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(९८) छहो शिववध नारी ॥१॥ आबु अापद ने गिरनार, समेतशिखर ने वली वैभार, पुंडरीक चैत्य जुहार । श्री जिन अजित तारंगे लहीये, श्री वरकाणोजी बंभण वाडे, तोडे फर्मनी जाडे ।। नारंगो संखेश्वरो पास, श्री गोडीजी पुरे आस, पोसीना जिन मुविलास । चैत्री पूनम दिन सुंदर जाणी, ए सवि पूजा भव्य प्राणी, जेम थावो केवल नाणी :२॥ भरत आगल श्री ऋषभजी बोले, नहि कोइ चैत्री पूनम दिन तोले, इम जिन वचनज बोले । चैत्री पूनम दिन ए गीरी आत, छठ करी जात्रा सात करंत, बीजे भव मुक्ति लहंत ॥ चैत्री पूनम दिन ए गिरी सिद्ध, पांच कोडी केवलीथी प्रसिद्ध, पुंडरीक शिवपद लीघ । इम जाणीने भवियो आराधो, चैत्री पूनम दिन शुभ चित्त साधो, मुक्तिना खातां बांधो ॥३॥ पुंडरीक गीरीनी शासन देवी, मरुदेवा नंदन चरण पुंजेवी, चक्केश्वरी तुं देवी । चउविह संघने मंगल करजो, तुज सेवक पर लक्ष्मी वरजो, सयल विधन संहरजो ॥ अमतिचक्र तुं मोरी मोत, तुं जाणे मोरा चित्तनी धात, पूरजे मननी वात । पंडित अमर केसर मुपसाय, चैत्री पूनम दिन महा लहाय, लन्धी विजय गुण गाय ॥ ४ ॥
॥ सिकचकनी स्तुति ॥ मह उठी बंदु, सिद्धपक सदाय, मपीए नवपदनो, भाप सदा मुखदाय; विधिपूर्वक ए तप, जे करे या उनमाळ, ते सवि मुख
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