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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir ( ९७ ) ॥ श्री सिद्धाचळजीनी स्तुति ॥ ॥ श्री शत्रुंजय गीरी तीरथ सारः ।। ए देशो || || जिहां अगण्योतेर कोडाफोडी, तिम पंचाशी लाख वळी कोडी, चुमाळीश सहस्र कोडी | समवसर्या जिहाँ एतिवार, नवाणु एम प्रकार, नाभि नरेंद्र मल्हार ॥ १ ॥ सहस्त्रकूट अष्टापद सार, जिन चोवीश तथा गणधार, पगलांनो विस्तार ॥ वळो जिनवित्र तणो नहीं पार, देहरी थंभे बहु आकार, बंदु विमलगिरि सार ॥ २ ॥ " शी सीत्तेर साठ पचास, बार जोजन माने जस विस्तार, इग बिति च पण आर || मान कहां तेनुं निरधार, महिमा एहनो अगम अपार, आगम मोहे उदार ॥ ३ ॥ चैत्री पूनम दिन शुभ भावे, समकित दृष्टि सुर नर आवे, पूजा विविध रचावे || ज्ञानविमलसूरि भावना भावे, दुर्गति दोहन दूर गमावे, बोधबीज जस पावे ॥ ४ ॥ ॥ चैत्री पुनमनी स्तुति ॥ ॥ श्री विमलाचळ सुंदर जाणु, ऋषभ जिहां आव्या पूर्व जवाणुं, तीर्थ भुमीका पीछाणुं । तें तो शास्वव माय गिरींद, पूर्व संचित पाप निकंद, टाळो भव भय फंद ॥ पूरव साहामा अति हे उदार, बेठा सोहे नाभी मल्हार, सनमुख पुंडरीक सार । चैत्री पूनम दिन जे अजुआछी, भवियां आराधों मिध्यात्व टाली, जिम For Private And Personal Use Only
SR No.020138
Book TitleChaityavandan Stuti Stavanadi Sangraha Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorShivnath Lumbaji
PublisherPorwal and Company
Publication Year1925
Total Pages242
LanguageSanskrit, Hindi, Gujarati
ClassificationBook_Devnagari
File Size10 MB
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