंदनारे गीरोराजकुं सदा मेरी वंदना-ए देशी ॥ ॥ गावना गावना गावना रे, गिरिराजका परम जस गावना ।। वीतरागका गीतरस गावनारे ॥ गिरि०॥ ए आंकणी ॥ अति बहुमान सुध्यान रसीले, जीन पद पद्म देखावना रे॥ गिरि० ॥१॥ प्रभु तुम छोडी अवरके द्वारे, मेरे कबहु न जावनारे॥ गिरि० ॥२॥ ज्युं चातकके जलद सलिल. विणु, सरोवर नोर न भावनारे॥ गिरि०॥३॥ ज्यु अध्यातम भाव वेदीकुं, कबहुं ओर न ध्यावनारे॥ गिरि ॥४॥ साम्य भवन मन मंडपमांहि, आय वसे प्रभु पाउनां रे ॥ गिरि०॥५॥ आदि करणके आदीश्वर जिन, शत्रुजय For Private And Personal Use Only Page #142 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३३) शिखर सुहावना रे ॥ गिरि०॥६॥ भरत भूपतिके विरचित गिरितट, पालीताणुं नयर देखाउना रे॥ गिरि० ॥ ७॥ ज्ञानविमल प्रभु ध्यान करतथे, परमानंद 'पद पाउना रे ॥ गिरि०॥८॥ इति ॥ ॥स्तवन बीजं ॥ ॥ लावो लावोने राज मूंघा मूला मोती-ए देशी॥ ॥ मोरा आतमराम कुण दिने शेर्जेजे जाशुं ॥ शेर्बुजा केरी पाजे चढतां, ऋषभ तणा गुग गाशुं ॥ मोरा० ॥१॥ ए गिरिवरनो महिमा निमुणी, हैयडे समकित वाश्यु ॥ जिनवरभाव सहित पूजीने, भवे भवे निर्मळ थाशुं ॥ मोरा०॥२॥ मन वच काया निर्मळ करीने, सुरज कुंडे न्हाशुं ॥ मरुदेवीनो नंदन निरखी, पातिक दुरे पलाश्युं॥ मोरा०॥३॥ इणि गिरि सिद्ध अनंता हुवा, ध्यान सदा तस ध्यारों, सकल जन्ममा ए मानव भव, लेखे करीय सराशुं ॥ मोरा० ॥४॥ सुरनर पूजित प्रभु पदकज रज, निलवटे तिलक चढाशु॥ मनमा हरखी डुंगर फरसी, हैयडे हरखित थाश्यु :॥ मोरा०॥५॥ समकित धारी स्वामि साथे, सदगुरू समकित लाशुं॥ छहरी पाळी पाप पखाळी, दुरगति दुरे दलाश्युं ॥मोरा०॥६॥श्री जिन नामी समकित पामी, लेखे त्यारे गगाश्युं ॥ ज्ञान विमल मूरि कहे धन धन ते दिन, परमानंद पद पाशुं ॥ मोरा०॥७॥इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #143 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३) ॥श्री सिद्धाचळ (रायण)नुं स्तवन त्रीजं ॥ ॥ भवी तुमे वंदोरे सुरीश्वर गच्छराया-ए देशी ॥ ॥ श्री सिद्धाचळ अंतरजामी, जीवन जगदाधार, शांत सुधा रस ज्ञाने भरीयो, सिद्धाचळ शणगार; रायण रुडी रे जिहां प्रभु पाय घरे, विमलगिरि वंदो रे देखत चित्त ठरे, पुण्यवंता प्राणी रे प्रभुजीनी सेवा करे. ॥१॥ एसो तीरथ ओर न जगमां, भोखे श्री जिनराय, दुर्गति कापे ने पार उतारे, वहालो आपे केवलज्ञान, मविजन भावे रे जे एनुं ध्यान धरे, राय० विमल० पुण्य० ॥२॥ वावडीओ रसकुंपा केरी, मणि रे माणेकनी खाण, रयण खाण बहु राजे हो तीरथ, एवी श्रीजीनवाण; सुखना सनेही रे बंधन दूर करे, रायः विमल० पुण्य० ॥३॥ पांच करोडशुं पुंडरीक गणधर, त्रण करोडभुं राम, वीश करोडशुं पांडव सिध्या, सिद्धक्षेत्र सिद्ध ठाम; मुनिवर मोटा रे अनंतानंत तरे, राय० विमळ० पुण्य०॥४॥ गुण अनंता गिरिवर केरा, सिध्या साधु अनंत, वळी रे सिद्धशे वार अनंती, एम भाखे भगवंत; भवोभव केरां रे पातक दूर टळे, राय० विमळ० पुण्य० ॥ ५॥ द्रव्य भावशुं पूजा करतां, पूजो श्री जिन पाय, चिदानंद आतमसुख बेदी, ज्योतिसें ज्योत मिलाय, कीर्ति एनी रे माणेक मुनि करे, राय० विमळ० पुण्य० ॥६॥ For Private And Personal Use Only Page #144 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३५) ॥ स्तवन चोथु॥ ॥ प्रभु तुंहि तुंहि तुंहि तुंहि तुंहि धरतां ध्यानरे ए देशी ॥ ॥ विमल गिरिवर शिखर सुंदर, सकळ तीरथ सार रे॥ नाभिनंदन त्रिजग वंदन, ऋषभजिन सुखकार रे ॥ विमळ० ॥१॥ चैत्यतळे वर रुख रायण, सोहे अति मनोहार रे ॥नाभिनंदनतणां पगलां, भेटतां भवपार रे ॥ विमल० ॥२॥ समवसरिया आदि जिनवर, जाणो लाभ अनंत रे ॥ अजित शान्ति चउमास रहिया, इम अनेक महंत रे ॥ विमल० ॥ ३ ॥ साधु सिध्या जिहां अनंता, पुंडरीक गणधार रे ।। शाम्ब ने प्रद्युम्न पांडव, प्रमूख बहु अणगार रे ॥ विमल० ॥ ४ ॥ नेमिजिनना शिष्य थावच्चा, सहस्स परिवार रे ॥ अंतगडजी सूत्र मांही, ज्ञातासूत्र मझार रे ॥ विमल०॥ ॥ ५ ॥ भाव सहित भवी जे फरसे, सिद्धक्षेत्र सुठाम रे ॥ नरक तिर्यग दो निवारे, जपे लाख जिन नाम रे ॥ विमल० ॥ ६॥ रयणमय जे ऋषभ प्रतिमा, पंचसय धनु मान रे ॥ नित्य प्रत्ये जिहां इंद्र पूजे, दुषम समय प्रमाण रे ॥ विमल० ॥७॥त्रीजे भवे जे मुक्ति पहोंचे, भविक भेटे तेह रे ॥ देव सांनिध्य सकळ वंछित, पुरखे ससनेह रे ॥ विमल०॥८॥ एणीपेरै जेहनो सबळ महिमा, कह्यो शास्त्र मझार रै ॥ ज्ञानविमल गिरि ध्यान धरतां, आवागमन निवार रे ॥ विमल० ॥९॥ For Private And Personal Use Only Page #145 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१३६) ॥ स्तवन पांचमुं॥ ॥प्रीतलडी बंधाणीरे अजित जिणंदस्यु ए देशी. ।। विमळाचळ गिरि भेटो भवियण भावशू, जेथी भवोभव पातिक दूर पलायजो ॥ निकाचित बांध्यां जे कर्मन आकरां, गिरि भेटतां क्षणमां सवी क्षय थाय जो ॥ विमळाचळ० ॥१॥ साधु अनंता इण गिरि पर सिद्धि वर्या, राम भरत त्रण कोडि मुनि परिवारजो ॥पांचसे साथे सीलंगे शिवपद लयं, पांडव पांचे पाम्या भवनो पार जो ॥ विमळाचळ०॥२॥ नमि विनमि आदे बहु विद्याधरा, वली थावच्चा अइमत्ता अणगार जो। शुकराजा वळी सुख ते गिरिपर पांमीया, बाह्य अभ्यंतर शत्रु कीधा छारजो ॥ विमलाचळ० ॥३॥ जुगलाधर्म.निवारण इण गिरि आवीया, रिखम जीणंदजी पुरव नवाणु वारजो॥ कांकरै कांकरे साधु अनंता सिद्धिवर्या, माटे निशदिन सिद्धाचळ मन धारजो । विमळाचळ० ॥४॥ गिरि पागे चदंतां तन मन उल्लसे, भव संचित सवी दुष्कृत दूर पलायजो ॥ सूरजकुंडे नाही निरमळ थाइये, जोनवर सेवी आतम पावन थायजो ॥ विमळाचळ० ॥५॥ जात्रा नवाणुं करीये तन मन लग्नथी । धरीये शील समता वळी व्रत पच्चखाणजो ॥गणिये गरणुं दान सुपात्रे दीजीये, द्वेष तजी धरो शत्रु मित्र समानजो ॥ विमळाचळ० ॥६॥ ए गिरि भेटे भव त्रीजे शिव सुख लहे, पांचमे भव तो भवियण मुक्ति वरायजो ॥ मूरि. धनेश्वरे शुभ ध्याने इंम भांखीयु, पापी अभवीने ए गिरि नवि फरसायजो॥ विमळाचळ०॥ ॥७॥ मूळनायक श्री आदिजीनंदने भेटिये, रायण नीचे प्रणमो For Private And Personal Use Only Page #146 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३७ ) प्रभुना पायजो ॥ बावन जिनाळां चोमुख बिंबने दिये, समेत - शिखर अष्टापद रचना आंयजो || विमळाचळ० ॥ ८ ॥ सकल तिरथनो नायक ए गिरि राजोयो, तारण तीरथ भवदधि मांही पोतजो || सर्वतां ए गिरिवर बहु रिद्ध पामिये, वरिये शिव पद केवळ ज्योता ज्योतजो || विमळाचळ० ॥ ९ ॥ ॥ अथ श्री सिद्धचक्रजीनुं स्तवन. ॥ सिद्धचक्रने भजी रे के भवियण भाव घरी ॥ मद मानने जीए रे, के कुमता दूर करी ॥ ए आंकणी || पहेले पदे राजे रे, के अरिहंत श्वेत ॥ बीजे पदे छाजे रे, के सिद्ध प्रगट जाएं | ॥ सिद्ध० ॥ १ ॥ त्रीजे पदे पीळां रे, के आचारज कहीए || चोथे पदे पाठक रे, के नीलवरण लहीए || सिद्ध० ॥ २ ॥ पांचमे पदे साधु रे, के तप संजम सूरा | शामवरणे सोहे रे, के दर्शन गुण पूरा || सिद्ध० ॥ ३ ॥ दर्शन नाण चारित्र रे, के तप संजम शुद्ध वरो ॥ भवि चित्त आणी रे, के ह्रदयमां ध्यान धरो ॥ सिद्ध० ॥ ४ ॥ सिद्धचक्रने ध्याने रे, के संकट भय न आवे ॥ कहे गौतम वाणी रे, के अमृतपद आवे || सिद्ध० ॥ ५ ॥ इणि ॥ ॥ श्री सिद्धचकनुं स्तवन बीजुं ॥ ( सांभळरे तुं सजनी मारी, रजनी क्यों रमी आवी जी रे. ए देशी. ) श्री वीर प्रभु भविजनने एम कहे, भावदया दिल आणीजी रे; For Private And Personal Use Only Page #147 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३८ ) मुरतरु सम सिद्धचक्र आराधो, वरवा शिववधु राणी, सुभविया सुणजोजी.॥ १॥ शिव कार्य- मुख्य कारण नवपद छे, गुणी गुण पण चारजी रे अरिहंत सिद्ध मूरि उवझाये, साधु वर दर्शनधार, सुभवि० ॥ २॥ ज्ञान चारित्र तप ए नव पदनु, आराधन एणीपरे कीजेजी रे; आसा चैत्र शुदि सातमथी, आंबिल ओळी मांडीजे, सुभवि०॥३॥ चैत्य पूजा गुरुभक्ति करीए, पडिकमणां दोय धारोजी, त्रण काळ देववंदन करीए, ब्रह्मचर्य भूमि संथारो, सुभवि० ॥ ४ ॥ नोकारवाली वीशज गणीए, एकेक. पदनी रंगे जी रे पडह अमारि सदा वजडावी, सुणो आगम गुरु संगे, सुभवि० ॥५॥ कहे धर्मचंद सिद्धचक्र सेवतां, लहोए मंगळ माळजी रे; राज्यऋद्धि रमणी सुख पाम्यो,.जेम नरपति श्रीपाळ, सुभवि० ॥६॥ ॥ अथ सिद्धचक्र स्तवन त्रीजुं ॥ ॥ अवसर पामीने रे, कीजें नव आंबिलनी ओली ॥ ओली करतां आपद जाये, रिद्ध सिद्ध लहियें बहुली ॥ अ० ॥१॥ आसो ने चैत्रे आदरशुं, सातमथी संभाली रे ॥ आलस महेली आंबिल करशे, तस घर नित्य दीवाली ॥ अ०॥२॥ पूनमने दिन पूरी थाते, प्रेमेथु पखाली रे ॥ सिद्धचक्रने शुद्ध आराधी, जाप जपे जपमाली ॥आ० ॥३॥ देहरे जईने देव जुहारो, आदिश्वर अरिहंत रे॥ चोवीशे चाहीने पूजो, भावेशु भगवंत ॥ अ० ॥४॥बे टैके पडि For Private And Personal Use Only Page #148 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १३९ ) कमणुं बोल्यु, देववंदन त्रण काल रे॥श्री श्रीपालतणी परें समजी, चित्तमां राखो चाल ॥ अ०॥ ५॥ समकित पामी अंतरजामी, आराधो एकांत रे॥ स्याद्वादपंथे सचरतां, आवे भवनो अंत ॥१०॥ ॥ ६॥ सत्तर चोराणुं शुदि चैत्रीये, वारशे बनावी रे ॥ सिद्धचक्र गातां सुख संपत्ति, चालीने घेर आवी ॥ अ० ॥७॥ उदयरतन वाचक उपदेशे, जे नरनारी चाले रे ॥ भवनी भावठ ते भांजीने, मुक्तिपुरीमां महाले ॥ अ०॥ ८॥ इति ॥ ॥ अथ श्री सिद्धचक्र चतुर्थ स्तवनम् ॥ ॥ किसके चेले किसके पूत ॥ ए देशी ॥ ॥ सेवो रे भवि. भावे नवकार, जपे श्री गौतम गणधार ॥ भवि सांभलो ॥ हारे संपद थाय॥ भ० ॥ हारे संकट जाय॥०॥ आसोने चैत्रे हरष अपार, आणी गणणुं कीजें तेर हजार ॥ भ०॥ ॥१॥ चार वरस ने वली षट्मास, ध्यान धरो भावें धरी विश्वास ॥भ० ॥ध्यायों रे मयणासुंदरी श्रीपाल, तेहनो रोग गयो ततकाल ॥ भ० ॥२॥ अष्ट कमलदल पूजा रसाल, करी न्हवण छांटयुं त. तकाल ॥ भ० ॥ सातशें महिपती तेहने रे ध्यान, देही पामी कंचनवान ॥ भ० ॥ ३ ॥ महिमा कहेतां एनो नावे पार, समरो तिणे कारण नवकार ॥ भ० ॥इहभव परभव घे सुखवास, बहु पामेलील विलास ॥ भ० ॥ ४ ॥ जाणी रे प्राणी लाभ अनंत, सेवो सुखदा For Private And Personal Use Only Page #149 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४० ) यक ए मंत्र ॥ भ० ॥ उत्तमसागर पंडित शिष्य, सेवे कान्तिसागर निशदिश । भवि सांभलो ॥५॥ इति ॥ ॥अथ श्री सिद्धचक्रजीचें स्तवन पांचमुं॥ ॥ आछे लालनी देशी ॥ ॥ समरी शारदा माय, प्रणमी निज गुरु पाय ॥ आछे लाल ॥ सिद्धचक्र गुण गायशुंजी ॥ ए सिद्धचक्र आधार, भवि उतरे भवपार ॥ आ०॥ते भणी नवपद ध्यायशुंजी ॥१॥ सिद्धचक्र गुणगेह, जस गुण अनंत अच्छेह ॥आ०॥ समयां संकट उपशमेनी॥ लहिये वंछित भोग, पामी सवि संजोग ॥ आ० ॥ सुरनर आवी सहु नमेजी ॥ २॥ कष्ट निवारे एह, रोग रहित करे देह ॥ आ० ।। मयणासुंदरी श्रीपालनेजी ॥ ए सिद्धचक्र पसाय, आपदा दूरे जाय ॥ आ० ॥ आवे मंगल मालनेजी ॥३॥ ए सम अवर न कोय, सेवे ते सुखीयो होय ॥ आ० ॥ मन वच काया वश करीजी ॥ नव आंबिल तप सार, पडिकमणुं दोय वार ।। आ० ॥ देववंदन त्रण टंकनांजी ॥ ४॥ देव पूजो त्रण वार, गण[ ते दोय हजार आ०॥ स्नान करी निर्मल जलेजी ॥ आराधे सिद्धचक्र, सानिध्य करेतेनी शक्र ॥आ०॥ जिनवर जन आगे भणेजी ॥५॥ ए सेवो निशिदीश, कहीये वीशवा वीश ॥ आ० ॥ आल जंजाल सवि परिहरोजी ॥ ए चिंतामणी रत्न, एहनां कीजें जन ॥ आ०॥ मंत्र नही For Private And Personal Use Only Page #150 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४१) एह उपरेजी ॥ ६॥ श्री विमलेसर जक्ष, होजो मुज परतक्ष आ०॥ हुं किंकर छु ताहरोजी ॥ पाम्यो तुहिज देव, निरंतर करुं हवे सेव ॥ आ० ॥ दिवस वल्यो हवे माहरोजी ॥ ७॥ विनति करं एह, धरजो मुजशुं नेह ॥ आ०॥ तमनें शुं कहिये क्लीवलीजी॥ श्री लक्ष्मीविजय गुरुराय, शिष्य केसर गुण गाय ॥ आ० ॥ अमर नमे तुझ ललीललीजी ॥८॥ इति । ॥ श्री वीशस्थानकनुं स्तवन.॥ ॥ हारे मारे ठाम धरमना साडापचवीस देश जो-ए देशी.॥ ____ हारे मारे प्रणमुं सरस्वती मागुं वचन विलास जो, वीशे रे तप स्थानक महिमा गाइशुं रे लोल; हारे मारे प्रथम अरिहंत पद लोगस चोवीश जो, बीजे रे सिद्ध स्थानक पंदर भावशुं रे लोल. ॥१॥ हारे मारे जीजे पवयणशुं गणो लोगस सात जो, चउथे रै आयरियाणं छत्रीशनो सही रे लोल; हारे मारे थेराणं पद पांच दश उदारे जो, छ8 रे उवझायाणं पचवीशनो सही र लोल. ॥२॥ हारे मारे सातमे नमो लोए सव्व साहु सत्तावीश जो, आठमे नमो नाणस्स पंचे भावशुं रे लोल; हारे मारेनवमे दरिसण सडसठ मनने उदार जो, दशमे नमो विणयस्स दश वखाणीए रे लोल. ॥३॥ होरमारे अग्यारमे नमो चारित्तस्स लोगस सत्तर जो, बारमे नमो बंभस्स नव गणो सही रेलोल; हारे मारे किरियाणं पद तेरमे वळी पच For Private And Personal Use Only Page #151 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१४२) वीश जो, चौदमे नमो तवस्स बार गणो सही रेलोल.॥४॥हारे मारे पंदरमे नमो गोयमस्स अट्ठावीश जो, नमो जिणाणं चउवीश गणशृं सोळमें रेलोल हारे मार सत्तरमे नमो चारित्त लोगस्स सित्तेर जो, नाणस्सनो पद गणशुंएकावन अढारमें रेलोल. ॥६॥हारे मारे ओगणीशमें नमो सुअस्स वीश पीस्ताळीश जो, वीशमे नमो तित्यस्स वीश प्रभावशुं रेलोल; हारे मार ए तपनो महिमा चारशे उपर वीश जो, पट मासे एक ओळा पूरी कीजीए रै लोल.॥६॥ हारे मारे तप करतां वळी गणीए दोय हजार जो, नवकारवाली वीशे स्थानक भावशुंरे लोल: हारे मारे प्रभावना संघ स्वामीवच्छल सार जो, उजमणा विधि कीजे विनय लीजीए रे लोल.॥७॥ हारे मारे तपनो महिमा कहे श्री वीर जिनराय जो, विस्तारे इस संबंध गोयम स्वामीने रे लोल; हारे मारे तप करतां वळी तीर्थंकर पद होय जो, देव गुरु इम कांति स्तवन सोहामणो रे लोल. ॥८॥ ॥ दीवाळी- स्तवन ॥ (धारणी मनावे रे मेघकुमारने रे-ए देशी.) दीवाळीने दहाडे रे वीरप्रभु पामोया रे, अनुपम पद निर्वाण; तेणे दिन देवो रे सौ मळी एकठा रे, आव्या अपापापुरी ठाण. दी० ॥१॥ तिहां प्रभु वीर रे मोक्ष जवा थकी रे, कर्यु पापापुरी नाम: अनुक्रमे आव्यारे नंदीश्वर गिरि रे, करवा कल्याणकनां काम.दी० For Private And Personal Use Only Page #152 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४३) ॥२॥ तेणे दिन काशी रे कोशल देशना रे, त्यां गणराय अढार; पोसह कयों रे तेणे आहार त्यागनो रे, संसारनो अंतकार. दी० ॥३॥ ते राजाए मनमां चिंतव्यो रे, भावदीपकनो अभाव: द्रव्यदीपक रे त्यां प्रकटावीयो रे, थयो दीवाली प्रभाव. दी० ॥४॥ तेणे दिन करी रे भवी दीप दीपालिका रे, विधि जयणाए जिन द्वार: तिमिर मीटावी रे निज आतम तणुं रे, करे शिवलक्ष्मी स्वींकार. दी०॥५॥ ॥ श्री पर्युषण- स्तवन । ॥बंजारानी देशी ॥ प्रभु वीर जिणंद विचारी, भाख्या पर्व पजुसण भारी आखा वर्षमां ते दिन मोटा, आठे नहीं तेमां छोटारैः ए उत्तमने उपकारी, भाख्या० ॥१॥ जेम औषधमांहि कहीए, अमृतने सारं लहीए रे: महामंत्रमां नवकारवाळी, भाख्या०॥२॥ वृक्षमांहि कल्पतरु सारो, एम पर्व पजुसण धारो रे मूत्रमांही कल्प भव तारी, भाख्या० ॥ ॥३॥ तारा गगमा जेम चंद्र, सुरवरमांहि जेम इंद्र रे; सतीओमा सीता नारी, भाख्या० ॥४॥ जो बने तो अठ्ठाइ कीजे, वळी मासखमण तप लीजे रे: सोळ भथानी बलीहारी, भाख्या०॥ ॥५॥ नहि तो चोथ छह तो लहीए, अट्टम करी दुःख सहीए १ सात अथवा आठ उपवास. २. एक, बे ने प्रण उपवास वच्चे बे पारणा. For Private And Personal Use Only Page #153 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५४ ) रे; ते प्राणी जुज अवतारी, भाख्या० ॥६॥ ते दिवसे राखी समता, छोडो मोह माया ने ममता रे; समता रस दिलमां धारी, भाख्या०॥७॥ नव पूर्वतणो सार लावी, जेगे कल्पसूत्र बनावी रे; भद्रबाहु वीर अनुसारी, भाख्या० ॥ ८ ॥सोना रुपानां फुलडां भरीए, ए कल्पनी पूजा करीए रे, ए शास्त्र अनोपम भारी,भाख्या०॥ ॥ ९॥ गीत गान वाजिंत्र वजावे, प्रभुजीनी आंगी रचावे रे कर भक्ति वार हजारी, भाख्या० ॥ १० ॥ सुगुरु मुखथी ए सार, सुणे अखंड एकवीश वार रे; जुए एहिज भवे शिव प्यारी, भाख्या० ॥११॥ एम अनेक गुणना खाणी, ते पर्व पजुसण जाणी रे; सेवो दान दया मनोहारी, भाख्या० ॥ १२ ॥ ॥ श्री गौतम स्वामीनुं स्तवन ॥ ॥ कपूर होये अती उजलो रे-ए देशी ॥ पहेलो गणधर वीरनो रे, शासननो शणगार: गौतम गोत्र तणो धणी रे, गुण मणिरयण भंडार, जयंकर जीयो गौतम स्वाम, गुण मणि केरो धाम, ज० नवनिधि होय जस नाम, ज० पूरे वंछित काम, ज० जीयो० ॥१॥ ज्येष्ठा नक्षत्रे जनमीओरे, गोबर गाम मोझार, विश्वभूति पृथ्वीतणो रे, मानवी मोहनगार, ज० ॥२॥ वीर कने दीक्षा ग्रही रे, पांचसोनो परिवार, छह छह करी पारj रे, उग्र करे विहार, ज०॥३॥ अष्टापद लब्धे करी रे, वांद्या जिन For Private And Personal Use Only Page #154 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५) शी-दु चोवीश; जग चिंतामणि तिहां करी रे, स्तवीआ ए जगदीश; ज० ॥४॥ पनरसो तापस पारणा रे, खीर खांड घृत आण; अमृत जस अंगुठडे रे, उग्यो केवळ भाण. ज० ॥५॥ दीवाळी दिन उपन्यु रे, प्रत्यक्ष केवळ नाण: अक्षय लब्धितणो धणी रे, गुग मणि रयण भंडार. ज० ॥ ६॥ पचास वर्ष गृहवासमां रे, छद्मस्थपणाए त्रीश; बार वर्ष लगे केळी रे, आयु वाणुं जगीश. ज० ॥७॥ गौतम गणधर सारीखा रे, श्री विजयसेन सूरीश: ए गुरु चरण पसाउने रे, वीर नमे निशदिश. ज०॥८॥ श्रीयशोविजयोपाध्यायकृत चोवीशी श्रीऋषभ जिन स्तवन (मेरो प्रभुनीको मेरो प्रभुनीको, ( अथवा ) गिरीवर दरीसन विरला पावे ए देशी) ऋषभ जिनंदा ऋषभ जिनंदा, तुं साहिब हुँ छु तुज बंदा ॥ तुजश्युं प्रीति बनी मुज साची, मुज मन तुज गुणश्युं रह्यो माची ॥ ऋ० ॥१॥ दीठा देव रुचे न 'अनेरा, तुज पाखली चितडं दिये फेरा ।। स्वामीश्युं कामणडु कीधु, चित्तहुं अमारं चोरी ली, ।। ऋ० ॥२॥ प्रेम बंधाणो ते तो जाणो, निरवहश्यो तो होशे वखाणो ॥ वाचक जश विनवे जिनराज, बाह्य ग्रह्यानी तुजने लाज ॥ ऋ० ॥३॥ १ बीजा. २ आसपास-चोमेर ૧૦ For Private And Personal Use Only Page #155 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४६ ) श्रीअजित जिन स्तवन । ( कपूर होइ अति ऊजलुरे, ए देशी ) विजयानंद गुणनीलोजी, जीवन जगदाधार । तेहश्युं मुज मन 'गोठडीजी, छाजे वारोवार || सोभागी जिन तुज गुणनो नहीं पार, तुं तो दोलतनो दातार || सो० ॥ १ ॥ जेहत्री कूवा छांडीजी, जेवुं वननुं फूल || तुजभुं जे मन नवि मिल्युंजी, तेह तेहनुं शूल || सो० || २ || माहारुं तो मन धुरिथकीजी, हलिउ तुज गुण संग || वाचक जश कहे राखजोजी, दिन दिन चढतो रंग सोभा० ॥ ३ ॥ श्रीसंभवनाथ जिन स्तवन । सुण मेरी सजनी रजनी न जावे रे ―ए देशी. सेनानंदन साहिबो साचोरे, परि परि परख्यो हीरो 'जाचोरे || प्रीति मुद्रिका तेहश्युं जोडीरे, जाणुं में लही कंचन कोडी रे ॥ १ ॥ जेणे चतुरशुं गोठी न बांधिरे, तिणे तो जाण्युं फोकट वाधीरे ॥ सुगुण मेलावे जेह उछाहोरे, मणुअ जनमनो तेहज लाहोरे || २ || सुगुण शिरोमणि संभवस्वामीरे, नेह निवाह धुरंधर पामीरे ॥ वाचक जश कहे मुज दिन वलियोरे, मनह मनोरथ सघलो फलीयोरे ॥ ३ ॥ १ दोस्ती. २ पहेलांथीज. ३ वारंवार ४ खरो. ५ मनुष्य. For Private And Personal Use Only Page #156 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४७ ) श्रीअभिनन्दन जिन स्तवन । ( गोडी गाजेरे, ए देशी ) शेठ सेवोरे अभिनन्दन देव, जेहनी सारेरे सुर किंनर सेव ॥ एहवो साहिब सेवे तेह हजूर, जेहनां प्रगटेरे कीधां पुन्य पंडूर ॥ शे० ॥ १ ॥ नेह सुगुण सनेही साहिब हेज, 'हगलीलाथी 'लहीयें सुखसेज || तृण सरखुं लागे सघले साच, ते आगणि आव्युं घरणीराज | शे० ॥ २ ॥ अलवे में पाम्यो तेहवो नाथ, तेहथी हूं निश्चय हुआरे सनाथ || वाचक जश कहे पामी रंग रेली, मानुं फलिय अंगणडे सुरतरु वेली ॥ शे० ॥ ३ ॥ R श्रीसुमतिनाथ जिन स्तवन । ( घूघरी आलो घाट, (अथवा ) मन मोहनजी जगतात, वात सुणो जिनराजजीरे ए देशी ) सुमतिनाथ दातार, कीजे 'ओलग तुम तणीरे ॥ दीजे शिवसुख सार, जाणी ओलग जग धणीरे ॥ १ ॥ अखय खजानो तुज देतां खोडी लागे नहीरे ॥ किसि विमासण "गुज्ज, 'जाचक थाके उभा रही || २ || रयण कोड तें दीघ, ऊरण विश्व तदा कियोरै ॥ वाचक जश सुप्रसिद्ध, मागे तीन रतन दिओरे ॥ ३ ॥ १ स्हेज कृपानी नजरथी. २ जाणे. ३ विनती - कालांवाली. ४ अखुट खजानो ५ छानी. ६ मागण ७ वरसी दान वखते For Private And Personal Use Only Page #157 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४८ ) श्रीपदमप्रभ जिन स्तवन । (आज अधिक भावे करी, (अथवा) साहेब बाहुजिनेश्वर विनवू. ए देशी) पदमप्रभ जिन सांभलो, करे सेवक ए अरदास हो ॥ पांति बेसारिओ जो तुम्हें, तो सफल करओ आश हो ॥ ५० ॥१॥ जिन शासन पांति तें ठवी, मुज आप्यु समकित थाल हो ॥ हवे भाणा खडि खडि कुण खमे, शिव मोदक पीरसे रसाल हो ॥५० ॥२॥ गज ग्रासन गलित सीथिं करी, जीवे कीडीना वंश हो । वाचक जश कहे इम चित्त धरी, दीजे निज सुख एक अंश हो ॥ ५० ॥३॥ श्रीसुपास जिन स्तवन । (ए गुरु वाल्होरे, (अथवा ) मारे दीवाळीरे थई आज, प्रभु मुख जोवाने ए देशी) श्रीसुपास जिनराजनोरे, मुख दीठे सुख होईरे ॥ मानु सकल पद में लह्यारे, जोतो नेह नजरि भरि जोई ॥ ए प्रभु प्यारोरे, माहारा चित्तनो गरणहार मोहन गारोरे ॥१॥ "सिंचे विश्व क्रोडो रत्नो आपी जगतने देवाथी मुक्त कर्यु छे. पण मारे तो फक्त त्रण रत्नोज (ज्ञान, दर्शन, चारित्र) जोइये छ माटे ते आपो एटले आनंद. ८ पंगतमां. ९ चंद्रमा वेगळो छे छतां अमृत रसथी पृथिवीने सींचे छे. For Private And Personal Use Only Page #158 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १४९ ) सुधारसेंरे, चन्द रह्यो पण दूररे ॥ तिम प्रभु करुणा 'दृष्टियीरे, लहिये सुख महमूर ॥ ए० ॥ २ ॥ वाचक जश कहे तिम करोरे, रहिये जेम हजूररे || पीजे वाणी मीठडीरे, जेहवो सरस खजूर ॥३॥ श्रीचन्द्रप्रभ जिन स्तवन । (भोला शंभु, (अथवा ) जीरे मारे श्री जिनवर भगवान ए देशी ) मोरा स्वामी चन्द्रप्रभ जिनराय, विनतडी अवधारीयें जीरेजी ॥ मोरा स्वामी तुम्हे छो दीनदयाल, भवजलधी मुज तारीयें जी० ॥ १ ॥ मोरा स्वामी हुं 'आव्यो तुज पास, तारक जाणी गहगही जी० ॥ मोरा स्वामी जोतां जगमां दीठ, तारक को बीजो नही जी० ॥ २ ॥ मोरा स्वामी अरज करतां आज, लाज वर्धे कहो केणि परी जी० ॥ मोरा स्वामी जय कहे 'गोपयतुल्य, भवजलधी करुणा धरी जी० ॥ ३ ॥ श्रीसुविधिजिन स्तवन । ( राग मल्हार ) जिम प्रीति चन्द चकोरने, जिम मोरने मन मेहरे ॥ अम्हने ते तुम्हभुं उल्लशे, तिम नाह नवलो नेह | सुविधि जिणेसरु, सांभलो चतुर सुजाण । अति अलवेसुरु || १ || अणदीठे 'अलजो १ तारनार छो एम जाणी हर्षभर तमारी पासे आव्यो . २ गायनी खरी सरखो. ३ मुंझवण. For Private And Personal Use Only Page #159 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५०) घणो, दीठे ते तृप्ति न होइरे ॥ मन तोहि सुख मानी लिये, वाहलातणुं मुख जोइ ॥ सु० ॥२॥ जिम विरह कहिये नवि हुये, किजिये तेहवो संचरे ॥ कर जोडी वाचक जश कहे, भांजो ते भेद प्रपंच ॥ सु० ॥३॥ श्रीशीतलनाथ जिन स्तवन। (भोलुडारे हंसा विषय न राचीये. ए देशी) शीतल जिन तुज मुज विचि आंतर, निश्चयथी नहि कोय ॥ दसण नाण चरण गुण जीवने, सहुने पूरण होय ॥ अंतरयामीरे स्वामी सांभलो ॥१॥ पण मुज मायारे भेदि भोलवे, बाह्य देखाडीरे वेष ॥ हियडे जूठीरे मुख अति मीठडी, जेहवी धूरत वेष ।। अं० ॥ २ ॥ एहने स्वामीरे मुनथी वेगली, कीजे दीनदयाल । वाचक जश कहे जिम तुम्हस्युं मिली, लहियं सुख सुविशाल ॥ । अं० ॥३॥ श्रीश्रेयांस जिन स्तवन । (मुखने मरकलडे, ए देशी) श्रेयांस जिणेसर दाताजी, साहिब ‘सांभलो ॥ तुम्हे जगमां अति विख्याताजी, साहिब सांभलो ॥ माग्यु देतां ते किशुं 'वि १ विचार करो छो. For Private And Personal Use Only Page #160 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५१) मासोजी, साहिब सांभलो ॥ मुज मनमा एह तमासोजी, साहिब सांभो ॥१॥ तुम्ह देतां सवि देवार्थेजी, साहिब सांभलो ॥ तो अरज कर्य श्युं थायेजी, साहिब सांभलो ॥ यश पूरण केम लहिजेजी, साहिब सांभलो ॥ जो अरज करिने दीजेजी, साहिब सांभलो ॥२॥जो अधिकुं द्यो तो देजोजी, साहिब सांभलो ॥ सेवक करि चित्त धरज्योजी, साहिब सांभलो ॥ जश कहे तुम्ह पद सेवाजी, साहिब सांभलो ॥ ते मुज सुरतरु फल मेवाजी, साहिब सांभलो ॥ ३॥ श्रीवासुपूज्य जिन स्तवन । (विषय न गंजीये, (अथवा) सुतसिद्धारथ भुपनोरे ए देशी) वासुपूज्य जिन वालहारे, संभारो जिन दास ॥ साहिबश्युं हठ नधि होयरे, पण कीजे 'अरदासोरे ।। चतुर विचारिये ॥१॥सासपहिला सांभरेरे, मुख दीठे सुख होय ॥ विसारया नवि विसरेरे, तेहश्यु हठ किम होयरे । च० ॥२॥ आमण दुमण नवि टलेरे, खण विण पूरिरे आश ॥ सेवक जश कहे दीजियेरे, निजपद कमलनो वासोरै ॥ च०॥३॥ १ विनती. For Private And Personal Use Only Page #161 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १५२ ) श्रीविमलनाथ जिन स्तवन । पिक ( ललनानी ढाल (अथवा ) देश मनोहर माळवो - ए देशी. ) विमलनाथ मुज मन वसे, जिम सीता मन राम ललना ॥ छे सहकारने, पंथ। मन जिम धाम ललना ॥ वि० ॥ १ ॥ "कुंजर चित्त रेवा वसे, कमला मन गोविंद ल० ॥ गौरी मन शंकर वसे, 'कुमुदिनी मन जिम चंद ल० ॥ वि० || २ || "अलि मन विकसित मालती, कमलिनी चित्त दिनंद ल० ॥ वाचक जशने वालो, तिम श्रीविमल जिणंद ल० ॥ वि० ॥ ३ ॥ 1 Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir श्री अनंतजिन स्तवन । ( ढाल रायादानी ) श्री अनंत जिन सेवियेरै लाल, मोहनबल्ली कंद ॥ मन मोहनां ॥ जे सेव्यो शिव सुख दियेरे लाल, टाले भव भय फेद ॥ मन० ॥ श्री० ॥ १ ॥ मुख मटके जग मोहिओरे लाल, रूप रंग अति चंग ॥ म० ॥ लोचन अति अणीयालडांरे लाल, वाणी गंग तरंग ॥ मन० श्री० ॥ २ ॥ गुण सघला अंगे वस्यारे लाल, दोष गया सवि दूर ॥ ० ॥ वाचक जश कहे सुख लहूरे लाल, देखी प्रभु मुख नूर || मन० || श्री० ॥ ३ ॥ १ कोयल. २ आंबाने ३ वटेमार्ग ४ घर. ५ हाथीना मनमां रेवा नदी. ६ लक्ष्मीनां मनमां कृष्ण. ७ पार्वतीना मनमां महादेव ८ पोयणी. ९ भ्रमरो. १० सूर्य. • For Private And Personal Use Only Page #162 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५३) श्रीधर्मनाथ जिन स्तवन। (राग मल्हार) देखी कामीनी दोय के, कामे व्यापीयोरे के कामे०-ए देशी. धरमनाथ तुज सरखो, साहिब शिर थकेरे के साहिब शिर थके ॥ चोर जोर जे फोरवें, मुजश्युं इक मनेरे के मु०॥ गज निमीलिका करवी, तुजने नवि घटेरे के तु०॥ जे तुज सन्मुख जोतां, 'अरिनुं बल मिटेरे के अ० ॥ १ ॥ रवि उगे गयणंगणि, 'तिमिर ते नवि रहेरे के ति० ॥ कामकुंभ घर आवें, दारिद्र किम लहेरे के दा०॥ वन विचरे जो सिंह तो, बीह न गजतणीरे के बी० ॥ कर्म करे श्युं जोर, प्रसन्न जो जगधणी रे के प्र०॥२॥ मुगुण निर्गुणनो अंतर, प्रभु नवि चित्तें धरेरै के प्र०॥ निर्गुण पण शरणागत, जाणी हित करे रे के जा०॥ चंद त्यजे नवि लंछन, मृग अति सामलो रे के मृ० ॥ जश कहे तिम तुम्ह जाणी, मुज अरि बल दलो रे के मु० ॥ ३ ॥ श्रीशांतिनाथ जिन स्तवन। ॥ सुणिपसुआं वाणी रे ( अथवा) चित्रोडा राजारे-ए देशी ॥ जग जन मन रंजे रे, 'मनमथ बल भंजेरे ॥ नवि राग न दोस तूं, अंजे चित्तश्यु रे ॥ १॥ शिर छत्र विराजे रे, देव दुंदुभि १ शत्रुन. २ सूर्य. ३ आकाशे. ४ अंधार. ५ कामदेव. For Private And Personal Use Only Page #163 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५४) वाजेरै । ठकुराइ इम छाजे, तोहिं 'अकिंचनोरे ॥२॥ थिरता धृति सारी रे, वरो समता नारी रे ॥ ब्रह्मचारी शिरोमणि, तो पण तुं सुण्यो रे ॥३॥ न धरे भवरंगोरे, नवि दोषासंगोरे ॥ मृगलंछन चंगो, तो पण तू सही रे ॥ ४ ॥ तुज गुण कुण आखेरे, जग केवली पाखे रे॥ सेवक जश भाखे, अचिरासुत जयो रे ॥५॥ श्रीकुंथुनाथ जिन स्तवन। (ढाल वीछियानी) सुखदायक साहिब सांभलो, मुजने तुमश्युं अति रगरे । तुम्हे तो निरागी हुइ रवा, ए श्यो एकंगो टंगरे ॥ सु० ॥१॥ तुम्ह चित्तमां वसवू मुज घj, ते तो उंबर फूल समानरे ॥ मुज चित्तमा वसहो जो तुम्हे, तो पाम्या नवे निधानरे ।। सु० ॥ २॥ श्रीकुथुनाथ अम्ह निरवहु, इम एकंगो पण नेहरे ॥ इणि 'आकीने फल पामशुं, वली होशे दुखनो छेहरे ॥ सु० ॥ ३ ॥ आराध्यो 'कामित पूरवे, चिंतामणि पाषाणरे ॥ वाचक जश कहे मुज दीजिये, इम जाणी कोडि कल्याणरे ॥ सु० ॥ ४ ॥ १ त्यागी. २ धीरज-संतोष. ३ कहे. ४ विना. ५ आस्ता. ६ धारेली इच्छा. For Private And Personal Use Only Page #164 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५५ ) :०: श्रीअरनाथ जिन स्तवन । (प्रथम गोवाला तणे भवेजी-ए देशी) अरजिन दरिशन दीजियेंजी, 'भविक कमल वन सूर ॥ मन तरसे मलवा घणुंजी, तुम्हे तो जइ रह्या दूर ॥ सोभागी तुम्हश्युं मुज मन नेह, तुमश्युं मुज मन नेहलोजी, जिम बपइयां मेह ॥ सो० ॥१॥ आवागमन पथिक तणुंजी, नहि शिव नगर निवेश ॥ कागल कुण हाथे लिखूजी, कोण कहे संदेश ॥ सो० ॥ २॥ जो सेवक संभारस्यो जी, अंतरयामी रे आप ॥ जश कहे तो मुज मन तणोजी, टलशे सघलो संताप ॥ सो० ॥३॥ श्रीमल्लिनाथ जिन स्तवन । ॥रसियानी (अथवा) धरम निणेसर गाउ रंगशुं-ए देशी॥ मल्लि जिणेसर मुजने तुम्हे मिल्या, जेह मांहिं सुखकंद वाल्हेसर ॥ ते कलियुग अम्हे गिरुओ लेख, नवि बीजा युगद्वंद ॥ वाल्हेसर ॥ म० ॥१॥ आरो सारो रे मुज पांचमो, जिहां तुम दरिशण दीठ वा० ॥ मरुभूमि पण यिति सुरतरु तणी, मेरु थकी हुइ इठ ॥ वा० ॥२॥ पंचम आरेरे तुम्ह मेलावडे, रुडो राख्यो रे रंग वा० ॥ चोथो आरोरे फिरि आव्यो गणुं, वाचक जश कहे चंग ॥ वा० ॥३॥ १ भवि जीवोरुपी कमळवनने खीलववा सूर्यसमान छो. २ वटेमानं जवु आवयु. ३ मारवाड, For Private And Personal Use Only Page #165 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५६ ) श्रीमुनिसुव्रत जिन स्तवन । ( वीरमाता मीतिकारिणी, (अथवा ) रे जीव जिन धर्म कीजीये. ए देशा) आज सफल दिन मुज तणो, मुनिसुव्रत दीठा ॥ भागी ते भावठि भवतणी, 'दिवस दुरितना नीठा || आ० ॥ १ ॥ आंगणे कल्पवेली फली, घन अभियना वूठा || आप माग्या ते पासा ढल्या, सुर सभकित तूठा || आ० || २ || नियति हित दान सनमुख हुयें, स्वपुण्योदय साथे ॥ जश कहे साहिब मुगतिनुं, करिजं तिलक निज हाथे || आ० ॥ ३ ॥ ____::. श्रीनमिनाथ जिन स्तवन । ( ऋषभनो वंश रयणायरु, ए देशी ) मुज मन पंकज भमरले, श्रीनमिजिन जगदीशोरे ॥ ध्यान करूँ नित तुम्ह तणुं, नाम जपुं निशदिसोरे ॥ मु० ॥ १ ॥ चित्तथकी कदियें न विसरे, देखीयें आगलि ध्यानिरे ॥ अंतर तापथी जाणियें, दूर रह्यां अनुमानिरे ॥ मु० || २ || तुं गति तुं मति आसरो, तुंहिज बंधव मोटोरे ॥ वाचक जश कहे तुज विना, अवर प्रपंच ते खोटोरे ॥ मु० ॥ ३ ॥ १ पापना दिवसो खुट्या - नाश पाम्या. २ वरस्या.. For Private And Personal Use Only Page #166 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५७ ) श्रीनेमिनाथ जिन स्तवन । (राजा जो मिले, ( अथवा) कीसके चेले कीसके पुत ए देशी) ___ क्या कियो तुम्हे कहो मेरे सांई, फेरी चलें रथ तोरण आई। दिल जानि अरे मेरा नाह, न त्यजिये नेह कछु अजानि ॥ दि०॥ ॥१॥ अटपटाइ चले धरि कुछ रोष, पसुअनके शिर दे करि दोष ॥ दि० ॥२॥ रंग बिच भयो याथि भंग, सो तो सानो जानो कुरंग ॥ दि० ॥ ३ ॥ प्रीति तनकर्मि तोरत आज, किडं नावे मनमें तुम्ह लाज ॥ दि० ॥ ४ ॥ तुम्ह बहु नायक जानो न 'पीर, विरह लागि जिउ वैरीको तीर ॥ दि ॥५॥ हार ठार शिगार अंगार, "अशन वसन न 'सुहाईलगार ॥ दि०॥६॥ तुज बिन लागे शूनि सेज, नही तनु तेज न हारद हेज || दि०॥ ॥७॥ आओने मंदिर विलसो भोग, बूढापनमें लीजे योग । दि० ॥ ८॥ छोरुंगी में नहि तेरो संग, गइलि चलं जिउं छाया अंग ॥ दि० ॥९॥ इम विलवति गइ गढ गिरनार, देखे प्रीतम राजुल नार ॥ दि०॥ १० ॥ कंते दीर्नु केवलज्ञान, कीधी प्यारी आप समान ।। दि०॥ ११ ॥ मुगति महलमें खेले दोइ, प्रणमें जश उल्लसित तन होइ ॥ दि० ॥ १२ ॥ १ वेदना. २ शत्रुनु बाण. ३ गळामानो हार हीम जेवो अने शंगार अग्निना अंगारा जेवा लागे छे. ४ आहार, वस्त्र. ५ गमे. For Private And Personal Use Only Page #167 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १५८) श्रीपार्श्वनाथ जिन स्तवन। (ढाल फागनी) 'चउ कषाय पाताल कलश जिहां, 'तिसना पवन प्रचंड । बहु विकल्प कल्लोल चढतुहे, आरति फेन उदंड ॥ भव सायर भीषण तारीय हो, अहो मेरे ललना पासजी ॥ त्रिभुवन नाथ दिलमें ए विनती धारीयें हो ॥ १ ॥ जरत उदाम काम वरवानल, परत शीलगिरि शृंग ॥ फिरत व्यसन बहु मघर तिमिंगल, करत हे निगम उमंग ॥ भ० ॥२॥ भमरीयाके बीचिं भयंकर, उलटी गुलटी वाच ॥ करत प्रमाद पिशाचन सहित जिहां, अविरति व्यं. तरी नाच ॥ भ०॥३॥ गरजत अरति फुरति रति बिजुरी, होत बहुत तोफान ॥ लागत चोर कुगुरु मलवारी, धरम जिहाज निदान ॥ भ० ॥४॥ जुरे पाटिये जिउं अति जोरि, सहस अढार श्रीलंग ॥ धर्म जिहाज तिउं सज करि चलवो, जश कहे शिवपुरी चंग ॥ भ० ॥५॥ श्रीमहावीर जिन स्तवन । दुख रलियां मुख दी मुज सुख उपनारे, भेट्या भेटया वोर जिणंदरे ॥ हवे मुज मन मंदिरमा प्रभु आवी वसोरे, पा, पासु परमानंद रे॥ दु०॥१॥ पीठबंध इहां कीघो समकित वचनोरे, १ क्रोध, मान, माया, लोभ. २ कृष्ण. ३ बीहामणो. For Private And Personal Use Only Page #168 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१५९) काढ्यो काढ्यो कचरो ने भ्रांतिरे ॥ इहां अति उंचा सोहे चारित्र चंदुआरे, रुडी रुडी संवर भातिरे । दु० ॥२॥'कर्म विवर गोपी इहां मोती झूबणारे, झूलइ झूलइ धीगुण आठरे । बार भावना पंचाली अचरय करेरे, कारि कोरि कोरणि काठरे ॥ दु० ॥ ३ ॥ इहां आवी समता राणाश्युं प्रभु रमोरे, सारी सारी थिरता २सेज रे। किम जइ शकश्यो एक वार जो आवशोरै, रंज्या रंज्या हियडानि हेजरे । दु० ॥ ४ ॥ वयण अरज मुणी प्रभु मनमंदिर आवियारे, आ तूठा तूठा त्रिभुवन भाणरे ॥ श्रीनयविजय विबुध पय सेवक इम भणेरे, तेणि पाम्या पाम्या कोडि कल्याणरे ॥ दु० ॥५॥ श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत-चौद बोलनी चोवोशी श्रीऋषभदेव जिन स्तवन। (आज सखी संखेसरो, ए देशी) ऋषभदेव नितु वंदिये, शिवमुखनो दाता ॥ नाभि नृपति जेहनो पिता, मरुदेवी माता ॥ नयरी विनीता उपनो, वृषभ लछन सोहें । सोवन वन सुहामणो, दीठडे मन मोहें ॥ हारे दीठडे मन १ गुफा. २ पथारी. ३ तुष्टमान थाय. For Private And Personal Use Only Page #169 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६० ) मोहे ॥ १॥ धनुष पांचसे जेहनु, कायार्नु मान ॥ चार सहसयु व्रत लीये, गुण रयण विधान || लाख चोराशी पूर्वनू, आउखु पाले ॥ अमिय समी दायें देशना, जग 'पातिक टाले ॥ हारे ज. ॥२॥ सहस चोराशी मुनिवरा, प्रभुनो परिवार ॥त्रण लक्ष साध्वी कही, शुभ मति सुविचार । अष्टापद गिरि चढी, टाली सवि कर्म ।। चडी गुणठाणे चउदमें, पाम्या शिव शर्म । हारे पा० ॥३॥ गोमुख यक्ष चक्रेश्वरी, प्रभु सेवा सारे ।। जे प्रभुनी सेवा करे, तस विधन निवारे । प्रभु पूजायें प्रणमं सदा, नव निधि तस हाथे ॥ देव सहस सेवा परा, चालें तस साथे ॥ हारे चा ॥ ४॥ युगला धर्म निवारणो, शिव मारग भाखे ॥ भवजल पडता जंतुने, ए साहिब राखे ॥ श्रीनयविजय विबुध जयो, तपगछमां दीवो ॥ तास शीश भावें भणे, ए प्रभु चिरंजीवो ॥ हारे ए प्रभु० ॥५॥ ॥ श्रीअजितनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ आबु अचळ रलीयामणोरे लो-ए देशी ॥ अजित जिणंद जुहारियेरे लो, जितशत्रु विजया जातरे सुगुण नर ॥ नयरी अयोध्या उपनारे लो, गजलंछन विख्यातरे मु०॥ अ०॥ १॥ उंचपणुं प्रभुजीत[रे लो, धनुष साढा सें च्याररे सु० ॥ एक सहसयुं व्रत लियेरे लो, करुणारस भंडाररे १ पाप. २ खजानो. For Private And Personal Use Only Page #170 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६१) शी. . मु० ॥ अ०॥२॥ बोहोतेर लाख पूरव धरेरे लो, आउखुं सोवन वानरे सु० ॥ लाख एक प्रभुजीतणारे लो, मुनि परिवारनुं मानरे सु० ॥ अ० ॥ ३॥ लाख ऋण भली 'संयतीरे लो, ऊपर त्रीश हजाररे मु० ॥ समेत शिखर शिवपद लहीरै लो, पाम्या भवनो पाररे सु० ॥ अ०॥४॥ अजितबला शासनसुरीरे लो, महायक्ष करे सेवरै मु०॥ कवि जशविजय कहे सदारे लो, ध्याउं ए जिनदेवरे तु०॥ अ० ५॥ श्रीसंभवनाथ जिन स्तवन । (महाविदेह क्षेत्र सोहामणुं, ए देशी) माता सेना जेहनी, तात जितारी उदार लालरे ॥ हेम वरण हय लंछनो, सावथी शिणगार लालरे ।। संभव भवभय भंजणो ॥१॥ सहस पुरुषशुं व्रत लिये, च्यारसें धनुष तनु मान लालरे । साठ लाख पूरव धरें, आउखु सुगुण निधान गलरे । ॥ सं० ॥ २॥ दोइ लाख मुनिवर भला, प्रभुजीनो परिवार ला. लरे ॥ त्रण लाख वर संयती, ऊपर छत्रीश हजार लालरे ॥ सं० ॥३॥ समेतशिखर शिव पद लहूं, तिहां करे महोच्छव देव लालरे ॥ दुरितारी शासनसुरी, त्रिमुख यक्ष करे सेव लालरे॥ सं०॥४॥ तुं माता तुं मुज पिता, तुं बंधव 'त्रण काल लालरे ॥ श्रीनयविजय विबुध तणो, शिष्य कहे दुख टाल लालरे ॥सं०॥॥ १ साध्वीओ. २ हजार. ३ शरीरनुं प्रमाण- ४ श्रेष्ट. ५ भूत भविष्य वर्तमान. For Private And Personal Use Only Page #171 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६२) श्रीअभिनंदन जिन स्तवन । ॥ दिन सकळ मनोहर, बीज दीवस मुविषेस-ए देशी ॥ अभिनंदन चंदन, शीतल वचन विलास ॥ संवर सिद्धारथा, नंदन गुगमणि वास ।। त्रणसें धनु प्रभु तनु, ऊपर अधिक पंचास ।। एक सहसश्यु दीक्षा, लिये छांडी भवपास ॥१॥ कंचनवान सोहे, वानर लंछन स्वामी ॥ पंचास लाख पूरव, आयु घरे शिवगामी ।। वर नयरी अयोध्या, प्रभुजीनी अवतार ।। संमेतशिखर गिरि, पाम्या भवनो पार ॥२॥ त्रण लाख मुनीश्वर, तप जप संजम सार ॥ पट लक्ष छत्रीश, साध्वीनो परिवार ॥ शासनसुर ईश्वर, संघनां विधन निवारें ।। काली दुख टाली, प्रभुसेवकने तारें। ॥३॥ तुं भवभय भंजन, जन गन रंजन रूप ॥ मनमथ 'गद गंजन, अंजन रति हित सरूप ॥ तुं सुबने विरोचन, गतशोचन जग दीसे ॥ तुज लोचन लीला, लहि सुख नित दीसे ॥४॥ तुं दोलतदायक, जगनायक जगबंधु ॥ जिनवाणी साची, ते तरिया भवसिंधु ॥ तुं मुनि मन पंकज, भ्रमर अमर नर राय || उभा तुज सेवें, बुध जन तुज जश गाय ॥ ५ ॥ पाम्या भवना पाछत्रीश, सावा टाली, अमनमथ 'गद श्रीसुमतिनाथ जिन स्तवन। (भोलुडारे हंसा रे विषय न राचीये. ए देशी) नयरी अयोध्यारे माता मंगला, मेघ पिता जस धीर ।। लंछन क्रौंच करें पद सेवना, सोवन वान शरीर ॥१॥ मुज मन १ रोग, २ मूर्य. ३ आंख्य. ४ देवता. For Private And Personal Use Only Page #172 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६३) मोधुरे सुमति जिणेसर, न रुचे को पर' देव ॥ खिण खिण समरे गुण प्रभुनी तणा, ए मुज लागीरे टेव ॥ मु० ॥२॥त्रणसें धनु तनु आयु धेरै प्रभु, पूरव लाख चालीश ॥ एक. सहसशुं दीक्षा आदरी, विचरे श्री जगदीश ॥ मु० ॥३॥ समेतशिखर गिरि शिव पदवी लही, त्रण लाख वीश हजार ॥ मुनिवर पग' लख प्रभुनी संयती, त्रीश सहस वली सार । मु०॥४॥ शासनदेवी महाकाली भली, सेवें तुंबरु यक्ष ॥ श्रीनयविजय बुध सेवक भणे, होजो मुज तुज पक्ष ॥ मु० ॥ ५ ॥ श्रीपद्मप्रभ जिन स्तवन । (झांझरीआ मुनिवर धन धन तुम अवतार-ए देशी.) कोसंबी नयरी भलीजी, पर राजा जस तात ।। मान मुसीमा जेहनीजी, लंछन कमल विख्यात ॥ पद्म प्रभुश्यु लाग्यो मुज मन रंग ॥१॥ त्रीश लाख पूरव धरेजी, आउखु नव रवि वन्न ।। धनुष अढीस उच्चताजी, मोहे जगजन मन ।। प. ॥२॥ एक सहसयुं व्रत लियेजी, समेतशिखर शिव ठाम ॥ त्रण लाख त्रीस सहस भलाजी, प्रभुना मुनि गुणधाम।।१०॥३॥शीलधारिणी संयतीजी,चार लाख वीश हजार ॥ कुसुम यक्ष श्यामा सुरीजी, प्रभु शासन हितकार ॥ ५० ॥ ४॥ ए प्रभु कामित सुरतरुजी, भवजल तरण जिहाज ॥ कवि जशविजय कहे इहांजी, सेवो ए जिनराज ॥ ५० ॥५॥ १ बीजा, २ पांच. ३ उगता सूर्य जे रातुं. ४ साध्वीभो. ५ देवी For Private And Personal Use Only Page #173 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६४ ? श्रीसुपार्श्वनाथ जिन स्तवन। ( नंदनकुं त्रिशला हुलरावे, ए देशी) 'तात प्रतिष्ठ ने पृथिवी माता, नयर वाराणसी जायोरे ॥ स्वस्तिक लंछन कंचन वरणो, प्रत्यक्ष सुरतरु पायोरे ॥ श्रीसुपास जिन सेवा कीजे ॥ १॥ एक सहसयुं दीक्षा लीधी, बे सय धनुष प्रभु कायारे ॥ वीश लाख पूरवनुं जीवित, सभेतशिखर शिव पायारे ॥ श्री० ॥२॥ त्रण लाख प्रभुना मुनि गिरुआ, चार लाख त्रीश हजाररे ॥ गुग मणि मंडित शील अखंडित, साध्वीनो परिवाररे ॥ श्री० ॥ ३॥ सुर मातंग ने देवी शांता, प्रभु शासन अधिकारीरै ॥ ए प्रभुनी जेणे सेवा कीधी, तेणे निज दुरगति वारीरे ॥ श्री० ॥ ४॥ मंगल 'कमला मंदिर सुंदर, मोहनवल्ली कंदोरे ॥ श्रीनयविजय विबुध पय सेवक, कहे ए प्रभु चिर नंदोरे ॥श्री० ॥५॥ श्रीचंद्रप्रभ जिन स्तवन । (वादल दह दिशि उनह्यो सखि, ए देशी) श्रीचंप्रमभ जिनराजीओ, मुह सोहं पुनिमचंद ॥ लंछन जस १ पिता. २ साथियानु. ३ आयुष. ४ सोभित. ५ लक्ष्मी. For Private And Personal Use Only Page #174 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १६५) दीपे चंद्रनु, 'जग जन नयनानंदरे, प्रभु टाले भवभय फंदरे, केवल कमला अरविंदरे, ए साहिब मेरे मन वस्यो ॥ १॥ महसेन पिता माता लक्ष्मणा, प्रभु चंद्रपुरी शिणगार ॥ दोढसें धनु तनु उच्चता, शुचि वरणे शशी अनुकाररे, उतारे भवजल पाररे, करे जनने बहु उपगाररे, दुःख दावानल "जलधाररे॥ ए० ॥२॥ दश लाख पूरव आउखं, व्रत एक सहस परिवार ।। समेत शिखर शिवपद लघु, ध्यायी शुभ ध्यान उदाररे, टाली पातिक विस्ताररे, हुआ जगजनना आधाररे, मुनिजन मन "पिक 'सहकाररे ॥ ए० ॥३॥ मुनि लाख अढी प्रभुजी तणा, तेम संयम गुणह निधान ॥ त्रण लाख वर साहुणी वली, असीअ सहसनु मानरे, कहे कवियण जस गुणगानरे, जिणे जित्या क्रोधने मानरे, जेणे दी, वरसीदानरे, वरषाजलधर अनुमानरे ॥ ए० ॥ ४ ॥ सुर विजय नाम भृकुटी सुरी, प्रभु शासन रखवाल ॥ कवि. जशविजय कहे सदा, ए प्रणमो प्रभु त्रिहु कालरे, जस पद प्रणभे भूपालरे, जरा अष्टमी शशि सम भालरे, जे टाले भवजंजालरे । ए० ॥५॥ श्रीसुविधिनाथ जिन स्तवन । ( भावना मालती चुसीए, ए देशी) सुविधि जिनराज मुज मन रमो, सवि गमो भवतणो तापरे ॥ १ जगना लोकोनी आंख्योने आनंद आपनारा. २ कमळ. ३ उज्वळ. ४ वरसाद. ५ कोयल. ६ आंबो. ७ कपाळ. For Private And Personal Use Only Page #175 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६६) पाप प्रभु ध्यानथी 'उपशमो, वीशमो चित्त शुभ जापरे ॥ ० ॥१॥ राय सुग्रीव रामा सुतो, नयरी काकंदी अवताररे ॥ मच्छ लछन घरे आउखु, लाख दोइ पूर्व निरधाररे ॥ सु० ॥२॥ एक शत धनुष तनु उच्चता, व्रत लिए सहस परिवाररे । समेतशिखर शिवाद लहें, फटिक सम कांति विस्ताररे ॥ सु० ॥३॥ लाख दोइ साधु प्रभुजीतणा, लाख एक सहस वली वीशरे ।। साहुणी चरणगुण धारिणी, एह परिवार जगदीशरे ।। सु० ॥४॥ अजिन मुर वर सुतारा मुरी, नित करे प्रभुतणी सेवरे ।। श्रीनयविजय बुध शिष्यनें, चरण ए स्वामि चित्त भेवरे ॥ सु०॥५॥ श्रीशीतलनाथ जिन स्तवन । . ( कपूर होइ अति ऊजलं रे, ए देशी) शीतल जिन भदिलपुरीरे, हरय नंदा मात ॥ नेउ धनुष तनु उच्चताजी, सोवन वान विख्यातरे ॥ जिनजी तुजश्थु मुन मन नेह, जिम 'चातकने मेहरे, तुं छे गुणमगि गेहरे ॥ जि० तु. T?॥ श्रीवत्स लंछन सोहतोजी, आयु पूरव लख एक ॥ एक सहसयुं व्रत लीयेंनी, आणी हृदय विवेकरै । जि० तु० ॥२॥ समेतशिखर शुभ ध्यानथीजी, पाम्या परमानंद ॥ एक लख घट साहुणीजी, एक लाख मुनि वृंदरे ॥ जि० तु० ॥३॥ सावधान १ नाश याओ. २ पंडित. ३ बपैयो. For Private And Personal Use Only Page #176 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६७) ब्रह्मा सदाजी, शासन विधन हरेइ ॥ देवी अशोका प्रभुतणीजी, अहनिशि भगति करेइरे ॥ जि० ॥ तु० ॥४॥ परम पुरुष पुरुषो त्तमोजी, तूं नरसिंह निरीह ॥ कवियग तुज जश गावतांजी, पवित्र करे निज 'जीहरे जि० तु० ॥ ५ !! श्री श्रेयांसनाथ जिन स्तवन । (नयरी अयोध्या जयवतीरे, ( अथवा) सुत सिद्धास्थ भुपनो रे, ए देशी.) सिंहपुरी नयरी भलीरे, विष्णु नृपति जस तात ॥ माता विष्णु महासतीरे, लीजे नाम प्रभातोरे ॥ जिन गुण गाइए ॥ १॥ श्रीश्रेयांस जिनेसरुरे, कनक वरण शुचि काय ॥ लाख चोराशी वरषनुरे, पाले प्रभु निज आयोरे । जि० ॥२॥ एक सहसयुं व्रत लीयेरे, असिय धनुष :तनु मान ॥ खडगी' लंछन शिव लहरे, समेतशिखर शुभ ध्यानरे॥जि०॥३॥ सहस चोराशी मुनिवरारे, त्रण सहस लख एक॥ प्रभुजीनी वर साहुणीरे, अदभुत विनय विवेकरे ॥ जि० ॥ ४ ॥ सुर मनुजेश्वर मानवीरे, सेवे पय" अरविंद ॥ श्री नयविजय सुशीशनेरे, ए प्रभु मुरतरु कंदरे ॥ जि.॥५॥ ... १. जीभ, २. सोना जेवो. ३. गेंडानु. ४. श्रेष्ट साध्वीओ. ५. चरण कमल, For Private And Personal Use Only Page #177 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६८) श्री वासुपूज्य जिन स्तवन. (ऋषभनो वंश रयणायरु, ए देशी ) श्रीवसुपूज्य नरेसरू, तात जया जस मातारे ॥ लंछन 'महिष सोहामणो, वरणे प्रभु अति रातारे । गाइयें जिन गुण गहगही ॥ १॥ श्रीवासुपूज्य जिणेसरु, चंपापुरी अव. तार ॥ वरष बोतेर लाख आउखु, सत्तरि धनु तनु साररे ॥गा०॥ २॥ षट शत साथे संजम लिये, चंपापुरी शिवगामीरे ॥ सहस बहोत्तर प्रभुतणा, नमियें मुनि शिर नामीरे ॥गा०॥३।। तप जप संयम गुण भरी, साहुणी लाख वखाणीरे ॥ यक्ष कुमार सेवा करे, चंडा देवीमां जाणीरे ॥ गा० ॥ ४ ॥ जनमन कामित सुरमणी, भवदव मेह समानरे॥कत्री जशविजय कहे सदा, हृदय कमल धरो ध्यानरे ॥ गा० ॥५॥ श्रीविमलनाथ जिन स्तवन । .. सजनी विभल जिनेसर पूजीये, लेइ केसर घोलाघोल ॥ सजनी भगति भावना भावियें, जिम होइ घरे रंग रोल ॥ सजनी विमल जिनेसर पूजीयें ॥१॥ स० ॥ कंपिलपुर कृतवर्मनो, नंदन श्यामाजात ॥ स० । अंक वराह विराजतो, जेहना शुचि अवदात ।। स० वि० ॥ २॥ स० साठ धनुष तनु उच्चता, वरस साठ १. पाडो. २. सूअर लंछन. ३. निर्मळ. For Private And Personal Use Only Page #178 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१६९) लाख आय।।एक सहसयुं व्रत लिये, कंचनवरणी काय ॥ स.वि. ॥३॥ स० समेत शिखर शिवपद लघु, मुनि अडसठ हजार ॥ स० एक लाख प्रभु साहुणी, वली अठशत निरधार ॥ स० वि० ॥४ ॥ स० पणमुख दिता प्रभु तणे, शासनधर अधिकार ॥ स० श्रीनयविजय विबुधतणा, सेवकने जयकार ॥ स० वि०॥५॥ श्रीअनंतनाथ जिन स्तवन । . ( इडर आंबा आंबलीरे, ए देशी) नयरी अयोध्या ऊपनारे, सिंहसेन कुलचंद ॥ 'सींचाणो लंछन भलोरे, सुयसा मातानो नंद ॥ भविक जन सेवो देव अ. नंत ॥ १॥ वरष त्रीश लाख आउखुरे, उंचा धनुष पंचाश ॥ कनक वरण तनु सोहतोरे, पूरे जगजन आश ॥ भ० ॥२॥ एक सहसश्युं व्रत नहीरे, समेत शिखर निरवाण॥छासठ सहस मुनीश्वररे, प्रभुना श्रुत गुण जाण ॥ ३ ॥ बासठ सहस सुसाहुणीरे, प्रभुजीनो परिवार ॥ शासनदेवी अंकुशीरे, सुर पाताल उदार ।। भ०॥ ४ ॥ जाणे निज मन दासनुरे, तूं जिन जग हितकार ॥ बुध जश प्रेमें विनवेरे, दीजे मुज दीदार ॥ भ०॥ ५॥ १. वाज, २ पुत्र. For Private And Personal Use Only Page #179 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir १७०) श्रीधर्मनाथ जिन स्तवन । आबु अचळ रलीयामणोरे लोल-ए देशी रतनपुरी नयरी हुओरे लाल, लंछन वन उदार ॥ मेरे प्यारे॥ भानु 'नृपति कुल केसरीरे लाल, सुबता मात मल्हार ॥ मेरे प्यारेरे ॥धर्म जिनेसर ध्याइयेरे लाल ॥१॥ आयु वरष दश लाखनुरे लाल, धनु पण पाल' प्रसिद्ध ॥ मे० ॥ कंचन चरण विराजतोरे लाल, सहस साथे व्रत लीय ॥ मे० ध० ॥२॥ सिद्धिकामिनी करग्रहेरे लाल, समेत शिखर अतिरंग ॥ मे० ॥ सहस चोसठ सोहामणारं लाल, प्रभुना साधु अभंग ॥ मे० धः ॥३॥ बासठ सहस सुसाहुणीरे लाल, वली उपरि सत चार ॥ मे ॥ कंदनी शासन सुरीरे लाल, किन्नर सुर सुविचार ॥ मे० धः ॥४॥ लटकाले तुज लोअगेरे लाल, मोह्या जगजन चित्त ॥ मे० ॥ श्रीनयविजय विबुधतगोरे लाल, सेवक समर नित्त ॥ मे० ध० ॥५॥ श्रीशांतिनाथ जिन स्तवन। (त्रिभुवन तारण तीरथ, (अथवा) देखी कामीनी दो के कामे व्यापीयोरे के कामे० ए देशी ) गजपुर नयर विभूषण, दूषण टालतोरे के दूषण ॥ विश्व. १. राजा. २. पिस्ताळीश. ३. मोक्षरुपी स्त्रीनो समेतशिखर उपर हाथ पकड्यो. For Private And Personal Use Only Page #180 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७१ ) सेन नरनाहर्नु कुल अजुआलतोरे के कुल० ॥ अचिरानंदन वंदन, कीजे नेहश्युरै के कीजे०॥शांतिनाथ मुख पूनिम, शशिपरि उल्लश्युरे के ॥ श० ॥१॥ कंचन वरणी काया, माया परिहरेरे के ॥ माया० ॥ लाख वरपर्नु आउखं, 'मृग लंछन धरे के ।। मृग ॥ एक सद्यसश्युं व्रत ग्रहे, पालिक वन' दहेरे के ॥ पा० ॥ समेत शिखर शुभ ध्यान थी,शिवपदवी लहेरे के । शिव०॥२॥ चालीश धनु तनु राजें, भाजे भय घणारे के भा०॥ बासठ सहस मुनीसर, विलसें प्रभुतणारे के ॥ वि० ॥ एकसठ सहस छसें वली, अधिकी साहु. णीरे के ॥ अ० ॥ प्रभु परिवारनी संख्या, ए साची मुणीर के ॥ ए०॥३॥ गरुड यक्ष निरवाणी, प्रभु सेवा करेरे के ॥ १०॥ ते जन बहु सुख पावशे, जे प्रभु चित्त धरैरे के ॥ जे० ॥ मद झरता गाजे, तस धरि आंगणेरे के ॥ त०॥ तस जगहिमकर' सम, जश कवियण भगेरै के ॥ ज० ॥ ४ ॥ देव गुणाकर चाकर, हुँ छु ता. हरोरे के पहु०॥ नेह नजर भरि मुजरो,मानो माहरोरे के मा०॥ तिहुअण भासन शासन, चित्त करुणा करोरै के ॥ चि० ॥ कवि जशविजय पयंपे, मुज भव दुख हरोरे के मु० ॥५॥ श्रीकुंथुनाथ जिन स्तवन । (ढाल मरकल डानी) गजपुर नयरी सोहियेंजी साहिब गुणनिलो ॥ श्रीकुंथुनाथ १. हरिण, २. चंद्रमां. ३. कहे, For Private And Personal Use Only Page #181 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७२) मुख मोहियेजी साहिब गुणीनिलो॥सूर नृपति कुल चंदोजी सा०॥ श्रीनंदन भावे वंदोजी ॥ सा० ॥१॥'अजलंछन वंछित पूरेजी सा० ॥ प्रभु समरिओ संकट चूरेजी सा० ॥ पांत्रीश धनुष तनु मानेजी सा० व्रत एक सहस अनुमानेजो ॥ सा०॥२॥ आयु वरष सहस पंचागुंजी सा० ॥ तनु सोवन वान वखाणुजी सा०॥ समेत शिखर शिवपायाजी सा०॥ साठ सहस मुनिश्वर रायाजी ॥ सा० ॥ ३ ॥ षटशत वली साठ हजारजी सा० ॥ प्रभु साध्वीनो परिवारजी सा० ॥ गंधर्व बला अधिकारीजी सा०॥ प्रभु शासन सांनिधकारीजी ॥ सा०॥ ४॥ सुख दायक मुखने मटकेजी सा० । लाखेणे लोयण लटकेजी सा० ॥ बुध श्रीनयविजय मुणिंदोजी सा०॥ सेवकने दिओ आणंदोजी ॥सा०॥ ५ ॥ श्रीअरनाथ जिन स्तवन। ( समयारे साद दिइरे देव, (अथवा) किसके चेले किसके पुत-ए देशी) अरजिन गजपुर वर शिणगार, तात सुदर्शन देवी मल्हार ॥ साहिब सेवियें ॥ मेरे मनको प्यारो सेवियें ॥ त्रीश धनुष प्रभु उंची काय, वरष सहस चोराशी आय ॥ सा॥१॥ नंदावर्त विराजे अंक, टालें प्रभु भा भावना आतंक' ॥सा०॥ एक सहसश्यू संयम लीध, कनक वरण तनु जगत प्रसिद्ध। सा० ॥ २ ॥ समेत शिखर १. बोकडानु. २. आँख्य. ३. रोग. - - - For Private And Personal Use Only Page #182 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७३ ) गिरि सबल उछाह, सिद्विवधूनो करेरे विवाह ॥ सा० ॥ प्रभुना मुनि पंचास हजार, साठसहस साध्वी परिवारसा०॥३॥ यक्ष इंद्र प्रभु सेवाकार, धारिणी शासननी करे सार । सा० ॥ रवि उगे नासे जिम चोर, तिग प्रभुना ध्याने करम कठोर ॥ सा० ॥ ४ ॥ तुं सुरतरु चिंतामणिं सार, तुं प्रभु भगति मुगति दातार ॥ सा०॥ बुध जशविजय करें अरदास' दी, परमानंद विलास ॥ सा ॥५॥ श्रीमल्लिनाथ जिन स्तवन । (प्रथम गोवालातणे भवेजी, ए देशी) मिथिला नयरी अवतर्योजी, कुंभ नृपति कुलभाण ॥राणी प्रभावती उर धर्योजी, पचवीश धनुष प्रमाण ॥ भविक जन चंदो मल्लि जिणंद,जिम होयें परम आनंद भविक जन०॥शालंछन कलश विराजतोजी, नील वरण तनु कांति|संयम लीये शत त्रणश्युंजी भाजे भवनी भ्रांति भ० ० ॥२॥ वरष पंचावन सहसनुजी, पालीए पूरण आय ॥ समेतशिखर शिवपद लयुंजी, सुर किन्नर गुण गाय ॥ भ०व०॥ ३ ॥ सहस पंचावन साहुणीजी: मुनि चालीश हजार। वैरोटया सेवा करेजी, यक्ष कुबेर उदार ॥ भ० ० ॥४॥ मृरति मोहनवेलडीजी, मोहे जग जन जाण ॥ श्रीनयविजय सुशीशनेजी, दिये प्रभु कोडि कल्याण ॥ भ० वं० ॥५॥ १. अरज. २. कुळमां सूर्य सरखां. ३ उत्कष्ट. For Private And Personal Use Only Page #183 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७४) श्रीमुनिसुव्रत जिन स्तवन । रसियानी ( अथवा ) प्रणमुं पास जिनेसर प्रेमथु, ए देशी ॥ पद्मादेवी नंदन गुणनिलो, राय सुमित्र कुल चंद, ॥ कृपा. निधि ।। नयरी राजगृही प्रभुजी अवतो, प्रणमें सुरनर द ।। कृपानिधि ॥ मुतिसुव्रत जिन भावे वंदियें ॥ १ ॥ 'कच्छप लंछन साहिब शामलो, वीश धनुष 'तनुमान ॥ कृ०॥ त्रीश सहस संवत्सर आउखु, बहु गुण रयण 'निधान ॥ कृ० मु० ॥२॥ एक सहसयुं प्रभुजी व्रत' अहि, समेतशिखर लहि' सिद्धि ॥ कृ०॥ सहस पंचास विराजे साहुगी, त्रीश सहस मुनि प्रसिद्धि ॥ कृ० मु० ॥३॥ नरद ता प्रभु शासन देवता, वरुण यक्ष करे सेव ।। कृपा जे प्रभु भगति राता तेहना, विधन हरे नितमेव ॥ कृ० मु० ॥४॥ भावठ भंजन जन मन रंजनो, मूरति मोहनगार ॥ कृ०॥ कत्रि जशविजय पथरे भवभवे, ए मुन एक आधार ॥ कृ० ॥ मु० ॥५॥ श्रीनमिनाथ जिन स्तवन । ( काज सिध्यां सकल हवे सार, (अथवा) प्रभुपासर्नु मुखडु जोवा ए देशी ) मिथिलापुर विजय नरिंद, वप्रासुत नमि जिनचंद ॥ नी. १ काचवा. २ प्रमाण. ३ वरष. ४ खजानो. ५ दिक्षा. ६ मोक्ष पाम्या ७ नीला कमळy. For Private And Personal Use Only Page #184 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७५) लुप्पल लंछन राजे, प्रभु सेव्यो भावठ भाजे ॥ १॥ धनुष पनर उंच शरीर, सोवन वान साहस धीर ॥ एक सहसश्युं लिये निरमाय, व्रत वरष सहस दश आय ॥२॥ समेत शिखर आरोही, पुहता शिवपुर निरमोही ॥ मुनि वीश सहस शुभ नाणी, प्रभुना उत्तम गुण खाणी ।। ३ ॥ वली साध्वीना परिवार, एकतालीश सहस उदार ॥ सुर भृकुटि देवी गंवारी, प्रभु शासन सांनिधकारी ॥४॥ तुज कीरति जगमां व्यापी, तप तपे प्रबल प्रतापी ॥ बुध श्रीनयविनय सुसीस, इम दियें नित नित आसीस ॥ ५ ॥ श्रीनेमिनाथ जिन स्तवन । (ढाल फागनी) समुद्र विजय शिवादेवी, नंदन नेमिकुमार ॥ शोरियपुर दश धनुपर्नु, लंछन शंख सफार । एक दिन रमतो आक्यिो , अतुलीबल अरिहंत ॥ जिहां हरी आयुधशाळा, पूरे शंख महंत ॥१॥ हरी भय भरि तिहां आवे,पेखे नेमि जिणंद।सरिखें सम बल परखें, तिहां जिते जिनचंद ॥ आज राज ए हरशे, करशे अपयश भूरि ।। हरी मन जाणी आणी, तब थइ गगने अडूरी ॥२॥ अणपरण्ये व्रत लेशे, देशे जग सुख एह॥हरी मत बीहे ईहे, प्रभुश्यं धर्मसनेह ॥ हरी सनकारी नारी, तब जन मजन जति ॥ मान्युं मान्यु परणवू, इम सवि नारी कहति ॥ ३॥ गुणमणि पेटी खेटी, उग्रसेन नृप पास। - १ मायारहित २ ज्ञानी. ३ श्राकृष्णने धारण करवानां शस्त्रोनी जगाए ४ न्हावा. For Private And Personal Use Only Page #185 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १७६) तव हरी 'जाचें माचे, माथे प्रेमविलास ॥ तूर दिवाजे गाजें, छाजे चामर कति ॥ हवे प्रभु आव्या परणवा, नवनवा उत्सव हंति ॥४॥ गोखे चढी मुख देखे, राजीमती भर प्रेम ॥ राग अमीरस वरचे, हरखे पेखी नेम ॥ मन जाणे ए टाणे, जो मुज परणे एह ॥ संभारे तो रंभा, सबल अचंभा तेह ॥ ५॥ पशुअ पुकार सुणी करी, इणि अवसरे जिनराय ॥ तस दुख टाली वाली, रथ व्रत लेवा जाय ॥ तब बाला दुख झाला, परवशि करेंरे विलाप ॥ कहिये जो हवे हुँ छंडी, तो देश्या व्रत आप ॥६॥ सहस पुरुषश्यं संयम, लिये शामल तनु कति ॥ ज्ञान लही व्रत आपे, राजीमती शुभ शंति ॥ वरष सहस आउखु, पाली गह गिरनार ॥ परण्या पूर्व महोत्सव, भव छांडी शिवनार ॥ ७॥ सहस अढार मुनीसर, प्रभुजीना गुणवंत ॥ चालीश सहस सुसाहुणी, पामी भवनो अंत ॥ त्रिभुवन अंबा अंबा, देवी सुर गोमेध ॥ प्रभु सेवामां निरता, करता पाप निषेध।।८॥ अमल कमल दल लोचन,शोचनरहित निरीह।। सिह मदन गज भेदवा, ए जिन अकल अबीह ॥ शंगारी गुणधारी, ब्रह्मचारी शिर लीह । कवि जशविजय निपुण, गुण गावे तुज निश दीह ॥९॥ १. भागे.२. तत्सर. ३. निर्मळ. ४. कमळनां पांदडा जेवां अणीयाळां नेत्रो. ५. कामदेवरुपी हाथीने मारवा सिंह जेवा छे. For Private And Personal Use Only Page #186 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७७ ) शी.. ॥ श्रीपार्श्वनाथ जिन स्तवन । नयरी वाराणसी अवतयों हो, अश्वसेन कुलचंद ॥ वामानंदन गुणनिलो हो, पासजी शिव तरु कंद ॥ परमेसर गुण नितु गाइये हो ॥१॥'फणिलंछन नव कर तनु जिनजी, सजल धनाधन वन ॥ संयम लियें शत तीनश्यु हो, सवि कहे ज्युं धन धन ॥५०॥२॥ वरष एक शत आउखु हो, सिद्धी समेत गिरीश ॥ सोल सहस मुनि प्रभुतणा हो, साहुणी सहस अडतीस ॥ १० ॥ ॥ ३ ।। धरणराज पद्मावती हो, प्रभु शासन रखवाल ॥ रोग शोग संकट टले हो, नाम जपत जपमाल ॥ ५० ॥४॥ पास आशपूरण अब मेरी, अरज एक अवधार ॥ श्रीनय विजय विबुध पय सेवक, जश कहे भवजल तार ॥ ५० ॥ ५ ॥ ॥ श्रीमहावीर जिन स्तवन ॥ तारहो तार प्रभु मुन सेवक भगी-ए देशी. आज जिनराज मुज काज सिध्यां सवे, तुं कृपाकुंभ जो मुज्झ तूठो ॥ कल्पतरु कामघट कामधेनु मिल्यो, अंगगे अमियरस मेह वूठो ॥ आ० ॥ १॥ वीर तुं कुंडपुर नयर भूषण हुओ, राय सिद्धार्थ त्रिशला तनुजो।। सिंह लंछ न कनक वर्ण कर सप्त धनु, तुज समो जगतमां को न दुजो ॥ आ० ॥२॥ सिंह परे एकलो धीर १ साप..२ हाथ. ३ पाणीथी भरेला वादळ सरखो नीलवर्ण. For Private And Personal Use Only Page #187 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१७८) संयम' ग्रहें, आयु बोहोत्तेर वरष पूर्ण पाली ॥ पुरी अपापायें निपाप शिववहू वों, तिहां थकी सर्व प्रगटी दीवाली ॥ आ० ॥ ॥ ३ ॥ सहस तुज चउद मुनिवर महा संयमी, साहुणी' सहस छत्रीश राजे ॥ यक्ष मातंग सिद्धायिका वर सुरी, सकल तुज वि. कनी भीति भाजे ॥ आ० ॥ ४ ॥ तुज वचन राग सुखसागरे जीलतो, पीलतो माह मिथ्यात्व वेली ॥ आवीओ भाविओ घरमपथ हुँ हवे, दीजियें परमपद होइ बेली ॥ आ० ॥५॥ सिंह निशि दोह जो हृदयगिरि मुज रमें, तुं सुगुणलीह अविचल निरीहो ॥ तो कुमतरंग मातंगना यूथथी, मुज नही कोइ लवलेश वीहो ॥ आ० ॥६॥ शरण तुज चरणमें चरणगुणनिधि ग्रह्या, भव तरण करण दम शरम राखो ॥ हाथ जोडी कहें जशविनय बुध इश्यु, देव निज भवनमां दास राखो ॥ आ० ॥ ७ ॥ Deauaaereanconeasamencoco ॥इति श्रीयशोविजयोपाध्याय कृत चौद बोलनी चौविशी संपूर्णी॥ ०BAGWANAPAARS. ॥जुदा जुदा कवीयोना रचेला छुटक स्तवनो॥ ॥ श्रीऋषभजिन स्तवन ॥ ___ आज तो वधाइ राजा, नाभि के दरबाररे ॥ मरुदेवाए बेटो जायो, ऋषभ कुमार रै॥ आज० ॥ १॥ अयोध्यामां ओच्छव होवे, मुख बोले जयकार रै॥ घननन घननन घंटा वाजे, .१ दीक्षा. २ मोक्ष. ३ साध्वीओ. ४ सुख समुद्रमा न्हातो. For Private And Personal Use Only Page #188 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir देव करे थेइकार रे ॥ आज० ॥ २॥ इंद्राणी मळी मंगळ गावे, लावे मोती माळ रे ॥ चंदन चर्ची पाये लागे, प्रभु जीवो चिरकाळरे । आज० ॥ ३ ॥ नाभि राजा दानन देवे, वरसे अखंड धार रे ॥ गाम नगर पुर पाटग देवे, देवे मणि भंडाररे । आज. ॥४॥ हाथी देवे साथी देवे, देवे रथ तोखाररे॥ हीर चीर पीतांबर देवे, देवे सवि शणगार रे ॥ आज० ॥ ५॥ तिन लोकमें दिनकर प्रगटयो, घर घर मंगळ माळरे ॥ केवळ कमला रुप निरंजन, आदीश्वर दयाळरे. ॥ आज ॥६॥ ॥ श्रीअजितनाथ स्तवन. ॥ ॥ आज हजारी ढोलो पाहुणो-ए देशी ॥ ॥ आजित जिगंद जुहारीये, साहेबा विजया राणीना नंद ॥ जिणंद पोरा हे ॥ सुर नर कि जर तुम तणा, साहेबा सेवे पय अरोवद ॥ निणंद मोरा हे ॥ अजित० ॥ १॥ जित शत्रु नृप लाडिलो ॥ साहे० ॥ जिन शत्रु भगवान ॥ जिणं० ॥ जितशत्रु मुझ कीजिये ॥ सा०॥ दीजिये वंछित दान ॥ जि०॥ अजित०॥ २॥ अंतराय पंचक टल्सु ॥ सा० ॥ हास्य पटक अज्ञान । जि०॥ अविरति काम निद्रा तजी ॥ सा० ॥ तेम राग द्वेष अंतवान ।। जि० ॥ अजि० ॥३॥ मिथ्यात्व दोष अढारए । सा० ॥ त्यजी करवो तुम गुणसंग ॥ नि०॥ केवलज्ञान विराजता ॥ सा० ॥ सादि अनंत अभंग ॥ जि० ॥ अजि. ॥४॥ तुं सकल परमेसरू ॥सा०॥ तुं निजभूर शिवपद ॥ जि०॥ तुम पद पद्मनी For Private And Personal Use Only Page #189 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८०) चाकरी ॥ सा० ॥ चाहे चित्त नित्य रूप ॥ जिणं० ॥ अजित० ॥ ५॥ इति ॥ ॥श्रीसंभवनाथ जिन स्तवन । ॥ सिद्धगिरी ध्यावो भविका सिद्धगिरी ध्यावो-ए देशी ॥ ॥ वंदोरे भविका संभवनाथ जिणंदा, जितारि नरवर वैसे उग्यो दिणंदा ॥ लालन उग्यो दिणंदा ॥ माता सेनादेवी उदरे अवतरिया, करम खपावी प्रभु भवजळ तरिया ॥ लालन भवनळ० ॥१॥ अनोपम साहिब तोरी सेवा में पामी, तो लहि वंछित सुख संपद स्वामी ॥ लालन संपद० ॥ ताहरो दरिशण जिनजी लागे छे प्यारो, एक वार मोहि नेह निजरै निहाळो ॥ लालन निजरे० ॥२॥ जिम दिनकर उग्ये कमळ विकासे, तिम तुम दीठे मोठं मनडुं हीसे ॥ लालन मन० ॥तुमे निरागी माहरा मनडाना रागी, तुमशुं पुरव भवनी प्रीतडी जागी। लालन प्रीतडी० ॥३॥ तुं मेरे दिलको जानी तुंही के ग्यानी, माहरा प्रभुजी ताहरी अकळ कहानी ॥ लालन अकळ० ॥ अकळ सरुप निरंजन कहीये, ताहरी आण सदा शिर वहीये ॥ लालन सदा० ॥ ४॥ वाहाल घरी साहिब चाकरि कीजे, तो मन मनाव्या विण किम मन रीझे ।। लालन किम० ॥ पंडित भेरुविजय गुरु चरणे, सेवक विनीत कहे राखो शरणे ॥ लालन कहे० ५॥ इति ॥ . .१ सूर्य. २ वात. ३ आज्ञा. For Private And Personal Use Only Page #190 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८१ ) ॥ श्रीअभिनंदन जिन स्तवन ॥ ॥ धुळेवा नगरमां पधारजो रे - ए देशी ॥ • ॥ बेकर जोडी विनवुं रे, अभिनंदन अवधाररे || दयालराय || अंतरयामी माहरोरे, आवागमन निवाररे || दयालराय || बेकर ॥ १ ॥ आगम वचने आकरोरे, सांभळी करम विपाकरे || दया० ॥ हुं शरणागत ताहरोरे, शरणे आयो ताकरे' || द० ॥ बेकर || २ || मीट अमीणी जो करे, तो भाजे भवना भीड || दया० ॥ परमेसर पीहर पखेरे, कुण जाणे पर पीडरे || दया० ॥ बेकर || ३ || थे उपगारी शिर सेहरोरे, भयभंजण भगवंतरे || दया० अरियण तोहिज औहटेरे, जो पखो करे बलवंतरें || दया० ॥ बेक२० ॥ ४ ॥ हुं अपराधी उपरेरे, महिर करो महाराजरे ॥ दया० ॥ मेघ न जोवे बरसतोरे, सम विसमी जिनराजरे ॥ दया० ॥ बेकर० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ श्रीसुमतिनाथ स्तवन । ॥ गरबानी देशी ॥ ॥ हांरे वाल्हो सुमति जिणंद जुहारीरे, वारी जाउँ भामणे रेली | हांरे प्रभु सुरतरु फळीओ माहरेरे, गुणनिधी आंगणे रेलो ॥ १ ॥ हरे मेंतो देवनो देव निहाळीरे, जीवन जगधणी रेलो || हांरे प्रभु तेजे झळामल दीपेरे, ओपी जेम ओपणीरेलो १ ताकीने २ मावित्र ३ फल्पवृक्ष. For Private And Personal Use Only Page #191 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८२) ॥२॥ हारे वाहला नयण रह्या लोभाइरे, मोडं मुज मनडुंरेलो ॥ हारे प्रभु वाणी सरस रस पीधेरे, भाजे भव भूखडीरेलो ॥३॥ हारे प्रभु जीवन जगदाधार रे, वाहला छो पतिरेलो ॥ हारै प्रभु महोदय पदवी आपो रे, कापो 'दुरगतिरेलो ॥ ४ ॥ हरेि प्रभु अरज करे अरदासरे, आश ते पूरीयेरेला ॥ हरि वाल्हा रसभर रसीओ कहावेरे, चतुर दुःख चूरीयेरेलो ॥ ५ ॥ इति ।। ॥ श्रीपद्मप्रभु जिन स्तवन । ॥ कमळरसझुमकडं (अथवा) यात्रा नवाणु करीए सलुणा ए देशी ॥ . श्री पद्मप्रभुजीने सेवियेरे, शिवसुंदरी भरतार ॥ कमळदळ आंखडीयां; मोहनशुं मन मोही र रे,रूप तणो नाह पार ॥ भमुहधनुं वांकडीयां ॥१॥ अरुण कमळ सम देहडीरे, जगजीवन जिनराज ॥ वियणरस सेलडीयां; त्रीस पूरव लख आउखुरे, सारो वंछित काज ॥मोहन सुख वेलडीयां. ॥२॥ सहिरो सवि टोळे मळीरे, सोळ सजी शिणगार, मळी सखी सेरडीयां: गुग गाती घुमरी दीयेरे, करे चूडी खलकार ॥ कमळमुख गोरडीयां ॥३॥ मात मुसीमा उरे धर्योरे, मुज दिलडामां देव ॥ वस्यो दिन रातडीयां; कासंबीनयरी तणोरे, नाथ नमो नितमेव ।। सुणा सखी वातडीयां ॥४॥ धनुष अढीसें शोभतार, उंचपणे जगदीश ॥ नमो साहेलडीयां: रामबिजय प्रभु सेवतारे, लहीये सयल जगीस ॥ वधे सुख वेलडीयां ॥५॥ १ खोटी गति.२ राता कमळ जेवी. ३ स्त्रीओ. For Private And Personal Use Only Page #192 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८३) ॥ श्रीसुपाश्वनाथ स्तवन ॥ ॥निंदामकरजो कोईनी पारकीरे-ए देशी ॥ ॥ मुझ मन भमरो प्रभु गुण फूलडेरे, रमण करे दिन रातरे ॥ सुणजो स्वामि सुपास सोहामणारे, करजोडी कहुवातरे ॥१॥ मनडु ते चाहे प्रभु मलवा भणीरे, पण दीसे छे अंतरायरे ॥ जीव प्रमादीरे कर्म तणे वशेरे, ते केम मलq थायरे ॥ मनपुं० ॥२॥ लाख चोराशी जीवा योनिमारे, भत्र अटवी गति चार ॥ काल अनादि अनंन भमतां थकार, किमही न आवे पाररे ॥ मनडु०॥ ॥३॥ मारग बतावोर साहेब माहेरारे, जेम आबु तुम पायरे ।। लाज वधारोरे सेवक जाणीनेरे, यो दरिसण जिनरायरे । मन९०॥ ॥४॥ मूर्ति ताहारी रूपें रूअडीरे, अनुभव पद दाताररे ॥ नित्य लाभ प्रभुशुं प्रेमें वीनयेरे, तुमथी लहुं सुखसाररे ॥ मनटुं० ॥ ॥ ५॥ इति ॥ ॥श्रीचंद्रप्रभ जिन स्तवन । ॥ कुंवर गंभारो नजरे देखताजी-ए देशी ॥ ॥ तुं मनमोहन जिनजी माहरोजी, जगबंधव जगमाणरे ॥क. रुणा नजरे निहालतांजी, होवे ते कोड कल्याणरे ॥ तुं मन० ॥ ॥१॥ प्रगटया ते पुरव पुन्यनाजी, अंकुरा आधाररे ॥ शशि शिरोमणी छे भलोजी, लंछन तस साधाररे ॥ तुं० ॥२॥ खिण खिण मुलकने कारणेजी, महोदय मोटो थायरे ॥ अलंब्या इच्छा For Private And Personal Use Only Page #193 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८४) घणीजी, जिनगुण जिनजी सहायरे ॥ तु० ॥३॥ आश्या विलुद्धा जे रह्या जी, 'याचक जन वळि दासरे । माधुरता मधुर स्वरेजी, पूरीजे तेहनी आशरे ॥ तुं० ॥ ४॥ तुजमुज अंतर छ नहिजी, जिम कस्तुरी घनवासरे ॥ चंदनता सुचंदनेजा, प्रेमे चतुर प्रकाशरे ॥ तुं० ॥ ५ ॥ इति ॥ ॥ श्रीसुवधिनाथ जिन स्तवन । ॥ आंखडीयर में आज शत्रुज य दीठोरे-ए देशी ॥ ॥ताहारी अजव शी जोगनी मुंद्रारे, लागे मुने मीठीरे।। ए तो टाळे मोहनी निद्रारे, परतक्ष दीठीरे ॥ए आंकणी ॥ लोकोत्तरथी जोगनी मुद्रा ॥ वाल्हा मारा ।। निरुपम आसन सोहेरे ॥ सरस रचित शुकल ध्याननी धारे, मुरनरना मन मोहेरे ।। लागे० ॥१॥ त्रिगडामां रतन सिंहासन बेसी, ॥ वाल्हा मारा ॥ चिहूं दिशे चामर ढळ वेरे ॥ अरिहंत पर प्रभुतानो भोगी, तो पण जोगो कहावेरे ॥ लागे० ॥ २ ॥ अमृत झरणि मीठी तुज वाणि वा०॥ जेम आषाढो गाजेरे ॥ कान मारग थइ हियडे पेसी, संदेह मनना भांजे रे ।। लागे० ॥ ३॥ कोडि गमे उभा दरबार । वा०॥ जयमंगल सुर बोलेरे ॥ त्रण भुवननि रिद्ध तुज आगे, दीसे इम तृणा तोले रे ॥ लागे० ॥४॥ भेद लहं नहि जोग जुगतिनो १मागण-याचना करनार. For Private And Personal Use Only Page #194 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१८५ ) ॥ वा०॥ सुविधी जिणंद बतावोर ॥ प्रेमशुं कांति कहे करि करुणा, मुज मन मंदिर आवोरे ॥ लागे० ॥५॥ इति ॥ ॥श्रीशीतलनाथ जिन स्तवन ।। ॥ हीरजीगुरुवंदो (अथवा) विमलाचल वेगे वधावो-ए देशी॥ ॥शीतलजिन सहजानंदी, थगो मोहनी कर्म निकंदी॥ पर जायि बुद्धि निवारी, परगामिक भाव समारी ॥ मनोहर मित्र ए प्रभु सेवो, दुनिआमांहि देव न एवो ॥ मनोहर० ॥१॥ वरकेवलनांण विभासी, अज्ञान तिमिर भर नासी ॥ जयो लोकालोक प्रकाशी, गुण पज्जव वस्तु विलासी ॥ मनो० ॥२॥ अक्षय थिति आव्याबाध, दानादिक लब्धि अगाध ॥ जेह साश्वत सुखनो स्वामी, जड इंद्रिय भोग विरामी ।। मनो० ॥३॥ जेह देवनो देव कहावे, योगीशर जेहने ध्यावे॥ जसु आणा सुरतरु वेली, मुनि हृदय आरामे फेलो ॥ मनो० ॥ ४ ॥ जेहनी शीतलता संगे, सुख प्रगटे अंगो अंगे ॥ क्रोधादिक ताप समावे, जिन विजयाणंद सभावे ॥ मनो० ॥५॥ इति ॥ ॥ श्री श्रीयांसनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ पृथ्वी पाणी तेउ वाउ वनस्पती, ए पांचे थावर ___ कह्या ए-ए देशी ॥ वंदु जिन श्रेयांस, हंस तणी परे ।। मुनिजन मन कमलें रमेए For Private And Personal Use Only Page #195 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८६ ) ॥१॥ मुज मन तरुअर छांह, स्वामी अनुसरो ॥ जनम सफल माहरो करो ए ॥२॥विश्नु नरैसर वंश, धजा तणी परे॥जेणे कीयो जगे गाजतो ए॥३॥ निसुणि वयण मुज तात, हुं भमीयो घणु।। भव सायरनां पुरमाए ॥ ४ ॥ हवे निज पासे राखो, दाखो शुभ मति ॥ विनय करे इम विनती ए ॥ ५॥ इति ॥ ॥ श्री वासुपूज्य जिन स्तवन ॥ ॥ अनेहारे वाहालो वसे विमनाचलेरे-ए देशी ॥ ॥ अने हारे म्हारो प्रभु दिये छे देशनारे, ते तो सांभळे छे भविजन ॥ समवसरण बेठा शोभतारे, भांखे चार मुखे सुप्रसन्न ।। प्रभु दिये छे देशनारे ॥१॥ अने हारे बारे परखदा तिहां मळीरे, सवि बेसे आपणे ठाय ॥ वाणी जोजन गामिनीरे, ए तो सुणतां आवे दाय ॥ प्रभु० ॥२॥अने हारे रुडां बयणडां नीकळेरे, धुनी मेघ परे गंभीर ॥ पामर वचने न मिले कइरे, उंचे शब्दे साहस धीर ॥ प्रभु० ॥ ३ ॥ अने हारे पडछंदा उठे बोलनारे, अति सरलपणे अभिराम ॥ माळव कोशिक रागथीरे, जे आणे हियडुं ठाम ॥ प्रभु०॥४॥ अने हारे श्रीवासुपूज्य जिन साहिबारे, महारी मिथ्या मतिने टाळ ॥ खुशाल मुनिने नित आपणोरे, तुमे जाणीने थाज्यो दयाळ प्रभु० ॥५॥ इति ।। For Private And Personal Use Only Page #196 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८७ ) ॥ श्री विमलनाथ जिन स्तवन । ॥ अबधु एसो ज्ञान विचारी-ए देशी ॥ ॥ प्रभुनी मुज अवगुण मत देखो ॥ ए आंकणी ॥ राग दि. शाथी तुं रहि न्यारो, हुं मन रागे घालूं ॥ द्वेष रहित तुं समता भीनो, द्वेष मारग हुं चालू ॥ प्रभुजी० ॥१॥ मोह लेश फरश्यो नही तुहि, मोह लगन मुज प्यारी ॥ तुं अकलंकी कलंकित हुं तो, ए पण रहिणी न्यारी ॥ प्रभु० ॥२॥ तुहि निराश भाव पद साधे, हुं आशा संग विलुद्धो ।। तुं निश्चल हुं चल तुं मुधो, हुं आचरणे उधो ॥ प्रभुः ॥ ३॥ तुज स्वभावथी अवळा माहरा, चरित्र सकळ जर्गे जाण्या।। भारेखमा प्रभुने ते कहेतां, न घटे मुहढे आज्या ॥ प्रभु० ॥ ४ ॥ प्रेम नवल जो होय सवाइ, विमलनाथ मुख आगे ॥ कांति कहे भव वन उतरतां, तो वेळा नवि लागे ॥प्रभु० ॥५॥ इति ॥ ॥ श्री अनंतजिन स्तवन ॥ मूरतिहो प्रभु मूरति अनंतजिणंद, ताहरीहो प्रभु ताहरी मुज नयणे वसीजी; समताहो प्रभु समतारसनो कंद, सहजेहो प्रभु सहजे अनुभव रसलसीजी ॥ १ ॥ भवदवहो प्रभु भवदवतापित जीव, तेहनेहो प्रभु तेहने अमृतधन समीजी: मिथ्याविषहो प्रभु मिथ्या विषनी खीव, हरवाहो प्रभु हरवा जांगुलमणी रमीजी ॥ २ ॥ भा For Private And Personal Use Only Page #197 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १८८) वहो प्रभु भावचिंतामणी एह, आतमहो प्रभु आतमसंपती आपवाजी; एहिजहो प्रभु एहिज शीवसुखगेह, तखीहो प्रभु तत्वालंबन थापवाजी ॥ ३ ॥ जायेहो प्रभु जाये आश्रव चालि; दीठेहो प्रभु दीठे संवर वधेजी: रतनहो प्रभु रतन त्रयी गुणमाळ, अध्यातमहो मभु अध्यातम साधन सधेनी ॥ ४॥ मीठीहो प्रभु मीठी मुरति तुज, दीठी हो प्रभु दीठी रुचि बहु मानथीजी: तुज गुणहो प्रभु तुज गुण भासन युक्त, सेवेहो प्रभु सेवे तमु भय भय नथीजी ॥५ ॥ नाभेहो प्रभु नामे अद्भुत रंग, ठवणाहो प्रभु ठवण दीठां उल्लसेजी; गुणआस्वादहो प्रभु गुणआस्वाद अभंग, तन्मयहो प्रभु तन्मयताए जे घसेजी ॥ ६ ॥ गुणअनंतहो प्रभु गुणअनंतनो ईद, नाथहो प्रभु नाथ अनंतने आदरेजी; देवचंद्र हो प्रभु देवचंद्रने आणद, परमहो प्रभु परम महोदय ते वरेजी ॥७॥ ॥श्री धर्मनाथ जिन स्तवन ।। ॥मोतीडानी-देशी ॥ ॥ धरम जिणंद तुमे लायक स्वामी, मुज सेवकमां पण नहि खामी ॥ साहिबा रंगीला हमारा, मोहना रंगीला ॥'जुगति जोडि मळी छे सारी, जोज्यो हियडे आप विचारी ॥ साहिबा० ॥१॥ भगतवत्सळ ए बिरुद तुमारो, भगति तणो गुण अचळ अमारो ॥ सा० ॥ तेहमां को विवरो' करि कळशे, तो मुज गुण अवरयमां भळशे ॥ सा० ॥२॥ मूळ गुण तुं निराग कहावे, ते किम राग १ जोइए तेवी, २ फोड. For Private And Personal Use Only Page #198 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achar (१८९) भुवनमां आवे ॥ सा ॥ वळी छोटे घट मोटो न मावे, ते में आण्यो सहज स्वभावे॥ सा०॥३॥ अनुपम अनुभव रचना कीधी, इम शाबाशी जगमा लीधी । सा० ॥ अधिकुं ओछु अति आसंगे, बोल्युं खमध्यो प्रेम प्रसंगे ॥ सा० ॥ ४ ॥ अमथी होड हुये किम भारी ॥ आश घरं अम नेट तुमारी ॥ सा० ॥ हुँ सेवक तुं जग विसराम, वाचक विमळ तणो कहे राम ।। सा० ॥ ५॥ इति ॥ ॥श्री शांतिजिन स्तवन ॥ (घेरे आवोजी आंबो मोरीओ-ए देशी.) श्रीशांतिजिनेसर साहिबा, तुज नाठे किम छूटाश्ये: में लीधी केडज ताहरी, तेह प्रसन्न थयें मृकाश्ये ॥ श्री० ॥ १॥ तुं वीतरागपणुं दाखवी, भोळा जनने भूलावे; जाणीने कीधी प्रतिगन्या, तेहथी कहो कुण डोलावे ॥ श्री० ॥२॥ कोइ कोइने के. मत पडो, केडे पडयां आणे वाज; निरागी प्रभु पण खिंचीआ, भगते करी में सात राज ॥ श्री० ॥ ३ ॥ मनमांहिं आणी वासीओ, हवे किम निसरवा देवाय; जो भेद रहित मुजशुं मिळे, तो पलकमांहि छुटाय ॥ श्री० ४॥ कबजे आव्या किम छूटशो, कीधा विण कहण कृपाळ; तो श्युं हठवाद लेई रह्या कहे मान करो खुसियाळाश्री०॥५॥ - १ न्हाना घडामां. For Private And Personal Use Only Page #199 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org ( १९० ) ॥ श्री कुंथुनाथ जिन स्तवन ॥ || लाल सुरंगी रे साहीबोरे - ए देशी ॥ ॥ जिनजी रात दिवस निव सांभरेरे, देखी ताहरु रुप लाल || लाल गुलाल आंगी बनी रे ॥ तुज गुण ज्ञानथी माहरुरे, जाण्युं शुद्ध स्वरुप लाल || लाल० ॥ १ ॥ जिनजी तेह स्वरुपने साधवारे, कीजे जिनवर सेव लाल ॥ द्रव्यभाव दुभेदथीरें, द्रव्यथी जिम करे देवलाल || लाल० || २ || जिनजी मोगर मालती केवडोरे, ल्यो म्हारा कुंथुजिनने काज लालं ॥ लाखेणोरे टोडर' करीरे, पूजो श्री जिनराज लाल ॥ लाल० ॥ ३ ॥ जिनजी केसर चंदन धूपणारे, अक्षत' नैवेदनीरे लाल || द्रव्यथी जिननी पूजा करोरे, निरमल करीने शरीर लाल || लाल० ॥ ४ ॥ जिनजी द्रव्यथी इम जिन पूजा करीरे, भावथी रुपातीत स्वभाव लाल || निःकर्म्मा ने निःसंगतारे, निःकामी वेद अभाव लाल || लाल० ॥ ५ ॥ जिनजी आवर्ण सवि थया वेगळा रे, घाती अघाती स्वरुप लाल || बंध उदय ने सत्ता नहि रे, निज गुणना थया भूप लाल || लाल० ॥ ६ ॥ जिनजी मुज आतम तुज सारिखोरे, करवाने उजमाल लाल || ते जिन उत्तम सेवथीरे, पद्मने मंगल माळ लाल ॥ लाल० ॥ ७ ॥ इति ॥ १ हार. २ अखंड चौखा. ३ राजा. Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir For Private And Personal Use Only Page #200 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९१) ॥ श्री अरनाथजिन स्तवन ॥ (गायजोरे गुणनी रास-ए देशी.) गायजोरे धरी उल्लास, अर जिनवर जगदीशरुरे: मानजोरे एह महंत, महियलमांहिं वालेसरुरे ॥ १ ॥ धाइयोरे दृढ करी चित्त, मनवंछित फळ पूरशेरेः वारजोरे 'अवरनी सेव, एहीज संकट चूरशेरे ॥ २ ॥ सिंचनोरे सुमतनी वेल, जिनगुण ध्याननीरे; घणुं संपजेरै समकितफूल, केवळफळ रळियामणुरे. ॥ ३ ॥ पुन्यथीरे देवीनंद, नयणे नरखो नेहथीरे; उपनोरे अति आणंद, दुख अलगां थयां जेहथीरे॥४॥शोभतीरे त्रीश धनुषनी काय, राय सुदरिशन वंशनोरे, आउखुरे जिनजी- सार, सहस चोराशा वरस-रे ।। ५॥ जिनराजनेरे करुं प्रणाम, काज सरै सवि आपणुंरेभावथीरे भगति प्रमाण, दरिशण फळ पामे घ[रे ॥६॥ सेवजोरे अरपद अरविद, जो शिवसुखनी कामनारे; राखजोरे प्रभु रदय मोझार, राम वधे जग नामनारे ॥७॥ ॥श्री मल्लीनाथजिन स्तवन ॥ (कोण भरे री जल कौण भरे दल वादलीरो पाणी कौण भरे-ए देशो.) कौन रमे चित कौन रमे, मल्लिनाथजा विना चित कौन रमे; माता प्रभावती राणी जायो, कुंभनृपतिसुत कामदमे ॥१०॥१॥ १ बीजानी, २ फतेह थाय. ३ अरनाथजीनां चरणकमळ, ४ इच्छा, ५ कामदेवने नाश करनार. For Private And Personal Use Only Page #201 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९२) कामकुंभ जिम कामित पूरे, कुंभलंछन जिन मुख गमे ।म० ॥२॥ मिथिलानयरी जनम प्रभुको, दर्शन देखत दुःख शमे ॥ म० ॥३॥ घेवरभोजन सरसां प्रीस्यां, कुकस बाकस कौण जिमे ॥ म० ॥४॥ नील वरण प्रभु कांतिके आगे, मरकति मणि छवि दूर भौ ॥ म० ॥५॥ न्यायसागर प्रभु जगनो पामी, हरि हर ब्रह्मा कौण नमे ॥ म०॥६॥ ॥श्री मुनिसुव्रत जिन स्तवन ।। ॥ घोडी ता आइ थांरा देशमे मारुजी-र देशी ॥ ॥ मुनिसुव्रत शुं मोहनी ॥ साहिबजी ॥ लागी मुज मन जोर हो ॥ शामलडी मरती मन मोहियो साहिबजी ॥ व्हालपणुं प्रभुथी सहि ॥ साहिबजी ॥ कलेजानी कोरहो ॥ शाम ॥१॥ अमने पूरण पारखं ॥ सा०॥ ए प्रभु अंगीकार हो ॥ शाम० ॥ देखी दिल बदले नहि ॥ सा०॥ अमचा दोष हजार हो ।। शाम० ॥२॥ निरगुण पण बांहि ग्रह्या ॥ सा० ॥ गिरुआ छेडे केमहो ॥शाम०॥ विषधर काळा कंठमे ॥ सा० ॥ राखे इश्वर जेम हो । शाम ॥३॥ गिरुआ साथे गोठडी ॥ सा० ॥ ते तो गुणनो हेतही ॥ शाम०॥ करे चंदन निज सारिखो ॥ सा० ॥ जिम तरुअरनो खेतहो । शाम० ॥ ४॥ ज्ञानदशा परगट थइ ॥ सा० ॥ मुज घट मिलियो इश हो। शाम ॥ विमल विनय उवज्झायनो ॥सा०॥ राम कहे शुभ शिष्य हो ॥ शाम० ॥ ५॥ इति ।। १ मनकामना, २ बहुज.२ अमारा. ३ काळा नागने. ४ महादेव. For Private And Personal Use Only Page #202 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९३ ) ॥ श्री नमिजिन स्तवन ॥ || दोसीडाने हाटे जाज्यो लाल, लाल कसूबो भींजे छे- ए देशी ॥ शी-दु ་ विजयनरेसर नंदन लाल, विशसुत मन मोहे छे; 'नीलोत्पल लंछन पाए लाल, सोवनवान तनु सोहे छे || १|| मिथुलानयरीनो वासी लाल, शिवपुरनो मेवासी छे; मुनी वीश सहस जस पासे लाल, तेज कळा सुविलासी छे || २ || प्रभु पंनर धनुष परिमाणे लाल, जगमां कोरत व्यापी छे: प्रभु जीवदयाने थाणें लाल, सुमतिलता जिने थापी छे ॥ ३ ॥ नमिनाथ नमो गुणखाणी लाल, अक्षय बळी अविनासी छे; तेणे वात सकळ ए जाणी लाल, जेहने आशा दासी हे ||४|| श्री सुमतिविजय गुरु नामे लाल, अविचळ लीला लाधी छे; कहे रामविजय जिन ध्याने लाल, कीरत कमळा वाधी छे ॥ ५ ॥ || श्री नेमनाथ जिन स्तवन ॥ For Private And Personal Use Only ॥ युग गोवाळणी गोरसडावाळी रे उभी रहेने - ए देशी || || शामळीया लाल तोरणथी रथ फेरयो कारण कहोने, गुण गिरुआ लाल मुजने मूकी चाल्या दरिसण धोने ॥ ए आंकणी ॥ हुं छं नारि ते तपारी, तुम्हे से प्रोति मूकी अम्हारी ॥ तुम्हे संयम स्त्री मनमां धारी ॥ शामळीया० ||१|| तुम्हे पशु उपर किरपा आणी, तुम्हे माहरी वात न को जाणी || तुम्ह विण परशुं नहीं को प्राण १ नीला कमळनुं. Page #203 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९४ ) 7 || शाम० || २ || आठ भवोनी प्रीतलडी, मूकीने चाल्या रोतलडी || नहीं सज्जननी ए रीतलडी || शाम० ॥ ३ ॥ नवि कीथो हाथ उपर हाथे, तो कर मूकायुं हुं मांये || पण जावुं प्रभुजीनी साथे || शाम० ॥ ४ ॥ इम कही प्रभु हाथे व्रत लीधो, पोतानो कारज सवि कीधो || पकडयो मारग एणे शिव सीधो ॥ शाम० ॥ ५ ॥ चोपन दिन प्रभुजी तप करीओ, पणपने केवल वर वरीओ || पण सत छत्रिशशुं शिव वरिओ || शाम० ||६|| इम त्रण कल्याक गिरनारे, पायाते जिन उत्तम तारे।। जो पादपद्म तस शिर धारें || शाम० ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥ श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥ ॥ प्रथम जिनेश्वर प्रणमीये, जास सुगंधी काय - ए एशी ॥ ॥ नयरी वणारसी साहेवो, मभुजी पार्श्व जिणंद || जग दा नंदन चंद, जगतगुरु राजतो, भविजन नयणानंद ॥ १ ॥ कामित' पूरण सुरतरु, प्रभुजी परम आधार || दुःख दावानल वार, जगतगुरु तुं जयो, सजल जलद सुखकार || २ || तुज दरिसणथी रुची रागथी, प्रभुजी परम कृपाल || पासुं ग्यान रसाल, जगतगुरु सेवतां, चरित्र गुण सुविशाळ || ३ || मुख मटके जग वस्य करयो, प्रभुजी परम पुनीत || वामादेवी सुत प्रीत, जगतगुरु माहरो, अश्वसेन सुविनीत ॥ ४ ॥ अतित अनागत जिनपति, प्रभुजी जे १ हाथ. २ पंचावन. ३ पांचशे छत्रीशथी ४ मनना इच्छा पूरण करवाने कल्पवृक्ष सरखा. For Private And Personal Use Only Page #204 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir दीनदया श्री महाकाळ ॥ ७॥ वर्तमान ॥ तुज वंदन गुन ग्यान, जगतगुरु ते सवे, प्रणयुं परम निधान ॥ ५ ॥ गणधर मुनिवर प्रमुख जे, आद्य अंत परिवार ।। ते बंदु मुविचार, जगत गुरु ध्याइए, 'फणिपति लंछन सार ॥६॥ पार्श्वप्रमुख जे यक्ष छे, प्रभु तीरथ रखवाळ ॥ दीजे दीनदयाळ, जगतगुरु चतुरने, चरणरी सेवा रसाळ ॥ ७ ॥ इति ॥ ॥श्री महावीर जिन स्तवन ।। ॥ गायो गायोरे शंखेश्वर साहिब गायो-ए देशी ॥ ॥ त्रिशला नंदन चंदन शीतल, सरीस सोहे शरीर ॥ गुण मणि सागर नागर गावे, राग धन्याश्री गंभीररे ॥ प्रभु वीर जिनेसर पायो ॥१॥ शासन वासित बोधे भविकने, तारे सयल संसार ॥ पावन भावना भावति कीजे, अमो पण आतम साररे ॥ प्रभु वीर० ॥२॥ नायक लायक तुम विण बीजो, नवी मळियो आकाळ ॥ तारक पारक भव भय केरो, तुं जग दीन दयाळरे ॥प्रभु०॥३॥ अकळ अमाय अमल' प्रभु ताहरो, रुपातीत विलास ॥ ध्यावत लावत अनुभव मंदिर, योगीसर शुभ भासरे प्रभु०॥४॥ वीर धीर शासन पति साधो, गातां कोडि कल्याण ॥ कीरति विमल प्रभु परम सोभागी, लक्ष्मी वाणी प्रमाणरे ॥ प्रभु वीर जिनेसर पाम्यो ।। ५ ॥ इति ॥ ॥श्री रुषभदेव जिन स्तवन ॥ ॥हाररो हीरो-ए देशी ॥ प्रथमजिणेसर पूजवा, सहियर म्हारी अंग उलट धरी आवी १ साप. २ न कळी शकाय एवो. ३ माया रहित. ४ निर्मळ, For Private And Personal Use Only Page #205 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९६ ) हो, केसर चंदन 'मृगमदे, स० सुंदर आंगी बनावीहो ॥ १॥ सहज मलूणो म्हारो, शमसुखलीनो म्हारो, ग्यानमां भीनो म्हारो साहियो, सहियर म्हारी जयो जयो प्रथमजिणंदहो।।ए आंकणी॥ धन्य मरुदेवी कुखने स० वारीजाउं वार हजारहोः सर्गशिरोमगीनें तजी, स. जिहां प्रभु लीए अवतारहो ॥ सह ॥२॥ दायक नायक जन्मथी, स० लाज्यो 'सुरतरु वृंदहो, युगला धरम निवारणो स० जे थयो प्रथम नरिंदहो ॥ सह० ॥३॥ लोकनीति सहु शीखवी, स० दाखवा मुक्तिनो राहहो; राज्य भळावी पुत्रने, सः ॥ थाप्यो धर्म प्रवाह हो. ॥ सह० ॥ ४ ॥ संयम लेइ संचर्यो, स. वरस लगे विणआहारहो; शेलडी रस साटे दीओ, स० श्रेयांसने मुख सारहो ॥ सह० ॥ ५॥ मोटा महंतनी चाकरी, स० निष्फळ कदिय न थायहो ॥ मुनिपणे नमि विनमी कर्या, स० विणमा खेचरराय हो. ॥ सह० ॥ ६॥ जननीने कीओ भेटणो, स० केवळरत्न अनूपहो; पहिली माता मोकली, स० जोवा शिवबहु रुपहो ॥ सह० ।। ७ ॥ पुत्र नवाणुं परिवयों, स. भरतना नंदन आठहो; आठकरम अष्टापदे, योगनिरोधे नाठहो ॥ सहः॥८॥ तेहनो विब सिद्धाचले, स० पूजो पावन अंगहो; क्षमाविजय जिन निरखतां, स० उछळे हरख तरंगहो ॥ सह० ॥९॥ १ कस्तूरी. २ कल्पवृक्ष. ३ मार्ग. ४ वदले. ५ पुत्र ६ अष्टापद तीर्थ उपर. For Private And Personal Use Only Page #206 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९७) ॥श्री शांतिनाथ स्तवन ॥ ॥ आवो आवो पासजी मुज मलीआरे-ए देशी ॥ शांति प्रभु विनति एक मोरी रे, तारी आंखडी कामणगारी ॥ शांति ॥ विश्वसेन राजा तुज ताय रे; राणी अचिरादेवी माय २॥ तुं तो गजपुर नगरीनो राय ॥ शां० ॥१॥ प्रभु सोवन कांति विराजे रे, मुकुटे हीरा मणि छाजे रे ।। तारी वाणी गंगापूर गाजे । शां० ॥२॥ प्रभु चालीश धनुषनी काया रे, भवि जनना दिलमां भाया रे॥ कांइ राज राजेसर राया ॥ शां० ॥ ३ ॥ प्रभु माहारा छो अंतरजामी रे, करुं विनति हुँ शिरनामी रे ।। चउद राजना छो तुमे स्वामी ॥ शांति० ॥ ४ ॥ प्रभु पर्षदा बार मांहे रे, दीये देशना अधिक उच्छाहें रे ॥ प्रभु अंगीए भेटया उमाहे ॥ शां॥५॥ श्रावक श्राविका बहु पुण्यवंता रे, शुभ करणी करे महंता रे ॥ शांतिनाथना दरिसण करता ॥ शां० ॥ ६॥ संवत अढार अठ्ठागुंओ सार रे, मास कल्प कर्यो तिणि वाररे ॥ मूरि मुक्तिपदना धार ॥ शां० ॥ ७॥ इति ॥ ॥श्री नेमिजिन स्तवन ।। ॥ सखी तुमे देखोरै साम बना-ए देशी.॥ सेहेसावनमां एक दिन स्वामी, नेमि समोसर्या ॥ श्री पति साथे राजुल बंदी, बोले पीयु प्यारारे ॥ वालाजी अमे आव्यारे आश भयी ॥१॥ जान सजी करी जादव जुक्ते, तोरण रण रझल्या॥ मंदिर देखी मोहन चाल्या, मेंली आशभर्या रे ॥वालाजी० ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #207 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( १९८) आठ भवंतर प्रेम प्रकाशी, नवमे निराश कर्या ।। संयम साधन सांइ सलुणा, अमने निराश कर्या रे ॥ वालाजी० ॥३॥ परहरी प्रीतम नेम रसीले, राजुल रोप भर्या ॥ निधणीआती नारी सुणीने, अबुध जनम उधर्या रे वालाजो० ॥ ४ ॥ दिन पंचावन प्रेम बिलुधा, वरस विजोग वल्या ॥ दिन दयालु दरशन फरीने, पुरण आज ठर्या रे ॥ वालाजी० ॥ ५ ॥ भोग सरोग विजोग भवोभव, देखी दिलमां ठर्या ॥ सासय सुख सगपण मेल्युं, शिरपर हाथ धर्या रे ॥ वालाजी० ॥६॥ प्रितम पालव पलक न छोडं, पतिव्रताए वर्या ॥ समता स्वामिणी भोगवे भापनि, न रहे खीगव छा रे ॥वालाजी० ॥७॥ केवळलच्छीमां भाग हमारो, अंतर हेळे हल्या ॥ एम वदंति पुनःपनोति, संजम लेइ विचर्या रे ॥ वालाजी० ॥ ८ ॥ केवळ पामी राजुल नेमि,सादि अनंत मल्या|श्री शुभवीर रसिला साहेव, सपरे काज सर्या रे ॥ वालाजी० ॥९॥ ॥ श्री पार्श्वनाथ जिन स्तवन ॥ मोहन मुजरो लेजो राज, तुम सेवामां रेहेशु ॥ वामानंदन जगदा वंदन, जेह सुधारस खाणी ॥ मुख मटके लोचनके लटके, लोभागी इंद्राणी ॥ मोहन० ॥१॥ भव पटण चीहु दीशी चारे गति, चोराशी लाख चौटा ॥ क्रोध मान मायाने लोभादिक, चोवटीआ अति खोटा ॥ मोहन० ॥२॥ मिथ्या मेतो कुमति पुरोहित, मदनसेनाने तोरे ॥ लांच लइ लाख लोक संतापे, मोहकंदर्पने जोरै ॥ मोहन० ॥३॥ अनादि निगोदनो बंधी खाणो, तृष्णा तापे For Private And Personal Use Only Page #208 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (१९९) राख्यो ॥ संज्ञा चारे चोकी मेली, वेद नपुंसक वांको ॥ मोहन ॥ ४ ॥ भवस्थिति कर्म विवर लइ नाठो, पुन्य उदय पण वाघो ।। स्थावर विकलेंद्रीपणुं ओलंगी, पंचद्रीपणुं लायो॥ मोहन० ॥ ५ ॥ मानवभव आरज कुळ सद्गुरु, विमळ बोध मल्यो मुजने ॥ क्रोधा. दिक रिपु शत्रु विणाशी, तेणे ओलवाव्यो तुजने ॥ मोहन० ॥६॥ पाटणमाहे परम दयाल, जगत विभुषण भेटया ॥ सतर बाणुं शुभ परिणाभे, कर्म कटीन बल मेटया ॥ मोहनः ॥ ७ ॥ समकित गज उपसम अंबाडी, ज्ञान कटक बल कीg ॥ क्षमाविजय जिन चरण रमण सुख, राज पोतानुं लीधुं ॥ मोहन० ॥८॥ ॥श्री महावीर जिन स्तवन । ॥ तोरण आइ क्युं चले रे-ए देशी ॥ सुत सिद्धारथ भूपनो रे, त्रिशला नंदन वीर सलुणा; हरि लंछन प्रभु राजतो रे, कंचनवान शरीर सलुणा ॥ जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम नव निधि थाय, स० ॥१॥ शासन नायक वीरजी रे, जन्म्या श्री जगदीश स०; चरण अंगुठे कंपावीओ रे, तब इंद्र करे रीस स० ॥ जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम संपत्ति आय. स० ॥२॥ तेहना तेजशुं त्रासी रे, तम जइ पेटुं गुहंत स०; अवधिनागे करी नीरखे रे, बहु बळ वीर कहंत स० ॥ जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम कर्मनो नाश स० ॥ ३॥ मोहवशे करी माहरा रे, रह्या प्रभु घरवास स; भोग तजी दीक्षा लहे रे, आज्ञा लइ नंदी पास स०॥ जिम जिम ए प्रभु For Private And Personal Use Only Page #209 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२००) सेवीए रे, पाप पटल सवि जाय स० ॥ ४ ॥ काउसगध्याने प्रभु रह्या रे, मांडयुं कर्मशुं युद्ध स०; सवि उपसर्ग हावीआ रे, शिव सुंदरीशुं लुब्ध स० ॥ जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम लहे बहु मान स० ॥ ५॥ क्रोड देव सेवा करे रे, जळनिधि रंग तरोल स०, मुज मन मंदिर दीपशुं रे, करता रंग झकोल स० ॥जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम पूजनिक थाय स० ॥ ६॥ खडां खडां केवळ लया रे, शिवरामाना कंत स०: समवसरण देवे रच्यु रे, देशना सुणी हरखंत स० ।। जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम धर्म सनेह स० ॥ ७ ॥ चार अघाती क्षये करी रे, पाम्या भवनो पार स०: राग द्वेषे करी हुंचीओ रे, कृपा करी मुज तार स० ॥ जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम वंछित थाय स० ॥ ८॥ हुं फंदी मोहे पीडीओ रे, मोह निद्रामांहे सुप्त स०: परमेश्वर सन्मुख जुओ रे, हुं मागुं तुम हेत स० ।। जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम देव हजुर स० ॥९॥ श्री गुरु क्षेमना शासनने रे, जे सेवे ते धन्य स०: तस विनय करी वीनवे रे, हर्ष धरी एक मन स० ॥ जिम जिम ए प्रभु सेवीए रे, तिम तिम सुख विशेष स० ॥१०॥ ॥ श्री साधारण जिन स्तवन ॥ ॥ भलाजी मेरो नेम चल्यो गीरनार-ए देशी ॥ मेरे दिल आय वसो, माहरी अरज सुणो जिनराज ॥ मेरे दिल आय वसो ॥ ए आंकणी ॥ सकल मुरासुर नर विद्याधर, For Private And Personal Use Only Page #210 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०१ ) आय खडे तुम पाय ॥ मेरे दिल आय वसो ॥१॥ दास सभाव करी जो देवो, तो भव भवनां दुःख जाय ।। मेरे० ॥ २ ॥ दीन उद्धार धुरंधर तुम सम, अवर न को कहेवाय ॥ मेरे० ॥३॥ तुझ सम करुणा ठाम न कोइ, श्ये न करो सुपसाय ॥ मेरे० ॥ ॥४॥ देतां दाम न बेसे कांइ, उणीम काइ न थाय ॥ भेरै० ॥ ॥५॥ जे जेहना ते तेहना आखर, जिहां तिहां चित न बंधाय ॥ मेरे० ॥ ६॥ पग कावे एक साचे बोले, सुणी मनमां सुख थाय ॥ मेरे० ॥ ७॥ माहरे छे ते प्रगट करतां, प्रभु तुज नाम मु. हाय ।। मेरे० ॥ ८ ॥ ज्ञानविमल प्रभुस्युं इम विनति, करतां पाप पलाय ॥ मेरे ॥ ९॥ अनुभव लीला सुंदरी सहेजे, धाइ मिले गले आय ॥ मेरे० ॥ १० ॥ इति ।। ॥श्री साधारण जिन स्तवन । ॥ चंद्राप्रभुजीसे ध्यानरे मोरी लागी लगनवा-ए देशी ॥ ॥ लग गइ अबीयां मेरीरे, म्हारो नाथजी जागे ॥ पेखी मूरतियां तेरीरे ॥ म्हारो० ए आंकणी ॥ प्रभु गुणनंदन वनहनि कुंजमां, खेलत चेतना प्यारी॥ म्हारो० ॥१॥'विकसित कज परे होवत छतीयां, प्रसरति मन सुख कारीरे॥ म्हारो० ॥२॥ रोम रोम तनु कंचुक उल्लसित,निकसित भ्रांति विचारीरे म्हारो॥३॥रसना गुण पार न पावत, करत विनतीयां धारीरे ॥ म्हारो० ॥४॥ रहत १ विकस्वर कमलनी परे. २ जीभ. For Private And Personal Use Only Page #211 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०२ ) न दुश्मन दावन फावत, तुम्ह सुरतीयां भारीरे ॥ म्हारो० ॥५॥ अनुभव नयणे जिम जिम जोवत, प्रगट न पतीयां अरीभारीरे ॥ म्हारो० || ६ || गति छति थिति भगत वसुधाता, धारत न 'भत्तोया भारीरे ॥ म्हारो० || ७ || ज्ञानविमल गुण उदय अहोनिश, होवत ' नतिया सारीरे ॥ म्हारो० ॥ ८ ॥ इति ॥ || श्री साधारण जिन स्तवन ॥ ॥ कनक कमल पगलां ठप - ए देशी ॥ ॥ श्री जिनवर ने वंदनाए, करता लाभ अनंत तो ॥ स्वामि सोहामणाए ॥ भव भयनां दुःख भांजवार, समरथ तुमे गुणवंततो ॥ स्वामि० ॥ तारक तुम सम कोइ, न दीठो भूतलेए | ए आंकणी ॥ १ ॥ तुमे उपकार घणा कर्याए, कहेतां नावे पारतो || स्वामि०॥ आ संसार बिहामणी ए, उतारों तस पार तो ॥ स्वामि० ॥ २ ॥ जाण कने शुं याचीए ए, जे जाणे विण को वाततो || स्वामि० ॥ पण एम कहे माया विनाए, नवि पीरसे निज मात तो || स्वामि० || ३ || ते माटे हुं विनवुं ए, आपो तुम पद सेवतो || स्वामि० ॥ ढील किशी करो एवडीए, दायक छो स्वयमेव तो ॥ स्वामि० ॥४॥ ज्ञानविमल सुख संपदाए, शुभ अनुबंधी जाणतो ॥ स्वामि० ॥ अधिक हुवे हवे आजथीए, प्रभु तुम वचन प्रमाण तो ॥ स्वापि०॥ ॥ ५ ॥ इति ॥ १ भक्ति. २ नमस्कार. For Private And Personal Use Only Page #212 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०३) ॥ श्री साधारण जिन स्तवन॥ ॥ संभव जिन अवधारीये-ए देशी॥ ॥ निस्नेही शुं नेहलो, काइ कीयो केणीपेरे जाय हे मित्त ॥ एक पाखो केम कीजते, कांइ जनमां हांसी थाय हे चित्त ॥ कांइ जाणे क्युं बनी आवहि, कांइ त्रिभुवन जननो नाथ हे चित्त ॥ कांइ मुगति पुरीनो साथ हे मित ॥ कांइ जाणे० ॥१॥ए आंकणी॥ लौकिक गुण गणजो होवे, तो रसनाए कह्या जाय हे चित ॥ पण लोकोत्तर गुणवंत छो, किम ते वर्ण न थाय हे मित्त ॥ कांइ० ॥२॥ तरोये लघु नदी वाह्यशृं, कांइ स्वयंभू रमण न तराय हे चित्त ॥ लघु नंग होय तो तोळीए, कांड मेरु न तोल्यो जाय हे मित ॥ कांइ० ॥३॥ यद्यपि सुरनी सानिधे, कांइ ते पण सोहिलं थाय हे चित्त ॥ पण प्रभु गुण अनंत अनंत छे, कांइ ते केम बोल्या जाय हे मित्त ॥ कांइ०॥ ४ ॥ ज्ञानकला तेहवी नहि, कांइ संयम शुद्ध न थाय हे चित ॥ संघयणादिक दोषनो, कांइ अंतर बहु एम थाय हे मित ॥ कांइ०॥ ५॥ पण तुन भक्ति रीझशे, कांइ मुक्ति खेंचाने तेणहो चित्त ॥ चमक उपल जिम लोहने, काइ कुमुदने चंद महेण हे मित ॥ कांइ० ॥६॥ एवू जाणी बनी आवेलोने, नेक नजरशुं. निरखतां, कांइ तुमशु लागे दाम हे चित्त॥ ज्ञानविमल चढती कळा, कांइ वाधे जगे जश माम हे मित ॥ कोइ० ॥७॥ इति ॥ For Private And Personal Use Only Page #213 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०४) ॥श्री साधारण जिन स्तवन । । राग-केदारो. आवो आवो जसोदाना कंथ अम घर ___ आवोरे-ए एशी ॥ ॥ भलं कीg रे माहरा नाथ, मुन मन आव्या रे ॥ मिलीयो शिवपुर साथ, सविसुख पाव्यारे ॥ सुपसान थइने आज, दरिसन दीधुंरे, आ मानवना अवतार, तणुं फल लीधुं रे ॥१॥ तुज शासन प्रतीते, में हित जाणोरे ॥ छे यदि अगम अथाह, पणे चित आणी रे॥ अनेकांत नयरूप, जे तुम वाणीरे ॥ भाषक अवर न कोइ, अनोपम नाणोरे ॥ २ ॥ करुणावंत कृपाल, कृपा हवे कीजे रे॥ भव भव एहिज रंग, अभंगे दीजे रे ॥ श्री जिनवर महाराज, साहिब सुणीये रे ॥ भाव मने मन जाणी, घणुं शुं भणीयेरे ? ॥ ३ ॥ शुं बहु भाख्ये होइ, सेवक गणीयेरे ॥ देखी दोष अनेक ए, नवि अवगणीयेर । सेवकनी सवि लाज, स्वामी वधारेरे ॥ भक्ति आतुरता भाव, ए व्यवहारेरे ॥४॥ आप सरुप न कोइ, केने आपेरे ॥ पण सहायने हेत, ध्याने थापे रे । जेम रविथी पंकजवास, बंधन विघटेरै ॥ तेम ज्ञानविमल गुण वृद्धि, प्रभुथी प्रगटेरे ॥ ५॥ इति ॥ ॥ अथ श्री जिन सहस्रनाम वर्णन छंद । ॥ भुजंग प्रयात वृत्तं ॥ जगन्नाथ जगदीश जगबंधु नेता, चि१ मति इत्यपि. For Private And Personal Use Only Page #214 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०५ ) दानंद चित्कंद चिन्मूर्ति चेता ॥ महामोह भेदी अमायी अवेदी, तथा गत तथा रूप भव भय उच्छेदी ॥ १॥ निरातंक निकलंक निर्मल अबंधो, प्रभो दीनबंधो कृपानीर सिंधो ॥ सदातन सदाशिव सदा शुद्ध स्वामी, पुरातन पुरुष पुरुष वर वृषभ गामी ।। २॥ प्रकृति रहित हित वचन माया अतीत, महा प्राज्ञ मुनि यज्ञ पुरुष प्रतीत ।। दलित कर्म भर कर्म फल सिद्वि दाता, हृदय पूत अवधूत नूतन विधाता ॥ ३॥ महा ज्ञान योगी महात्मा अयोगी, महाधर्म संन्यास वर लच्छिभोगी ।। महाध्यान लीनो समुद्रो अमुद्रो, महाशांत अतिदांत मानस अरुद्रो ॥४॥ महेंद्रादि कृत सेव देवाधि देव, नमो ते अनाहुत चरण नित्य मेव ॥ नमो दर्शनातीत दर्शन समूह, त्रयी गीत वेदांत कृत अखिल उह ॥ ५॥ वचन मन अगोचर महा वाक्य वृत्ते, कृता वेद्य संवेद्य पद सुपत्ते ॥ समापत्ति आपत्ति संपत्ति भेदी, सकल पाप सुगरीठ तुं दीठ छेदी ॥ ६॥ नतूं द्रग द्रग मात्र इति वेद वादो, समापत्ति तुज दृष्टि सिद्धांत वादो ॥ विगूता विना अनुभवि सकल वादि, लखी एक सिद्धान्त घर अप्रमादी ॥ ७॥ कुमारी दयिता भोगसुख जेम न जाणे, तथा ध्यान विण तुज मुधा लोक ताणे ॥ करो कष्ट तुज कारणे बहुत खोजी, स्वयं तुं प्रकासी चिदानंद मोजी ॥ ८ ॥ रटे अटपटे झटपटें वाद ल्यावे, नित्या तुं रमे अनुभवें पास आवे ॥ महाचर न हठ योग मांहें तुं ज्युं जागे, विचारें होइ सांइ आगें जो आगें ॥ ९॥ तथा बुद्धि नहीं शुद्ध तुज जेणि वहिये, कलौनाम मांही एक थिर थोभ रहिये ।। सहस्त्रनाम मांही दप्प पण अप्प जाणुं, अणते गुणे For Private And Personal Use Only Page #215 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०६) नाम णतां वखाणु ॥ १० ॥ अनेकांत संक्रांत बहु अर्थ शुद्ध, निके शब्द ते ताहरा नाम बुद्ध ॥ निराशी जपे जेह ते सर्व साधु, जपे जेह आशायें ते सर्व काचुं॥११॥ नको मंत्र निवतंत्र निवयंत्र मोटो, जिस्यो नाम ताहरो सम अमृत लोटो ॥ प्रभु नाम तुज मुज अक्षय निधान धरूं चित्त संसार तारक प्रधान ॥ १२ ॥ अनामी तणा नामनो शो विशेष, एतो मध्यमा वैखरीनो उल्लेख ।। मुनिरूप पश्यंति काइ प्रमाणे, अकल अलख तुं इम हुवो ध्यान टाणे ॥ १३ ॥ अनवतारनो केइ अवतार भांखी, घटी तेहनी देवनी कर्म पाखी ॥ तनुग्रह नहीं भूत आवेश न्यायें, प्रथम योग छे कर्म तन्मिश्र पायें ॥१४॥ अछे शक्ति तो जननी उदरें न पेशी, त्तनुग्रहग वली पर अहो न बेशी ॥ तुरंग श्रृंग सम अर्थमां जेह युक्ति, कही सहहि तेह अममाण उक्ति ॥ १५॥ यदा जिनवरें दोष मिथ्यात्व टाल्यो, ग्रहां सार सम्यकत्व निजवान वाल्यो । तिहाथो हुआ तेह अवतार लेखी, जगत लोक उपगार जगगुरु गवेरखी ॥ १६ ॥ अहो योग महिमा जगन्नाथ केरो, टले पंच कल्याणके जग अंधेरो॥ तदा नारकी जीव पण सुख पावे, चरण सेक्वा धसमस्या देव आवे ।। १७ ॥ भजी भोग लै योग चारित्र पाले, धरी ध्यान अध्यात्म घन घाति टाले ॥ लही केवल ज्ञान सुरकोडि आवे, समवसरण मंडाइ सब दोष जावे ॥ १८॥ घटे द्रव्प जगदीश अवतार एसो, कहो भाव जगदीश अवतार केसो रमे अंश आरोप धरी ओघ दृष्टि ॥ लहे पूर्ण ते तत्व जे पूर्ण दृष्टि ॥ १९ ॥ त्रिकालज्ञ अरिहंत जिन पारगामी, विगत कर्म परमेष्टि भगवंत स्वामी ॥ प्रभू बोधिदा भयद आप्त स्वयंभू, For Private And Personal Use Only Page #216 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २०७) जयो देव तीर्थकरो तुंज शंभू ॥ २० ॥ इश्यां सिद्ध जिननां कह्यां सहस्र नाम, रह्यो शह झगडो लहो शुद्ध धाम ॥ गुरु श्री नयविजय बुध चरण सेवी, कहे शुद्ध पदमांहि निज दृष्टि देवी ।। २१ ॥ इति ॥ ।। अथ श्री शांतिजिन विनतिरूप छंद ॥ शारद गाय नमुं शिर नामि, हुं गाउं त्रिभुवनको स्वामी ।। शांति शांति जप सब कोइ, ता घर शांति सदा सुख होइ ॥१॥ शांति जपी जे कीजें काम, सोइ काम होवे अभिराम ॥ शांति जपी परदेश सिधावे, ते कुशले कमला लेइ आवे ॥२॥ गर्भ थकी प्रभु मारो निवारी, शांतिजी नाम दियो हितकारी ॥ जे नर शांति तणा गुण गावे, रुद्धि अचिंती ते नर पावे ।।३॥ जा नरहू प्रभु शांति सहाइ, ता नरकं क्या आरति भाइ ॥ जो कछु बछे सोई पूरे, दारिद्र दुख मिथ्यामति चूरे ॥ ४ ॥ अलख निरंजन ज्योत प्रकाशी, घट घट अंतरके प्रभु वासी ॥ स्वामी स्वरुप का नवि जाय, कहेतां मोमन अचरिज थाय ॥५॥ डार दीए सबहीं हथियारा, जीत्यां मोह तणा दल सारां ॥ नारि तजी शिवशुं रंग राचे, राज तज्युं पण साहेब साचे ॥६॥ महा बलवंत कहिजे देवा, कायर कुंथु न एक हणेवा ॥ रुद्धि सयल प्रभु पास लहीजे, भिक्षा आहारी नाम कहीजे ॥७॥ निंदक पूजककुं सम भायक, पण सेवकहीकुं सुख दायक ॥ तजी परिग्रह भये जगनायक, नाम अतिथि सवि सिद्धि लायक ॥ ८॥ शत्रुमित्र सम चित गणीजें, नामदेव For Private And Personal Use Only Page #217 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२.८ ) अरिहंत भणीजें, सयल जीव हितवंत कहीजे, सेवक जाणी माहापद दीजें ॥९॥ सायर जैसा होत गंभीरा, दुषण एक न मांहे शरीरा ॥ मेरु अचल जिम अंतरजामी, पण न रहे प्रभु एकण ठामी ॥ १० ॥ लोक कहे जिनजी सब देखे, पण सुपनांतर कबहुं न पेखे ॥रीश विना बावीश परीसा, सेना जीती ते जगदीशा ॥११॥ मान विना जग आण मनाई, माया विना शिवशुं लय लाई ॥ लोभ विना गुणराशि ग्रहीजें, भिरकु भये त्रिगडो सेवीजें ॥ १२ ॥ निग्रंथपणे शिर छत्र धरावे, नाम यति पण चमर ढलावे ॥ अभयदान दाता सुख कारण, आगल चक्र चले अरिदारण ॥ १३ ॥ श्री जिनराज दयाल भणीजें, करम सबै को मूल खणीजे ॥ चउविह संघह तोरथ थापे, लच्छी घणी देखे नवी आपे ॥१४॥ बीन यवंत भावंत कहावे, न कह कुं शीश नमावे ॥ अकिंचनको विरुद धरावे, पण सोवनपद पंकज ठावे ॥ १५ ॥ राग नहीं पण सेवक तारे, द्वेष नहीं निगुणा संग वारे॥ तजी आरंभ निज आतम ध्याये, शिव रमणीको साथ चलावे ॥ ॥ १६ ॥ तेरो महिमा अद्भुत कहिये, तोरा गुनको पार न ल. हीयें ॥ तुं प्रभु समरथ साहेब मेरा, हुं मनमोहन सेवक तेरा ॥१७॥ तूं रे त्रिलोकतणो प्रतिपाल, हूं रे अनाथी तुं रे दयाल ॥ तुं शर. णागत राखणधीर, तुं प्रभू तारक छो वडवीर ॥ १८ ॥ तुहि समोवड भागज पायो, तो मेरो काज चडयों रे सायो ॥ कर जोडी प्रभु विनवू तोसुं, करो कृपा जिनवरजी मोसं ॥ १९ ॥ जनम मरणना दोष निवारो, भव सागरथी पार उतारो ॥श्र For Private And Personal Use Only Page #218 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२०९) शी. . श्रीहथिगाउरमंडण सोहे, तिहां श्री शांति सदा मन मोहे ॥२०॥ पद्मसागर गुरुराज पसाया, श्री गुणसागरके मन भाया ॥ नरनारी जे चित्तें गावे, ते मनोवंछित निश्च पावे ॥ २१ ।। इति ॥ ॥अथ श्री पार्श्वनाथ छंद ।। ॥ भुजंग प्रयात वृत्तं ॥ वंदो देव वामेय देवाधि देवं, सुरा आसुरा भामुरी सारे सेवं ॥ नवे खंडमां आण अखंड जेहनी, प्रभु कांति शी भांति नहीं विश्व केहनी ॥१॥ महादुष्ट जेह विष्ट पापिष्ट पूरा, प्रभू नामथी ते दोषी जाय दूरा ॥ आवी वाट घाटें बांधे जेह ओडा, थाये आंधला ते घणा तो न थोडा ॥२॥धरा धीश धोखो धरी धोज दाखे, रागी सेवकोनी प्रभु लाज राखे । वेरिनाथ जे वातनो जोर वाध्यो, बहु नामी बंधू पलिपास बांध्यो ॥ ३ ॥ जुठी वात जंपी हियानी उपाई, मेहले साधुने असाधु पजाई ॥ साचो तो बेली छे प्रभु तुं सदाई, स्वामी तुं सधारे वधारे वडाई॥ ४ ॥ पडि वात वांधे प्रभु पार पीछो, पिठां जिहां रूठां तिहां प्रभुनी धणी छो। साचुं करी जूटुंकरयो जोर सांसो, वेहेरी थया वांसे राखो नाथ वांसो ॥ ५॥ गुडा जे गुमानी लिये गुज्जामांथी, मुंडा जे भंभेरया भरी तीरभाथी ॥ करी क्रोधने जे करे पातकेना, तमें वारज्यो तातजी नाक तेनां ॥६॥ गति गोबरा तोबरा मुखें तुच्छा, क्ली वांकडा आंकरा दार ओछा ॥ मलेच्छा यथेच्छा गच्छे मच्छराला, प्रभु पार्थध्याने नमे ते मदाला ॥७॥ क्रोधाला भूपाला हठाला कराला, वडा धिंग त्रिसिंग महासिंघ For Private And Personal Use Only Page #219 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१०) वाला ॥ रोसाला दोसाला मोसाला ते रूठा, तोसाला पोसाला हुवे पास तूठा ॥८॥ करी केसरी दाव दो जीहवाला, रणे आणव रोग महाराण पाला ॥ पडयां तास पास भांजि पास पास, घोडी सर्व त्रास आवे ते आवास ॥ ९॥ पूरे दास आशा प्रभु पास पूरी, सदा संपदा खेल सिंचे सभूरी ॥ टले आपदाने करे सार टाणे, जयकार पामे भजी जेह जाणे ॥ १० ॥ उदय उवज्झाया वदे आज पाया, विलासा सवाया सवासें वसाया ॥ लीला लहेर वाधे प्रभु नाम लीधा, बोली सर्व बाधा लह्याशं अगाधा ॥ ११ ॥ इति ॥ ॥ अथ श्री नवकारनो लघु छंद ।। ॥ सुख कारण भवियण, समरो नित्य नवकार ॥ जिन शा. सन आगम, चौद पूरवनो सार ॥ ए मंत्रनो महिमा, कहेतां न लहुं पार ॥ सुरतरु जिम चिंतित, वंछित फल दातार ॥१॥ सुर दानव मानव, सेव करे करजोड ॥ भुविमंडल विचरे, तारे भवियण कोड ॥ सुर छंदे विलसे, अतिशय जास अनंत । पेहेले पद नमियें, अरिगंजन अरिहंत ॥२॥ जे पन्नरे भेदें, सिद्ध थया भगवंत ॥ पंचमी गति पोहोता, अष्ट करम करि अंत ॥ कल अकल स्वरूपी, पंचानंतक तेह ॥ जिनवर पय प्रणमुं, बीजे पद वलि एह ॥ ३ गच्छभार धुरंधर, सुंदर शशिहर सोम ॥ करे सारण वारण, गुण छत्तीसें थोम ॥ श्रुत जाण शिरोमणी, सागर जेम गंभोर ॥ त्रीजे पद नमिये, आचारज गुणधीर ॥ ४ ॥ श्रुतधर For Private And Personal Use Only Page #220 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२११) गुण आगर, सूत्र भणावे सार ॥ तप विधि संयोगें, भांखे अर्थ विचार ।। मुनिवर गुण जुत्ता, कहीये ते उवजाय ॥ चोथे पद नमिये, अहोनिश तेहना पाय ॥ ५ ॥ पंचाश्रव टाले, पाले पंचाचार ॥ तपसी गुणधारी, वारे विषय विकार ॥ त्रसथावर पीहर, लोकमांहे जे साध ॥ त्रिविधे ते प्रणमुं, परमारथ जिणे लाध ॥६॥ अरि करि हरि सायणी, डायणि भूत वैताल ॥ सवि पाप पणासे, बाधे मंगल माल ॥ एणे समरण संकट, दूर टले ततकाल ॥ इम जपे जिनप्रभ, सूरि शिष्य रसाल ॥ ७॥ इति ॥ ॥अथ आत्महित विनति छंद ।। ॥ भुजंग प्रयात वृत्तं ॥ प्रभु पाय लागी करूं सेव ताहरी, तमे सांभलो श्रीजिन राव माहरी ॥ मने मोह वैरी पराभव करे छे, चिहुं गति तणां दूःख नहि विसरे छे ॥ १॥ हुतो लक्ष चोराशी जिव जोनि मांहे, भम्यो जन्म मरण केरे प्रभावें ॥ घणां में कीधा कर्म जे धर्म छांडी, कहुं ते सर्व सांभलो स्वामी मांडी ॥२॥ मेंतो लोभे लंपट थइ कपट कीधां, घणां भोलवी परतणां द्रव्य लीधां ॥ तो पिंड पोख्यो करि जीव हिंसा, करी पारकी कूथली स्वप्रशंशा ॥३॥ मेंतो बोलोया परतणा मर्म मोसा, नहि भांखिया आपणा पाप दोषा ॥ सदा संग कीघो परनारी केरो, नहीं पालियो धर्म जिनराज तेरो ॥ ४॥ पडयो घर तणे पाप आशा विलुद्धो, नहिं सांभल्यो जिनराज उपदेश सुधो ॥ इंतो पुत्र परिवारशुं रंग रातो, नहीं जाणियो जिनवर काल जातो ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #221 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१२) घणु आरंभर्नु पाप करी पिंड भारयो, में मूरखें नरभव फोक हारयो । गयो काल संसार एलें भयंतां, सह्या तेहथी दुर्गति दुःख अनंतां ॥ ६ ॥षणे कष्टं जिनराज हवे देव पाम्यो, त्यारे सर्व संसारनां दुःख वाम्यो ॥ ज्यारें श्री जिनराजनुं रूप दीढुं, माहरे लोचनें रूपडं अमीय वुठयु ॥७॥ आवी कामधेनु घरमांहि चाली, भरी रत्न चिंतामणि हेम थाली ॥ माहरे घर तणे आंगणे कल्पवृक्ष, फल्यो आफ्वा वांछित दानदक्षं ॥८॥ गयो रोग संताप ते सर्व माठो, जरा जन्म मरणां तणो त्रास नागे ॥ तोरे शरण आव्या तणी लाज कीजें, करया अपराध ते सर्वे खमीजें ॥९॥ घणुं विनवू छु जिनराज देवा, मुने आपजो भवोभव स्वामी सेवा ॥ यह विनति भावथी जेह भणशे, सकल चंदनो स्वामी सदा सुख करशे ॥ १० ॥ इति ।। ॥ अथ प्रभातमां भाववानी भावना ॥ आबु अष्टापद गिरनार, समेत शिखर शेर्बुजो सार: पांचे तीरथ उतम ठाम, सिद्धिवर्या तेने करु प्रणाम-१ ॥श्री सिद्धाचलने विषे आदीचर भगवान पूर्व नवाणुं वार समोसर्या, तेने मारी क्रोडकोडवार वंदना होजोजी ॥१॥ पुंड. रिकस्वामी पांच क्रोड मुनि साथे सिद्धिपदने वर्या, तेने मारी क्रो० ॥२॥राम भरत त्रण क्रोड साथे सिद्धि वर्याः तेने मारी क्रो० ॥३॥ नारदजी एका| लाख साथे सिद्धि वर्या, तेने मारी For Private And Personal Use Only Page #222 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१३ ) क्रो० ॥ ४ ॥ वसुदेवनी पांत्रीस हजार स्त्री सिद्धि वरी तेने मारी क्रो० ॥ ५ ॥ ए गिरिराजने विषे शांतिनाथ प्रभुए धणा मुनिराज साथे चोमासु कीधुं, तेने मारी क्रो० ॥ ६ ॥ थावच्चा पुत्र एक हजार साथै सिद्धि वर्षा, तेने मारी. क्रो० ॥७॥ सुभद्र मुनि सातसें साथे सिद्धि वर्या, तेने मारा. क्रो० ॥ ८ ॥ नमिविनमि विद्याधर वे क्रोड मुनि साथै सिद्धि वर्या, तेने मारी. क्रो० ॥ ९ ॥ द्राविड अने वारिखिल्यजी दश क्रोडी साथे सिद्धि वर्या, तेने मारी. ॥१०॥ सांव, मन साडा आठ क्रोडी साथ सिद्धि वर्या, तेने मारी. क्रो० ॥ ११ ॥ देवकीना षट् पुत्रो सिद्धि वर्या, तेने मारी. क्रो० ॥ १२॥ वळी ए गिरिराजने विषे कांकरे कांकरे अनंता सिद्धिपदने वर्या, तेने मारी. क्रो० ||१३|| गिरनारजीने विषे श्री नेमीनाथ भगवान बाळब्रह्मचारीपणे आ संसार दुःख रूप, दुःखे भरेलो, दुःखनी खाण, हळाहळ विष जेवो जाणीने, वळती आग जेवो जाणीने, राजेमतीने छोडी से सावन जइ दीक्षा लेइ केवळज्ञान पामी मोक्षपदने पाम्या, तेने मारी. क्रो० ॥ १४ ॥ वळी गिरनारजीने विषे मूळनायक श्रीनेमिनाथजी आदि जिनेश्वर भगवाननी अनेक प्र तिमाओ छे, तेने मारी. क्रो० ॥ १५ ॥ आबुजी उपर आदीश्वर भगवानना तथा नेमनाथजीनां देशं घणांज सुंदर छे, तेमां कोरणी कारिगरोए घणीज उत्तम करैली छे; तथा देराणी जेठाणीना करावेला गोखला, के जेमां घणीज नाना कदनी नाजुक प्रतिमाओ छे, तेने मारी. को० ॥ १६ ॥ तथा अचळगढ उपर चौदसो ने चुंबाळीस मणनी सोनानी चौद प्रतिमा, तेने मारी. क्रो० ॥ १७॥ For Private And Personal Use Only Page #223 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१४ ) सम्मेत शिखरजीने विषे बीस तीर्थंकर मोक्षपदने पाम्या, ते विशे जिनेश्वर भगवाननां पगलां छे, तेने तथा सामळीआ पार्श्वनाथजीनुं देरुं छे तेमां रहेली जिनेश्वर भगवाननी प्रतिमाजीने मारी. क्रो० ॥ १८ ॥ अष्टापदजी उपर आदिश्वर भगवान् दश हजार मुनियो साथै सिद्धि वर्या ने मारी. क्रो० ॥ १९ ॥ भरत राजाए सो - नानो मासाद कराव्यो, तेमां रत्नमयी प्रतिमा चोवीस तीर्थकरोनी भरावी तेने मारी. क्रो० ॥ २० ॥ गौतमस्वामीए प्रभुनी आज्ञा लेइ पोतानी लब्धिए करी अष्टापदनी यात्रा करी, तथा त्रीशंभक देवताने प्रतिबोध करीने पंदरसे ऋण तापसोने खीरनां पारणां कराव्यां, ते पण फक्त एकज पात्रामां थोडी खीर बोरी लाव्या, पण ते पात्रामा पोतानो अंगुठो राख्यो, तेथी तेनी लब्धिए करीने एटला बघा तापसोने खीरथी तृप्त कर्या, अने ते तापसोने एवं आश्वर्य जोइ खीर भोजन करतां तेमांना पांचसोने केवळ ज्ञान थयुं, तथा प्रभु पासे आवतां रस्तामां भावना भावतां बाकीना पाँचसोने केवळज्ञान थयुं बाकीना तापसोने प्रभुनुं समवसरण जोतांज केवळज्ञान थयुं, माटे एवा लब्धिवंत गौतमस्वामिने तथा पंदरसें त्रण तापसोने मारी. क्रो० ॥ २१ ॥ गोखले, गभारे, जाळीये, माळीए, जळमां, थळमां, मोतीमां, माणिकमां, पानामां पुस्तकमां, धातुमां, काष्टमां, चित्रामणमां, परवाळामां, भोंयमां, भंडारमां उर्ध, अधो, तीच्छ लोकने विषे, अंगुठाथी मांडी पांचसें धनुबनी जे कोइ जिनेश्वर भगवाननी नानी मोटी प्रतिमा होयः तेने मारी • क्रो० ॥ २२ ॥ चोसठ इंद्रना पूजनीक, बार गुण सहित, For Private And Personal Use Only Page #224 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१५ ) चोत्रीस अतिशयें करी विराजमान पांत्रीस गुणयुक्त वाणीए करी भाविक जीवोने प्रतिबोधे, सर्वत्र सर्व वस्तुना देखण हार, त्रिभुवनमां मांगळिकदायक, कल्पवृक्ष समान, सात भयथी रहित, त्रिभुवन गुरु, परम ठाकुर, दयावंत, जगतना बांधव, संसार समुद्रमां, द्वीप समान, त्रणे भुवनमां दीपक सरिखा,जगतमां चिंतामणीरत्न सरीखा, त्रिभुवनमा मुगट सरीखा जिनराज, मोक्षमार्गने विषे रथ समान, अशरणना शरणभुत, भवसंसारना भयटाळक, भाविक लोकोने प्रीति भोजन समान, आठ कमरुप अंगाध समुद्रतारण. वहाण समान, समयक्रिया अनुष्टानादिक गुगनी मंजुषा समान, जयवंता विषम जे कंदर्प तेनां जे बाण तेने वारवाने सनाह समान, एवा जे श्री अरिहंत भगवान तेने मारी ॥ क्रो० ॥ ॥ २३ ॥ हुं धन्य, हुं पुन्यवंत पवित्र थयो, मारो मनुष्यभव सफळ थयो, जे कारणे श्री वीतरागना चरणकमळनी मने भेट थइ. ए दिवस धन्य, कृतार्थ ए प्रहर मुमुहुर्त सुपवित्र जाणवो जे वेळा जगतगुरु जिनराजने हुँ भेटयो. आज मारे रत्नचिंतामणी कल्पवृक्ष; कामधेनु कामकुंभ ए सर्व सुर्लभ थयां, आजे मने अपूर्व वस्तु मळी, मारा मोटा भाग्यनो उदय थयो. अढार दोषरहित होय तेने तीर्थकर कहीये, रागद्वेष जीत्या छे जेणे तेने वीतराग कहीए, आठ कर्मना मंथनहार, मोक्षनगरना सार्थवाह, कर्मपीडा रहित एवा जगनाथने स्तवु छु. भरतक्षेत्रे अतीत चोवीशीमां प्रथम तीर्थकर, केव झानी, निर्वाणी आदि तथा वर्तमान प्रथम ऋषभदेव प्रमुख चोवीस तीर्थकरने, अनागत चोवीसी श्री पद्मनाभ श्री श्रेणीक For Private And Personal Use Only Page #225 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१६) राजानो जीव आदि बोहोतेर तीर्थ कर्ता, वीस वीहरमान ए सर्वेने मारी. ॥ क्रो० ॥ २४ ॥ श्री अरिहंत भगवान तथा श्री सिद्ध भगवान तथा श्री आचार्य भगवान तथा श्री उपाध्यायजी भगवान तथा श्री साधु मुनिराज भगवान ए सर्वेने मारी. ॥ क्रो० ॥ ॥ २५ ॥ ते अनंत ज्ञानमय तथा अनंत दर्शनमय तथा अनंत चारीत्रमय तथा अनंत तपमय तथा अनंत वीर्यमय एवा पंच परमेष्टी भगवान छे वळी एवं अनंत ज्ञान: अनंत दर्शन: अनंत चारीत्र: जे महारी सत्तामा छे ते प्रगट थाओ तथा सर्व जीवनी सत्ताभां छे ते प्रकट थाओ एटलज हुँ मागु छु वळी हे जीव ! तुं विचार तो कर ! जे आ संसार दुःखरुप दुःखे भरैलो छे. हळाहळ विष जेवो छे, बळती आग समान छे. वास्ते हे जीव ! तुं जाग, जाग, जो, जो, चेत, चेत, समज, समज, शुं आळस, प्रमाद करो सुइ रह्यो छे. तने कोण हितकारी छे के जे तने धर्ममा सहाय करशे ? माटे धर्म साधन करवू एज तारे करवा योग्य छे. बीजें काइज नथी. सर्वे असार छे. (श्लोक) जन्म दुःखं जरा दुःखं, मृत्यु दुःखं पुनः पुनः। संसार सागरे दुःखं, तस्मात् जागृत जागृतः।। वळी जे जीवे महारा जीवने नीगे।दमांथी बहार काढयो तेने मारी क्रोड क्रोड वार वंदना होजो. ॥२६॥ तथा मने जेणे धर्ममा जोडयो तथा सुदेव, सुगुरु, सुधर्म तेनी साची प्रतीत करावी एवा महारा धर्माचार्य भगवानने मारी० ॥ २७ ॥ तथा सर्व कर्मने क्षय For Private And Personal Use Only Page #226 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१७) करवावाल्लं एवं चारित्र ते पंचमहात आपी संसारमांथी बहार काढयो; एवा महारा गुरु महाराजने मारी क्रोड क्रोडवार वंदना होजो ॥ २८ ॥ धन्य छे जे दान दे छ तेने, धन्य छ जे शीयळ पाळे छे तेने, धन्य छ जे रुडी तपस्या करे के तेने, वळी धन्य छ जे रुडी भावना भावे छे तेने, ए सौने मारी क्रोड क्रोडवार वंदना होजोजी. ॥२९॥ श्लोक. श्रीशांतिनाथादपरोनदानी, दशार्णभद्रादपरोनमानी ! श्रीशालिभद्राद्परोनभोगी. श्रीस्थूलिभद्रादपरोनयोगी, धन्य छे श्री शांतिनाथ भगवानने, के जेने एक पारेवो उगारखा माटे पोतिकी काया उपरथी सर्वथा मुर्छा उतारी दीधी, ने पारेवाने उगार्यों, अने जे देवता एमनी परीक्षा लेवा आव्यो हतो ते देवता नमस्कार करी समकीत नीरमळ करी देवलोकमां गयो. माटे एवी दृढता तो श्री शांतिनाथ भगवानना जीवनेज रहे बीजा कोइने पण एवी दृढता रहेवी दुर्लभ. माटे श्री शांतिनाथ जेवा कोइ दानेश्वरी नहीं. श्री दशार्णभद्र जेवा कोई मानी नहीं, केमके इंद्रनी रिद्धि जोइ पोते अहंकार उतारी दीधो, ने संसार सर्वथा छोडी दइ दीक्षा लीधी. तेथी धर्मनुं मान बहुज वधार्यु. एबुं आश्चर्य जोइने इंद्रमहाराज पोते पगे लागी कहेवा लाग्या के हे दशार्णभद्र तारी मानदशा जोइने ते उतारवाने तारा करतां घणीज ऋद्धि में वीकुर्वी For Private And Personal Use Only Page #227 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२१८) शक्ति तो महारामा हती पण आ वखते ते जे चारित्ररुपी अनंत गणी ऋद्धि तारी पासे राखी छे, एवी ऋद्धि विकुर्वानी महारी शक्ति नथी. माटे हे दर्शार्णभद्र तने धन्य छे. माटे दशार्णभद्र जेवो कोइ मानी नहीं के जेने आत्मीक धर्मनु खरेखीं मान राख्यु माटे धन्य छे, दशार्णभद्रराज ऋषिने. शालिभद्र जेवो कोइ बीजो भोगी नहीं. केमके घणाए मोटा मोटा राजा थइ गया, तथा चकवति तथा बळदेव वासुदेव, वगेरे थइ गया पण कोइनी कथामां एवं नथी सांभळ्यु के आजे जे आभुपण देवतइ पहेयौं तथा देवदुष्य वस्त्र पहेरीने पाछा दररोज तेने निर्माल्य करी कुवामां नांखी दे, अने वळी ए शालीभद्र शिवाय बीजा घणाए भोगी पुरुषो थोडा भोगमां पांचे इंद्रीना तेवीस विषयो भोगवीने आरौिद्र ध्याने करी नर्कादिक चारे गतिमां खुंचाइ गया, ते हजु केटलाएक नीगोदमां पण हशे, ने ते कइ वखते मोक्षे जशे तेनुं कंइज नक्की नथी अने श्री शालीभद्रे तो संसारनां सुख संपुर्ण भोगव्यां अने ते सुखने एकदम छांडी, अने बहुज दुष्कर एवो संजमनो मेरु पर्वत जेटलो भार सहेजमा उपाडी लीधो. वळी बीजां एने केटलां आश्चर्यो कीयां छे, ते तो कहेता पार आवे नहीं, माटे एना शरीरनु सुकुमाळपणु केटलुं इतुं, तेज विचार करवो के एज राजग्रही नगरीनो राजामहारुपर्वत श्रेणिक राजा तथा चेलणाराणी जेवारे वीर भगवानने वांदवाने गयां ते वखत, चेलणानुं रुप जोइने केटलाएक साधु चलायमान थया, श्रेणिकराजानु रुप जोइने केट. लीक साधवी चळायमान थइ गइ, एवं अद्भुत श्रणिकराजानुं रुप For Private And Personal Use Only Page #228 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २१९) हशे. के जेथी वीरभगवानना समोवसरणमां साधवीओ हती, ते चळायमान थइ गइ, पण एवा रुपवाळो ने सुकुमाळ कायावाळो श्रेणिकराजा जेवारे शालीभद्रने मळवा गयो, ने भद्रामाताए तेने भद्वासनमां बेसाडयो ते वखते शालीभद्र सातमी अटारीए भोगनी लीलामा हता, पण भद्रामाताना कहेवाथी तेने नीचे आवg पडडे अने जेवा श्रेणिकराजाए ते शालीभद्रने पोताना खोलामां घणा हेतथी बेसाडयो ते वखते ए शालीभद्रने एवं लाग्युं के मने केदखानामां घाल्यो. वळी ते श्रेणीकराजाना हाथनो तथा शरीरना स्पर्श तेने गधेडाना जेवो लाग्यो. त्यारे ए शालीभद्रजीना शरीरनी सुकुमाळता केटली हशे ? ते कही शकाय नहीं. माटे एवा मुकुमाळ शरीरवाळा शालीभद्रजीए संसारना भोग जलदी तजी दीधा ते दीक्षा लेइने बार वरस प्रभुनी साथे वीचर्या घणी घणी आकरी तपस्या करो शरीर बळेला लाकडांना कोयला जेवू करी नांख्यु, अने महा शुरवीरपणे प्रभुनी आज्ञा लइने अनशन पण कीg. एकावतारी सरवार्थसिद्धमां देव थयो. माटे संसारना सुंदर भोग भोगवी तेने छोडतां पण वार लागी नहीं. अने पोताना आत्मानु साधन पण रुडी रीते की, माटे शालीभद्र जेवो बीजो कोइ भोगी नहीं माटे धन्य छे शालीभदना वैराग्यने !! ___स्थुलीभद्र जेवो बीजो कोइ जोगी नहीं, केमके साधु तो घणाए यइ गया,पण वेश्याना घरमां रहीने कामने जीत्यो, ए बहुज दुष्कर. बीजा कोइज साधुथी नहीं थाय. केमके ते वेश्यान देवांगना जेवू. रुप तया स्थुलीभद्र उपर घणोज राग तथा वर्षाऋतु तथा चीत्रा For Private And Personal Use Only Page #229 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२०) मणशाळा तथा कामना वीकार जागे एवो सरस अहोर तथा अपछराना जेवां वेश्याए आभुषण पहेरी शणगार सजेलो तथा तेना कटाक्षणबाण काम जागे तेवां, वळी रागना पचन सदाए बोले, एटला बधा अनुकुळ परीसह जीतवाने केशरीसिंह जेवा श्री स्थुलीभद्र जेवा कोइ जोगी नहि. माटे धन्य छे श्री स्थुलीभद्रजी जोगीने, के जेनुं नाम देतां कर्म छुटी जाय. | इति भावना संपूर्ण । ॥अथ प्रभातनां पच्चरकाण ॥ ॥ प्रथम नमुकारसहि मुठसहिचें ॥ ॥ उग्गएमरे, नमुक्कारसहिअं, मुठिसहिथं पच्चरकाइ ॥ चउविहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाइमं, साइमं ॥ अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सब्यसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरे ॥१॥ ॥बीजु पोरिसि साढपोरिसिजें ॥ ॥ उग्गएमूरे, नमुक्कारसहिअं, पोरिसिं, साढपोरिसिं मुठिसहिअं, पच्चरकाइ ॥ उग्गएमरे, चउविहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाइमं साइमं ॥ अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारैणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं,साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरे ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #230 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२१) ॥त्रीजु अथ पुरिमड़ अबड्नु पच्चख्खाण ॥ ॥ सूरे उग्गए नमुक्कारसहिअं पुरिमळू अवडूं मुठिसहि पञ्चख्खाइ. सूरे उग्गए चउन्विहंपि आहारं असणं पाणं खाइमं साइमं अन्नत्यणाभोगेण सहसागारेणं पच्छन्नकालेणं दिसामोहेणं साहुवयणेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे ॥३॥ ॥ चो) अथ विगइ निविगइनु पञ्चख्खाण ॥ ॥ विगइओ 'निविगइअ पञ्चख्खाइ अन्नत्यणाभोगेणं सहसागारेणं लेवालेवेणं गिहत्थसंसठेणं उख्खित्तविवेगेणं पडुचमख्खिएणं पारिठावणियागारेणं महत्तरागारेणं सव्वसमाहिवत्तियागारेणं वोंसिरे ॥४॥ ॥पांचसु बियासणाएकासणानुं पचरकाण ॥ ॥ उग्गएमरे, नमुकारसहिअं, पोरिसिं साइपोरिसिं, पुरिमई मुठिसहिअं, पञ्चख्खाइ ॥ उग्गएमरे, चउव्विहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाइम, साइमं ॥ अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सब समाहिवत्तियागारेणं, (विगइओ पच्चरकाइ ॥ अन्नत्यणाभोगेणं, सहसागा. रेणं, लेवालेवेणं, गिहत्यसंसठेणं, उरिकत्तविवेगेणं, पडुच्चमरिकएणं, पारिठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं,) १ सर्व विगयनो त्याग करवो होय तो ए आगार कहेवो. २-३ कोसवाला आगार विगइर्नु पचखाण करवु होय तो कहेवा. विगयत्यागन करवी होय तोए आगार कहेवानी जरुर नथी. For Private And Personal Use Only Page #231 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२२२) "बियासणं पचरकाइ, तिविहंपि आहारं, असणं, खाइम, साइमं, अन्नत्थणा भोगेणं, सहसागारेणं, सागारियागारैणं, आउंटण पसारेणं, गुरु अब्भुठाणेणं, पारिठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागरेणं ॥ पाणस्स लेवेणवा, अलेषेण वा, अच्छेण वा बहुलेवेण वा, ससित्थेणवा, असित्थेणवा, वोसिरे ॥ जो एकासणानुं पञ्चरकाण करवं होय तो, बियासणंने ठेकाणे एकासगंनो पाठ केहेवो ॥ इति वियासणा एकासणानु पञ्चरकाण समाप्त ॥५॥ ॥छटुं आयबिल, पञ्चरकाण ॥ ॥ उग्गएसूरे, नमुक्कारसहि, पोरिसिं, साढपोरिसिं, मुठिसहि पञ्चरकाइ ॥ उग्गएमरे चउन्विहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाइमं, साइमं, अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसामोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं ॥ आयंबिलं पञ्चरकाइ ॥ अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, लेवालेवेण, गिहत्थसंसठेणं, उरिकत्तविवेगेणं, पारिठावणियागारेण,महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं ॥ एगासणं पञ्चरकाइ ।। तिविहंपिआहारं, असणं, खाइम, साइमं ॥ अन्नत्यणाभोगेणं, सहसागारेणं, सागारिआगारेणं, आउंटण पसारेणं, गुरुअाभुठाणेणं, पारिठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं ।। पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससिस्थेण वा, असित्थेण वा, वोसिरे॥ इति आयंबिलन पच्चरकाण॥६॥ . ॥सातमुं चउविहार उपवासन ॥ ॥ सूरेउग्गए अभत्तठं पञ्चरकाइ ॥ चउन्विहंपि आहारं,असणं, For Private And Personal Use Only Page #232 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२२३) पाणं, खाइम, साइमं, अन्नत्यणाभोगेणं, सहसागारेणं, पारिठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे॥इति॥ चउविहार उपवास- ॥ ७॥ ॥ आठमुं तिविहार उपवासद् ॥ मरेउग्गए, अप्मत्तठं पञ्चरकाइ ॥ तिविहंपि आहारं, असणं, खाइम, साइमं, अन्नत्थणामोगेणं, सहसागारेण, पारिठावणियागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं ॥ पाणहार पोरिसिं, साढपोरिसिं, मुठिसहिअं, पञ्चरकाइ ॥ उग्गए सूरे पुरिमई, अवडु, पच्चरकाइ ॥ अन्नत्यणाभोगेणं, सहसागारेणं, पच्छन्नकालेणं, दिसा. मोहेणं, साहुवयणेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारेणं ॥ पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अत्थेण वा, बहुलेवेण वा, ससिस्थेण वा असित्येण वा, बोसिरै ॥ इति तिविहार उपवासनु पच्चरकाण ।। ८॥ ॥ नवमु चउत्थ छठ भत्तादिकनुं पच्चख्खाण आवी रीते कहेवू ॥ सूरे उग्गए चउत्थभत्तं अभत्तठं पच्चख्खाइ. सूरे उग्गए छठभत्तं अभचठं पच्चख्खाइ, सूरे उग्गए अठमभत्तं अभत्तठं पच्चख्खाइ, इत्यादिमकारें आगार सहित कहे, ॥ ९ ॥ ॥ दशसुं छठ अठमादिक तप करे अने बीजा दिवसादिकें पाणी वावर, होय त्यारेपाणहारनुं पच्चख्खाण करे, ते कहे छे.॥ ॥ पाणहार पोरिसिं मुठिसहिअं पच्चख्खाइ. अन्नत्थणा For Private And Personal Use Only Page #233 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२२४) भोगेणं, सहसागारेणं, भहत्तरागारेण, सन्चसमाहिवत्तियागारेणं, पाणस्स लेवेण वा, अलेवेण वा, अच्छेण वा, बहुलेवेण वा, ससिस्थेण वा, असित्थेणवा, वोसिरे ॥ इति ॥ १०॥ ॥अगीआरमुं गठसहियं आदि अभिग्रहोर्नु पचरूखाण ॥ ॥ गंठसहिअं वेडसहिअं दिवसहि थिबुगसहि मुठिसहिअं पञ्चख्खाइ. अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारेणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरै ॥११॥ ॥ बारमुं चउदनियम धारनारने देसावगासिकनुं पच्चख्खाण ॥ देसावगासियं उवभोग परिभोगं पच्चख्खाइ अन्नत्थणाभोगेणं सहसागारैणं महत्तरागारेणं सबसमाहिवत्तियागारेणं, वोसिरै इति ॥ १२॥ ॥अथ सांझना पच्चरकाण ॥ ॥ तिहां प्रथम बीयासणं, एकासणं, निविगइ, आयंबिल, तिविहार उपवास अने छठ अटमादि जा करे तो तेणे पाणहारनुं पच्चरकाण करवू, ते आवी रीतेः ॥पाणहार दिवसचरिमं पच्चरकाइ ॥ अन्नत्थगाभोगेणं, सहसागारैण, महत्तरागारेणं, सन्चसमाहिवत्तियागारेणं वासिरे ॥ इति ॥१॥ ॥बाजुं चउबिहारनुं पच्चख्खाण ॥ ॥ दिवस चरिमं पचख्खाइ ।। चउन्विहंपि आहारं, असणं, पाणं, खाइमं, साइमं ॥ अन्नत्थणाभोगेणं, सहसागारेण, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारैणं वोसिर । इति ॥२॥ For Private And Personal Use Only Page #234 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir Achana ( २२५) ॥त्रीजु तिविहार- पञ्चरूखाण ॥ ॥ दिवसचरिमं पञ्चरकाइ॥ तिविहपि आहारं, असणं, खाइम, साइम, अन्नध्यणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवत्तियागारणं वोसिरे ॥ इति तिविहार- ॥ ३ ॥ ॥ चोथु दुविहार- पञ्चरखाण ॥ ॥ दिवस चम्मिं पञ्चख्खाइ ।। दुविहंपि आहारं, असणं, खाइमं, अनथ्यणाभांगेणं, सहसागारेणं, महत्तगगारेणं, सध्वसमाहिवत्तियागारेणं वोसिरे इति ॥ ४ ॥ ॥ पांचमु जे नियम धारे तेने देशावगासियर्नु पञ्चख्खाण कर, तेनो पाठ ॥ देसावगासि उवभेगं परिभोगं पञ्चख्खाइ ॥ अनथ्थणाभोगेणं, सहसागारेणं, महत्तरागारेणं, सव्वसमाहिवचियागारेणं बोसिरे ॥५॥ श्री रत्नाकर पच्चीशीना गुजराती अनुवादना काव्यो. ॥हरिगित छंदनो चाल उपर ॥ मंदिर छो मुक्तितणी मांगल्य क्रिडाना प्रभु । ने इन्द्र नर ने देवता सेवा करे तारी विभु ॥ सर्वज्ञ छो स्वामी बळी शिरदार अतिशय सर्वना । घणुं जीव तुं घणु जीव तुं भंडार ज्ञान कळा तणा ॥१॥ For Private And Personal Use Only Page #235 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२६ ) त्रण जगतना आधार ने अवतार हे करुणा तणा । बळी वैद्य हे दुर्वार आ संसारनां दुःखो तणा ।। वीतराग वल्लभ विश्वना तुज पास अरजी उच्चरुं ॥ जाणो छतां पण कही अने आ हृदय हुं खाली करूं ॥२ शुं बाळको माबाप पासे बाळकिडा नव करे । ने मुखमांथी जेम आवे तेम शुं नव उच्चरे ॥ तेमज तमारी पास तारक आज भोळा भावथी । जेवुं बन्युं ने कहुं तेमां कथं खोडं नथी ॥३॥ में दान तो दीधुं नहि अने शियळ पण पाळ्युं नहि । तपथी दमी काया नहि शुभ भाव पण भाव्यो नहि ॥ ए चार भेदे धर्ममांथी कांइ पण प्रभु नव कर्यु । म्हारुं भ्रमण भवसागरे निष्फळ गयुं निष्फळ गयुं ॥४॥ हुं क्रोध अग्नियी बळ्यो वळी लोभ सर्प डश्यो मने । गळ्यो मान रुपी अजगरे हुं केम करी ध्यावुं तने १ ॥ मन मा माया जाळ्मां मोहन ! महा मुंझाय छे, ॥ चडी चार चोरो हाथमां चेतन घणो चगदाय छे. ॥५॥ में परभवे के आ भवे पण हित कांई कर्यु नहि । तेथी करी संसारमां सुख अल्प पण पाम्यो नहि ॥ जन्मो अमारां जिनजी ! भव पूर्ण करवाने थया । आवेल बाजी हाथमां अज्ञानयी हारी अमृत झरे तुज मुखरुपी चंद्रथी तो पण प्रभु । भिजाय नहि मुज मन अरेरे! शुं करुं हुं तो विभु ॥ गया ॥ ६ ॥ For Private And Personal Use Only Page #236 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२७ ) आपना । घणां ॥ पत्थरथकी पण कठण मारुं मन खरे मरकट समा आ मनथकी हुं तो प्रभु भ्रमता महा भवसागरे पाम्यो पसाए जे ज्ञान दर्शन चरणरुपी रत्न तो दुष्कर ते पण गया परमादना वशश्री प्रभु कहुं हुं खरुं । कोनी कने किरतार आ पोकार हूं जइने करूं ! ||८|| ठगवा विभु आ विश्वने वैराग्यनां रंगो धर्यो । ने धर्मना उपदेश रंजन लोकने करवा कर्या ॥ विद्या भण्यो हुं वाद माटे केटली कथनी कहुं । साधु थइने व्हारथी दांभिक अंदरथी रहुं ॥ में मुखने मेलुं कर्यु दोषो पराया गाइने । ने नेत्रने निंदित कर्यो परनारीमां लपटाइने | वळी चित्तने दोषित कर्यु चिंती नढारं परतणुं । हे नाथ! मारुं शुं थशे चाल्लाक थइ चुक्यो घणुं ॥ १० ॥ करे काळजाने कतल पीडा कामनी बिहामणी । ए विषयमां बनी अंध हं विडंबना पाम्यो घणी ॥ ते पण प्रकाश्यं आज लावी लाज आप तणी कने । जाणो सहु तेथी कहुं कर माफ मारा वांकने ॥ ११ ॥ नवकार मंत्र विनाश कीधो अन्य मंत्री जाणीने । कुशानां वाक्योवडे हणी आगमोनी वाणीने ॥ कुदेवनी संगतथकी कर्मों नकामां आचर्यो । मति भ्रमणथी रत्नो गुमावी काच कटका में ग्रह्मा ॥ १२ ॥ क्यांथी द्रवे । हार्यो हवे ॥७॥ For Private And Personal Use Only Page #237 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२८ ) आवेल दृष्टि मार्गमां मूकी महावीर आपने । मे मूढधिये हृदयमां ध्याया मदनना चापने ॥ नेत्रवाणो ने पयोधर नाभी ने सुंदर कटी | शणगार सुंदरीओ तणा छटकेल थइ जोया अति ॥ १३ ॥ मृगनयणी सम नारीतणां मुखचंद्र नीरखवा वती । सुज मन विषे जे रंगलाग्यो अल्प पण गूढो अति ॥ ने श्रुतरुप समुद्रमां धोया छतां जातो नथी । तेनुं कहो कारण तमे बचुं केम हुं आ पापथी ॥ १४ ॥ सुंदर नथी आ शरीर के समुदाय गुगतो नयी । उत्तम विलास कातणो देदीप्यमान मभा नथी । प्रभुता नथी तो पण प्रभु अभिमानथी अकड फरूं । चोपाट चार गतितणी संसारमां खेल्या करूं ॥ १५ ॥ आयुष्य घटतुं जाय तोपण पापबुद्धि नव घटे । आशा जीवननी जाय पण विषयाभिलाषा नव मटे ॥ औषध विषे करूं यत्न पण हुं धर्मने तो नव गणुं । बनी मोहमां मस्तान हुं पाया विनानां घर चणुं ॥ १६ ॥ आत्मा नथी परभव नथी वळी पुण्य पाप कशुं नथी । मिथ्यात्वनी कटुवाणी में धरी कान पीधी स्वादथी ॥ रवी सम हता ज्ञाने करी प्रभु आपश्री तो पण अरे । दीवो लइ कुवे पडयो धिक्कार छे सुजने खरे ॥ १७ ॥ में चित्तथी नहि देवनी के पात्रनी पूजा चही । ने श्रावको के साधुओनो धर्म पण पाळयो नहि ॥ For Private And Personal Use Only Page #238 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २२९ ) पाम्यो प्रभु नरभव छतां रणमां रडया जेवु थयु । धोबी तणा कुत्ता समुं मम जीवन सहु एळे गयुं ॥१८॥ हुं कामधेनु कल्पतरु चिंतामणिना प्यारमा । खोटां छतां झंख्यो घणुं बनी लुब्ध आ संसारमा॥ जे प्रगट सुख देनार रहारो धर्म ते सेव्यो नहि । मुज मूर्ख भाकोने निहाळी नाथ कर करणा कंइ ॥१९॥ में भोग सारा चिंतव्या ते रोगसम चित्या नहि । आगमन इच्छयुं धनतणुं पण मृत्युने पीछयुं नहि ॥ नहि चिंतव्यु में नर्क काराग्रह समी छे नारीओ । मधुबिंदुनी आशामहीं भय मात्र हुँ भुली गयो ॥२०॥ हुँ शुद्ध आचारोवडे साधु हृदयमा नव रह्यो । करी काम पर उपकारना यश पण उपार्जन नव कर्यो । बळी तीर्थना उद्धार आदि के कार्यों नव कयौं । फोगट अरे ! आ लक्ष चोराशीतणां फेरा फर्या ॥२॥ गुरुवाणीमां वैराग्य केरो रंग लाग्यो नहि अने । दुर्जनतणां वाक्यो महीं शांति मळे क्याथी मने ? ॥ तरुं केम हुँ संसार आ अध्यात्म तो छ नहि जरी । तुटेल तळोयानो घडो जळथी भराये केम करी ॥२२॥ में परभवे नथी पुण्य कीधुं ने नथी करतो हजी । तो आवता भवमां कहो क्याथी थशे हे नाथजी ? ॥ भूत भावी ने सांप्रत त्रणे भव नाथ हुं हारी गयो । स्वामी त्रिशंकु जेम हुं आकाशमां लटकी रह्यो ॥२३॥ For Private And Personal Use Only Page #239 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( २३०) अथवा नकामुं आप पासे नाथ शुं बक, घणुं ?। है देवताना पूज्य ! आ चारित्र मुज पोतातणुं ॥ जाणो स्वरुप त्रण लोकनुं तो म्हारुं शुं मात्र आ । ज्यां क्रोडनो हिसाब नहि त्यां पाइनी तो वात क्या ? ॥२४॥ हाराथी न समर्थ अन्य दीननो उद्धारनारो प्रभु । म्हाराथी नहि अन्यपात्र जगमा जोतां जडे हे विभु !॥ मुक्ति मंगळस्थान ! तोय मुजने इच्छा न लक्ष्मी तगी। आपो सम्यगरत्न श्याम जीवने तो तृप्ति थाये घणी ॥२६॥ ॥१॥ आदिजिन आरती ॥ पहेली आरती प्रथम जिणंदा, शेर्बुजा मंडण ऋषभ जिणंदा ॥ आरती कीजे जिनराज तुमारी ॥१॥ दुसरी आरसी मारू देवी माता, युगला धर्म निवार करंदा. ॥ आ.२॥ वीसरी आरती त्रिभुवन मोहे,रत्न सिंघासण मारा प्रभुजीने सोहे।आ.३ चोथी आरती नित्य नवी पूजा,देव निरंजन अवर न दुजा ॥आ.॥४॥ पांचमी आरति प्रभुजीने भावे,प्रभुजीना गुण सेवक इम गावे|आ.५इति ॥२॥ श्री वर्द्धमानजिन आरति. श्री सरस्वती माइ, कृषा करो आइ; सरस वचन सुखदाइ, यो मुज चतुराइ-जय देव, जय देव १ श्रीवर्द्धमान देवा,जगमा नहि एवा;पातक दूर करैवा,करे इंद्र सेवा.जय०२ रत्नत्रयराया,त्रिशलाना जाया;सिद्धास्थ कुळ आया,कंचनमय काया.ज.३ शासन बहु सारो,लागे मुज प्यारो;संकट दूर निवारो,भवसायर तारो.४ त्रिभुवन तुम स्वामी,कर्म मेल वामी;केवलज्ञान सुपामी,शिवपुरनास्वामी५ For Private And Personal Use Only Page #240 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir (२३१) भव आरत टालो,नेह नजरन्याळी; मयाकरी मुन उपर,कृपा करीमुन उपर, मुज कर तुम झालो. --जय० ६ ॥१॥ मंगळ दीवो. दीवोरै दीवो मंगळिक दीवो आरति उतारण बहु चिरंजीवो-दीवो०१ सोहामणुं घेर पर्व दीवाळी;बर खेले अमराबाळी-दीवो० ॥२॥ दीपाळ भणे एणे कुळ अजुआनी भावे भक्ते वदन निहाळी-दोवो०॥३॥ दीपाळ कवि कहे इण कलिकाले आरति उतारी राजा कुमारपाले-दी०४ अम घेर मंगलिकतम घेर मंगळिक सकळ संघ घेर मंगब्कि होजो-दी०५ ॥२॥ मंगळ दीवो. चारो मंगळ चार आजे मारे, चारो मंगळ चार, देख्यो दरश सरस जीनजीको, शोभा सुंदर सार. आजे० १ छीन छीनुं छीन मनमोहन चरच्यो, घसी केशर घनसार, आ० २ विवीध जातीके पुष्प मंगावो, मोगर लाल गुलाल. आजे० ३ धुप ऊखोने करो आरती, मुख बोलो जयकार. आजे० ४ हर्ष घरी आदेश्वर पुजो, चौमुख प्रतीमा चार. आजे०५ हैये धरी भाव भावना भावो, जीम पामो भवपार.. आजे०६ सांकळचंद सेवक जोनजीको, आनंदघन उपकार. आजे० ७ ममात For Private And Personal Use Only Page #241 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ___ पोष्ट पें. व HTTARAKAR जाहर खबर. निचे लखेला पुस्तको किंमत अने पोष्ट पैकिंग खर्च साथे पैशाआगाऊ मोफलनारने निचना सरनामेथी मळी शकशे. व्ही. पी. थी मंगावनार डीपाझीट तरीके आगाऊ आठ आना मावलशे तो तेमने बाकी रकम बाबद व्ही. पी. करी मोकलवामां आवशे. नंबर, पुस्तष नुं नाम किंमत. रु.आ पै." रु.आ.पै. १ चैत्यवंदन स्तुति ग्तवनादि संग्रह ०-१०-० ०.२-६ २ चैत्यवदन स्तुति स्तवनादि संग्रह भाग पहेलो ०.६.० ०-२-० ३ ,, ,, भाग त्रीजो आवृत्ती बीजी २-०-० ०-८-० ४ दंडकादी (४.) द्वार पाकापुठानी ०.६.० । ०-३-० ५ ,,, काचापुठानी ०.४-० ०.२.६ ६ मुक्त मुक्तावली पाकापुंठानी १-०-० ०.४.० ७ श्री शत्रुजय महा तीर्थादि यात्रा. विचार पाका पुठानी। ०-६.० ०-२-० ८ , , काचापुठानो ०४.० ०-१-६ ९ , , गुजगती टाईपनी ०.४.० 0-२-० १० संगीत स्तवनावली भाग पहेलो ०-२-० । ०.०.६ ११ गुंहली संग्रह भाग पहेलो ०.१-० ०.०-६ १२ अष्टप्रकारी तथा स्नात्र पूजा ०-३.० ०.१.. वेताळ पेठ घर नं० ३५६ शा. शेवनाथ लुंबाजी जैनपुस्तकालय पुना सिटी. पोरवाल एन्ड कपनी. For Private And Personal Use Only Page #242 -------------------------------------------------------------------------- ________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir sponseccceccaveeeeeeeeeeeeeee शुतमारे ताकात अने तंदुरस्ति वधारवीछे के ? होय तो; पोरवाल ब्लॅक टुथ पावडर अने मदन मस्त चूर्ण दररोज वापरो. पोरवाल ब्लॅक टुथ पावडर-आ पावडर देशी वनस्पतिमाथी 4. बनाव्यो छे.. तेना वपरासथी दांत स्वच्छ अने धणाज मजबुत बनी दांतोना हरेक प्रकारना रोगोने नाबुद करे छे. ऋण माहिना चाले तेटली बाटलीनी कीमत पांच आना अने एक वर्ष चाले तेवडी मोटी बाटलीनी कीमत सवा रुपीओ पोस्ट खर्च जुदु. मदन मस्त चूर्ण. आ एक लोही सुधारनार अने शक्तिवर्धक बन स्पतीमाथी बनावेलु उत्तम चूर्ण छ-माटे तेनो दररोज उपयोग करवाथी अजीर्ण अशक्तता आदि तमाम रोगो नाबुद करी शरीरमां ताकाद अने लोहीने पुरता प्रमाणमां वधारे छे अने बुद्धिने तेजस्वी करी सूखने वधारछे बाटली एकनी कीमत आना इस. रतल एकना रुपीया अडी, पोरवाल आइन्ट मेन्ट-दादर अने खरजवा माटे घणीज अकसीर छे की. बा.१ ना आना चार. पोरवाल बॉम-शरीरना सांधाओ तथा मांथाना दुखावा पर चोळवाथी तरत आराम थाय छे. की बा.१ ना आना आठ. पोरवाल एग्युस्पेसिफीक-सरवे जातना ताव उपर रामबाण औषध की, बा 1 ना. बार आना. आ सिवाय बीजा रोगो उपर खात्रीनी दवाओ अमारा त्यां तैयार मलशे (दरेक ठेकाणे एजन्टोनी जरुर छे.) मुंबई एजन्ट:-जसवंतराज तेजराज एन्ड को. गिरगाव बेकरोड मुंबईन.४ सोल एजन्ट-पोरवाल एन्ड को. (रजिष्टर्ड) 356 बेतालपेठ पुनासिटी. WAVARANASALPORNOOG For Private And Personal Use Only