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योनि जयंकरू, अधिनीय अवतार ।। १ ।। सुरगण राशि मेष ले, बंदित स्वर्गीलोक ।। छमस्था अहो रातिनी, केवल वृक्ष अशोक ।। ॥ २ समवसरणे बेशो करीए, तीर्थ प्रवर्तन हार ।। वीर अचल सुखने, वर्या पंचसया परिवार ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ श्री मुनिसुव्रतजिन चैत्यवंदन, ॥
। सुव्रत अपराजितथी, राजगृही रेहठाण ।। वानर योनि राजती, सुंदर गण गिर्वाण ॥ १ ॥ श्रवण नक्षत्रे जनमिया, सुरवर जय जयकार ॥ मकरराशि छद्मस्थमां, मौन मास अगियार ॥२॥ चंपक हेठे चांपिया ए, जे घनघाति चार ॥ वीरवडो जगमा प्रभु, शिवपद एकहजार ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ बीजु.॥
॥ जपो नीरंतर नेहशुं, वीशमो जीनराय ॥ मित्रराय पदमाचती, सुतसु मुन माया ॥ १ ।। कछप लंछन धनुष वीश, श्याम चणि काया ॥ त्रीश सहस वरस आउखु, हरीवंश दोपाया ॥२॥ मुनीसुव्रत महिमा नीलोए, जन्म राजग्रही नास ॥ रुपविजय कई साहेबा, नामे लोल वोलास ॥ ३ ॥ इति ॥
॥ श्री नमिनाथजोर्नु चैत्यवंदन ॥ ॥ विजय राय विभा घणी, मीथीगनो नाथ ॥ धनुश पंदर
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