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(८२.) मुगते गयानित्य उठी बंदु ॥२॥ शांति जिनेसर केवली, पेठा धर्म प्रकाशे ॥ दान शोयल तप भावना, नर सोहे अभ्यासें ।। एह वचन जिनजी तणां, जिणे दियडे धरियां ॥ सुणतां समकित निर्मळ, दीसे केवल वरिया ॥ ३ ॥ समेत शिखर गिरि उपरे, जइने अणसण कीधुं ॥ काउसग्ग मुद्रायें रखा, तिणे मुगतिज लीधुं ॥ गरुड यक्ष समरु सदा, देवी निर्वाणी ।। भविक जीव तुमे सांभलो, रिख. भदासनी वाणी ॥ ४ ॥ इति ।
॥ अथ श्री नेमनाथ जिन स्तुति ॥
॥ कनक तिलकभाले । ए देशी ॥ ॥ दुरित भय निवारं, मोह विध्वंसकारं । गुणवत मविकारं, मासिद्धि दारं ॥ जिनवर जयकारं, कर्म संक्लेश हार, भवाल निधितारं, नौमि नेमिकुमारम् ॥ १ ॥ अड जिनवर माता, सिद्धि सौधे प्रयाता ।। अह जिनवर माता, स्वर्ग श्रीजे विख्याता ॥ अर जिनवर माता, प्राप्त माहेंद्र स्याता ॥ भव भय जिन पाता, संतने सिद्धि दाता ॥ २ ॥ ऋषभ जनक जावे, नागपुर भाव पावे ॥ इशान सग कहावे, शेष कांता सभाधे ॥ पदमासन मुहावे, नेम आत पावे ॥ शेष काउस्सग्ग भाषे, सिदि सूत्रे पठाये ॥३॥ दाइन पुरुष जाणी, कृष्ण वर्णे प्रमाणी ॥ गोमेधने पट पाणी, सिंह घेठी वराणी ॥ तनु कनक समाणी, अविका पार पाणी ।। मेम भगवि भराणी, वीरविनवे पलानी ॥४॥
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